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अर्ध मत्स्येंद्रासन, विधि,लाभ और सावधानियां। 

Ardha matsyendrasan,Vidhi,LabhAur Savdhaniyan.

आज हम बात कर रहे है अर्ध मत्स्येंद्रासन, विधि,लाभ और सावधानियां। Ardha matsyendrasan,Vidhi,LabhAur Savdhaniyan.की जो कि योग विज्ञान का एक प्रमुख योग आसन है जो शरीर और मन को स्वस्थ बनाने में मदद करता है। यह आसन रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाता है, पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है, और मानसिक तनाव को कम करता है।

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Photo-Unsplash

(चित्र में कुछ भिन्नता हो सकती है।)

मुख्य बिंदुः

1. अर्ध मत्स्येंद्रासन क्या है?
2. अर्ध मत्स्येंद्रासन करने की विधि।
3. अर्ध मत्स्येंद्रासन के लाभ।
4. अर्ध मत्स्येंद्रासन के लिए आवश्यक सावधानियां।
5. अर्ध मत्स्येंद्रासन के साथ अन्य योग आसन।
6. अर्ध मत्स्येन्द्रसन के विपरित आसन।
1.अर्ध मत्स्येंद्रासन क्या है?

अर्ध मत्स्येंद्रासन योग में एक प्रमुख आसन है, जिसे “अर्ध” यानी “आधा” और “मत्स्येंद्र” यानी “मछली का राजा” से मिलकर बना है। यह आसन शरीर को मोड़कर और रीढ़ की हड्डी को सीधा करके किया जाता है।
कहीं कहीं यह भी बताया गया है कि योगी मत्स्येन्द्रनाथ के नाम इस आसन का नाम रखा गया है।

अर्ध मत्स्येंद्रासन को बैठकर किया जाता है।यह आसन पेट एवं पाचनतन्त्र के लिए अति लाभदायक माना जाता है। इस आसन का अभ्यास सुबह एवं शाम के समय किया जाना चाहिए। जब पेट एकदम से खाली हो,खाली पेट अर्ध मत्स्येंद्रासन योगासन का अभ्यास करने से बेहतर परिणाम प्राप्त किये जा सकते है।

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2.अर्धमत्स्येंद्रासन करने का सही तरीका (How to do ardha matsyendrasana)   Ardha matsyendrasan,Vidhi,LabhAur Savdhaniyan.

 

2.1. साफ एवं हवादार खुली समतल जगह पर योगा मेट या चटाई बिछा कर बैठ जाएं और अपने दोनों पैरों को अपने सामने सीधा फैलाकर बैठें।
2.2. इस दौरान अपनी कमर और रीढ़ को सीधी रखें।
2.3. बाएं पैर को घुटने से मोड़ें और दांयें पैर के उपर से बाहर की ओर लेते हुए बाएं पैर दाये पैर के घुटने के पास रखें। बांये पैर का घुटना खड़ा रखें।
2.4. दाएं पैर को अपने सामने सीधा जमीन से स्पर्श करते हुए रखें।

2.5. बाएं हाथ को दाहिने घुटने पर रखते हुए दायें पैर के अंगुठे को पकड़े और दाएं हाथ को अपने पीछे की ओर ले जायें।
2.6. इस दौरान कमर, कंधों और गर्दन को दाईं ओर मोड़ें और अपनी नजर दाएं कंधे या अपने आज्ञा चक्र पर रखें।
2.7. इस पोजीशन में 8 से 10 सेकेण्ड तक रूके रहें ।
2.8. इसी प्रक्रिया को अब दूसरे पैर से दोहरावें ।
2.9. सांस बाहर छोड़ें, सामने की ओर देखें और रिलैक्स करें।

3.अर्धमत्स्येंद्रासन करने के लाभः-                                        \

हम बात कर रहे है अर्ध मत्स्येंद्रासन, विधि,लाभ और सावधानियां। Ardha matsyendrasan,Vidhi,LabhAur Savdhaniyan.की  अर्ध मत्स्येंद्रासन एक प्रमुख योग आसन है जो शरीर और मन को स्वस्थ बनाने में मदद करता है। यह आसन रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाता है, पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है, और मानसिक तनाव को कम करता है।

