षट् कर्म क्या है ? विधि और लाभ। Shat Karm Kaya He . Vidhi Aur Labh
षट् कर्म क्या है ? विधि और लाभ। Shat Karm Kaya He . Vidhi Aur Labh योग मे षट् कर्म में क्रियाओं का बहुत महत्व होता है। जो व्यक्ति यौगिक क्रियोओं का आध्यात्किम एंव शारीरिक रूप से लाभ लेना चाहते हैं। उन्हें षट् क्रियाओं का कड़ाई से पालन करना चहिए। आज इस पोस्ट में हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे।
(घेरण्ड संहिता-1/12)
षट् कर्म क्या है ? विधि और लाभ। Shat Karm Kaya He . Vidhi Aur Labh इसमें षट् कर्म क्रियाओं के महत्व को रेखांकित किया गया है एवं हमें ज्ञान होता है कि इन क्रियाओं का योगी/साधक के जीवन में क्या महत्व होता है ?
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Shat Karm Kaya He . Vidhi Aur Labh इसमें बताया गया है कि एक साधक को षट् कर्म में धौति,वस्ति नेति,नौली,त्राटक एवं कपालभाति का नियमित अभ्यास कर शरीर को अशुद्धि से मुक्त रखा जा सकता है, जो किसी भी साधक के लिए आवश्यक है।
1.धौति क्रिया यह पाचन तंत्र की सफाई करने की विधि है।
2.बस्ति क्रिया इसका प्रयोग कर बड़ी आन्त की सफाई की जा सकती है।
3.नेती क्रिया इसका प्रयोग नाक,श्वसन तन्त्र की सफाई के लिया किया जाता है।
4.नौली क्रिया इसका प्रयोग पेट की मालिश और मजबूती के लिया किया जा सकता है।
5.त्राटक इसका प्रयोग कर मानसिक स्थिति मजबूत करने एवं एकाग्रता की पकड़ मजबूत बनाने के लिया किया जा सकता है।
6.कपालभाति इस तकनीक में श्वांस द्वारा श्वसन तंत्र को शुद्ध किया जा सकता है।
1.षट कर्म और धौति क्रिया (Shat Karm Kaya He . Vidhi Aur Labh )
अन्तार्धौ तिर्दन्तधौतिर्हृद् धौ तिर्मूलशोधनम्।
धौतिं चतुर्विधां कृत्वा घटं कुर्वन्ति निर्मलम्।।
(घेरण्ड संहिता-1/13)
षट् कर्म क्रियाओं में प्रथम क्रिया को धौति क्रिया कहा जाता है। धौति का मतलब है शरीर को धोना/साफ करना। इसमें शरीर की आन्तरिक सफाई के साथ साथ,दान्त हृद्य आदि की सफाई की जाती है। इनके अभ्यास से शरीर के विषैले तत्वों को बाहर निकाल दिया जाता है।
1.1 षट कर्म में धौति क्रिया कई विधियों से की जाती है। जैसे ,
कुंजल क्रिया :- जिसमें सुबह खाली पेट सैंधा नमक मिला गुनगुना पानी पीकर वमन के द्वारा वापिस निकाला जाता है।
1.2 षट् कर्म में वस्त्र धौति क्रिया :-
- इसमें 3 इंच चौड़े तथा 7 मीटर लबें मुलायम सूती कपड़े को अच्छी साफ़ कर कीटाणु रहीत कर लें।
- इस कपड़े को नमक मिले गुनगुने पानी में रोल बनाकर भिगोने के लिए रख दें।
- आसन बिछाकर उसपर कागासन में बैठें, नमक मिले गुनगुने पानी में भिगो कर रखे गये कपड़े को हाथ में लेकर मुंह से धीरे धीरे निगलना शुरू करें।
- आराम से निगलते जायें अगर असुविधा हो रही हो तो पानी की एक हल्की सी घूंट ले और कपड़े को निगलने का प्रयास जारी रखें। हो सकता है आप प्रथम प्रयास में आप पूरे कपड़े को नहीं निगल पायें,
