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शीर्षासन : विधि,लाभ और सावधानियां । Shirshasan:Vidhi,Labh Aur Savdhaniya.

आज हम बात कर रहे है शीर्षासन : विधि,लाभ और सावधानियां । Shirshasan:Vidhi,Labh Aur Savdhaniya.की एक ऐसा समय भी आया, जब लोगों में योग को लेकर अनेक भ्रॉतियॉ पैदा होने लगी,योग को साधु, सन्तों या मुनियों के योग्य समझा जाने लगा। योग का नाम लेते ही हमारे मस्तिष्क में एक ऐसी आकृति का जन्म होता,जिसमें कोई जटाधारी पुरूष लंगोट पहने हिमालय में योगासन कर रहा है।

परन्तु कुछ वर्षो से हमारे देश में अनेकों विश्वविद्यालय एवं सस्ंथान खुले जिनमें योग की शिक्षा देने का कार्य प्रारम्भ हुआ। आधुनिक समय में पतंजली योग पीठ ने योग को जन जन तक पहूंचाने में अपना बहुत योगदान किया है,जिसे स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होनी चाहिए।

शीर्षासन हठयोग का एक अत्यंत प्रसिद्ध आसन है, जिसके अभ्यास में साधक को अपने पैर आसमान की ओर एवं सिर जमीन पर रखना होता है।
शीर्षासन संस्कृत के दो शब्दों शीर्ष और आसन से मिलकर बना है। जहां शीर्ष का अर्थ सिर और आसन का अर्थ मुद्रा होता है।
इसलिए इसे अंग्रेजी में हेड स्टैंड पोज (Head Stand Pose) कहा जाता है।

शीर्षासन के अभ्यास से मस्तिष्क में खून का संचार अच्छी तरह से होता है। जिससे यह आसन सिर के लिए अत्यन्त उपयोगी होता है।

Shirshasan:Vidhi,Labh Aur Savdhaniya.
https://pixabay.com/photos/yoga-mountains-headstand-man-6810986/

मुख्य बिंदुः

1. शीर्षासन क्या है?
2. शीर्षासन करने की विधि
3. शीर्षासन के फायदे
4. शीर्षासन के लिए आवश्यक सावधानियां
5. शीर्षासन के साथ अन्य योग आसन

6.शीर्षासन करने के बाद ये आसन करने चाहिएः-

1- शीर्षासन क्या है?                                                                                Sirshasan:Vidhi,Labh Aur Savdhaniya.

 

शीर्षासन हठ योग में एक प्रमुख योगाभ्यास होता है। साधक के मस्तिष्क,मेरूदण्ड एवं पाचन तन्त्र को स्वस्थ एवं मजबूत बनाता है। है।
शीर्षासन संस्कृत के दो शब्दों शीर्ष और आसन से मिलकर बना है। जहां शीर्ष का अर्थ सिर और आसन का अर्थ मुद्रा होता है।
इसलिए इसे अंग्रेजी में हेड स्टैंड पोज (Head Stand Pose) कहा जाता है।

2-शीर्षासन करने की विधिः

हम बात कर रहे है शीर्षासन : विधि,लाभ और सावधानियां । Shirshasan:Vidhi,Labh Aur Savdhaniya.की शीर्षासन प्रशिक्षित साधक के लिए आसन आसन है। परन्तु नये साधकों को यह आसन सावधानीपूर्वक एवं प्रशिक्षक में मार्गदर्शन में सावधानी से करना चाहिए। क्योंकि इस आसन के अभ्यास में शरीर का सम्पूर्ण सन्तुलन सिर के आधार पर नियन्त्रित करना होता है।
चर्चा करते है शीर्षासन के सही तरीके से अभ्यास करने की।

