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योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh

योग प्राचीन समय से भारतीय समाज का हिस्सा रहा है।आज बात करेंगें योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh की,प्राचीन समय में योग हर घर एवं हर व्यक्ति द्वारा किया जाता था। जिसे पिछले कुछ वर्षो में विस्मृत कर दिया गया था। यह भी सत्य है कि योग को कभी पूर्णतः विस्मृत नहीं किया गया,इसकी उपयोगिता पर विरोधाभास होने के उपरान्त भी, इससे प्राप्त होने वाले लाभों से कभी इन्कार नहीं किया गया ।

भौतिकता के युग में इसका व्यवसायीकरण हो चुका है।यह कारण है कि अब जगह जगह योगाभ्यास केन्द्र खुल रहे है।भौतिकता एवं आधुनिकता के नाम पर योग का समुचित उपयोग नहीं हो पा रहा है। क्योकि वास्तविक योग का लाभ तभी प्राप्त हो सकता है। जब योग के अष्टॉगों का पालन किया जाये, परन्तु आमजन को इन अष्टॉगों का पालन करने का समय और मनोयोग भी नहीं है। जिस कारण बिना इनका पालन किये मात्र शारीरिक लाभ के लिए योग का अभ्यास किया जा रहा है। जिस कारण मानसिक एवं आध्यात्मिक लाभ ले पाने में वह वर्ग असफल हो रहा है।

महर्षि पतंजलि ने योग को आत्मसात कर योग को गहराई से अध्ययन किया इसके गुण अवगुणों पर काफी शौध किया। अपने शौधों को एक पुस्तक के रूप में संकलित किया जिसको हम योग सूत्र के नाम से जानते है।योग साहित्य में शिव को पहला योगी,योगीराज माना जाता है। योग का प्रयोग जैन एवं बौद्ध परम्पराओं में भी खुब किया गया है एवं किया जाता है। बौध अनुयायीयो द्वारा योग को चीन,जापान,श्रीलंका आदि देशों में फैलाया गया है।

योग का शब्द संस्कृत के ‘ युज ‘ धातु से हुआ है। जिसका अर्थ, समाधि और संयोग होता है। योग का एक अर्थ जोड़ना भी होता है। योग एक अभ्यास है जो मानसिक, शारीरिक, आध्यात्मिक स्वास्थ्य के साथ साथ स्वस्थ समाज का भी निमार्ण करता है। योग हमारे शरीर, मन और आत्मा को एक साथ जोड़ता है।आत्मा का परमात्मा से मिलन करवाता है। योगसूत्र के अनुसार चित्त की वृत्तियों के निरोध को योग कहा गया है। “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः।”

भारतीय परम्पराओं में योग का अन्तिम लक्ष्य कैवल्य,मोक्ष,निर्वाण प्राप्त करना है। जिनको प्राप्त करने के लिए योग के कई प्रकार बताये गये है।

योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh
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1-योग के प्रकार

(योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh)


1.राज योग


मनोमूर्च्छा समासाद्य मन आत्मनियोजयेत्।
परात्मनःसमायोगात् समाधि समवाप्नुयात्।16।
अर्थात- मनोमूर्च्छा कुम्भक के अभ्यास से मन को ब्रह्म में एकाग्र करें। इस प्रकार परमात्मा के योग से राजयोग समाधि होती है। (घेरण्ड संहिता)
राज योग को सर्वोत्म योग माना जाता है। इस साधना में शरीर को मानसिक ध्यान के लिए साधा जाता है। मन की चंचल वृतियों को नियंत्रित एवं शान्त करना हर किसी के वश का नहीं होता है। इस साधना द्वारा चित को स्थिर किया जा सकता है। इस साधना का उद्देश्य चित की वृतियों को नियन्त्रित किया जाना होता है। इसके द्वारा एकाग्रता व समाधि प्राप्त करने का प्रायोजन पूर्ण किया जा सकता है। राजयोग मन की एकाग्रता की साधना है।
राज योग को साधने से पहले हठ योग का अभ्यास भी किया जाना आवश्यक है। क्योंकि हठ के अभ्यास में हम श्वांसों पर नियंत्रण करना एवं शरीर को साधने की क्रिया का अभ्यास सीखते है। अतः राज योग से पहले हमे हठ योग की साधना करनी चाहिए।
महर्षि पतंजली द्वारा रचित ‘‘योग सूत्र‘‘ में अष्टांग योग का प्रावधान किया गया है। जिनका अभ्यास कर हम अपने शरीर के बाह्य एवं आन्तरिक सूक्ष्म अनुभूतियों/इद्रियों का ज्ञान प्राप्त कर सकते है। किसी भी योगी के लिये इन अष्टांग योगों का पालन किया जाना अनिवार्य होता है।तभी वह योग के अन्तिम लक्ष्य मौक्ष की ओर बढ़ सकता है।


