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पिंगला नाड़ी की विधि,परिचय और विशेषताएं।Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen.

आज हम बात कर रहे है, Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen. की। हमारे शरीर में तीन नाड़ियों को प्रमुख माना जाता है ये नाड़िया है,इड़ा,पिंगला और सुषुम्ना। पिगला नाड़ी को सूर्य नाड़ी या दांया स्वर भी कहते है। स्वर विज्ञान के ज्ञाता स्वर या नाड़ी की गति को देख कर आने समय या क्षण के परिणामों को जानने की भी क्षमता रखते है। स्वर ज्ञानी स्वर या नाड़ी के चलने की गति को बदलने की क्षमता भी विकसित कर लेते है। माना जाता है कि ये लोग अपनी इच्छा के अनुसार अपने स्वर की गति बना कर कार्यो के परिणाम भी बदलने के क्षमता का भी विकास कर लेते है।

हमारे शरीर में हमारी प्राणिक ऊर्जा को पहुंचाने के लिए हमारे शरीर में 72000 नाड़िया है । इन नाड़ियों की संख्या कुछ ग्रन्थों 3,50,000 भी बतायी गई है। जो हमारी प्राण ऊर्जा को हमारे शरीर के प्रत्येक अंग तक पहुंचाने का कार्य करती है। इन 72000 नाड़ीयों में से भी तीन नाड़ियों को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। ये तीन नाड़िया है,इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना।

Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen.
photo-pixabay

आज हम बात कर रहे है पिंगला नाड़ी या सूर्य नाड़ी इसी को दांया स्वर भी कहते है। इस नाड़ी का उद्गम स्थल है। हमारे मूलाधार के पास स्थिति कण्ड स्थल से प्रारम्भ होकर हमारे मेरूदण्ड के दांयी ओर से ऊपर की ओर उठती हुई मेरूदण्ड पर स्थिति 7 ऊर्जा केंद्रों को सर्पिलाकर में परस्पर इड़ा नाड़ी जो की मेरूदण्ड के बांयी ओर से उठती है,के साथ परस्पर भेदती हुई दांयी नासिक में विलिन होती है।

पिंगला नाड़ी हमारी ऊर्जाओं को नियन्त्रित करती है। इस नाड़ी को सूर्य का या दिन का प्रतिनिधित्व करने वाली नाड़ी भी माना जाता है। इस नाड़ी की प्रकृति गर्म उष्णता की होती है। इसको सूर्य नाड़ी भी कहा जाता है। पिंगला नाड़ी दिन में अधिक सक्रिय होती है।
इस नाड़ी की प्रकृति उष्ण होती है जिस कारण यह हमें जीवन शक्ति,दक्षता,पुरूषोचित लक्षण एवं चूंकि यह नाड़ी हमारे मस्तिष्क के बांये भाग को प्रभावित करती है इसलिए यह हमारी तार्किक शक्ति को समर्द्ध करती है।

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1.नाड़ियां क्या है ?                                          Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen.

आज हम बात कर रहे है, Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen. की। संस्कृत के शब्द “ नाद ” से नाड़ी शब्द की उत्पति हुई है । नाद शब्द का अर्थ है “बहना”। इस प्रकार नाड़ी का शब्दार्थ होता है “नदी”। जिस प्रकार नदियों में जल का प्रवाह होता है । उसी प्रकार हमारी नाड़ियों में प्राण ऊर्जा का प्रवाह होता रहता है।

ये नाड़ियां हमारे शरीर में उत्पन्न होने वाली ऊर्जा को हमारे शरीर के विभिन्न अंगों तक पहुंचाने का कार्य करती है। इन नाड़ियों का भौतिक रूप से हमारे शरीर में कोई अस्तिस्व नहीं होता है। इन नाड़ियों को आध्यात्मिक रूप से सक्षम व्यक्ति ही अनुभव कर सकता है। ये नाड़ियां अत्यन्त सूक्ष्म अदृश्य संरचनाएं होती है। अगर मानव शरीर को चिरफाड़ भी कर दिया जाये, तो भी इन नाड़ियों को नहीं देखा जा सकता क्योंकि इनका कोई भौतिक स्वरूप नहीं होता है। मानव शरीर की चिरफाड़ करके नसों ,रक्तवाहनियां को तो देख सकते है, इन ऊर्जा नाड़ियों को नहीं देख सकते।