  • किसी समतल स्थान का चयन कर योगामेट या आसन बिछा कर बैठ जायें।
  • कुछ लम्बे एवं गहने श्वांस लें एवं छोड़े।
  • अब आप वज्रासन मुद्रा में शान्त भाव के साथ बैठ जायें।
  • अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को एक दूसरे में फंसाकर घेरा बना कर अपने सामने जमीन पर रखें।
  • धीरे धीरे अपने सिर को सामने झुकाते हुए अंगुलियों के घेरे में स्थापित करें।
  • अब अपने पैरों को धीरे धीरे उठाते हुए घुटनों से मोड़ते हुए अपने सीने की तरफ लायें।
    कुछ देर के लिए रूकें शरीर का सन्तुलन बनाने का प्रयास करें ।
  • सन्तुलन बनने के बाद सावधानी रखते हुए धीरे धीरे अपने पैरों का घुटनों से सीधा करते हुए आसमान की ओर सीधा कर दें।
  • इस मुद्रा में आने के बाद 15 से 20 सेकेंड तक गहरी सांस लें और कुछ देर तक इसी मुद्रा में बने रहें।
  • अब धीरे-धीरे श्वांस को छोड़ें और पैरों को नीचे की ओर लाते हुए अपनी सीने पर कुछ सेकेण्ड के लिए रोकें ओर वापिस जमीन पर लाएं।
  • अपने हाथों को खोलें सामान्य मुद्रा में आयें ओर कुछ समय के लिए शवासन की मुद्रा में रूकें।
  • इस आसन की तीन से पांच आवृतियों को दोहराएं।
  • इस बात का ध्यान रखें कि शीर्षासन का अभ्यास तड़के सुबह करें।
  • अभ्यास के दौरान पेट बिल्कुल खाली होना चाहिए, तभी यह आसन सही तरीके से हो पाएगा।

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3-शीर्षासन के फायदेः

हम बात कर रहे है शीर्षासन : विधि,लाभ और सावधानियां । Shirshasan:Vidhi,Labh Aur Savdhaniya.की शीर्षासन हठ योग में एक प्रमुख योगाभ्यास होता है। साधक के मस्तिष्क,मेरूदण्ड एवं पाचन तन्त्र को स्वस्थ एवं मजबूत बनाता है। है।
इतना ही नहीं शीर्षासन के बहुत सारे फायदे हैं।

A-शारीरिक लाभः-

1.चेहरे पर चमक लाने में लाभकारीः– शीर्षासन के अभ्यास से चूंकि रक्त का प्रवाह सिर की ओर होता जिस कारण चेहरे की मांसपेशियों को पर्याप्त रक्त का प्रवाह मिलता रहता है एवं इसके अभ्यास से चेहरे की मांसपेशियों की नियमित मालिश भी होती रहती है। जिस कारण चेहरे पर चमक एवं ओज और तेज बना रहता है।

2.मानव शरीर में पीयूष ग्रन्थी(Pitutary gland) एवं पीनियल ग्रन्थी (Pineal gland)मानव मस्तिष्क में स्थित होती है। जब हम शीर्षासन करते है तो इन दोनों ग्रन्थियों की सक्रियता बढ़ जाती है और इन ग्रन्थियों से स्त्रावित होने वाला हार्मोन्स हमारे शरीर को स्वस्थ एवं विकसित करने में सहयोगी होता है।
3.सिरदर्द में राहत देता हैः- चूकिं शीर्षासन से सिर की शिराओं तक शुद्ध और पर्याप्त रक्त प्रवाहित होता है जिससे शिराएं स्वस्थ एवं मजबूत बनी रहती हैं। जिसके कारण सिर दर्द के रोगियों को सिरदर्द में राहत मिलती है।

4.शरीर को सुडौल बनता है :- इस आसन के नियमित अभ्यास करने से पैरों की जांघों,कन्धों,पेट,कमर आदि की अनावश्यक चर्बी पिघलती है। जिससे शरीर सुडौल एवं चुस्त बनता है।

5.पाचन क्रिया में लाभदायकः- शीर्षासन के नियमित अभ्यास से पेट सम्बन्धी समस्याएं भी समाप्त होती है। पेट में वायु विकार होना,कोष्ठ बद्धता होना आदि में भी लाभकारी प्रभाव डालता है।

