योग में समान वायु क्या है अर्थ एवं लाभ । Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh
आज हम बात करेंगे योग में समान वायु क्या है अर्थ एवं लाभ Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh की।प्राचीन समय से योग और आयुर्वेद भारतीय जीवनशैली की एक परम्परा,पद्धति रही है। जिसके अभ्यास एवं विश्वास के सहारे लोग अपने जीवन को आध्यात्मिक,भावनात्मक एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ रखते थे।
इनके अभ्यास एवं पालन से अपने शरीर एवं मन,भावनाओं के बीच सामन्जस्य बनाए रखने में सफल होते रहे है। योग एवं आयुर्वेद के ग्रन्थों में हमारे शरीर में पांच प्राण वायुओं(प्राण वायु,अपान वायु,समान वायु,उदान वायु,व्यान वायु, )का उल्लेख किया गया है। जिसके सन्तुलन से मानव जीवन संचालित एवं स्वस्थ बना रहता है। इनमें से एक महत्वपूर्ण वायु है “समान वायु“। योग में, “समान वायु“ का गहरा महत्व है क्योंकि यह पाचन और समग्र ऊर्जा के संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस ब्लॉग में, हम “समान वायु“ के महत्व, योग में इसकी भूमिका, इसके असंतुलन के कारण और लक्षण, और इसे संतुलित रखने के योगिक उपायों पर विस्तृत चर्चा करेंगे।
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विषय सूची
1 | “समान वायु“ का परिचय |
2 | समान वायु का स्थान |
3 | योग में “समान वायु“ का महत्व |
4 | “समान वायु“ का असंतुलन, कारण |
5 | “समान वायु“ का असंतुलन, लक्षण |
6 | “समान वायु“ को संतुलित करने के उपाय |
7 | “समान वायु“ का समग्र स्वास्थ्य पर प्रभाव |
8 | समान वायु मुद्रा की विधिः |
1.“समान वायु“ का परिचय Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh
आयुर्वेद के अनुसार, जीवन की ऊर्जा या प्राण पांच वायुओं में विभाजित हैः प्राण वायु, अपान वायु, “समान वायु“, उदान वायु, और व्यान वायु। इनमें से, “समान वायु“ का विशेष कार्य पाचन तंत्र को सुचारू रूप से संचालित करना और शरीर के भीतर ऊर्जा का संतुलन बनाए रखना है। यह वायु नाभि क्षेत्र में स्थित होती है, जो हमारे पाचन तंत्र का केंद्र है। यह वायु पाचन अग्नि को नियंत्रित करती है, जो शरीर में पोषक तत्वों के अवशोषण और मल त्याग की प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक है।
2.समान वायु का स्थानः- Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh
समान वायु का स्थान हमारे शरीर में प्रवाहित प्राण वायु जिसका स्थान हृद्य एवं उससे ऊपर का भाग है और वह वायु शरीर के अंदर ऊपर की ओर गति करने वाली वायु है तथा अपान वायु जो शरीर से बाहर की ओर एवं हमारे शरीर में नीचे की ओर गति करने वाली वायु है। इन दोनां वायुओं के मिलन स्थान के बीच नाभि या मणिचक्र में स्थित होता है।
3.योग में “समान वायु“ का महत्व Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh
योग में, “समान वायु“ को शरीर की पाचन और ऊर्जा संतुलन प्रक्रियाओं के संचालन में केंद्रीय भूमिका निभाने वाला माना गया है। योगिक ग्रंथों के अनुसार, “समान वायु“ नाभि क्षेत्र में स्थित होकर पाचन क्रिया को नियंत्रित करती है, जिससे शरीर में सभी अंगों और कोशिकाओं को ऊर्जा और पोषक तत्वों की पूर्ति होती है। समान वायु हमारे शरीर में कुण्डिलिनी के रूप में स्थित सात चक्रों में से एक मणिपुर चक्र से सम्बन्ध रखने वाले कार्य करने में सहयोग करती है।