इन नाड़ियों को शुद्ध एवं निर्बाध रखना अति आवश्यक होता है। अगर इन नाड़ियों में बहने वाली ऊर्जा के प्रवाह में किसी प्रकार की बाधा आती है,तो हमारे शरीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा विपरीत प्रभाव पड़ेगा।
अतः हमें इन नाड़ियों के शुद्धिकरण एवं निर्बाध प्रवाह को बनाए रखने के लिए विशेष प्रयास करते रहना चाहिए। इन नाड़ियों का कुण्डलिनी जागरण में विशेष प्रभाव होता है । इनकी शुद्धि पर ही कुण्डलिनी जागरण होना निर्भर करता है।

किसी भी साधक को नाड़ी शोधन करना हो या कुण्डलिनी जागरण, उसे सर्व प्रथम हमारी ऊर्जा नाड़ियों का ज्ञान होना आवश्यक है, बिना नाड़ी ज्ञान के न तो हम साधना में सफल हो सकते है और न ही नाड़ी शुद्धिकरण कर सकते है।

हमें ज्ञान होना चाहिए कि हमारे शरीर में कुछ ग्रन्थों के अनुसार 3,50,000 तो कुछ ग्रन्थों में 72,000 नाड़ियों का उल्लेख किया गया है। इन नाड़ियों में भी तीन नाड़ियों को प्रमुखता दी गई है। ये नाड़ियां हमारी के रीढ़ बाईं, दाहिनी और मध्य यानी क्रमशः इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना से निकलती हैं। योग्य मार्गदर्शन में साधना के उपरान्त हम इन नाड़ियों में प्रवाहित होती प्राण ऊर्जा को हम अनुभव कर सकते है,यही प्रवाह हमें नाड़ियों का अनुभव करवाता है।

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2.हमारे शरीर की नाड़ियाँ हैं?

आज हम बात कर रहे है, Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen. की। आम बोलचाल में रक्तवाहनियों को भी नाड़ियां बोला जाता है। आध्यात्म एवं स्वर विज्ञान के अनुसार यह सत्य नहीं है। जहॉ रक्तवाहनियों का कार्य शरीर को रक्त की आपूर्ति करना होता है। वहीं नाड़ियों का कार्य हमारी शारीरिक आवश्यकता के अनुरूप ऊर्जा (प्राण शक्ति)का परिवहन कर ऊर्जा को पहुंचाना होता है। जबकि आधुनिक विज्ञान प्राण शक्ति एवं नाड़ियों का अस्तिस्व स्वीकार नहीं करता है।

इन आध्यात्मिक नाड़ियों का इतना सूक्ष्म जाल हमारे शरीर में बिछा हुआ है कि ये हमें दिखाई तो नहीं देती पर प्रत्येक कौशिका तक हमारी प्राण शक्ति ऊर्जा का परिवहन करता है।
हमारे शरीर में 3,50,00 या 72000 नाड़ियों में भी 14 नाड़ियों का विशेष स्थान दिया गया है,इन सभी नाड़ियों का उद्गम स्थान स्थान कांडा से बताया गया है जो कि नाभि के नीचे और प्यूबिस के ऊपर मूलाधार में होता है।