6.बालों को झड़ने से रोकता हैः-शीर्षासन करने से जब सिर की शिराएं मजबूत बनती है, तो स्वाभाविक है सिर के बाल भी मजबूत बनते है। यह स्थिति बालों को झड़ने से रोकती है। सिर को गंजा होने से बचाती है।
इसके अतिरिक्त बालों से सम्बन्धित अन्य समस्याएं जैसे बालों का सफेद होना,बालों का कम होना आदि में भी सकारात्मक प्रभाव डालता है।

7-ऑखों के लिए लाभदायकः– शीर्षासन का नियमित अभ्यास ऑखों की रोशनी के लिए लाभदायक होता है क्योंकि यह आसन के अभ्यास से शरीर के ऊपरी भाग में रक्त का प्रवाह अधिक होता है और हमारी ऑखें भी हमारे शरीर के ऊपरी भाग में होती है। अतः इस आसन का अभ्यास हमारी ऑखों के लिए अधिक लाभकारी होता है,ऑखों की रोशनी बनी रहती है,ऑखें कमजोर नहीं बनती है।

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अन्य शारीरिक लाभ-

1. रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाता है।
2. रक्त संचार को बेहतर बनाता है।
3. शरीर को लचीला और मजबूत बनाता है।
4. प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है।
5. शरीर को स्वच्छ और हल्का महसूस कराता है।
6. मांसपेशियों को मजबूत बनाता है।
7. हृदय को स्वस्थ रखता है।
8. नींद को सुधारता है.
9.फेफड़ों की क्षमता बढ़ाना

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B-मानसिक फायदेः

1.विचारों में सकारात्मकता :- शीर्षासन का नियमित अभ्यास करने से मस्तिष्क में शुद्ध रक्त का प्रवाह बढ़ता है, जिस कारण मस्तिष्क की तंत्रिकाएं स्वस्थ एवं मजबूत बनती है। मानसिक दुर्बलता धीरे धीरे खत्म होने लगती है। जिस कारण मस्तिष्क के स्वस्थ बनने से मानसिक विचारों में स्थिरता आती है। स्पष्टता आती व्यक्ति नकारात्मक विचारों से मुक्त होकर सकारात्कता की ओर बढ़ता है।
जब मस्तिष्क एवं मानसिक स्थिति स्वस्थ होगी तो अन्य अनेकों लाभ प्राप्त होगें । जैसे-

1.मानसिक तनाव को कम करता है।
2. आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान को बढ़ाता है।
3. ध्यान और एकाग्रता को बढ़ाता है।
4. मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
5. चिंता और अवसाद को कम करता है।
6. आत्म-जागरूकता को बढ़ाता है।
7. मानसिक स्पष्टता और सोच को सुधारता है।

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C-आध्यात्मिक फायदेः

1. आत्म-जागरूकता को बढ़ाता है।
2. आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ाता है।
3. आत्म-शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
4. ध्यान और आत्म-नियंत्रण को बढ़ाता है।
5. आत्म-विकास और आत्म-साक्षरता को बढ़ाता है।

5. प्राणायाम और श्वास नियंत्रणः

4-शीर्षासन के अभ्यास में सावधानियां :-

हम बात कर रहे है शीर्षासन : विधि,लाभ और सावधानियां । Shirshasan:Vidhi,Labh Aur Savdhaniya.की यह आसन जितना आसन लगता है उतना ही इस आसन के अभ्यास के समय सावधानियां अपनाने की आवश्यकता होती है।
1. यह आसन प्रारम्भ में बिना किसी सहायक के नहीं करना चाहिए। आसन करते समय आपके पास कोई सहायक होना चाहिए ताकि प्रारम्भिक अवस्था में वह आपके सन्तुलन बनाये रखने में सहायता कर सके। अन्यथा अभ्यास के समय सन्तुलन बिगड़ने पर आप गिर सकते है और आपको चोट लग सकती है।