2.भक्ति योग (योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh)

स्वकीय हृदये ध्यायेदिष्टदेव स्वरूपकम्।
चिन्तयेद् भक्तियोगेन परमाह्लाद पूर्वकम्।14।
आनन्दाश्र पुलकेन दशाभावः प्रजायते।
समाधिः सम्भवतेन सम्भवेच्चमनोन्मनी।15।


अर्थातः- अपने हृद्य से परमानन्द पूर्वक भक्तियोग से इष्ट देव के स्वरूप का चिन्तन करें,इससे आनन्दाश्रु बहने लगते है। शरीर पुलकित होता है। इससे मन अचेत और एकाग्र हो जाता है।ब्रह्म साक्षात्कार होता है। इसे भक्तियोग समाधि कहते है।(घेरण्ड संहिता) (योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh)

हर व्यक्ति में किसी न किसी के प्रति भक्ति भावना होती है। उसका स्वरूप भिन्न प्रकार का हो सकता है। परन्तु भावना एक जैसी होती है।
भक्ति हमेशा श्रद्धा और समर्पण पर होती है।श्रद्धा और समर्पण वहीं होता है। जहॉ भक्ति होती है,प्रेम होता है,विश्वास होता है। जहॉ पर ये होंगे उसके लिए व्यक्ति अपना सब कुछ न्यौछावर करने को समर्पित होता है,चाहे वो पैसा हो,प्यार हो या कुछ और हो।
इस स्थिति में व्यक्ति तर्क वितर्क भूल कर अपने परमात्मा को प्राप्त करने की और अग्रसर होने को आतुर रहता है।
इस स्थिति में आगे बढ़ने पर व्यक्ति मानता है, कि उसके द्वारा कुछ नहीं किया जा रहा,जो कुछ हो रहा है। वह परमात्मा कर रहा है। परमात्मा के साथ उसका ऐसा अटूट विश्वास जुड़ जाता है।
यह सत्य है कि किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने चाहे, वह भक्ति का हो या भौतिक जीवन में किसी भौतिक वस्तु या लक्ष्य हो प्राप्त करने का उसके साथ हमे एक तारतम्य होना पड़ेगा ।
कुछ लोग भटक कर इसका गलत अर्थ लगा लेते है, कि उन्हें कुछ नहीं करना वे तो परमात्मा को समर्पित हो चुके है। परमात्मा ही उनका सब कुछ सही सही करने वाले है।यह स्थिति ठीक नहीं होती व्यक्ति को अपना पुरूषार्थ नहींं छोड़ना चाहिए अन्यथा समाज में अकर्मण्यता की स्थिति बन जायेगी। जो किसी भी स्वस्थ समाज के लिए उचित नहीं होती है।
अतः व्यक्ति को भक्तियोग में ज्ञान एवं कर्म योग के प्रति भी जागरूक रहते हुए आपना कर्म करते रहना चाहिए।


3.कर्म योग (योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh)


व्यक्ति योगी हो या गृहस्थ उसे कर्म करना ही चाहिए,बिना कर्म किये उसका जीवन निर्वहन होना सम्भव नहीं हो पाता है। इसलिए उसे कर्म करते रहना चाहिए।
कर्म करते समय हमें उसके परिणाम की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। कर्म को अपना धर्म मानते हुए निस्वार्थ भाव से करते रहना चाहिए। निस्वार्थ का भाव मन में रहने से मन में राग, द्वेष,अहंकार पैदा होगें। जब मन में राग, द्वेष,अहंकार पैदा होगें, तो परमात्मा का मिलन होना असम्भव होगा और व्यक्ति इसी राग द्वेष में फंस कर अपने मूल उद्देश्य से भटक जायेगा। (योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh)
गृहस्थ जीवन में निष्काम कर्म ही हमें परमात्मा से जोड़ने का कार्य करेगा। निष्काम कर्म में व्यक्ति किये गये कार्य के प्रतिफल में पद,प्रतिष्ठा या धन प्राप्ति की आकांक्षा नहीं रखता। यही वास्तव में निष्काम कर्म कहलाता है।
इस प्रकार कर्मयोग के द्वारा भी व्यक्ति मौक्ष,निर्वाण और मुक्ति के मार्ग की और अग्रसर हो सकता है।