ये महत्वपूर्ण 14 नाड़िया इस प्रकार है ।
1.इडा 2. पिंगला 3. सुषुम्ना 4. गांधारी 5. हस्तिजिह्वा 6. कुहू 7. सरस्वती 8.पूषा 9. शाखिनी 10. पयस्विनी 11. वारुणी 12.अलम्बुष 13. विश्वोदरी 14. यशस्विनी
आध्यात्मिक दृष्टि से सम्पन्न होने के लिए किसी को भी इन नाड़ियों का ज्ञान एवं नाड़ियों का शुद्धिकरण करना आना चाहिए। जब तक इन नाड़ियों का ष्शुद्धिकरण नहीं होता है । इनमें निर्बाध रूप से प्राण शक्ति,ऊर्जा का प्रवाह नहीं हो सकता है ।  जिसके अभाव में कुण्डलिनी जागरण या स्वर साधन जैसी विधियों का हम जागरण करने में सफल नहीं हो पाते है,और न हीं हमारे शरीर को शारीरिक अथवा मानसिक या आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ रख पायेंगें।

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3.पिंगला नाड़ी क्या है ?                                                                        pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen.

आज हम बात कर रहे है, Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen. की। पिंगला नाड़ी की प्रकृति उष्ण या गर्म होती है । यह नाड़ी सूर्य की ऊर्जा से प्रभावित होती है। जिस कारण इसको सूर्य नाड़ी भी कहा जाता है।

पिंगला का संस्कृत में अर्थ होता है पीला यह हम जान ही चुके है कि यह नाड़ी सूर्य ऊर्जा से प्रभावित होती है। इस प्रकार नाम के अनुरूप हमें शारीरिक एवं मानसिक रूप से ऊष्णता से प्रभावित करती है।
पिंगला नाड़ी हमारे मूलाधार से ऊर्ध्वगमन करती हुए हमारे मेरूदण्ड के दांयी ओर से सर्पिलाकर में इड़ा बांयी तरफ से एवं पिंगला मूलाधार के दांयी तरफ से निकल कर ऊर्जा चक्र, स्वाधिष्ठान, मणीपुरम चक्र,अनाहत चक्र,विशुद्धि चक्र एवं आज्ञा चक्र से होती हुई, प्रत्येक चक्र पर एक दूसरे को क्रॉस करती हुई ऊपर की ओर उठ कर पिंगला दांयी नासिका में पहुंचती है।

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4.पिंगला नाड़ी की विशेषताएं ?

आज हम बात कर रहे है, Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen. की। पिंगला नाड़ी का कार्य हमारी प्राणिक ऊर्जा का शरीर के विभिन्न अंगों तक परिवहन करना होता है। एक योग्य साधक इन प्राण ऊर्जा परिवहन करने वाली नाड़ीयों का अनुभव कर इन्हे अपने नियंत्रण में कर अपने जीवन में अलौकिक परिवर्तन ला सकता है।
एक साधक पिंगला नाड़ी की पहचान इन विशेषताओं से कर सकता है।

1.पिंगला नाड़ी मूलाधार से प्रारम्भ होकर हमारे ऊर्जा चक्र जो कि हमारी रीढ़ माने जाते है को भेदती हुए हमारी दांयी नासिका तक पहु़ंचती है।
2. इसकी प्रकृति ऊष्ण होती है।
3. इसकी ऊर्जा को पुरूष प्रकृति की मानी जाती है। जिसके कारण इस नाड़ी की सक्रियता के कारण साधक में पुरूषोचित गुण दिखाई देने लगते है।
4.यह नाड़ी सक्रिय होने पर हम अपने दाहिने नथुने से श्वसंन क्रिया करते है।

5. पिंगला नाड़ी की अधिक सक्रियता हमें भौतिकवादी,क्रोधी,बैचेन,बहिर्मुखी एवं नकारात्मक बना देती है।
6. क्रोध या तनाव के समय आपने अनुभव भी किया होगा कि हमारी सांसे तेज चलने लगती है,विशेषकर दांयी नासिका ।
7.पिंगला नाड़ी दिन के समय अधिक सक्रिय रहती है। सूर्य नाड़ी होने के कारण।
8. पिंगला नाड़ी की सक्रियता के कारण ही हमारा मन चेतन एवं सोच में सक्रियता बनी रह सकती है।

आप अपनी पिंगला नाड़ी को सन्तुलित तरीक से सक्रिय रखते है, तो आप अपनी रचनात्मकता,जागरूकता,तार्किकता,गणित,विज्ञान विषय की क्षमता एवं ऊर्जा की क्षमता में वृद्धि कर सकते है।

 

5.पिंगला नाड़ी की गति को कैसे जानें ?                             Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen.

