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विपरीतकरणी मुद्रा विधि,लाभ और सावधानिंयां।Viparitkarni Mudra Ke Abhayas,Labh Aur Savdhaniya.

आज हम बात कर रहें हैं,विपरीतकरणी मुद्रा के अभ्यास,लाभ एवं सावधानियों Viparitkarni Mudra Ke Abhayas,Labh Aur Savdhaniyon .की। पिछले कुछ वर्षों से हमारी जीवनशैली में इतने अधिक परिवर्तन हो चुके हैं, कि हमारा शारीरिक,मानसिक एवं आध्यात्मिक स्वास्थ्य इतना अधिक अस्त-व्यस्त हो चुका है, कि हमारा सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन तनावपूर्ण हो गया है।

अब हम इस स्थिति को सुधारने के अवसर ढूंढने लगे है। जिसका परिणाम है कि आज विश्वभर के लोगों में योग,प्राणायाम के प्रति रूची जागृत होने लगी है। अब तो संयुक्त राष्ट्र ने भी 21 जून को विश्व योग दिवस घोषित कर दिया है। योग विश्व के हर कोने कोने में प्रचलित होकर जीवनशैली में शामिल होने लगा है।
इस प्रकार हमें भी अपने जीवन को स्वस्थ और खुशहाल बनाने के लिए योग एवं प्राणायाम को अपनी जीवनशैली में शामिल करना चाहिए।
आज इसी कड़ी में हम बात करेंगें,विपरितकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra योगा की, इस योगाभ्यास से हम सिर दर्द से लेकर पिण्डलियों तक की समस्याओं में लाभ प्राप्त कर सकते है।

 

परिभाषा-

विपरीतकरणी Viparitkarni Mudra का शाब्दिक अर्थ, यह दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमे “विपरीत” का अर्थ “उलटा” है और दूसरे शब्द “करनी’’ का अर्थ “करना” होता है। यह आसन सर्वांगासन की भॉति किया जाता है। इस आसन में सर्वांगासन के समान ही जमीन पर लेट कर अपने पैरों को ऊपर की ओर सीधा खड़ा करना होता है।
इस आसन को (Legs Up the Wall pose) भी कहा जाता है।

नाभिमूलेवसेत्सूर्यस्तालुमूले च चन्द्रमाः।
अमृतं ग्रसते मृत्युस्ततो मृत्युवशो नरः।33।
ऊर्ध्वव जाते सूर्यचन्द्र च अघ अनयेत्।
विपरीतकरीमुद्रा सर्वतन्त्रेषुगोपिता।34।
भूमौ शिरश्च संस्थाप्य करयुग्मा समाहितः।
ऊर्ध्वपादः स्थिरोभूत्वा विपरीतकरीमता।34।
(घेरण्ड संहिता)
अर्थात-नाभि में सूर्य नाड़ी और तालूमूल में चन्द्र नाड़ी है। सूर्य नाड़ी के अमृत पान से मनुष्य मरता है। यदि चन्द्र नाड़ी से उसे कोई पीता है तो उसे मृत्यु का भय नहीं रहता। इसलिए सूर्य नाड़ी को ऊपर एवं चन्द्र नाड़ी को नीचे की ओर कर लिया जाना चाहिए है। इस विपरीत करणी  Viparitkarni Mudra को करने से यह बात सिद्ध होती है। सिर को पृथ्वी पर लगा कर दोनों हाथों को टेक लें, दोनों पांवों को ऊपर उठा कुम्भक द्वारा वायु को रोके। इसे ही विपरीतकरणी Viparitkarni Mudra कहते है।

घेरण्ड संहिता में विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra के इस उल्लेख से ही इस मुद्रा का महत्व स्पष्ट हो जाता है कि इस मुद्रा का महत्व कितना अधिक है।

विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra योगासन के नियमित अभ्यास से रीढ़, पैर और तंत्रिका तंत्र को मजबूती मिलती है। शरीर स्वस्थ एवं लचीला बना रहता है।
जानते हैं, विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra के अभ्यास की विधि, लाभ और सावधानियॉ।
विषय सूची
1. विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra की परिभाषा।
2. विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra करने की विधि।
3. विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra के लाभ।
4. विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra करने में सावधानिंयां।
5. विपरीतकरणी मुद्रा  Viparitkarni Mudra से पहले आसन।

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विपरीतकरणी Viparitkarni Mudra के अभ्यास की विधि।

विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra का अभ्यास बहुत की आसान है। इस मुद्रा का अभ्यास किसी भी आयु एवं वर्ग का व्यक्ति कर सकता है, परन्तु इसमें कुछ सावधानियों की आवश्यकता होती है। अतः सावधानीपूर्वक एवं उचित मार्गदर्शन में इसका अभ्यास करना चाहिए।
1. इस मुद्रा Viparitkarni Mudra का अभ्यास करने के लिए किसी समतल एवं शुद्ध वातावरण का चयन कर आसन या योगा मेट बिछा कर पीठ के बल उस पर शान्त भाव के साथ लेट जाएं।

2. अपने दोनों पैरों को सीधा जमीन पर रखें और अपने हाथों को अपने शरीर के साथ समानान्तर रखें।
3. अब धीरे-धीरे दोनों पैरों को ऊपर की ओर बिना मोड़ें धीरे धीरे उठायें ।
4. अपने दोनों पैरों को 90 डिग्री कोण तक ऊपर उठायें।
5. इस स्थिति में असहजता का अनुभव होने पर अपने हाथों से अपनी कमर को सहारा दे सकते हैं।
6. इस बात का ध्यान रखें कि आपकी कमर का सम्पूर्ण हिस्सा जमीन पर टिका रहे।
7.इस स्थिति में पूरक प्राणायाम कुम्भक करें । कुण्डलिनी के चक्रों पर ध्यान करें।

इस स्थिति में पांच मिनट या जब तक आप सहजता महसूस करते है,टिके रहें।
9. मुद्रा Viparitkarni Mudra को खोलने के लिए धीरे-धीरे अपने पैरों को अपने घुटनों से मोड़ कर अपनी सीने के ऊपर लाकर धीरे से सीधे करते हुए जमीन पर ले आएं।
10. इस मुद्रा Viparitkarni Mudra की तीन से पांच आवृतियों का दोहराव करें।

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विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  के फायदे-

विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra   की विशेषता बताते हुए घेरण्ड संहिता में उल्लेख किया गया है कि

’’मुद्रैयं साधिता नित्यं जरां मृत्युं च नाशयेत्।
ससिद्धः सर्वलोकेषु प्रलयेऽपि न सीदति।36।’’
अर्थात- इस मुद्रा के अभ्यास से जरा-मृत्यु नष्ट होते है। इनका अभ्यासी सब लोकों में सिद्ध होकर प्रलय में भी दुखी नहीं होता है।

इस बात से हम सभी जानकार है, कि किसी प्रकार की सफलता पाने के लिए हमें मेहनत करनी होती है। मनोयोग से की गई मेहनत ही हमें सफलता दिलाती है।
अतः योगासनों का हम लाभ प्राप्त करना चाहते है, तो उन्हें नियमित एवं विधिवत तरीके से किया जाना अनिवार्य है, तभी हम उसके लाभ प्राप्त कर सकते है।
इस विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra   का भी हम नियमित अभ्यास करते है,तो हम असीमित लाभ प्राप्त कर सकते है। इस मुद्रा के कुछ लाभ इस प्रकार है।

1. इस विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  के अभ्यास के दौरान हमारा सिर नीचे एवं पैर ऊपर की ओर होते है। जिससे हमारे शरीर का रक्त हमारे सिर की ओर प्रवाहित होने के कारण हमारे मस्तिष्क को रक्त की पर्याप्त आपूर्ति प्राप्त होती है।
इस कारण मस्तिष्क सम्बन्धी समस्यांओं जैसे अवसाद,सिरदर्द,माईग्रेन,अनिन्द्रा का शमन होने में मदद मिलती है।
2. विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  के अभ्यास के दौरान हमारे सिर एवं गर्दन आदि काफी प्रभावित होते है। इन संस्थानों में रक्त का प्रवाह भी सुचारू होता है।

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अतः हमारे आखं,कान,गला,श्वांस से सम्बन्धी समस्याओं को भी राहत मिलती है।
3. विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  का अभ्यास हमारे पाचन तंत्र के लिए भी असीम लाभकारी है।
इसके अभ्यास से हमारे पाचन तन्त्र एवं पेट की मांसपेशियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह हमारे आन्तरिक अंगों जैसे अमाश्य,आन्त आदि को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। जिससे हमारा पाचन तंत्र स्वस्थ एवं मजबूत होकर हमारे शरीर को पुष्ट एवं स्वस्थ रखने में सहायक होता है।
4. विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  के अभ्यास से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली का सुधार एवं विकास होता है। जिससे शरीर को निरोगी रहने में सहायता मिलती है।

5. विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  के नियमित अभ्यास से गर्दन और कंधों के तनाव को दूर करने के लिए भी यह मुद्रा काफी लाभकारी है,इसके अभ्यास से इन अंगों का तनाव एवं दर्द दूर होता है।

6. विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  के अभ्यास से हमारे सीने,फेफड़ों, पैरों और गर्दन की मांसपेशियों को एक अच्छा खिंचाव देता है।
7. विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  का नियमित एवं विधिपूर्वक किये गये अभ्यास से हमारी तंत्रिका तंत्र यानी नर्वस सिस्टम को भी स्वस्थता एवं मजबूती मिलती है। इस मुद्रा Viparitkarni Mudra  के बारे में माना जाता है कि यह हमें हमेशा युवा बना रहने का अहसास कराती है।

8. जब हम विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  का अभ्यास करते है तो हमारे गर्दन एवं गला काफी प्रभावित होता है,जिस कारण हमारी विशुद्धि चक्र को सक्रिय होने में सहायता मिलती है।
9. इस विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  के नियमित अभ्यास से हमारे चेहरे की कांन्ति बढ़ती है। चेहरे पर आभा एवं चमक तेजी से प्रभावित होने लगती है।                                             

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10 विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  के नियमित अभ्यास से हमारे मूत्र एवं जननांग सम्बन्धी रोगों को नष्ट करने में सहायता मिलती है।
11. विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  के अभ्यास से महिलाओं में होने वाली मासिक धर्म की समस्याओं को दूर करने में सहायता मिलती है।
12. विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  के अभ्यास से पुरुषों में वृषण एवं वीर्य और महिलाओं में डिम्बग्रंथि सम्बन्धी समस्यों सुलझाने में सहायता मिलती है।
13. इस विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  के अभ्यास के दौरान संयम बनाएं रखते हुए,धैर्य के साथ अभ्यास करना चाहिए।

विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra  के अभ्यास में ध्यान योग्य तथ्य-

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यदि आप विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra का अभ्यास पहली बार कर रहे है, तो आपको किसी योग गुरू का मार्गदर्शन लेना चाहिए। पहली बार में इसका अभ्यास सीधे नहीं कर किसी सहायक की सहायता अथवा दिवार का सहारा लेकर करना चाहिए। ताकि आप असन्तुलित होकर गिर कर चोटिल नहीं हो जायें। जिसकी प्रारम्भ में काफी में अधिक सम्भावना होती है।
2. प्रारम्भ में आप अभ्यास के दौरान अपने शरीर को सहारा देने के लिए अपनी कमर अथवा हिप्स को अपने हाथों से सहारा भी दे सकते है।

विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra के अभ्यास में सावधानियां ।

1. महिलाओं को गर्भ धारण एवं मासिक धर्म के समय विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
2. आंखों की समस्याओं से ग्रस्त व्यक्तियों को भी विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra का अभ्यास अपनी चिकित्सक के परामर्श के अनुसार करना चाहिए।
3.यदि किसी को पीठ,कमर, सर्वाइकल, गर्दन, अस्थमा या मेरूदण्ड से सम्बन्धित किसी प्रकार की समस्या हो तो उन्हें विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
4.किसी प्रकार के शारीरिक जोड़ की समस्या अथवा ऑपरेशन हुआ हो तो उन्हे विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
5.उच्च रक्तचाप के रोगियों को भी विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

बन्ध।जालन्धरबन्ध।उड्डियानबन्ध।मूलबन्ध।महाबन्ध

विपरीतकरणी मुद्रा Viparitkarni Mudra करने से पहले ये आसन करें
1. बालासन
2. भुजंगासन
3. उत्तानासन