4-हठ योग (योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh)


आजकल सामान्यजन द्वारा जो योगाभ्यास किया जा रहा है। इसे ही हठ योगा कहा जाता है।हमारे बांयी नासिका से चन्द्र स्वर एवं दांयी नासिका से सूर्य स्वर प्रवाहित होते रहते है। स्वर साधना द्वारा हम इनका सन्तुलन बना कर हमारे शरीर को सन्तुलित बनाए रखना होता है। इनको सन्तुलित करने के लिए अन्य क्रियाएं जैसे आसन, जैसे सूर्यनमस्कार, पदमासन आदि, प्राणायाम, अनुलोम विलोम,समवर्ती श्वांस क्रियाएं,भ्रामरी आदि,षट्कर्म,शंख प्रक्षालन,धौति क्रिया,वमन धौति,कुंजल आदि, क्रियाएं भी करनी होती है।इन क्रियाओं से शरीर में लचीलापन आता है,शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है,श्वांस प्रश्वांस पर नियन्त्रण होता है एवं शरीर की आन्तरिक शुद्धि होती है।ये सभी क्रियाएं सफलतापूर्वक हो जाने पर ध्यान एवं समाधि लगाना आसान हो जाता है।आजकल हठ योग ही प्रचलन में है। जिसमें आम लोग आसनों का अभ्यास कर सीधे ही शारीरिक स्वास्थ्य लाभ लेने का प्रयास करने लगे है। यह लोकप्रिय भी हो रहा है।लोगों ने भी अन्य योग क्रियाओं को करना उचित नहीं समझ रहे। परन्तु परमात्मा से मिलन के उददेश्य से योग करने वालों को योग के समस्त चरणों का पालन/अभ्यास करना चाहिए।

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  1.  
  1. ज्ञान योग(योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh)

ज्ञानयोग व्यक्ति के ज्ञान,प्रज्ञा को जागृत कर जिज्ञासाओं को शान्त करने में सहायता करता है। इस मार्ग पर चलने वाला साधक अविद्या,मिथ्य व अज्ञान के अन्धकार से निकल कर ज्ञान तत्व से प्रकाशित हो जाता है।
ज्ञान योग की साधना ध्यान एवं अनुभव से सिद्ध होती है।
जैसे हम सांसारिक जीवन में भी जानते है कि ज्ञान एवं अनुभव के बिना किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिलती है। उसी प्रकार अध्यात्म के क्षेत्र में भी बिना ज्ञान प्राप्त किये परमात्मा से मिलना असंभव होता है।
जिस व्यक्ति हो ज्ञान प्राप्त हो जाता है। वह आध्यात्मिक रूप से मानव जीवन की वास्तिविकता को जानने में सक्षम हो जाता है। जिससे वह संसारिक जीवन के प्रपंचों से बचने का मार्ग ढूंढ लेता है। जो व्यक्ति इतना ज्ञान प्राप्त कर लेता है । वह मोक्ष के नजदीक पहुंच जाता है।
ज्ञान योग में ब्रह्म तत्व को पहचाने उसे अनुभव करने को ज्ञान कहा गया है।
श्रीमद्भगवत गीता के अनुसार ज्ञान प्राप्त करने की विधि-

5-1.व्यक्ति को शरीर,मन और इन्द्रियों को शुद्ध और निर्विकार रखना चाहिए। क्योकि मन चंचल होता है जो सांसारिक भोग विलासों की तरफ जल्दी आकर्षित होता है। जिसका परिणाम होता है कि वह व्यक्ति को ज्ञान /परम तत्व को प्र्राप्त करने में बाधा पहुंचाने का प्रयास करता है।

5-2.अतः मन और इन्द्रियों को योग साधना द्वारा नियन्त्रण में रखना चाहिए ताकि मन और इन्द्रियों की चंचलता को नष्ट किया जा सके।

5-3.जब चंचलता नष्ट हो जायेगी तो ध्यान,ज्ञान एवं परम तत्व प्राप्त हो जायेगा।

5-5.ज्ञान प्राप्त होने पर कर्मो के पापों का नाश हो जाता है।

5.6-जब ज्ञान प्राप्त हो जाता है, तो इस सांसारिक जीवन में प्राप्त करने लायक और कुछ शेष नहीं रहता है।