2. दीवार का प्रयोग करेंः-
शीर्षासन के अभ्यास के समय आप दिवार का भी सहारा ले सकते है। इस योगाभ्यास को करते समय आप किसी दिवार का भी चयन कर सकते है। दिवार के पास बैठ कर अपने पैरों को ऊपर की उठाते समय दिवार से सटाकर रख सकते है। जिससे आपको अपना सन्तुलन बनाने में एवं पैरों को योगासन की स्थिति में रखने में सहायता मिल सकती है।
3. कम्बल की सहायता लेना चाहिएः- प्रारम्भ में आपको अपना सिर जमीन पर रखने पर चुभन जैसी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। अतः अपने सिर के नीचे कोई मोटा कपड़ा,कम्बल आदि लगाया जा सकता है। जिससे सिर पर चुभन की असुविधा से बचा जा सकता है।

4.झटके से बचना चाहिएः- शीर्षासन करते समय अपने पैरों को झटके के साथ ऊपर की ओर नहीं ले जाना चाहिए। इससे आपके पैरों,गर्दन,कमर या शरीर के किसी अन्य हिस्से को चोट लगने की आशंका हो सकती है।
5.उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, सिर में हेमरेज ,कमरदर्द या किसी जोड़ दर्द या समस्या, सिर में चोट,सिर के चक्कर से पीड़ीत हो यह योगासन नहीं करना चाहिए।
6. इस आसन का अभ्यास भरे हुए पेट के साथ नहीं करना चाहिए।

7.शीर्षासन योगाभ्यास का महिलाओं को मासिक धर्म और गर्भावस्था के दौरान नहीं करना चाहिए। कहीं कहीं तो इस आसनों को महिलाओं के लिए निषेध भी बताया गया है। क्योंकि इस आसन में शरीर की स्थिति पूर्णतः उल्टी हो जाती है। जिससे महिलाओं को गर्भाश्य की समस्या होने की सम्भावना हो सकती है।

8. शीर्षासन करते समय अपने शरीर को स्थिर और आरामदायक रखें।
9. शीर्षासन को धीरे-धीरे और सावधानी से करें।
10. शीर्षासन के बाद आराम करें और अपने शरीर को स्थिर करें।

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5-शीर्षासन के साथ अन्य योग आसनः

1. सूर्य नमस्कार
2. प्राणायाम
3.ध्यान

6-शीर्षासन करने के बाद ये आसन करने चाहिएः-

1. बालासन
2. शवासन

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निष्कर्षः

हम बात कर रहे है शीर्षासन : विधि,लाभ और सावधानियां । Shirshasan:Vidhi,Labh Aur Savdhaniya.की ,शीर्षासन एक प्रमुख योग आसन है जो शरीर और मन को स्वस्थ बनाने में मदद करता है। यह आसन रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाता है, पाचन तंत्र को स्वस्थ रखता है, और मानसिक तनाव को दूर करने में सहायक होता है।

इस पोस्ट का उद्देश्य योग सम्बन्ध जानकारी देना मात्र है। योगासन करने से पूर्व अपने चिकित्सक एवं योग प्रशिक्षक से परामर्श करने के उपरान्त ही योगाभ्यास करना चाहिए।