- इसके लिए आप योग्य प्रशिक्षक की निगरानी मेंधीरे धीरे प्रयास करते रहें,शिध्र ही आप इसमें सफल हो जायेगें।
- प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में निगले गये वस्त्र को पेट में घुमाने का प्रयास करें ।
- निर्देशानुसार वस्त्र को धीरे धीरे बाहर निकालना प्रारम्भ करें,जल्दबाजी नहीं करें अन्यथा नुकसान होने की सम्भवना बन सकती है।
1.3 षट् कर्म में शंख प्रक्षालन
शंख प्रक्षालन दो शब्दों का बना हुआ है-शंख शब्द का प्रयोग आंतों के लिए किया गया है और‘प्रक्षालन’ का अर्थ होता है साफ करना, इस प्रकार शंख प्रक्षालन का शाब्दिक अर्थ हुआ आतों की सफाई करना। इस योगासन में सिर्फ आंतों की ही सफाई नहीं होती इस योगासन के दौरान भरपूर मात्रा में पानी का सेवन किया जाता है। अतः पानी सिर्फ मलद्वार से ही बाहर नहीं आयेगा वह मू़त्र और पसीने के रूप में भी बाहर आयेगा इस प्रकार इस आसन में मूत्र मार्ग की सफाई के साथ साथ पसीने निकलने के कारण शरीर के रोम रोम की भी सफाई हो जाती है। इस प्रकार यह योग सम्पूर्ण शरीर का ही प्रक्षालन अर्थात सफाई के लिए बहुत उपयोगी है।
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1.4 षट् कर्म में शंख प्रक्षालन करने की विधि :-
षट् कर्म की पूर्व तैयारीः- इस योगासन को करने से पूर्व कुछ सामग्री की तैयार करनी पड़ती है। इसके लिए इतना पानी जिसे आप अपने गला भरने तक पी सकें पीने लायक गर्म करना है। उसमें इतना सैंद्धा नमक डाले जिससे वह नमकीन हो जाये। एक निम्बू भी इस पानी में निचौड़ कर पानी तैयार कर रख लें। इस तैयारी के उपरान्तः-
- किसी हवादार वातावरण में योगा मेट या आसन बिछाकर आराम से बैठ जायें।
- चार – पांच गहरे और लम्बे सांस लेने के बाद सामान्य स्थिति में आने के बाद कम से कम दो गिलास या अपनी क्षमता के अनुसार पूर्व तैयार किया गया पानी पीयें।
- पानी पीने के तुरन्त उपरान्त निम्नाकिंत योगाभ्यास प्रारम्भ करें
1.ताड़ासन 2.कटिचक्रासन 3.भुजंगासन 4.उदराकर्षासन
- पुनः सामर्थ्य अनुसार पानी का सेवन करें।
- इस क्रिया को अपने योग शिक्षक के निर्देशानुसार तब तक दोहरावें, जब तक मल निकासी के बाद पीया गया पानी मल द्वार से बाहर नहीं आना शुरू हो जाये।
1.5 षट् कर्म में धौती क्रिया के लाभ Shat Karm Kaya He . Vidhi Aur Labh
- गले की नली की सफाई होने के कारण की श्वसन सम्बन्धी समस्याओं में राहत मिलती है।
- धौति क्रिया से गले एवं भोजन नली की सफाई होने के कारण कफ की समस्या में राहत मिलती हैं।
- धौति क्रिया से भोजन नली की सफाई होने के कारण गैस एवं पाचन सम्बन्धी समस्याओं से राहत मिलती है।
1.6 षट् कर्म में धौती क्रिया में सावधानियां
- रक्तचाप, हृदय रोग, अमाशय, से सम्बन्धित रोगो से पीड़ित व्यक्तियोंं को यह क्रिया नहीं करनी चाहिए।
- धौति क्रिया किसी योग्य प्रशिक्षित योग शिक्षक के मार्गदर्शन में करना चाहिए अन्यथ समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