6.मन्त्र योग (योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh)


हर व्यक्ति की अपनी उपसना पद्धिति होती है। हर व्यक्ति का अपना अपना ईष्ट होता है। जिसकी वो अराधना,भक्ति करता है। अराधना में किसी पुस्तक का अध्ययन करना,आराध्य की स्तुति करना,किसी मंत्र का जाप करना आदि हो सकता है।
मंत्र ध्वनी विज्ञान के अनुसार शब्दों का समुह होता है। जिसका शाब्दिक अर्थ सामान्य होता है। जब इसका लगातार निरन्तर बार-बार लयबद्ध तरीके से स्मरण,जप किया जाता है,तो उसे निकलने वाली ध्वनी में साधक इतना लीन,एकाकार हो जाता है, कि उसे अपनी सुध बुध भी नही रहती है। इस स्थिति में मन स्थिर हो जाता है। यह स्थित परमात्मा में लीन होने की सर्वोतम स्थिति होती है। साधना के लिए एक ही मंत्र का लम्बे समय तक अभ्यास करना चाहिए,तभी साधना सिद्ध होती है। मंत्रों के शुद्ध उच्चारण से निकलने वाली ध्वनी की तरंगे इतनी प्रभावी होती है कि मन से साथ साथ समस्त शरीर को प्रभावित करती है। ष्
मंत्र मुख्यतः तीन प्रकार के हाते है।
1.वैदिक मंत्र।
2.़शाबर मंत्र।
3.तांत्रिक मत्र।
शब्दों का प्रभाव तो आपने प्रत्यक्ष रूप से कविताओं को सुनते समय या सिनेमा हॉल में अनुभव किया है। हालॉकि आपको ज्ञान होता है कि सिनेमा में जो कुछ भी हम देख रहे है। वह पर्दे पर दिखाया जा रहा है। जो मात्र मशीनी छायाचित्र है, परन्तु इस सबके बावजूद हम उस कहानी के पात्रों के सुख,दुखः हास्य,भय,क्रोध से मानसिक रूप से इतने प्रभावित होते है कि उसमें हम अपने आपको समाहित अनुभव करने लगते है। ठीक यही स्थिति म्ांत्रों के साथ है। अगर हम मंत्र साधना पूर्ण मनोयोग से करते है,तो उसकी सिद्धि प्राप्त होना अवश्यंभावी है।
मंत्रों की साधना करते समय चित का निर्मल और शुद्ध होना आवश्यक है। साधक में अंहकार,लोभ या द्वेष की भावना नहीं होनी चाहिए, नहीं ंतो इन सिद्धियों के दुरूप्योग की सम्भवना बनी रहती है। अतः इन साधनाओं को किसी योग्य गुरू के मार्गदर्शन में करना चाहिए।


7.लय योग (योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh)

योनिमुद्रा समासाघ्य स्वयं शक्त्मि्योभवेत्।
सुश्रृंगाररसेनैव विहरेत् परमात्मनि।12।
आनन्दमयः सम्भूय ऐक्यं ब्रह्मणि संभवेत्ं।
अहं ब्रह्मेति वाद्वैतं समाधिस्तेनजायते।13।
अर्थात-योनि मुद्रा करता हुआ योगी अपने मे शक्ति भावना, परमात्मा में पुरूष भावना करे।पुनश्चं मेंरा तथा परमात्मा का शक्ति पुरूषमय बिहार हो रहा है ऐसी भावना करे,इससे समाधि होती है। इसे लय सिद्वि योग समाधि कहते है। (घेरण्ड संहिता)
लय योग की साधना के लिए ध्यान मुद्रा में बैठ कर भृकुटी के मध्य घ्यान लगाया जाता है। लय योग से मस्तिष्क शान्त और निर्मल बनता है।इस योग की साधना से व्यक्ति परम तत्व में विलिन होने की क्षमता प्राप्त लेता है। मानव शरीर की कुण्डलिनी शक्ति जो सुप्त अवस्था में मौजूद रहती है। लय योग के अभ्यास से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। कुण्डलिनी शक्ति के नियंत्रण में नहीं रहने पर शरीर में वासनाओं को ज्वर उमड़ता रहता है। जिस कारण व्यक्ति पथभ्रष्ट बन सकता है। लय योग द्वारा कुण्डलिनी शक्ति को ऊर्ध्वगामी कर इसकी शक्ति मूलाधार चक्र से सहस़्त्रार चक्र में ऊर्ध्वारोहण किया जाता है। जिससे भौतिक एवं सूक्ष्म शरीर तनाव मुक्त हो जाता है। सहस्त्रार चक्र में कुण्डलिनी शक्ति का प्रवेश होने से व्यक्ति परम तत्व को प्राप्त कर लेता है। जिससे मानव मन की चंचलता शान्त,चित शुद्ध हो जाता है। व्यक्ति में सकारात्मक उर्जा अविरल प्रवाह बन जाता है। मस्तिष्क शक्तिशाली,चिन्ता एवं थकान रहित दिव्य प्रकाशमान बन जाता है।