आज हम बात कर रहे है, Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen. की।  पिंगला नाड़ी या दांया स्वर चल रहा है या नहीं या कौनसा स्वर या नाड़ी चल रही है। इसको ज्ञात करना अत्यन्त आसन है,हॉ इसमें मामूली से संवेदना की आवश्यकता होती है। अगर आपमें हल्की सी संवेदना है । तो आप नाड़ी की गति को आसानी से अनुभव कर सकते है।
1.किसी एकान्त स्थान पर योगा मेट या चटाई बिछा कर निर्विचार होकर किसी सुखासन में बैठ जायें।

2.श्ंवास प्रश्ंवास को स्वतः चालित रहने दें,श्ंवास को सामान्य गति से प्रवाहित होने दें।
3. अपनी तर्जनी अंगुली को अपने नासिक छिद्रों के नीचे ओठों पर नासिका से मामूली दूरी बनाते हुए रखें।
4. श्ंवास प्रश्ंवास को देखने का प्रयास करें, अनुभव करें कि आपकी कौनसी नासिका से प्रवाहित होने वाले श्ंवास को आप अपनी तर्जनी पर अनुभव कर रहे है।

5.अगर आप दांयी नासिका से श्वांस के प्रवाह को अनुभव कर रहें है तो आपकी दांयी नाड़ी यानी पिंगला नाड़ी सक्रिय है। पिंगला नाड़ी,दांया स्वर चल रहा है।
बांयी नासिका से अनुभव कर रहे है तो बांयी नाड़ी यानी इड़ा नाड़ी या बांया स्वर और अगर आप दोंनों नासिका से सांसों के प्रवाह को अनुभव कर रहे है तो आपकी सुषुम्ना नाड़ी चल रही है।

इस प्रकार नाड़ी चालन का पता लगाना बहुत ही आसान तरीका होता है।

6. अवरूद्ध पिंगला नाड़ी को कैसे पहचानें ?

आज हम बात कर रहे है, Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen. की। पिंगला नाड़ी के अवरूद्ध होने पर निम्न लक्षण प्रकट होने लगते है अगर आपको ये लक्षण दिखाई दे तो आप किसी योग्य एवं जानकारी साधक या योग गुरू से सम्पर्क कर इसकी सही पहचान एवं निवारण के उपाय जान सकते है।

1. सिर के दाहिने भाग में लगातार सिरदर्द का अनुभव होना ।
2. मानसिक तनाव एवं मन में बैचेनी का अनुभव होते रहना।
3. पाचन तन्त्र कमजोर होना गैस एवं भूख की अधिकता होना।
4. शरीर में ऊर्जा एवं उत्साह की कमी का अनुभव होना।
5. शरीर में अधिक पसीना आना।
6. अत्यधिक क्रोध की प्रवृति का बढ़ना।
7. दांयी नासिक की श्वसन क्रिया में रूकावट का अनुभव होना।

 

7.अवरूध पिंगला नाड़ी को सक्रिय कैसे करें ?

आज हम बात कर रहे है, Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen. की। पिंगला नाड़ी के अवरूद्ध होने के कई कारण हो सकते है।
जिनमें से कुछ सामान्य कारण होते है। जैसे शारीरिक अस्वस्थता,मानसिक तनाव, अथवा जीवन की दैनिक समस्याएं आदि। इस तरह की समस्याओं का अनुभव होने पर अपने चिकित्सक से अवश्य परामर्श करना चाहिए।

8.नाड़ियों की सफाई या शु़द्धकरण ?