समान वायु हमारे पौषण, भावनाओं, सांसों जैसे सभी ग्रहण किए गए पदार्थों को शुद्ध रूप में हमारे शरीर को देने के उत्तरदायित्वों का निर्वहन करती है। समान वायु प्राण और अपान वायु के संतुलन को बनाए रखने में सहयोगी होती है।योग में, यह माना जाता है कि यदि “समान वायु“ संतुलित होती है, तो व्यक्ति का शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य उत्कृष्ट रहता है।
1. पाचन प्रक्रिया का संचालनः- योग के अनुसार, “समान वायु“ शरीर के भीतर पाचन अग्नि को नियंत्रित करती है। जब “समान वायु“ संतुलित होती है, तो पाचन प्रक्रिया सुचारू रूप से चलती है, जिससे शरीर को आवश्यक ऊर्जा मिलती है और पोषक तत्वों का सही अवशोषण होता है।
2. शरीर की ऊर्जा का संतुलनः- योगिक दृष्टिकोण से, “समान वायु“ शरीर के भीतर ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करती है। यह न केवल पाचन में बल्कि संपूर्ण शरीर की ऊर्जा की उचित वितरण में भी सहायक होती है।
3. मानसिक संतुलनः योग में, मानसिक शांति और ध्यान को “समान वायु“ के संतुलन से जोड़कर देखा जाता है। जब “समान वायु“ संतुलित होती है, तो व्यक्ति मानसिक रूप से शांत और स्पष्ट होता है, जिससे ध्यान और साधना में सफलता प्राप्त होती है।
4.“समान वायु“ का असंतुलन, कारण Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh
“समान वायु“ का असंतुलन शरीर और मन पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। इसका असंतुलन पाचन तंत्र, मानसिक स्वास्थ्य, और जीवनशैली पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है। योग और आयुर्वेद दोनों में यह माना जाता है कि असंतुलन के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें अनुचित आहार, अनियमित दिनचर्या, मानसिक तनाव, और शारीरिक गतिविधि की कमी शामिल हैं।
- 1. असंतुलन के कारणः
i. अनुचित आहारः- अत्यधिक तैलीय, मसालेदार, और भारी भोजन का सेवन, अनियमित भोजन का समय।
ii. अस्वस्थ जीवनशैलीः- शारीरिक गतिविधि की कमी, अत्यधिक तनाव, नींद की कमी।
iii- मानसिक तनावः- चिंता, तनाव, और मानसिक दबाव।
iv. दिनचर्या में अनियमितताः- अनियमित सोने-जागने का समय, योगाभ्यास में कमी। -
5.“समान वायु“ का असंतुलन, लक्षण Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh
- असंतुलन के लक्षणः
i. पाचन समस्याएँः- कब्ज, अपच, गैस, एसिडिटी, और पेट में भारीपन।
ii. मानसिक असंतुलनः- चिड़चिड़ापन, चिंता, ध्यान की कमी, अवसाद।
iii- शारीरिक थकानः- ऊर्जा की कमी, कमजोरी, शारीरिक थकान।
iv. त्वचा और बालों की समस्याएँः- त्वचा का सूखापन, बालों का झड़ना, त्वचा पर दाने। -
6.“समान वायु“ को संतुलित करने के उपाय Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh
- “समान वायु“ को संतुलित रखने के लिए योग में कई प्रभावी प्रथाएं और अभ्यास बताए गए हैं। इनमें आसन, प्राणायाम, ध्यान, और सही आहार शामिल हैं। ये प्रथाएं न केवल “समान वायु“ को संतुलित करती हैं बल्कि संपूर्ण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में भी सुधार करती हैं।
1. आसन (योग मुद्राएँ)
योग में, कुछ विशेष आसनों को “समान वायु“ को संतुलित करने के लिए अत्यधिक प्रभावी माना गया है। ये आसन पाचन तंत्र को सक्रिय करते हैं और नाभि क्षेत्र में ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करते हैं। - पश्चिमोत्तानासन : – यह “समान वायु“ को संतुलित करने के लिए अत्यधिक प्रभावी है।