- धौति क्रिया करने के बाद हल्का भोजन करना चाहिए, उचित होगा अगर पर्याप्त शुद्ध धी के साथ खिचड़ी का सेवन किया जाये। गरीष्ठ भोजन का तो कदापि सेवन नहीं करना चाहिए। क्योंकि इस समय पेट बिलकुल खाली होता है एवं हो सकता है, कपड़े के कारण पेट में घर्षण के निशान लगे हो जिस कारण पेट गर्म एवं गरीष्ठ भोजन ग्रहण करने के लिए तैयार नहीं हो।
2. षट् कर्म में बस्ति क्रिया
(घेरण्ड संहिता-1/45)
इसमें वस्ति दो प्रकार की बताई गइ है।जलवस्ति और शुष्कवस्ति जल वस्ति जल में एवं शुष्कवस्ति स्थल में करनी चाहिए।
साधारण भाषा में कहें तो एनिमा को बस्ति क्रिया कहते है।
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2.1 षट् कर्म में बस्ति क्रिया की विधि
- प्रारम्भ में बस्ति क्रिया किसी योग्य प्रशिक्षित व्यक्ति की देख रेख में करनी चाहिए।
- बस्ति क्रिया के लिए किसी एनिमा पात्र में आधा से एक लीटर पानी का घोल तैयार करें, जिसमें कुछ निम्बू,थोड़ा नमक,ग्लिसरीन का मिश्रण करना चाहिए। अगर आप बस्ति क्रिया प्रथम बार कर रहे है, तो इन सब की मात्रा,पानी के तापमान एवं बस्ति लेने की अवधि का निर्धारण किसी योग्य व्यक्ति से करवाना चाहिए।
- बस्ति क्रिया करने से पहले घोल वाले बर्तन को ऊॅचाई वाली जगह पर रखें या लटका दे।
- बर्तन की पाईप के नोजल पर चिकनाई का सीमित मात्रा में लेप करलें,
- अब बायीं करवट लेट कर नोजल को अपने मलद्वार में प्रवेश करा दें।
- आपको असुविधा नहीं हो तक पानी को आन्त में जाने दें।
- उसके बाद शरीर को इस प्रकार हिलाएं डुलाएं कि आन्तों में जमा मल ढ़ीला हो जाये।
- उसके बाद आप शौच के लिए जाये आपका पेट साफ हो जायेगा।
- जब आप इस प्रक्रिया के पूर्ण जानकार हो जाये तब आप स्वयं इस क्रिय को अपने आप कर सकते है।
2.2 षट् कर्म में बस्ति क्रिया के लाभ
- बस्ति क्रिया पूर्ण विधि से करने पर बड़ी आन्त की सफाई होती है।
- पेट के ि़त्रदोष समाप्त होते है।
- जठराग्नि जागृत होती है।
- शरीर हल्का एवं मन प्रफुल्लित होता है।
3. षट् कर्म में नेति क्रिया
वितस्तिमात्रं सूक्ष्मसूत्रं नासानाले प्रवेशयेत्।मुखान्निर्गमयेत्पश्चात् प्रोच्यते नेतिकर्मतत्।।
साधनान्नेतियोगस्य खेचरीसिद्धमाप्नुयात्।कफदोषा विनश्यन्ति दिव्यदृष्टिः प्रजायते।।
(घेरण्ड संहिता-1/50,51)
घेरण्ड संहिता में वर्णित षट् क्रियाओं में तृतीय नेति क्रिया है।
इस क्रिया में नासिका मार्ग की चार तकनीक से सफाई की जाती है।
3.1 षट् कर्म में नेति क्रिया करने की विधिः
Shat Karm Kaya He . Vidhi Aur Labh
- नेति क्रिया सुबह खाली पेट शौच निवृति,मुख साफ करने के बाद करनी चाहिए।
- नेति क्रिया चार प्रकार से की जाती है।
1. सूत्र नेति
2.जल नेति
3 दुग्ध नेति
4 घृत नेति
3.1.1. षट् कर्म में सूत्र नेति क्रियाः-
इस षट् कर्म क्रिया(Shat Karm Kaya He . Vidhi Aur Labh ) में लगभग चार मि.मी.मोटाई का सूत्र यानि धागा का प्रयोग किया जाता है। कई साधक धागा की जगह सर्जिकल ट्यूब को भी प्रयोग में लेते है। धागा या ट्यूब को शुद्ध घी में डुबो कर तैयार करें।(जिससे वह चिकनी हो जाये और नाक या गले के अन्दरूनी हिस्से को क्षतिग्रस्त नहीं कर पाये।) वैसे यह दोनों वस्तुएं किसी भी योगाश्रम या योगा का दुकान में मिल जाती है।