आज हम बात कर रहे है, Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen. की। जब हमें हमारी नाड़ियों के अशुद्धिकरण होने का ज्ञान हो जाता है । तो इन नाड़ियों को शुद्धिकरण करना भी आवश्यक हो जाता है।

अगर आप इस विषय में सजग एवं जागरूक है तो आप किसी भी मार्गदर्शक के सानिध्य में अपनी नाड़ियों का शु़द्धकरण आसानी से कर सकते है।
प्राणायाम करते समय आपको अपनी नाड़ियों को कल्पनाओं में देखते हुए उन्हे शुद्ध करने के प्रयास करने है। जैसे प्राणायाम के अभ्यास से हमारी नाड़ियों का शुद्धिकरण हो रहा है। नाड़ियों की अशुद्धियां एवं अवरोध हट रहे है। प्राण ऊर्जा का नाड़ियों के माध्यम से उर्ध्वगमन हो रहा है।नाड़ियों में चमकीला,श्वेत रंग का प्रकाश फैल रहा है।
इन भावनाओं के साथ आप अपनी नाड़ियों की अशुद्धियों को हटते एवं प्राण ऊर्जा का प्रवाह देखने का प्रयास करें ।

9.अवरूध नाड़ी के अवरोधों को खत्म करने हेतू उपाय-

1.नाड़ी शोधन प्राणायाम का अभ्यास करना।
2.सूर्य नमस्कार योगाभ्यास का अभ्यास करना
3.योग निन्द्रा का अभ्यास करना।
4.अनुलोम विलोम प्राणायाम का अभ्यास करना।
इन योग, प्राणायाम का अभ्यास करने के कुछ दिनों में आपने आप में सकारात्मक रूप से ऊर्जा के प्रवाह को एवं अपने आप में परिवर्तन होता देख रहे होगें।

10.नाड़ी या स्वर का प्रभाव एवं परिणाम-

आज हम बात कर रहे है, Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen. की। स्वर विज्ञान या नाड़ी की गति का ज्ञान रखने वाले लोग इसका अभ्यास अपने जीवन में इतना अधिक शामिल कर लेते है कि ये दैनिक जीवन में होने वाले कार्यो के परिणाम को भी बदलने की क्षमता प्राप्त कर लेते है । ऐसा स्वर विज्ञान के जानकार लोगों का कहना है। हमारे श्ंवास के रूप में हमारे नाक के द्वारा निकलती हुए हवा की दूरी को नाप कर इस श्वांस को भी तत्वों में विभक्त किया गया है।

नासिका से निकली श्वास का दैर्ध्य 16 अंगुल हो तो पृथ्वी तत्व होता है।
नासिका से निकली श्वास का दैर्ध्य 12 अंगुल हो तो जल तत्व होता है।
नासिका से निकली श्वास का दैर्ध्य 8 अंगुल हो तो अग्नि तत्व होता है।
नासिका से निकली श्वास का दैर्ध्य 6 अंगुल हो तो वायु तत्व होता है।
नासिका से निकली श्वास का दैर्ध्य 3 अंगुल हो तो आकाश तत्व होता है।
श्वांस का दैर्ध्य नापने के लिए आप अपनी हथेली को अपनी नाक के नीचे रखें एवं जहॉ तक आपको श्वांस की वायु का अनुभव अपनी हथेली पर होता हो वहॉ तक की दूरी को नापें, यही श्वांस का दैर्ध्य होता है।

स्वर विज्ञान या नाड़ी की गति से प्राप्त होने वाले परिणाम के जानकार लोग नाड़ी की गति को देख कर, पिंगला नाड़ी से इड़ा नाड़ी एवं इड़ा नाड़ी से पिंगला नाड़ी में नाड़ियों की गति को बदल कर अपने मन के अनुसार अपने कार्यो के परिणाम प्राप्त करने में सक्षम हो जाते है।

11.पिंगला नाड़ी या दांया स्वर में क्या करें ?

आज हम बात कर रहे है, Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen. की। स्वर विज्ञान के अनुसार कहा जाता है कि जब पिंगला नाड़ी चल रही हो तो हमें ऊष्ण ऊर्जा के कार्य करने चाहिए।
1.ऐसे कार्य जिनसे शरीर में गर्मी बढ़ती,बल की आवश्यकता होती हो जैसे युद्ध करना, शारीरिक श्रम के कार्य करना, हथियारांं के चलाने का अभ्यास, भोजन करना, तन्त्र साधना करना आदि कार्य करने चाहिए जिनमें बल एवं श्रम की आवश्यकता पड़ती हो।

12.स्वर कैसे बदलें ?

