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सुषुम्ना नाड़ी ,जागरण की विधि और लक्षण।Sushumna Nadi ,Jagran Ki Vidhi Aur Lakshan.

आज हम बात कर रहे है,सुषुम्ना नाड़ी ,जागरण की विधि और लक्षण।Sushumna Nadi ,Jagran Ki Vidhi Aur Lakshan. सुषुम्ना नाड़ी की हमारे शरीर में वैसे तो लाखों नाड़ियों का जाल बिछा हुआ है जो प्राणिक ऊर्जा के प्रवाह को बनाये रखती है। इन में से तीन नाड़ियों को प्रमुख नाड़ियां माना गया है। ये नाड़ियां सुषुम्ना, इड़ा और पिंगला हैं । इन नाड़ियों का अपना अपना कार्य है, जो विभिन्न प्राण ऊर्जाओं का परिवहन करती है।

ये तीनों नाड़ियां हमारे मूलाधार चक्र से उत्पन्न होकर मेरूदण्ड के साथ साथ सहस्त्रार चक्र तक चलती है। इनमें इड़ा नाड़ी मेरूदण्ड के बांयीं ओर पिंगला दांयीं ओर एवं सुषुम्ना मेरूदण्ड के मध्य में हमारे सातों ऊर्जा चक्रों का भेदन करती हुई उर्ध्वगमन करती है। हमारी इड़ा नाड़ी जिसे स्त्रियोंचित गुणों की एवं शीतल प्रकृति की नाड़ी कहा जाता है। पिंगला नाड़ी जिसे पुरूषोचित गुणों एवं उष्ण प्रकृति की नाड़ी माना जाता है। इन नाड़ियों की ऊर्जाओं का सन्तुलन होने से ही सुषुम्ना नाड़ी में ऊर्जा का प्रवेश हो सकता है,वह सक्रिय हो सकती है।

Sushumna Nadi ,Jagran Ki Vidhi Aur Lakshan.
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सुषुम्ना नाड़ी जैसे जैसे उर्ध्वगमन करती है वह क्रमशः मूलाधार चक्र,स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुरम चक्र,अनाहत चक्र,विशुद्धि चक्र,आज्ञा चक्र,और हमारे सहस्त्रार चक्र का भेदन कर उन्हें जागृत(सक्रिय) करती हुई आगे को बढ़ती चलती है।

सुषुम्ना नाड़ी को प्राणिक ऊर्जा के प्रवाह की मुख्य नाड़ी माना जाता है। माना जाता है कि यह नाड़ी हमारे शरीर को आत्मा से जोड़ने में महत्वपूर्ण माध्यम होती है।
यह नाड़ी हमारे आध्यात्मिक विकास एवं कुण्डलिनी जागरण के लिए भी उत्तरदायी महत्वपूर्ण सेतू होती है।

सुषुम्ना नाड़ी का परिचय-

सुषुम्ना का अर्थ होता है ’’सु’’ एक हिन्दी या संस्कृत भाषा में उपसर्ग है ,जिसका अर्थ होता है ’’अच्छा’’ । जैसे सुयोग्य,सुपुत्र आदि ’’म्ना’’ का अर्थ मन या सोचना। इस प्रकार सुषुम्ना का अर्थ हुआ, अच्छा मन या अच्छा सोचना । जब हम योग में अपनी सुषुम्ना नाड़ी को सक्रिय कर लेते है,तो हमारा मन आनन्दित हो जाता है। राग, द्वेष से मुक्त हो कर अच्छी सोच,सकारात्मकता विचारों से भर जाता है। यह सब होता है , नाड़ियों की ऊर्जा जो कि क्रमशः इड़ा नाड़ी जो कि नकारात्मक,स्त्री,चन्द्र ऊर्जा की एवं पिंगला जो कि सकारात्मक,पुरूष,सूर्य ऊर्जा के प्रतीक है, में हम सन्तुलन बनाए रखने में सफल हो जाते है।

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सुषुम्ना नाड़ी का स्थान कहॉ होता है?