8.तन्त्र योग (योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh)


भारतीय अध्यात्म में बहुत सी ऐसी विधाये है,जो आज विलुप्त होने के कगार पर है । जिनमें से एक तंत्र विद्या भी है । तंत्र विद्या ऐसी रहस्मयी विद्या है। जिसका नाम सुनते ही एक ऐसे व्यक्ति की छवि उभर कर आती है। जो अघोरी है,मानव मांस या मानव विष्ठा का भक्षण करता है या ऐसे तांत्रिक की छवि चेतना में आती है। जो मंत्र शक्ति से कुछ भी करने में सक्षम है। इन छविंयों को देखते ही आम आदमी एक रहस्यमय दुनिया के रहस्मय व्यक्यिं को भय से स्मरण करने लगता है।
माना जाता है कि तंत्र साधना सम्बन्धित बहुत सा साहित्य विलुप्त हो चुका है।अब तंत्र साधना से सम्बन्धित बहुत कम साहित्य उपलब्ध है। तन्त्र साधना एक रहस्यमयी साधना है। जिसके साधक अपनी आत्मशक्ति के बल पर विभिन्न मंत्र, वैदिक मंत्र,शाबर मंत्र,तांत्रिक मंत्र,यंत्र,आगम तंत्र,यामल तंत्र,और मुख्य तंत्र की साधना कर सिद्धि प्राप्त करते है। ये साधक गहन साधना द्वारा सम्मोहन,त्राटक,वशीकरण,उच्चाटन,स्तम्भन की सिद्धियॉ प्राप्त करते है।
लोगों का विश्वास है कि इन साधकां द्वारा लोगों की समस्याओं का समाधान भी किया जाता है। खैर अपना अपना विश्वास होता है।
माना जाता है कि इन साधनाओं की साधना सुनी सुनाई अथवा किताबों के आधार पर नहीं करनी चाहिए। ये साधनाऐं किसी योग्य साधक के मार्गदर्शन में करनी चाहिए,कहा जाता है कि बिना मार्गदर्शक के की गई साधना से नवसाधक स्वयं का भी अहित हो सकता है।


9.यन्त्र योग (योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh)


यऩ्त्र का शाब्दिक अर्थ मशीन होता है। जिस प्रकार मंत्रों की शक्ति असीमित मानी जाती है। उसी प्रकार अध्यात्म में यन्त्रों को भी शक्तिशाली एंव प्रभावी माना जाता है। बहुत से लोगों का भी इन यंत्रों में अटूट भरोसा होता है। आज भी हम दुकानों,घरों में ऐसी आकृति लगी हुई देखतें है। जो चकोर,त्रिभुजाकार या षट्कोण की आकृति में बनी होती है। जिसके प्रत्येक खाने में एक संख्या लिखी होती है। यह आकृति किसी कागज पर या धातु पर बनी होती है। यहीं यन्त्र होता है। श्री यंत्र,लिंग भैरवी यंत्र या फिर अपने अपने ईष्ट के अनुसार लोग यंत्रों का निर्माण करवा कर अपने उपयोग में लेते है।
इतन यत्रों का कितना प्रभाव है या इन यंत्रों की ऊर्जा,शक्ति का क्या स्त्रोत है। यह अभी भी रहस्य है।

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योगाभ्यास के लाभ (योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh)


1.मानसिक रूप से स्वस्थ बनना।
2.आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ बनना।
3.शारीरिक रूप से स्वस्थ बनना।
योग में भिन्न भिन्न तरह कि क्रियाएं की जाती है। इन क्रियाओं को योग आसन कहा जाता है।