आज हम बात कर रहे है, Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen. की। स्वर विज्ञान के अनुसार हम अपनी आवश्यकता के अनुसार अपनी नाड़ी या स्वर की गति को बदल सकते है जैसे इड़ा नाड़ी चल रही हो तो पिगला नाड़ी को अगर पिंगला चल रही हो तो इड़ा नाड़ी को चला सकते है।
इसके लिए आपको विशेष श्रम करने की आवश्यकता नहीं होती कुछ साधारण ज्ञान एवं अभ्यास की आवश्यकता होती है-

1.अगर आपको पिंगला नाड़ी को सक्रिय करना हो तो आप बांयी करवट लेट जायें आपका दांया स्वर या पिंगला नाड़ी सक्रिय हो जायेगी।
2.जब आपका बायां स्वर या इड़ा नाड़ी चल रही हो और आपको दांया स्वर या पिंगला नाड़ी को सक्रिय करना हो तो बांयी नासिका पर हल्का दबाव देकर श्वांस को रोकने का प्रयास करें,कुछ समय में आपका दांया स्वर या पिंगला नाड़ी सक्रिय हो जायेगी।

निष्कर्ष-

हमने नाड़ियों एवं पिंगला नाड़ी के अभ्यास एवं विशेषताओं आदि के बारे में चर्चा की। हमे यह भी जानकारी मिली की पिंगला नाड़ी को कैसे सक्रिय करें, पिंगला नाड़ी की के प्रवाह में आने वाली बाधाओं के बारे में भी जानकारी प्राप्त की, नाड़ी के चलने की गति बदलने, नाड़ी के लाभ आदि की भी जानकारी प्राप्त की, हमें यह भी जानकारी प्राप्त हुई कि अगर हमेंं नाड़ी की गति एवं उसके परिणाम के बारे में जानकारी होगी तो हम अपने नाड़ी के प्रवाह को बदल कर कार्यो के परिणाम अपने अनुकूल कैसे बना सकते है।

पिंगला नाड़ी के अभ्यास से प्राप्त होने वाले शारीरिक,आध्यात्मिक परिणामों को देखतें हुए । हमें इसका अभ्यास अपनी दैनिक जीवनचर्या में शामिल करना चाहिए।

इस पोस्ट का उद्देश्य योग सम्बन्धी जानकारी देना मात्र है किसी उद्देश्य से इसका अभ्यास करने से पूर्व अपने चिकित्सक एवं किसी योग्य योग प्रशिक्षक से इस बारे में आवश्यक रूप से परामर्श करना चाहिए।