FAQ

shirshasan

शीर्षासन हठयोग का एक अत्यंत प्रसिद्ध आसन है, जिसके अभ्यास में साधक को अपने पैर आसमान की ओर एवं सिर जमीन पर रखना होता है। शीर्षासन संस्कृत के दो शब्दों शीर्ष और आसन से मिलकर बना है। जहां शीर्ष का अर्थ सिर और आसन का अर्थ मुद्रा होता है। इसलिए इसे अंग्रेजी में हेड स्टैंड पोज (Head Stand Pose) कहा जाता है।
शीर्षासन के सही तरीके से अभ्यास करने की। किसी समतल स्थान का चयन कर योगामेट या आसन बिछा कर बैठ जायें। कुछ लम्बे एवं गहने श्वांस लें एवं छोड़े। अब आप वज्रासन मुद्रा में शान्त भाव के साथ बैठ जायें। अपने दोनों हाथों की अंगुलियों को एक दूसरे में फंसाकर घेरा बना कर अपने सामने जमीन पर रखें। धीरे धीरे अपने सिर को सामने झुकाते हुए अंगुलियों के घेरे में स्थापित करें। अब अपने पैरों को धीरे धीरे उठाते हुए घुटनों से मोड़ते हुए अपने सीने की तरफ लायें। कुछ देर के लिए रूकें शरीर का सन्तुलन बनाने का प्रयास करें । सन्तुलन बनने के बाद सावधानी रखते हुए धीरे धीरे अपने पैरों का घुटनों से सीधा करते हुए आसमान की ओर सीधा कर दें। इस मुद्रा में आने के बाद 15 से 20 सेकेंड तक गहरी सांस लें और कुछ देर तक इसी मुद्रा में बने रहें। अब धीरे-धीरे श्वांस को छोड़ें और पैरों को नीचे की ओर लाते हुए अपनी सीने पर कुछ सेकेण्ड के लिए रोकें ओर वापिस जमीन पर लाएं। अपने हाथों को खोलें सामान्य मुद्रा में आयें ओर कुछ समय के लिए शवासन की मुद्रा में रूकें। इस आसन की तीन से पांच आवृतियों को दोहराएं। इस बात का ध्यान रखें कि शीर्षासन का अभ्यास तड़के सुबह करें। अभ्यास के दौरान पेट बिल्कुल खाली होना चाहिए, तभी यह आसन सही तरीके से हो पाएगा।
इस बात का ध्यान रखें कि शीर्षासन का अभ्यास तड़के सुबह करें। अभ्यास के दौरान पेट बिल्कुल खाली होना चाहिए, तभी यह आसन सही तरीके से हो पाएगा।
शीर्षासन के बहुत सारे फायदे हैं। A-शारीरिक लाभः- 1.चेहरे पर चमक लाने में लाभकारीः- 2.मानव शरीर में पीयूष ग्रन्थी(Pitutary gland) एवं पीनियल ग्रन्थी (Pineal gland)मानव मस्तिष्क में स्थित होती है। जब हम शीर्षासन करते है तो इन दोनों ग्रन्थियों की सक्रियता बढ़ जाती है और इन ग्रन्थियों से स्त्रावित होने वाला हार्मोन्स हमारे शरीर को स्वस्थ एवं विकसित करने में सहयोगी होता है। 3.सिरदर्द में राहत देता हैः- 4.शरीर को सुडौल बनता है :- 5.पाचन क्रिया में लाभदायकः- 6.बालों को झड़ने से रोकता हैः- 7-ऑखों के लिए लाभदायकः- अन्य शारीरिक लाभ- 1. रीढ़ की हड्डी को मजबूत बनाता है। 2. रक्त संचार को बेहतर बनाता है। 3. शरीर को लचीला और मजबूत बनाता है। 4. प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है। 5. शरीर को स्वच्छ और हल्का महसूस कराता है। 6. मांसपेशियों को मजबूत बनाता है। 7. हृदय को स्वस्थ रखता है। 8. नींद को सुधारता है. 9.फेफड़ों की क्षमता बढ़ाना B-मानसिक फायदेः 1.विचारों में सकारात्मकता :- अन्य अनेकों लाभ प्राप्त होगें । जैसे- 1.मानसिक तनाव को कम करता है। 2. आत्म-विश्वास और आत्म-सम्मान को बढ़ाता है। 3. ध्यान और एकाग्रता को बढ़ाता है। 4. मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है। 5. चिंता और अवसाद को कम करता है। 6. आत्म-जागरूकता को बढ़ाता है। 7. मानसिक स्पष्टता और सोच को सुधारता है। C-आध्यात्मिक फायदेः 1. आत्म-जागरूकता को बढ़ाता है। 2. आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ाता है। 3. आत्म-शांति और स्थिरता प्रदान करता है। 4. ध्यान और आत्म-नियंत्रण को बढ़ाता है। 5. आत्म-विकास और आत्म-साक्षरता को बढ़ाता है। 5. प्राणायाम और श्वास नियंत्रणः

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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