- अर्ध मत्स्येन्द्रासन :- यह आसन पाचन अग्नि को बढ़ाता है और पाचन तंत्र को मजबूत करता है। यह “समान वायु“ के संतुलन में सहायक है।
- नोकासन :– यह आसन नाभि क्षेत्र की मांसपेशियों को मजबूत करता है और “समान वायु“ के प्रवाह को संतुलित करता है।
विधिः-
समतल जगह पर योगा मेट या चटाई बिछाकर आराम से शान्तभाव के साथ पीठ के बल लेट जाएं।
अपने हाथों को फर्स के बराबर शरीर के साथ चिपका लें। हाथ सीधे रहने चाहिए।
अपने शरीर को पूर्ण रूप स़े शिथिल कर लें और सांस को देखें।
अब आप सांस लेते हुए अपने सिर, पैर, और पुरे शरीर को ऊपर की ओर उठायें।
आपके हाथ इस प्रकार उठाएं जैसे आप अपने पैरों केा पकड़ने का प्रयास कर रहे हों।
इस स्थिति में आपका सिर,कन्धे, पैर जमीन से ऊपर उठे हुए है आपके शरीर का वजन आपके मेरूदण्ड पर अनुभव हो रहा है।
श्वांसो की गति सामान्य रहेगी। अपनी क्षमता के अनुरूप रूकें।
और धीरे धीरे अपने पैर,सिर समस्त शरीर को जमीन पर ले आयें।
यह एक चक्र हुआ और शुरुवाती दौड़ में 3 से 5 बार करें। - भुजंगासन :- यह आसन पेट के अंगों को सक्रिय करता है और पाचन प्रक्रिया में सुधार करता है, जिससे “समान वायु“ संतुलित रहती है।
2. प्राणायाम (श्वास-प्रश्वास ) Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh
प्राणायाम के अभ्यास के दौरान हम श्वांस-प्रश्वांस की जो क्रिया करते है। उसको सन्तुलित करने में समान वायु महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्राणायम के दौरान उड्डियान बन्ध को लगाना उचित माना गया है।प्राणायाम, जो श्वास-प्रश्वास की तकनीक है, “समान वायु“ के संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्राणायाम का नियमित अभ्यास शरीर में प्राण ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करता है और पाचन तंत्र को सुचारू रूप से संचालित करता है।
i. नाड़ी शोधन प्राणायाम :– यह प्राणायाम नाभि क्षेत्र में ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करता है और “समान वायु“ को सक्रिय करता है। - नाड़ी शोधन प्राणायाम की विधिः-
समतल एवं स्वच्छ हवादार स्थान पर योगा में पर किसी सुखासन में शान्तभाव के साथ बैठ जाएं।
अपने दाएं हाथ की तर्जनी एवं मध्यमा दो अंगुलियों को हथेली की ओर मोड़लें,अब दांई नासिका को अंगुठे से बंद कर लें और श्वास को बांयी नासिका से भरें।अपनी अनामिका एवं कनिष्ठा अंगुली से बायीं नासिका को बंद कर लें और कुछ क्षण आंतरिक कुंभक करें।अब अपने अंगूठे को हटाकर दांयी नासिका से धीरे -धीरे श्वास निकाल दें।और फिर दायीं नासिका से श्वास लें, दोनों नासिकाएं बंद करें।फिर बायीं नासिका से श्वास निकाल दें, यह नाड़ीशोधन प्राणायाम की एक आवृत्ति हुई।इस अभ्यास में कुम्भक अपनी सामर्थ्य के अनुसार करें,अभ्यस्त होने पर धीरे धीरे कुम्भक का समय बढ़ाते रहें ।
इसकी आवृति प्रतिदिन एक बार में 5-7 बार कर सकते है। - कपालभाति प्राणायाम :- यह प्राणायाम पाचन अग्नि को बढ़ाता है और पाचन तंत्र को शुद्ध करता है। यह “समान वायु“ के संतुलन के लिए अत्यधिक प्रभावी है।
उज्जयी प्राणायाम :- यह प्राणायाम नाभि क्षेत्र में प्राण ऊर्जा को संचित करता है और “समान वायु“ को संतुलित करता है।
3. ध्यान (Medition)