FAQ

pingala

जब हमारे दांये नथुने से श्वसन क्रिया हो रही हो तब हमारी पिंगला नाड़ी सक्रिय रहती है। हमारे शरीर की तीन नाड़ियां होती है।इड़ा,पिंगला और सुषुम्ना।ये नाड़ियां हमारे मूलाधार से निकल कर मेरूदण्ड से सर्पिलाकर में लिपटती हुई उर्ध्वगमन करती है। इन नाड़ियों में मेरूदण्ड के दाहिनी ओर की नाड़ी को पिंगला नाड़ी कहते है। इसे सूर्य नाड़ी भी कहते है। इस नाड़ी की प्रकृति उष्ण होती है।
इसके लिए आपको विशेष श्रम करने की आवश्यकता नहीं होती कुछ साधारण ज्ञान एवं अभ्यास की आवश्यकता होती है- 1.अगर आपको पिंगला नाड़ी को सक्रिय करना हो तो आप बांयी करवट लेट जायें आपका दांया स्वर या पिंगला नाड़ी सक्रिय हो जायेगी। 2.जब आपका बायां स्वर या इड़ा नाड़ी चल रही हो और आपको दांया स्वर या पिंगला नाड़ी को सक्रिय करना हो तो बांयी नासिका पर हल्का दबाव देकर श्वांस को रोकने का प्रयास करें,कुछ समय में आपका दांया स्वर या पिंगला नाड़ी सक्रिय हो जायेगी।
पिंगला या सूर्य नाड़ी हमारे दाएं नथुने से सम्बन्ध रखती है।यह नाड़ी हमारे मेरूदण्ड के दाहिनें तरफ होती है । इसकी प्रकृति उष्ण एवं ऊर्जा पुरुषोचित प्रकृति की होती है। यह हमारे मस्तिष्क के बाएं हिस्से को संचालित करती है।
हमारी शारीरिक क्रिया हमारे नाड़ी तन्त्र से प्रभावित रहती है अतः इनकी प्रकृति अनुसार कार्य किये जाये तो हम अपने शरीर को स्वस्थ रखने में अधिक सजग रह सकते है। जैसे स्नान , भोजन, शौच आदि क्रियाओं के समय अपनी पिंगला नाड़ी या दाहिना स्वर सक्रिय रखतें है तो उचित रहता है। तरल पदार्थ यानी कि चाय, पानी, काफी आदि पेय पदार्थ पीते समय , पेशाब से निवृत होते समय , शुभ और स्थाई प्रकृति क कार्य करते समय हमारा बायां स्वर या इड़ा नाड़ी को सक्रिय रखनी चाहिए।
आप घर से निकलते समय अपने स्वर या नाड़ी का ध्यान करें कि कौनसा चल रहा है,बायां या दायां जो स्वर चल रहा है। वही पैर घर की देहलीज से पहले बाहर निकाल का प्रस्थान करना चाहिए। ऐसा स्वर विज्ञान में माना जाता है। अगर आप अपने कार्य हेतू किसी अधिकारी,मंत्री आदि से मिलने जा रहे है। आपको चन्द्र स्वर या इड़ा नाड़ी की सक्रियता के समय ही इन लोगों से मिलना चाहिए। आपका कार्य होने में आसानी होगी, ऐसा माना जाता है।
मंगल, शनि और रवि का संबंध सूर्य स्वर से है जबकि शेष का संबंध चन्द्र स्वर से। हमारे दांये नथुने से निकलने वाले श्वांस को सूर्य स्वर कहा जाता है। बांये नथुने से निकलने वाले स्वर को चन्द्र स्वर कहा जाता है। माह के शुक्ल पक्ष में :- . प्रथमा, द्वितीया व तृतीया- बांया स्वर या इड़ा नाड़ी। . चतुर्थी, पंचमी एवं षष्ठी -दांया स्वर या पिंगला नाड़ी। . सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी- बांया स्वर या इड़ा नाड़ी। . दशमी, एकादशी एवं द्वादशी -दांया स्वर या पिंगला नाड़ी। . त्रयोदशी, चतुर्दशी एवं पूर्णिमा -बांया स्वर या इड़ा नाड़ी। माह के कृष्ण पक्ष में :- . प्रथमा, द्वितीया व तृतीया -दांया स्वर या पिंगला नाड़ी। . चतुर्थी, पंचमी एवं षष्ठी -बांया स्वर या इड़ा नाड़ी। . सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी -दांया स्वर या पिंगला नाड़ी। . दशमी, एकादशी एवं द्वादशी -बांया स्वर या इड़ा नाड़ी। . त्रयोदशी, चतुर्दशी, अमावास्या -दांया स्वर या पिंगला नाड़ी।
सूर्य नाड़ी,पिंगला नाड़ी या दायां स्वर एक ही है । सूर्य नाड़ी की सक्रियता के समय हमारी दायीं नासिका से श्वसन क्रिया होती है।
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3 responses to “पिंगला नाड़ी की विधि,परिचय और विशेषताएं।Pingla Nadi Ki Vidhi,Parichya Aur Visheshtayen.”

  1. Saroj Avatar

    बहुत शानदार,सरल भाषा में

  2. Dinesh Avatar

    Excellent

  3. Tejveer singh Avatar

    Wah

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