सुषुम्ना नाड़ी ,जागरण की विधि और लक्षण।Sushumna Nadi ,Jagran Ki Vidhi Aur Lakshan.
हमारी तीन नाड़ियां जो कि हमारे मेरूदण्ड के दांये,बांये एवं मध्य में होती है ।
इनमें सुषुम्ना नाड़ी हमारे मेरूदण्ड के मघ्य में होती है।
यह नाड़ी हमारे मूलाधार चक्र से निकल कर सहस्त्रार चक्र या ब्रहम्रन्ध्र तक जाती है।

सुषुम्ना नाड़ी को सक्रिय कैसे करें, उपाय-

सुषुम्ना नाड़ी ,जागरण की विधि और लक्षण।Sushumna Nadi ,Jagran Ki Vidhi Aur Lakshan. सुषुम्ना नाड़ी को सक्रिय करना एक अत्यन्त कठिन साधना है। जो किसी योग्य गुरू के सानिध्य में पूर्ण विधि एवं अनुशासन के साथ करनी चाहिए। गुरू ही इसका सुरक्षित एवं सही मार्ग बता सकते है।
फिर भी कुछ सामान्य उपाय है जो इस प्रकार है।

1.इस साधना को करने से पूर्व अपनी जीवन शैली के प्रति आपको जागरूक होना होगा। जिसमें आपको अपने खानपान की आदतों के अलावा सुबह उठना,सोना,व्यायाम,ध्यान,आदि को अपनी दैनिक जीवनचर्या में शामिल करना होगा।
2. अपनी नाड़ियों का शुद्धिकरण होगा। जिसके लिए आपको नाड़ी शोधन प्राणायाम एवं अनुलोम विलोम,ध्यान का प्रयोग करना होगा।
3. अपने मार्गदर्शक के निर्देशानुसार सर्वांगासन,भुजंगासन,हलासन जैसे योगाभ्यास भी नियमित रूप से करने चाहिए।

4. तीनों बन्धों मूलबन्ध,जालन्धर बन्ध एवं उडिड्यान बन्ध का नियमित अभ्यास भी मार्गदर्शक के निर्देशानुसार करना चाहिए।
5. सुषुम्ना नाड़ी की सफल साधना के लिए अपने योग्य गुरू के निर्देशानुसार उचित मन्त्रों का जप भी करना चाहिए।
6.कुछ गुरू शक्तिपात द्वारा भी शिष्यों की सुषुम्ना जागृत करने का दावा करते है। यानी की अपनी शक्ति का शिष्य में स्थानान्तरण करना।

Sushumna Nadi ,Jagran Ki Vidhi Aur Lakshan.
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सुषुम्ना नाड़ी जागृत होने के लक्षण-

सुषुम्ना नाड़ी ,जागरण की विधि और लक्षण।Sushumna Nadi ,Jagran Ki Vidhi Aur Lakshan. हमने सुषुम्ना नाड़ी को जागृत करने की विधि तो जान ली है। अब जानते है ,सुषुम्ना नाड़ी जागृत होने का अनुभव या ज्ञान कैसे हो।

1. प्रथम लक्षण तो यह है कि हमारे दोनों दांये और बांयें नथुनों से सांस की क्रिया होने लगती है,यानी की उस समय हमारी इड़ा और पिंगला दोनों नाड़िया सक्रिय हो जाती है।
2. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने की स्थिति में जब ध्यान लगाया जाता है ,तो दैवीय शक्ति का आभास होने लगता है।
3. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर आध्यात्मिकता की ओर अधिक झुकाव होने लगेगा। अध्यात्म में रूची बढ़ने लगेगी।
4. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर आप अपनी श्वांसों के प्रति अधिक सजग होने लगेगें। श्वांसों की गति एवं गहराई को आप अनुभव करने लगेंगें।

5. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने का अर्थ है कि आपकी प्राण ऊर्जा सुषुम्ना में प्रवेश कर उर्घ्व गति करने लगती है। वह कुण्डलिनी के सातों चक्रों का क्रमशः भेदन करने लगती है। इस स्थिति में वह जिस चक्र का भेदन करती है। उस चक्र के रंग का आपको आभास होने लगता है। उस चक्र पर आप हलचल का अनुभव करने लगते हैं।
6. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर साधक की वाणी सत्य होने लगती है। वह जैसा चाहता है। वैसी परिस्थितियां पैदा होने लगती है।

7. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर वह अन्य व्यक्तियों के मन की बात जानने की क्षमता विकसित कर लेता है।
8. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर साधक को समस्त चक्रों एवं मेरूदण्ड में अजीब सी हलचल होने लगती है । जिसके सम्बन्ध में अपने गुरू से चर्चा कर वास्तिकता का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।

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सुषुम्ना नाड़ी लाभ-

सुषुम्ना नाड़ी ,जागरण की विधि और लक्षण।Sushumna Nadi ,Jagran Ki Vidhi Aur Lakshan.

1.सुषुम्ना नाड़ी के सक्रिय होने पर प्राणिक ऊर्जा का उर्ध्वगमन होने लगता है। जिस कारण हमारे ऊर्जा चक्र जागृत होकर कुण्डलिनी जागृत होती है। जो किसी भी साधक की एक बहुत बड़ी सफलता मानी जाती है।
2. सुषुम्ना नाड़ी के निरन्तर अभ्यास से हमारी आध्यात्मिक ऊर्जा का प्रवाह निर्बाध बना रहता है एवं उसका विकास होता है।
3. सुषुम्ना नाड़ी के निरन्तर अभ्यास से सम्पूर्ण चेतना एवं आत्मज्ञान की प्राप्ति होती है।
4.चन्द्र नाड़ी एवं सूर्य नाड़ी की ऊर्जा के सन्तुलित होने पर ही सुषुम्ना नाड़ी सक्रिय होती है।

5. सुषुम्ना नाड़ी के सक्रिय होने पर मानसिक शान्ति एवं सद्भाव पैदा होता है।
6. सुषुम्ना नाड़ी की सक्रियता से आध्यात्मिक रूप से उच्च स्थिति प्राप्त होती है। जिससे मन और आत्मा एकाकार हो जाते है।
7. सुषुम्ना नाड़ी की सक्रियता से आत्म जागरूकता आती है। जिससे व्यक्ति को आध्यात्मिक रूप से अपनी पहचान एवं जीवन तत्व प्राप्त होता है।
8. सुषुम्ना नाड़ी की सक्रियता से व्यक्ति समाधि का लक्ष्य प्राप्त कर सकता है। जो कि किसी भी साधक का अन्तिम लक्ष्य होता है।

9. सुषुम्ना नाड़ी की सक्रियता का अर्थ है कि मनुष्य शरीर की समस्त 72000 या 350000 नाड़ियों में ऊर्जा का निर्बाध प्रवाह हो रहा है।समस्त नाड़ियों का शुद्धिकरण हो चुका है।
10.सुषुम्ना नाड़ी का जागरण होने पर व्यक्ति को परम आत्मा से मिलने का रास्ता प्राप्त हो जाता है। कहा जाता है कि इस नाडी के जागरण के समय व्यक्ति जो बोलता या मांगता है, वह उसे प्राप्त होता है। अतः इसके साधक इस समय परमसत्ता या समाधी की कामना करते है,जो उन्हें प्राप्त होती है।

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सुषुम्ना नाड़ी जागरण में सावधानियां-

सुषुम्ना नाड़ी ,जागरण की विधि और लक्षण।Sushumna Nadi ,Jagran Ki Vidhi Aur Lakshan. सुषुम्ना नाड़ी को सक्रिय करना इतना आसान कार्य नहीं है। इसकी साधना में सावधानी की आवश्यकता होती है । यह साधना किसी पुस्तक को पढ़ कर या सुनी सुनाई बातों के आधार पर नहीं करनी चाहिए।