3.1. रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाता हैः- जब हम अर्ध मत्स्येंद्रासन का अभ्यास करते है। तब हमारा मेरूदण्ड को काफी घुमाव करना पड़ता है। जिससे इसकी मालिश हो जाती हैं एवं इसकी जकड़न,कमर एवं पीठ के दर्द आदि समस्यों का समाधान होने पर यह स्वस्थ बना रहता है।

3.2. पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता हैः- मेरूदण्ड की तरह इस आसन के अभ्यास में हमारा पेट की भी काफी मालिश हो जाती है। जो हमारे पाचन तन्त्र पर सकारात्मक प्रभाव डालती है। जिससे हमारे पेट मे स्थिति हमारे पाचन तऩ़्त्र को मजबूती मिलती है। जिससे भूख न लगने की समस्या से छुटकारा मिलता है एवं हमारे द्वारा ग्रहण किये गये भोजन का उचित एवं पर्याप्त रूप से अवशोषण होकर हमारे शरीर को उचित पोषण एवं ऊर्जा मिलती है,जो हमारे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक होती है।

3.3. मानसिक तनाव को कम करता हैः- इसका नियमित अभ्यास करने से यह हमारे मानसिक स्वास्थ के लिए लाभदायक होता है। जिससे हमारे मानसिक तनाव आदि को नियन्त्रित करने में मदद मिलती है। स्मरण शक्ति का विकास होता है। भ्रम की स्थिति का समापन होता है।

3.4. रक्त संचार को बेहतर बनाता हैः- इस योगासन के अभ्यास से पैर,पेट,घुटना,कन्धें,हाथ,गर्दन आदि सभी अंग क्रियाशील रहते है। जिससे हमारे शरीर का रक्त प्रवाह प्रत्येक अंग तक निरन्तर बना रहता है। इस आसन के नियमित अभ्यास से हमारा रक्त भी शुद्ध होता है। जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होता है।

3.5. शरीर को लचीला और मजबूत बनाता हैः- अर्द्ध मत्स्येंद्रासन का नियमित अभ्यास हमारे शरीर के अंगों को लचीला एवं मजबूत बनाता है।
3.6. प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता हैः- अर्द्ध मत्स्येंद्रासन का नियमित अभ्यास हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत बनाता है। जिससे हमारे शरीर को रोगमुक्त बने रहने की शक्ति मिलती रहती है।
3.7. कब्ज की समस्या को दूर करता हैः- अर्द्ध मत्स्येंद्रासन का नियमित अभ्यास हमारे पाचन तन्त्र को मजबूत बनाता है,जब पाचन तन्त्र मजबूत होगा तो कब्ज,ऐसीडिटी की समस्याएं स्वतः समाप्त हो जायेगी।
3.8. शरीर को स्वच्छ और हल्का महसूस कराता हैः- अर्द्ध मत्स्येंद्रासन का नियमित अभ्यास उपरान्त हम अपने आपको हल्का एवं स्वस्थ अनुभव करते है।
3.9. अर्ध मत्स्येंद्रासन के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ

3.10 अर्ध मत्स्येंद्रासन का अभ्यास कुण्डलिनी जागरण में सहायक होता है।
3.11. पेट एवं जांघों के मोटापा को कम करने मे सहायक होता है।
3.12. अर्ध मत्स्येंद्रासन का अभ्यास मधुमेह के रोगियों को लाभप्रद होता है। इस आसन के नियमित अभ्यास से हमारा पैंक्रियाज सक्रिय होता है, जिससे इंसुलिन का पर्याप्त मात्रा में स्त्राव होने लगता है। जिससे मधुमेह को नियन्त्रित करने में सहायता मिलती है।
3.13.अर्ध मत्स्येंद्रासन के मानसिक और आध्यात्मिक लाभ

  •  मानसिक शांति और स्थिरता
  • आध्यात्मिक जागरूकता
  • आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान

 

और पढ़े शरीर और मन को डिटोक्स कैसे करें ?