शारीरिक लाभः-


शरीर को लचीला बनाता है।
ष्आजकल लोगों में शारीरिक श्रम करने की आदत आदत नहीं रही है। जिस कारण आम व्यक्ति विभिन्न प्रकार के जोड़ों के दर्द से पिड़ित हो रहा है। मांसपेशियों में खिचाव के रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है। इसी का कारण है कि आजकल फिजियोथैरेपिस्टस् की मांग बढ़ गई है। योगाभ्यास से हमारे शरीर के विभिन्न अंगों के जोड़,मांसपेशियां की मालिश होती है। योगाभ्यास से हमारे जोड़ों एवं मांसपेशियों की जकड़न खत्म हो जाती है। जिससे हम अपने शरीर को मन चाहे आकार में ढ़ाल लेते है। आपने जिमनास्टिक के खिलाड़ियों को ऐसा करते देखा होगा। यह सब योगाभ्यास का ही परिणाम है।
इस प्रकार हम कह सकते है कि योगाभ्यास हमारे शरीर को लचीला बनाता है।

रक्त संचरण को सुचारू बनाने में सहायक
जब हम विभिन्न प्रकार के योगाभ्यास करते है तो योगाभ्यास से हमारी मांसपेशियां नरम हो सकती है। मांसपेशियों में स्थित हमारी नसें भी आवश्यक रूप से नरम होगी उनमें लचीलापन आयेगा। लचीलेपन के कारण नसों में प्रवाहित हो रहे रक्त का प्रवाह भी स्वाभाविक रूप से बना रहेगा। इस कारण हमारे शरीर के प्रत्येक अंग मस्तिष्क हो, चाहे हृद्य सभी अंगों में रक्त का प्रवाह सुचारू बना रहता है। जिससे हमारा शरीर स्वस्थ बना रहेगा।

पाचन तंत्र को मजबूत और स्वस्थ बनाने में सहयोगी।
जब हम पेट के योगा करते है, तो हमारा पाचन तन्त्र मजबूत और स्वस्थ बनता है। पेट के योगाभ्यास से हमारी आन्ते,पेंक्रियाज,अमाश्य आदि सक्रिय होते है। जिससे हमारा पाचन तन्त्र मजबूत बनता है।
शरीर का एलाइनमेंट सही बनता है।
जब हम योगाभ्यास के लिए बैठते है तो हमारी मेरूदण्ड एकदम सीधा,नजर सामने एवं सीना तना हुआ होता है। इस प्रकार सही पोस्चर में बैठने से हमारे शरीर का एलाइनमेंण्ट सही बना रहता है।
शरीर के आन्तरिक अंगों को मजबूती मिलती है।
योगाभ्यास से हमारे शरीर के आन्तरिक अंग जैसे आन्तें,आमाश्य, किडनी,थायरायड ग्रन्थी,पेंक्रियाज आदि अंग सक्रिय होते है।
यौन रोगों को दूर करने में सहायक।
योगासन करने से हमारे श्रोणि प्रदेश एवं जननांगो पर खिचाव आता है। उनकी एक्सरसाइज हो जाती है। जिससे वे स्वस्थ एवं क्रियाशील बनने रहते है।

अस्थमा ,मधुमेह,जैसी बिमारियों के समाधान में सहायता करता है।
बालों को असमय सफेद होने एवं गिरने से बचाता है।
मोटापा को दूर करने में सहायक होता है।
गर्दन का दर्द, पीठ दर्द, सिरदर्द,
योगाभ्यास से चहरे पर कान्ति आती है।
योगाभ्यास से शरीर में सफूर्ति आती है।
योगाभ्यास से हमारे में आत्मविश्वास पैदा होता है।

मानसिक स्वास्थ्य में योग की भूमिका (योग,प्रकार और लाभ-Yoga,parkar Aur Labh)


ध्यान,प्राणायाम करने से मन को केन्द्रित करने में सहायता मिलती है।
ध्यान,प्राणायाम करने से मानसिक तनाव खत्म होता है।
यौगिक क्रियाओं के करने से एकाग्रता बढ़ती है स्मरण शक्ति में सुधार होता है। जो कि विद्यार्थीयों के लिए बहुत आवश्यक एवं उपयोगी होता है।
ध्यान,प्राणायाम करने से मन नियन्त्रित करने में मदद मिलती है।
ध्यान,प्राणायाम करने से सहनशक्ति बढ़ती है,क्रोध शान्त होता है।
ध्यान,प्राणायाम करने से राग द्वेष की भावना शान्त होती है।
ध्यान,प्राणायाम करने से मनुष्य के स्वभाव से नकारात्मकता समाप्त होती है। सकारात्मक विचारों का प्रभाव बढ़ता है।