निष्कर्ष
विपरीत करणी मुद्रा Viparitkarni Mudra एक सरल लेकिन सावधानी के साथ की जाने वाली योग मुद्रा है। यह देखने में भले ही सरल प्रतीत होती हो परन्तु इसके प्रभाव एवं लाभ अत्यन्त लाभकारी होते है। जिसका उल्लेख घेरण्ड संहिता में भी है,जिसकी चर्चा हमने ऊपर की है। इस प्रकार यह एक सरल एवं प्रभावी मुद्रा Viparitkarni Mudra है। जिसें हमें अपनी जीवनशैली में शामिल करने की आवश्कता है। इसके अभ्यास की मदद से हम अपने मन एवं शरीर को शान्त,एकाग्र,तनाव रहीत एवं स्वस्थ बना सकते है।
इस पोस्ट का उद्देश्य योग सम्बन्धी जानकारी देना मात्र है । किसी चिकित्सकीय लाभ हेतू इसका अभ्यास अपने चिकित्सक एवं योग गुरू के परामर्श एवं सानिध्य में ही करना चाहिए।

FAQ

viparitkarni mudra

1. इस मुद्रा का अभ्यास करने के लिए किसी समतल एवं शुद्ध वातावरण का चयन कर आसन या योगा मेट बिछा कर पीठ के बल उस पर शान्त भाव के साथ लेट जाएं। 2. अपने दोनों पैरों को सीधा जमीन पर रखें और अपने हाथों को अपने शरीर के साथ समानान्तर रखें। 3. अब धीरे-धीरे दोनों पैरों को ऊपर की ओर बिना मोड़ें धीरे धीरे उठायें । 4. अपने दोनों पैरों को 90 डिग्री कोण तक ऊपर उठायें। 5. इस स्थिति में असहजता का अनुभव होने पर अपने हाथों से अपनी कमर को सहारा दे सकते हैं। 6. इस बात का ध्यान रखें कि आपकी कमर का सम्पूर्ण हिस्सा जमीन पर टिका रहे। 7.इस स्थिति में पूरक प्राणायाम कुम्भक करें । कुण्डलिनी के चक्रों पर ध्यान करें। इस स्थिति में पांच मिनट या जब तक आप सहजता महसूस करते है,टिके रहें। 9. मुद्रा को खोलने के लिए धीरे-धीरे अपने पैरों को अपने घुटनों से मोड़ कर अपनी सीने के ऊपर लाकर धीरे से सीधे करते हुए जमीन पर ले आएं। 10. इस मुद्रा की तीन से पांच आवृतियों का दोहराव करें।
घेरड सहिंता में बताया गया है ’’इस मुद्रा के अभ्यास से जरा-मृत्यु नष्ट होते है। इनका अभ्यासी सब लोकों में सिद्ध होकर प्रलय में भी दुखी नहीं होता है।’’ इस मुद्रा के कुछ लाभ इस प्रकार है। 1. इस कारण मस्तिष्क सम्बन्धी समस्यांओं जैसे अवसाद,सिरदर्द,माईग्रेन,अनिन्द्रा का शमन होने में मदद मिलती है। 2. हमारे आखं,कान,गला,श्वांस से सम्बन्धी समस्याओं को भी राहत मिलती है। 3. विपरीतकरणी मुद्रा का अभ्यास हमारे पाचन तंत्र के लिए भी असीम लाभकारी है। 4. विपरीतकरणी मुद्रा के अभ्यास से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली का सुधार एवं विकास होता है। 5. गर्दन और कंधों के तनाव को दूर करने के लिए भी यह मुद्रा काफी लाभकारी है। 7. अभ्यास से हमारी तंत्रिका तंत्र यानी नर्वस सिस्टम को भी स्वस्थता एवं मजबूती मिलती है। 8. हमारा विशुद्धि चक्र को सक्रिय होने में सहायता मिलती है। 9. हमारे चेहरे की कांन्ति बढ़ती है। 10 हमारे मूत्र एवं जननांग सम्बन्धी रोगों को नष्ट करने में सहायता मिलती है। 11. महिलाओं में होने वाली मासिक धर्म की समस्याओं को दूर करने में सहायता मिलती है। 12. पुरुषों में वृषण एवं वीर्य और महिलाओं में डिम्बग्रंथि सम्बन्धी समस्यों सुलझाने में सहायता मिलती है।
विपरीतकरणी मुद्रा का अभ्यास प्रारम्भ में 5-5 मिनट के 3 से 5 अभ्यास करने चाहिए। अभ्यास होने के बाद इसका समय बढ़ाया जा सकता है।

 

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One response to “विपरीतकरणी मुद्रा विधि,लाभ और सावधानिंयां।Viparitkarni Mudra Ke Abhayas,Labh Aur Savdhaniya.”

  1. सरोज Avatar

    अच्छी जानकारी

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