ध्यान “समान वायु“ को संतुलित करने में एक महत्वपूर्ण उपकरण है। नियमित ध्यान अभ्यास मानसिक शांति और स्पष्टता प्रदान करता है, जिससे “समान वायु“ संतुलित रहती है। ध्यान के माध्यम से, व्यक्ति अपनी आंतरिक ऊर्जा को नियंत्रित कर सकता है और पाचन तंत्र को संतुलित रख सकता है।
4. योग मुद्राओं का अभ्यासः– समान वायु मुद्रा का नियमित अभ्यास करने से शरीर में समान वायु का सन्तुलन बनाएं रखने में सहयोगी हो सकता है।
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4.1.समान वायु मुद्रा की विधिः- Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh
शरीर में समान वायु का असन्तुलन होने पर समान वायु मुद्रा का अभ्यास किया जाना चाहिए जिसकी विधि इस प्रकार है।
1. शांत एवं एकान्त स्थान का चयन करें। योगा मेट या चटाई पर शान्त भाव के साथ किसी भी सुखासन में बैठ जायें। कुछ गहरी और लम्बी श्वांस लें और शान्त भाव के साथ बैठें रहें।
2. इस स्थिति में आपका मेरूदण्ड सीधा रहे,नजर सामने रहनी चाहिए। हथेलियों को ऊपर की ओर करते हुए दोनों हाथों को घुटनों पर रख लेंं।
3. श्वांस का कुम्भक करते हुए अपने दोनों हाथों की समस्त अंगुलियों के सिरों को एक साथ लाएं और उन्हें अंगूठे के सिरे को छूने के लिए मोड़ें, जिससे एक वृत्त बन जाए। हाथों को घुटनों पर रखें और हथेलियाँ ऊपर की ओर रखें। ध्यान रखें अंगुलियों का अधिक दबाव अंगुठों पर नहीं पड़े।
4. प्रारम्भ में इस अवस्था में 5 से 10 मिनट रहने के बाद,धीरे धीरे आंखें खोले,अंगुलियों को सामान्य स्थिति में लाते हुए सामान्य स्थिति में आ जायें।
5. समान वायु मुद्रा का अभ्यास होने के बाद आप इसके अभ्यास का समय अपनी क्षमता के अनुसार बढ़ा सकते है।
4.2. समान वायु मुद्रा के लाभ Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh
समान वायु मुद्रा के लाभ के अभ्यास से लाभ
1.पाचन और पोषण :- चूंकि समान वायु शरीर में शरीर में पाचन, आदि के लिए उतरदायी होती है। अतः समान वायु मुद्रा का अभ्यास कर हम अपने पाचन तंत्र,पाचन अग्नि,ऊर्जा एवं पौषण आदि की क्रियाओं को सही एवं नियमित रख सकते है।
2. वात , पित्त और कफ का संतुलन :- आयुर्वेद के अनुसार हमारे शरीर की व्याधिओं का कारण हमारे शरीर में मौजद वात,पित,एवं कफ का सन्तुलन बिगड़ना होता है। अगर हम अपनी समान वायु को सन्तुलित रखते है,तो हमारे वात,पित एवं कफ स्वतः सन्तुलित बने रहेंगे और हम स्वास्थ्य हो प्राप्त करते रहेंगें।
3.मणिपुरम चक्र मजबूत बनता है :- समान वायु मुद्रा का सम्बन्ध मणिपुरम चक्र से होने के कारण इसका अभ्यास मणिपुरम चक्र को स्वस्थ एवं जागृत करने में सहयोगी बनता है। समान वायु मुद्रा का नियमित एवं लम्बे समय तक अभ्यास किया जाये तो मणिपुरम चक्र जागृत होने में मदद मिलती है। जिससे व्यक्ति को आत्मविश्वास, स्पष्टता, निर्णय लेने की क्षमता, की शक्ति प्राप्त होती है।
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4.3. समान वायु मुद्रा में सावधानियांः-
समान वायु मुद्रा का अभ्यास करते समय कुछ सावधानियां बरतनी चाहिए जैसे :-
4.3.1.जिन व्यक्तियों को चोट लगी हो या किसी प्रकार का ऑपरेशन हुआ हो उन्हे समान वायु मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
4.3.2.उच्च रक्तचाप या हृदय संबंधी समस्याओं से ग्रस्त लोगों को भी समान वायु मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
4.3.3.गर्भधारण या,मासिक धर्म की अवस्था में महिलाओं को समान वायु मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