ध्यान,प्राणायाम करने से चिंता, तनाव और अवसाद आदि मानसिक व्याधिओं का शमन होता है।
तनाव के कारण व्यक्ति के शरीर में दर्द होना,कोध आना,अनिद्रा होना,नशे की आदत होना आदि समस्याएं पैदा हो जाती है। योग,ध्यान एवं प्राणायाम के अभ्यास से इन बिमारियों से मुक्ति मिलने की सम्भावना बनती है।
ध्यान,प्राणायाम एवं योग करने वाले व्यक्ति में आत्मविश्वास की वृद्धि होती है। ऐसा व्यक्ति हमेशा हंसमुख और तनाव रहीत रहता है।


योग अभ्यास में सावधानियां-


योगाभ्यास हमेशा योग्य योग गुरू के मार्गदर्शन में करना चाहिए।
योगाभ्यास हमेशा आसान आसनों से शुरू कर कठिन आसनों की और चलना चाहिए। ताकि शरीर योगाभ्यास के लिए तैयार हो सके।
योगाभ्यास करने का सही समय ब्रहम्मुहुर्त का होता है। अतःयोगाभ्यास सूर्योदय से पूर्व कर लेना चाहिए।
योगाभ्यास के लिए हमेशा किसी आसन (योगा मेट या चटाई) का प्रयोग करना चाहिए।
योगाभ्यास के समय आरामदायक ऐसे वस्त्र पहनने चाहिए,जिनमें योगाभ्यास के दौरान किसी प्रकार की असुविधा नहीं हो।
योगाभ्यास खाली पेट अथवा खाना खाने के 4 घण्टे के बाद करना चाहिए।
योगाभ्यास का परिणाम प्राप्त करने के लिए धैर्य के साथ ईन्तजार करना चाहिए।
किसी गम्भीर बिमारी से ग्रस्त होने अथवा पूर्व में ग्रस्त रहने की स्थिति में अपने चिकित्सक से परामर्श के उपरान्त ही योगाभ्यास का निर्णय करना चाहिए।

इस प्रकार हम देखते है कि योग एक विज्ञान आधारित विषय है। जिससे हमें शरीर के साथ साथ मानसिक एंव आध्यात्मिक लाभ मिलता है। भारत में तो इसकी महता प्राचीन काल से रही है।
भारतीय लोग तो इस का सदियों से स्वास्थ्य और आध्यात्मिक लाभ ले ही रहे थे। अब तो इसकी महता आधुनिक विज्ञान ने भी स्वीकार कर ली है। संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी 21 जून का अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित कर दिया है। जो योग की महता सिद्ध करता है।

इस लेख का उद्देश्य केवल मात्र योग की सामान्य जानकारी देना है।पोस्ट में अंकित किसी भी क्रिया को करने से पूर्व किसी योग्य साधक से या चिकित्सकीय उद्देश्य से अभ्यास करने से पूर्व अपने चिकित्सक या योग प्रशिक्षक से अवश्य परामर्श करना चाहिए।
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yoga ke parkar