- कागासन में बैठ जायें।
- अब ध्यान करें कि आपका कौनसा स्वर चल रहा है,
- उसी नासिका छिद्र में सूत्र को धीरे धीरे डालें और मुंह से बाहर निकालें ।
- उस सूत्र के दोनों सिरों को एक को नाक के पास से तथा दूसरे सिरे को मुंह से निकाल कर पकड़ लें।
- अब दोनों सिरों को पकड़ कर मथानी की तरह से एक को खिंचे दूसरे को ढिला छोड़े इस प्रकार से घर्षण करें।
- ध्यान रखें कि इस घर्षण से नाक अथवा गले के अन्दरूनी अंगों को नुकसान नहीं पहुंचे।
- पॉच-सात बार करने के बाद सूत्र को मुंह से निकाल लें।
- अब यही प्रक्रिया दूसरे नथुने से दोहरावें ।
3.1.2 षट् कर्म में जल नेति क्रियाः (Shat Karm Kaya He . Vidhi Aur Labh )
जल नेति क्रिया को करने के लिए पूर्व तैयारी में एक टोंटीदार लोटा (किसी भी योगाश्रम या योगा का दुकान में मिल जाता है।) और शुद्ध नमक युक्त जल की आवश्यकता होती है।
- कागासन में सिर को आगे की और झुका कर बैठ जायें।
- लोटा की टोंटी को नाक पर लगाकर पानी नाक में डालें और दूसरे नाक से बाहर निकलनें दें।
- इस दौरान सांस न लें।
- एक चक्र पूर्ण होने पर सांस को बाहर की और जोर जोर से फेंकें ताकि नाक में जमा पानी बाहर निकल जाये।
- फिर यही प्रक्रिया दूसरे नाक से दोहरावें।
3.1.3 षट् कर्म में दुग्ध नेति क्रिया
दुग्ध नेति क्रिया जल नेति क्रिया के समान ही है। इसमें जल की जगह दुग्ध का प्रयोग किया जाता है। शेष प्रक्रिया जल नेति के समान ही होगी।
जल नेति में नमक के पानी का प्रयोग किया जाता है जो कि नासिका मार्ग में शुष्कपन लाता है,परन्तु दुग्ध नेति से शुष्कपन नहीं आता बल्कि नासिका मार्ग में चिकनाई का लेप हो जाता है।
3.1.4 षट् कर्म में घृत नेति क्रियाः
घृत नेति क्रिया जल नेति क्रिया के समान ही है। इसमें जल की जगह ष्शुद्ध घृत का प्रयोग किया जाता है। शेष प्रक्रिया जल नेति के समान ही होगी।
जल नेति में नमक के पानी का प्रयोग किया जाता है जो कि नासिका मार्ग में शुष्कपन लाता है,परन्तु घृत नेति से शुष्कपन नहीं आता बल्कि नासिका मार्ग में चिकनाई का लेप हो जाता है।
3.2 षट् कर्म में नेति क्रिया के लाभ
- नेति क्रियाओं से नासिका मार्ग की सफाई होती है।
- नासिका मार्ग के प्रदूषण अथवा अपशिष्ट को साफ करता है।
- दुग्ध और घृत नेति से नासिका मार्ग का शुष्कपन दूर होकर चिकनाई का लेप होकर लचिलापन आता है।
- नासिका मार्ग की सफाई होने के कारण श्वांस बेहतर ढ़ंग से और पर्याप्त मात्रा में शरीर को ऑक्सीजन की आपूर्ति करता है।
- नेति क्रिया से ऑख,कान,गले,मस्तिष्क एवं नाक की समस्याओं में राहत मिलती है।
- माईग्रेन की समस्या में भी राहत देता है।
- मानसिक दोषों को भी दूर करता है।
4.षट् कर्म में नौली क्रिया
(घेरण्ड संहिता-1/52)