4.अर्धमत्स्येंद्रासन करते वक्त बरतें ये सावधानियां

4.1. हम बात कर रहे है अर्ध मत्स्येंद्रासन, विधि,लाभ और सावधानियां। Ardha matsyendrasan,Vidhi,LabhAur Savdhaniyan.की अर्धमत्स्येंद्रासन करते समय रखी जाने वाली सावधानियों की बात करते है। जितनी जानकारी हमे इससे होने वाले लाभ की होनी चाहिए। उतनी ही हमें इस आसन को करते समय रखी जाने वाली सावधानियों की जानकारी होनी चाहिए। ताकि हम इस आसन का सावधानीपूर्वक अभ्यास कर अधिक लाभ प्राप्त कर सकें।

4.2. महिलाओं को अर्धमत्स्येंद्रासन,गर्भावस्था और मासिक धर्म के दौरान नहीं करना चाहिए, क्योंकि इस आसन के अभ्यास के दौरान एक तरह से यह पूरे पेट को ऐंठन (मरोड़) देता है, जिससे पेट के अन्दरूनी भाग एवं पेट एवं कमर की मांसपेशिया पूरी तरह से प्रभावित होती है। अतः महिलाओं को इस आसन को करने से बचना चाहिए।
4.3. अगर किसी व्यक्ति की पेट,कमर,हृद्य या किसी प्रकार का ऑपरेशन हुआ हो उन्हें इस आसन का अभ्यास नहीं करना चाहिए। अगर आप करना चाहते है तो अपने चिकित्सक की सलाह बिना अभ्यास नहीं करना चाहिए।

4.4. जिन लोगों को स्लिप डिस्क जैसी समस्या है, उन्हें इस अर्ध मत्स्येंद्रासन से लाभ होगा। लेकिन उन्हें अपने चिकित्सक के परामर्श एवं योग प्रशिक्षक के मागर्दशन में इसका अभ्यास करना चाहिए।
4.5.अगर किसी व्यक्ति हो मेरूदण्ड सम्बन्धी समस्या हो तो उन्हे यह आसन योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही करना चाहिए।
4.6. अर्ध मत्स्येंद्रासन करते समय अपने शरीर को स्थिर और आरामदायक रखें।
4.7. अर्ध मत्स्येंद्रासन को धीरे-धीरे और सावधानी से करें।
4.8. अर्ध मत्स्येंद्रासन के बाद आराम करें और अपने शरीर को स्थिर करें।

5.अर्ध मत्स्येंद्रासन के साथ इन योगाभ्यास को भी किया जाये तो अधिक लाभ प्राप्त होने की अधिक सम्भावना बन जाती है।

( Ardha matsyendrasan,Vidhi,LabhAur Savdhaniyan.)
5.1.मार्जारासन
5.2.भुजंगासन
5.3. शलभासन
5.4. सूर्य नमस्कार
5.5. प्राणायाम
5.6. ध्यान

6. अर्धमत्स्येंद्रासन के विपरीत आसन                                          Ardha matsyendrasan,Vidhi,LabhAur Savdhaniyan.

किसी भी आसन के बाद विपरीत आसन किसे जाने का योग शास्त्रों में प्रावधान है अतः अर्धमत्स्येंद्रासन के बाद इन आसनों का अभ्यास किया जाना भी लाभदायक होता है।
6.1.पश्चिमोत्तानासन
6.2.जानुशीर्षासन

आज हमने बात की अर्ध मत्स्येंद्रासन, विधि,लाभ और सावधानियां। Ardha matsyendrasan,Vidhi,LabhAur Savdhaniyan.जिसमें  हमने देखा कि अर्द्ध मत्स्येन्द्रासन का नियमित अभ्यास हमारे लिए अत्यन्त लाभकारी योगाभ्यास है। इसका नियमित एवं सही मार्गशर्दन में अभ्यास किया जाये तो यह हमारे काफी रोगों को भी ठीक करने की सामर्थ्य रखता है। परन्तु यह भी सही है कि योगाभ्यास किसी दवाओं का स्थान नहीं ले सकता। अतः अगर किसी को किसी प्रकार की स्वास्थ्य समस्या हो तो उन्हे अपने चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ही योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में योगाभ्यास करना चाहिए।