अलग अलग साहित्यों में योग के भिन्न भिन्न प्रकार बताये गये है। आमतौर पर निम्न प्रकार से योग का विवरण मिलता है। 1.राजयोग 2.ज्ञान योग 3.भक्ति योग 4.यन्त्र योग 5.कर्म योग 6.लय योग 7.हठ योग 8.मंत्र योग 9. तन्त्र योग
योगाभ्यास के लाभ 1.मानसिक रूप से स्वस्थ बनना। 2.आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ बनना। 3.शारीरिक रूप से स्वस्थ बनना। योग में भिन्न भिन्न तरह कि क्रियाएं की जाती है। इन क्रियाओं को योग आसन कहा जाता है। शारीरिक लाभः- शरीर को लचीला बनाता है। ष्आजकल लोगों में शारीरिक श्रम करने की आदत आदत नहीं रही है। जिस कारण आम व्यक्ति विभिन्न प्रकार के जोड़ों के दर्द से पिड़ित हो रहा है। मांसपेशियों में खिचाव के रोगियों की संख्या भी बढ़ रही है। इसी का कारण है कि आजकल फिजियोथैरेपिस्टस् की मांग बढ़ गई है। योगाभ्यास से हमारे शरीर के विभिन्न अंगों के जोड़,मांसपेशियां की मालिश होती है। योगाभ्यास से हमारे जोड़ों एवं मांसपेशियों की जकड़न खत्म हो जाती है। जिससे हम अपने शरीर को मन चाहे आकार में ढ़ाल लेते है। आपने जिमनास्टिक के खिलाड़ियों को ऐसा करते देखा होगा। यह सब योगाभ्यास का ही परिणाम है। इस प्रकार हम कह सकते है कि योगाभ्यास हमारे शरीर को लचीला बनाता है। रक्त संचरण को सुचारू बनाने में सहायक जब हम विभिन्न प्रकार के योगाभ्यास करते है तो योगाभ्यास से हमारी मांसपेशियां नरम हो सकती है। मांसपेशियों में स्थित हमारी नसें भी आवश्यक रूप से नरम होगी उनमें लचीलापन आयेगा। लचीलेपन के कारण नसों में प्रवाहित हो रहे रक्त का प्रवाह भी स्वाभाविक रूप से बना रहेगा। इस कारण हमारे शरीर के प्रत्येक अंग मस्तिष्क हो, चाहे हृद्य सभी अंगों में रक्त का प्रवाह सुचारू बना रहता है। जिससे हमारा शरीर स्वस्थ बना रहेगा। पाचन तंत्र को मजबूत और स्वस्थ बनाने में सहयोगी। जब हम पेट के योगा करते है, तो हमारा पाचन तन्त्र मजबूत और स्वस्थ बनता है। पेट के योगाभ्यास से हमारी आन्ते,पेंक्रियाज,अमाश्य आदि सक्रिय होते है। जिससे हमारा पाचन तन्त्र मजबूत बनता है। शरीर का एलाइनमेंट सही बनता है। जब हम योगाभ्यास के लिए बैठते है तो हमारी मेरूदण्ड एकदम सीधा,नजर सामने एवं सीना तना हुआ होता है। इस प्रकार सही पोस्चर में बैठने से हमारे शरीर का एलाइनमेंण्ट सही बना रहता है। शरीर के आन्तरिक अंगों को मजबूती मिलती है। योगाभ्यास से हमारे शरीर के आन्तरिक अंग जैसे आन्तें,आमाश्य, किडनी,थायरायड ग्रन्थी,पेंक्रियाज आदि अंग सक्रिय होते है। यौन रोगों को दूर करने में सहायक। योगासन करने से हमारे श्रोणि प्रदेश एवं जननांगो पर खिचाव आता है। उनकी एक्सरसाइज हो जाती है। जिससे वे स्वस्थ एवं क्रियाशील बनने रहते है। अस्थमा ,मधुमेह,जैसी बिमारियों के समाधान में सहायता करता है। बालों को असमय सफेद होने एवं गिरने से बचाता है। मोटापा को दूर करने में सहायक होता है। गर्दन का दर्द, पीठ दर्द, सिरदर्द, योगाभ्यास से चहरे पर कान्ति आती है। योगाभ्यास से शरीर में सफूर्ति आती है। योगाभ्यास से हमारे में आत्मविश्वास पैदा होता है। मानसिक स्वास्थ्य में योग की भूमिका ध्यान,प्राणायाम करने से मन को केन्द्रित करने में सहायता मिलती है। ध्यान,प्राणायाम करने से मानसिक तनाव खत्म होता है। यौगिक क्रियाओं के करने से एकाग्रता बढ़ती है स्मरण शक्ति में सुधार होता है। जो कि विद्यार्थीयों के लिए बहुत आवश्यक एवं उपयोगी होता है। ध्यान,प्राणायाम करने से मन नियन्त्रित करने में मदद मिलती है। ध्यान,प्राणायाम करने से सहनशक्ति बढ़ती है,क्रोध शान्त होता है। ध्यान,प्राणायाम करने से राग द्वेष की भावना शान्त होती है। ध्यान,प्राणायाम करने से मनुष्य के स्वभाव से नकारात्मकता समाप्त होती है। सकारात्मक विचारों का प्रभाव बढ़ता है। ध्यान,प्राणायाम करने से चिंता, तनाव और अवसाद आदि मानसिक व्याधिओं का शमन होता है। तनाव के कारण व्यक्ति के शरीर में दर्द होना,कोध आना,अनिद्रा होना,नशे की आदत होना आदि समस्याएं पैदा हो जाती है। योग,ध्यान एवं प्राणायाम के अभ्यास से इन बिमारियों से मुक्ति मिलने की सम्भावना बनती है। ध्यान,प्राणायाम एवं योग करने वाले व्यक्ति में आत्मविश्वास की वृद्धि होती है। ऐसा व्यक्ति हमेशा हंसमुख और तनाव रहीत रहता है।
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