यह षट् कर्म में क्रियाओं में चतुर्थ क्रिया है । इस क्रिया में पेट की मांसपेशियों एवं आन्तरिक अंगों की भली भॉति मालिश की जाती है। नये साधकों के लिए प्रारम्भ में यह अभ्यास कुछ कठिन अवश्य होता है। परन्तु अभ्यास उपरान्त इसे सामान्य तरीके से किया जा सकता है।
4.1 षट् कर्म में नौली क्रिया की विधि
- किसी आरामदायक एवं खुले स्थान पर अपने पैरों के मध्य अन्तर रखते हुए,घुटनों को हल्का सा मोड़ते हुए खड़े हो जाये।
- अपने दोनों हाथों को घुटनों से उपर अपनी जंघाओं पर रखें,ठुडी को कण्ठ कूप से लगायें।
- सांसों को गहरा ले एव छोड़े सामान्य होने के बाद उड्डियान बन्ध लगायें।
- पेट को मेरूदण्ड से चिपकाने का प्रयास करें ।
- उड्डियान बन्ध लगाते हुए ही पेट को बांयी तरफ ले जायें।
- इसी स्थिति में पेट को दांयी और ले जायें।
- इस क्रिया को अभ्यास होने बाद लगातार अपन सामर्थ्य के अनुसार किया जा सकता है।
- इस क्रिया चार स्तर पर बांटा जा सकता है।
1. उड्डियान बन्धः पेट को मेरूदण्ड से चिपकाना।ं
2.मध्य नौलीः पेट को मध्य में रखना।
3. दक्षिण नौलीः पेट को बायी और ले जाते है।
4.वामन नौलीःपेट को दांयी और ले जाते है।
4.2 षट् कर्म में नौली क्रिया के लाभ
- पेट के आन्तरिक अंगों छोटी,बड़ी आन्त अमाश्य,मलाश्य की मालिश होती है।
- पेट की मांसपेशियां मजबूत एवं स्वस्थ बनती है।
- कब्ज की समस्या दूर होती है।
- गैस,एसीडिटी की समस्या खत्म होती है।
- जठराग्नि प्रज्विलित होती है।
- महिलाओं की मासिक धर्म की समस्याओं में राहत मिलती है।
- साधकों को कुण्डिलिनी जागृत करने में सहायक होती है।
- नौली क्रिया से मूत्र विकारों को शान्त करने में राहत मिलती है।
- नौली क्रिया प्रातःकाल शौच आदि से निवृत होकर खाली पेट 10 से 15 बार करनी चाहिए।
4.3 षट् कर्म में नौली क्रिया के समय सावधानियां
- पेट की कोई गम्भीर समस्या हो, चिकिसीय आपरेशन हुआ हो तो नौली क्रिया नहीं करनी चाहिए।
- महिलाओं को गर्भधारण या मासिक धर्म के समय नौली क्रिया नहीं करनी चाहिए।
- खाना खाने के बाद नौली क्रिया नहीं करनी चाहिए।
5. षट् कर्म में त्राटक क्रिया
त्राटक क्रिया एक ध्यान एकाग्र करने की क्रिया है।
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5.1 षट् कर्म में त्राटक क्रिया की विधि
षट् कर्म में त्राटक क्रिया कई प्रकार की विधियो से की जाती है। जैसे दीपक,इष्ट की प्रतिमा,किसी चिन्ह आदि पर अपना ध्यान स्थिर कर त्राटक क्रिया की जा सकती है।आज यहॉ पर हम दीपक के माध्यम से त्राटक करने कि विधि पर चर्चा करेगें।
- अपने बैठनें के उपरान्त आंखों की उंचाई के बराबर किसी मेज,स्टूल पर दीपक जला कर रखें।
- कमरे में हवा का प्रवाह तेज नहीं हों,हवा सामान्य हो ताकि दीपक की लौ को प्रभावित नहीं करें।
- दीपक की लौ स्थिर रहनी चाहिए।
- किसी सुविधाजनक सुखासन में दीपक से लगभग तीन फीट की दूरी बना कर बैठ जायें।
- दीपक की लौ को अपलक (आंखों की पलकों को बिना झपकाएं ) लगातार देखते रहें।
