वीरभद्रासन विधि,लाभ और सावधनियॉ। Veerbhadrasan Vidhi,Labh aur Savdhaniyan
1.वीरभद्रासन क्या है?
वीरभद्रासन विधि,लाभ और सावधनियॉ। Veerbhadrasan Vidhi,Labh aur Savdhaniyan इस आसन का नाम वीरभद्र, एक योद्धा के नाम पर रखा गया।यह आसन हाथों, कंधो ,जांघो एवं कमर की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है।
यह आसन तीन प्रकार से किया जाता है । बैठ कर ,खड़े होकर एवं लेटकर, लेटकर भी दो तरह से किये जाते है। पीठ के बल लेट कर एवं पेट के बल लेट कर किये जाते है। शीर्षासन ऐसा आसन है जो सिर के बल खड़ा होकर किया जाता है।
आज जिस आसन की हम चर्चा कर रहे है यह आसन खड़े होकर किये जाने वाले आसनों की श्रेणी में आता है।
- विषय सूची
- 1.वीरभद्रासन क्या है।
- 2.वीरभद्रासन करने की विधि।
- 3.वीरभद्रासन के लाभ।
- 4.वीरभद्रासन की सावधानियॉ।
2.वीरभद्रासन करने की विधिः-
वीरभद्रासन का तीन प्रकार से अभ्यास किया जाता है ।वीरभद्रासन विधि,लाभ और सावधनियॉ। Veerbhadrasan Vidhi,Labh aur Savdhaniyan यहॉ पर तीनों प्रकार पर चर्चा करेंगे।
2.1विधि-1 (वीरभद्रासन विधि,लाभ और सावधनियॉ। Veerbhadrasan Vidhi,Labh aur Savdhaniyan)
1- समतल जमीन पर योगा मेट या आसन बिछा कर खड़े हो जाएं।
2- दोनों पैरों के मध्य लगभग 3 फीट की दूरी बनाते हुए खड़े रहें।
3- दाहिनें पैर को एकदम सामने सीधा रखें और बायें पैर के पंजे को बाहर की तरफ घुमाकर रखें।
4- श्वांस भरते हुए दोनों हाथों को प्रणाम की मुद्रा में बना कर कानों से सटाते हुए सीधे आसमान की और खड़े कर दें।
5- मेरूदण्ड सीधा सीना तना हुआ एवं नजर ऊपर की ओर तने हुए हाथों की अंगुलियों पर होनी चाहिए।
6- दाहिनें पैर के घुटनें को मोड़ कर 90 डिग्री का बना लें।
7- बायां पैर को स्वतः लम्बा होने दे, परन्तु घुटना सीधे रहे इस बात का ध्यान रखें।
8-अब आप वीरभद्रासन की मुद्रा में आ चुके है। कुछ समय के लिए इसी मुद्रा में रूकें।
9-श्वांस छोड़ते हुए दोंनों हाथों को नीचे लायें,और पैरों को पूर्व स्थिति में रख कर सीधे खड़े हो जायें।
10- इस आसन की 3 से 5 आवृति दोहरावें ।

2.2.विधि-2 (वीरभद्रासन विधि,लाभ और सावधनियॉ। Veerbhadrasan Vidhi,Labh aur Savdhaniyan )
1-समतल भूमी पर योगा मेट या आसन बिछा कर सावधान की मुद्रा में खड़े हो जायें।
2-श्वांस भरते हुए दोनों हाथों को प्रणाम की मुद्रा में बना कर कानों से सटाते हुए सीधे आसमान की और खड़े कर दें।
3-अब अपने शरीर के प्रति सचेत/ जागरूक रहते हुए अपने शरीर को इसी स्थिति में हाथों को सिर पर रखते हुए,आगे की झुकते हुए अपने शरीर का समस्त वजन दायें पर जमाते हुए। इसी क्रिया के साथ साथ अपने बांये पैर को पीछे की और उपर ऊठाते सीधा कर दें।
4- अब आपके हाथ एवं बाया पैर एक सीध में होने चाहिए हाथ सामने की ओर तो पैर पीछे की ओर सीधा होना चाहिए।
5- इस स्थिति में आपके शरीर का समस्त भार अब आपके दांये पैर पर होना चाहिए।
6- इस स्थिति में दायें पैर पर सन्तुलन बनाते हुए कुछ समय रूकें।
7- बाद में वापिस मूल स्थिति में आ जायें।
8- इसी मुद्रा को दूसरे पैर पर दोहरावें।
9- इस आसन की 3 से 5 आवृतियों को दोहरावें।

2.3.विधि-3
1- समतल जमीन पर योगा मेट या आसन बिछा कर खड़े हो जाएं।
2- दोनों पैरों के मध्य लगभग 3 फीट की दूरी बनाते हुए खड़े रहें।
3- दाहिनें पैर को एकदम सामने सीधा रखें और बायें पैर के पंजे को बाहर की तरफ घुमाकर रखें।
4- श्वांस भरते हुए दोनों हाथों को कन्धों के समानान्तर फैला दें।
5- मेरूदण्ड सीधा सीना तना हुआ एवं नजर सामने होनी चाहिए।
6- दाहिनें पैर के घुटनें को मोड़ कर 90 डिग्री का बना लें।
7- बायां पैर को स्वतः लम्बा होने दे, परन्तु घुटना सीधे रहे इस बात का ध्यान रखें।
8- अब आप वीरभद्रासन की मुद्रा में आ चुके है। कुछ समय के लिए इसी मुद्रा में रूकें।
9- श्वांस छोड़ते हुए दोंनों हाथों को नीचे लायें,और पैरों को पूर्व स्थिति में रख कर सीधे खड़े हो जायें।
10- इस आसन की 3 से 5 आवृति दोहरावें ।

3.वीरभद्रासन से लाभ
1- हाथ, पैर एवं जांघों की मांसपेशियों को मजबूती प्रदान करता है।
2- शरीर में संतुलन बढाता है।
3- शरीर में रक्त संचार बनाये रखनें में सहायक होता है।
4- मन की चंचलता को नियंत्रित करता है।
5- पैरों एवं कन्धों की जकड़न को दूर करता है।
6- सीना का विकसित करता है।
4.वीरभद्रासन की सावधानियाँ
1- जोड़ों की बिमारी से पीड़ितों को यह योगासन नहीं करना चाहिए।
2- उच्च रक्तचाप वाले व्यक्तियों को यह योगासन नहीं करना चाहिए।
3- गर्भवती एवं मासिक धर्म के दौरान महिलाओ को यह योगाभ्यास नहीं करना चाहिए।
इस पोस्ट को लिखने का उद्देश्य योग सम्बन्धी जानकारी देना मात्र है । किसी चिकित्सकीय उद्देश्य से इसका अभ्यास चिकित्सक या योग प्रशिक्षक के परामर्श के अनुसार करना चाहिए।
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FAQ
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Labhdayak