- 5. आहार और जीवनशैली Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh
- योग में “समान वायु“ को संतुलित रखने के लिए सही आहार और जीवनशैली का पालन करने की सलाह दी जाती है। सही आहार पाचन तंत्र को सुचारू रूप से चलाने में मदद करता है और “समान वायु“ को संतुलित रखता है।
- संतुलित और पौष्टिक आहारः- ताजे फल, सब्जियाँ, साबुत अनाज, और हल्का भोजन करें। मसालेदार, तैलीय, और भारी भोजन से बचें।
- नियमित दिनचर्याः- समय पर सोना, जागना, और भोजन करना। शारीरिक गतिविधि में संलग्न रहना और नियमित योगाभ्यास करना।
- शारीरिक और मानसिक विश्रामः- तनाव को कम करने के लिए ध्यान और योग का अभ्यास करें। नियमित विश्राम और पर्याप्त नींद लें।
6. आयुर्वेदिक उपाय
आयुर्वेद में कुछ विशेष जड़ी-बूटियों और उपचारों का उल्लेख किया गया है जो “समान वायु“ को संतुलित करने में सहायक होते हैं। - त्रिफलाः यह आयुर्वेदिक औषधि पाचन तंत्र को शुद्ध करती है और “समान वायु“ को संतुलित रखती है। इसका नियमित सेवन पाचन में सुधार करता है।
- अश्वगंधा और शतावरीः ये जड़ी-बूटियाँ मानसिक तनाव को कम करती हैं और “समान वायु“ को संतुलित रखने में मदद करती हैं।
- अदरक और हल्दीः ये मसाले पाचन तंत्र को मजबूत बनाते हैं और “समान वायु“ के असंतुलन को दूर करते हैं।
7.“समान वायु“ का समग्र स्वास्थ्य पर प्रभाव Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh
“समान वायु“ का संतुलन न केवल पाचन तंत्र पर बल्कि संपूर्ण शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालता है। योग में, इसे शारीरिक, मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए आवश्यक माना गया है। “समान वायु“ के संतुलन से व्यक्ति में ऊर्जा, शांति, संतोष, और आत्मविश्वास का संचार होता है। योग और आयुर्वेद में “समान वायु“ को संतुलित रखने के उपाय सरल और प्राकृतिक होते हैं, जो व्यक्ति के संपूर्ण जीवन में संतुलन और स्वास्थ्य बनाए रखते हैं।
निष्कर्ष
योग में “समान वायु“ का अपार महत्व है। इसका संतुलन बनाए रखना न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक और आत्मिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत आवश्यक है। योगिक प्रथाओं, जैसे आसन, प्राणायाम, ध्यान, और सही आहार के माध्यम से हम “समान वायु“ को संतुलित रख सकते हैं। यह न केवल पाचन तंत्र को सुचारू रखता है बल्कि जीवन की ऊर्जा को भी संतुलित करता है, जिससे व्यक्ति को संपूर्ण स्वास्थ्य और आनंद की प्राप्ति होती है।
योग में “समान वायु“ का संतुलन ही स्वस्थ, सुखी, और संतुलित जीवन की कुंजी है।
स्वस्थ शरीर के साथ साथ हमें अपने मानसिक स्वास्थ्य के प्रति भी सचेत रहना चाहिए। अगर हमें यह अनुभव होने लगे की हमारी समान वायु असन्तुलित होने लगी ह,ै तो हमें वे तमाम प्रयास चाहे वे भोजन को लेकर हो या योग प्राणाध्याम,ध्यान का प्रारम्भ कर देने चाहिए। कुछ समय में ही हमारी शरीर स्वस्थ,सुन्दर होने लगेगा।
इस ब्लॉग का उद्देश्य योग सम्बन्धी जानकारी देना मात्र है। किसी प्रकार की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या होने अथवा चिकित्सकीय उद्देश्य से इसका अभ्यास करने से पूर्व अपने चिकित्सक अथवा योग प्रशिक्षक से इस बाबत् परामर्श अवश्य करना चाहिए।
FAQ
2 responses to “योग में समान वायु क्या है अर्थ एवं लाभ । Yoga Me Saman Vayu Kya He Arth Aur Labh”
Good 👍👍
uttam jankari