इस ब्लॉक का उद्ेश्य योग सम्बन्धी जानकारी देना है। न कि चिकित्सा विकल्प देना। अतः चिकित्सा के उद्ेश्य से अभ्यास करने से पूर्व चिकित्सक एवं योग प्रशिक्षक से परामर्श अवश्य करना चाहिए।

FAQ

Ardha Mtsyendrasan

1. साफ एवं हवादार खुली समतल जगह पर योगा मेट या चटाई बिछा कर बैठ जाएं और अपने दोनों पैरों को अपने सामने सीधा फैलाकर बैठें। 2. इस दौरान अपनी कमर और रीढ़ को सीधी रखें। 3. बाएं पैर को घुटने से मोड़ें और दांयें पैर के उपर से बाहर की ओर लेते हुए बाएं पैर दाये पैर के घुटने के पास रखें। बांये पैर का घुटना खड़ा रखें। 4. दाएं पैर को अपने सामने सीधा जमीन से स्पर्श करते हुए रखें। 5. बाएं हाथ को दाहिने घुटने पर रखते हुए दायें पैर के अंगुठे को पकड़े और दाएं हाथ को अपने पीछे की ओर ले जायें। 6. इस दौरान कमर, कंधों और गर्दन को दाईं ओर मोड़ें और अपनी नजर दाएं कंधे या अपने आज्ञा चक्र पर रखें। 7. इस पोजीशन में 8 से 10 सेकेण्ड तक रूके रहें । 8. इसी प्रक्रिया को अब दूसरे पैर से दोहरावें । 9. सांस बाहर छोड़ें, सामने की ओर देखें और रिलैक्स करें।
अर्ध मत्स्येंद्रासन योग में एक प्रमुख आसन है, जिसे “अर्ध“ यानी “आधा“ और “मत्स्येंद्र“ यानी “मछली का राजा“ से मिलकर बना है। यह आसन शरीर को मोड़कर और रीढ़ की हड्डी को सीधा करके किया जाता है। कहीं कहीं यह भी बताया गया है कि योगी मत्स्येन्द्रनाथ के नाम इस आसन का नाम रखा गया है।
अर्ध मत्स्येंद्रासन एक प्रमुख योग आसन है जो शरीर और मन को स्वस्थ बनाने में मदद करता है। यह आसन रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाता है, पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है, और मानसिक तनाव को कम करता है। 1. रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाता है। 2. पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है। 3. मानसिक तनाव को कम करता है। 4. रक्त संचार को बेहतर बनाता है 5. शरीर को लचीला और मजबूत बनाता है। 6. प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है । 7. कब्ज की समस्या को दूर करता है। 8. शरीर को स्वच्छ और हल्का महसूस कराता है। 9. अर्ध मत्स्येंद्रासन के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ 10 अर्ध मत्स्येंद्रासन का अभ्यास कुण्डलिनी जागरण में सहायक होता है। 11. पेट एवं जांघों के मोटापा को कम करने मे सहायक होता है। 12. अर्ध मत्स्येंद्रासन का अभ्यास मधुमेह के रोगियों को लाभप्रद होता है। 13.अर्धमत्स्येंद्रासन के मानसिक और आध्यात्मिक लाभ ऽ मानसिक शांति और स्थिरता ऽ आध्यात्मिक जागरूकता ऽ आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान
अर्ध मत्स्येन्द्रासन एक बार में 3 से 5 बार करना चाहिए। एक पैर पर 8 से 10 सेकेण्ड रूकना चाहिए। इस प्रकार दोनों पैरों से करते हुए, 3 से 5 बार करना चाहिए।

 

 

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2 responses to “अर्ध मत्स्येंद्रासन, विधि,लाभ और सावधानियां। Ardha matsyendrasan,Vidhi,LabhAur Savdhaniyan.”

  1. Saroj Avatar

    Acchi aur labhdayak jaankari

  2. Raghuvir singh Avatar

    Jandar,shandar

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