1.सुषुम्ना नाड़ी के जागरण की साधना किसी योग्य गुरू के मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए।
2.सुषम्ना नाड़ी की साधना मानसिक रूप से कमजोर या मानसिक समस्याओं से ग्रस्त व्यक्तियों को नहीं करनी चाहिए।
3.सुषुम्ना नाड़ी की साधना तनावग्रस्त,अवसादग्रस्त,धैर्यहीन लोगों को नहीं करनी चाहिए।
4. सुषम्ना नाड़ी की साधना संवेदनाओं के प्रति जागरूकता बनाए रखने में सक्षम व्यक्तियों को ही करना चाहिए।
5.माना जाता है कि इस अभ्यास के दौरान कुछ अजीब संवेदनाओं जैसे गर्मी,सर्दी,पसीना, शरीर में हल्कापन या भारीपन या दिव्य अनुभूतियों का अनुभव हो सकता है। अतः जागरूक,धैर्यवान एवं सतर्क लोगों को इसका अभ्यास करना चाहिए।
6. इसके अभ्यास में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए और न ही अपना धैर्य खोना चाहिए।

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निष्कर्ष-

सुषुम्ना नाड़ी का जागरण आध्यात्मिकता का उच्चतम स्तर एवं समाधी प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए साधक को अपने जीवन की समस्त भौतिक लालसाओं को त्यागना होता है। यम, नियम,ध्यान धारण आदि अष्टॉग का पालन करना होता है।
योग प्राणायाम का नियमित एवं विधिपूर्वक अभ्यास करना होता है। हमारे चेतन मन को नियन्त्रित करना पड़ता है। जो योग्य गुरू के मार्गदर्शन में ही किया जा सकता है।
सुषुम्ना नाड़ी की सफल साधना से ही हम अपने जीवन में शान्ति,ऊर्जा का सन्तुलन एवं चेतना जागृत कर सकते है।

इस पोस्ट का उद्देश्य योग सम्बन्धी जानकारी देना मात्र है । सुषुम्ना नाड़ी को जागृत करने के लिए किसी योग्य गुरू का सानिध्य खोजना चाहिए। बिना सही जानकारी ,आधी अधूरी जानकारी के साथ इस साधना का अभ्यास नुकसानदायक हो सकता है।
अतःकिसी योग्य गुरू के सानिध्य में ही इसका अभ्यास करना चाहिए।

FAQ

sushumna

हमारी तीन नाड़ियां जो कि हमारे मेरूदण्ड के दांये,बांये एवं मध्य में होती है । इनमें सुषुम्ना नाड़ी हमारे मेरूदण्ड के मघ्य में होती है। यह नाड़ी हमारे मूलाधार चक्र से निकल कर सहस्त्रार चक्र या ब्रहम्रन्ध्र तक जाती है।
1. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने की स्थिति में जब ध्यान लगाया जाता है ,तो दैवीय शक्ति का आभास होने लगता है। 2. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर आध्यात्मिकता की ओर अधिक झुकाव होने लगेगा। अध्यात्म में रूची बढ़ने लगेगी। 3. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर आप अपनी श्वांसों के प्रति अधिक सजग होने लगेगें। श्वांसों की गति एवं गहराई को आप अनुभव करने लगेंगें। 4. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने का अर्थ है। कि आपकी प्राण ऊर्जा सुषुम्ना में प्रवेश कर उर्घ्व गति करने लगती है। वह कुण्डलिनी के सातों चक्रों का क्रमशः भेदन करने लगती है। इस स्थिति में वह जिस चक्र का भेदन करती है। उस चक्र के रंग का आपको आभास होने लगता है। उस चक्र पर आप हलचल का अनुभव करने लगते हैं। 5. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर साधक की वाणी सत्य होने लगती है। वह जैसा चाहता है। वैसी परिस्थितियां पैदा होने लगती है। 6. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर वह अन्य व्यक्तियों के मन की बात जानने की क्षमता विकसित कर लेता है।
1.इस साधना को करने से पूर्व अपनी जीवन शैली के प्रति आपको जागरूक होना होगा। जिसमें आपको अपने खानपान की आदतों के अलावा सुबह उठना,सोना,व्यायाम,ध्यान,आदि को अपनी दैनिक जीवनचर्या में शामिल करना होगा। 2. अपनी नाड़ियों का शुद्धिकरण होगा। जिसके लिए आपको नाड़ी शोधन प्राणायाम एवं अनुलोम विलोम,ध्यान का प्रयोग करना होगा। 3. अपने मार्गदर्शक के निर्देशानुसार सर्वांगासन,भुजंगासन,हलासन जैसे योगाभ्यास भी नियमित रूप से करने चाहिए। 4. तीनों बन्धों मूलबन्ध,जालन्धर बन्ध एवं उडिड्यान बन्ध का नियमित अभ्यास भी मार्गदर्शक के निर्देशानुसार करना चाहिए। 5. सुषुम्ना नाड़ी की सफल साधना के लिए अपने योग्य गुरू के निर्देशानुसार उचित मन्त्रों का जप भी करना चाहिए। 6.कुछ गुरू शक्तिपात द्वारा भी शिष्यों की सुषुम्ना जागृत करने का दावा करते है। यानी की अपनी शक्ति का शिष्य में स्थानान्तरण करना।
ये तीनों नाड़ियां हमारे मूलाधार चक्र से उत्पन्न होकर मेरूदण्ड के साथ साथ सहस्त्रार चक्र तक चलती है। इनमें इड़ा नाड़ी मेरूदण्ड के बांयीं ओर पिंगला दांयीं ओर एवं सुषुम्ना मेरूदण्ड के मध्य में हमारे सातों ऊर्जा चक्रों का भेदन करती हुई उर्ध्वगमन करती है। हमारी इड़ा नाड़ी जिसे स्त्रियोंचित गुणों की एवं शीतल प्रकृति की नाड़ी कहा जाता है। पिंगला नाड़ी जिसे पुरूषोचित गुणों एवं उष्ण प्रकृति की नाड़ी माना जाता है। इन नाड़ियों की ऊर्जाओं का सन्तुलन होने से ही सुषुम्ना नाड़ी में ऊर्जा का प्रवेश हो सकता है,वह सक्रिय हो सकती है।
1. प्रथम लक्षण तो यह है कि हमारे दोनों दांये और बांयें नथुनों से सांस की क्रिया होने लगती है,यानी की उस समय हमारी इड़ा और पिंगला दोनों नाड़िया सक्रिय हो जाती है। 2. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने की स्थिति में जब ध्यान लगाया जाता है ,तो दैवीय शक्ति का आभास होने लगता है। 3. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर आध्यात्मिकता की ओर अधिक झुकाव होने लगेगा। अध्यात्म में रूची बढ़ने लगेगी। 4. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर आप अपनी श्वांसों के प्रति अधिक सजग होने लगेगें। श्वांसों की गति एवं गहराई को आप अनुभव करने लगेंगें। 5. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने का अर्थ है कि आपकी प्राण ऊर्जा सुषुम्ना में प्रवेश कर उर्घ्व गति करने लगती है। वह कुण्डलिनी के सातों चक्रों का क्रमशः भेदन करने लगती है। इस स्थिति में वह जिस चक्र का भेदन करती है। उस चक्र के रंग का आपको आभास होने लगता है। उस चक्र पर आप हलचल का अनुभव करने लगते हैं। 6. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर साधक की वाणी सत्य होने लगती है। वह जैसा चाहता है। वैसी परिस्थितियां पैदा होने लगती है। 7. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर वह अन्य व्यक्तियों के मन की बात जानने की क्षमता विकसित कर लेता है। 8. सुषुम्ना नाड़ी के जागृत होने पर साधक को समस्त चक्रों एवं मेरूदण्ड में अजीब सी हलचल होने लगती है । जिसके सम्बन्ध में अपने गुरू से चर्चा कर वास्तिकता का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।

 

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2 responses to “सुषुम्ना नाड़ी ,जागरण की विधि और लक्षण।Sushumna Nadi ,Jagran Ki Vidhi Aur Lakshan.”

  1. Saroj Avatar

    Shandar

  2. Raghuvir singh Avatar

    Good

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