- प्रारम्भ में आपको कुछ ही समय में आंखों में पानी आने अथवा आखें में दर्द महसूस होने लगेगा। परन्तु आप धैर्य के साथ इस क्रिया का अभ्यास करते रहें,कुछ समय में आप इस क्रिया के अभ्यस्त हो जायेगे और लम्बे समय तक त्राटक क्रिया का अभ्यास करने लगेंगे। जो कि अध्यात्म एवं ध्यान लगाने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण क्रिया है।
- इस क्रिया के दौरान आखों को अधिक खोलनें अथवा जबरदस्ती देखने का प्रयास नहीं करना चाहिएं,आंखें सामान्य खुली रहे एवं जब देखने में अधिक असुविधा होने तब आखों को आराम देना चाहिए।
- किसी भी कार्य में प्रारम्भ में किसी विशेषज्ञ से मार्गदर्शन लेना उचित होता है,अतःयहॉ भी उचित होगा प्रारम्भ में किसी योग्य व्यक्ति का मार्ग दर्शन ले लिया जाये।
5.2 षट् कर्म में त्राटक क्रिया के लाभ
- त्राटक क्रिया का विधिपूर्वक अभ्यास करने से आंखों की मांसपेशिया स्वस्थ बनती है।
- आंखों के रोग नष्ट होते है।
- नेत्र ज्योति बढ़ती है।
- ध्यान लगाने की क्षमता का विकास होता है।
- मन एवं मस्तिष्क की एकाग्रता बढ़ती है।
6. षट् कर्म में कपालभाति
कपालभाति, प्राणायाम का ही एक भाग है। जो श्वांसों पर आधारित एक यौगिक क्रिया है। कपालभाति दो शब्दों से बना संधि है । जिसमें कपाल और भाति शब्दों का योग है। कपाल का अर्थ होता है मस्तिष्क और भाति का अर्थ होता है तेज। इस प्रकार कपालभाति का शाब्दिक अर्थ हुआ मस्तिष्क में तेज मय होना ।
इसके नियमित अभ्यास से हमारा शरीर शुद्ध होता है ।
घेरण्ड संहिता में षट् कर्म में तीन प्रकार की कपालभाति बताई गई है। इनके अभ्यास की विधि,महत्व आदि इस प्रकार है। कपालभाति का अभ्यास करके हम अपने शरीर की आंतरिक शुद्धि कर अपने शरीर को स्वस्थ रख सकते है।
अर्थात- कपालभाति तीन प्रकार की होती है-वातक्रम कपालभाति,व्युत्क्रम कपालभाति और शीतक्रम कपालभाति,कपालभाति के अभ्यास से कफ दोषों का निवारण होता है।(घेरण्ड संहिता 1/55)
6.1 षट् कर्म में वातक्रम कपालभाति :-
- इस विधि में साधक को बायें नासिका स्वर से श्वसन का पूरक कर, दायें नासिका स्वर से रेचन करना चाहिए।
- फिर दायें नासिका स्वर से पूरक कर बायें नासिका स्वर से रेचन करना चाहिए।
- यही वातक्रम कपालभाति प्राणायाम है।
6.2 षट् कर्म में व्युत्क्रम कपालभाति :-
- इस विधि में पानी का प्रयोग किया जाता है। इसमें दोना नथुनों से पानी को सांस के साथ खिंचा जाता है,और मुख से बाहर छोड़ा जाता है। इसे व्युत्क्रम कपालभाति कहा जाता है।
6.3 षट् कर्म में शीतक्रम कपालभातिः-
- इस विधि में शीतकारी करते हुए वायु को मुख से खि्ांचा जाता है,और दोनां नासिकाओं से बाहर फेंक दिया जाता है।
- इसे एक अन्य विधि से भी किया जाता है जिसमें वायु के स्थान पर पानी को मुख में खिंचा जाता है और दोंनों नथुनों से बाहर फेंका जाता है ।
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6.4 षट् कर्म में कपालभाति प्राणायाम करने की विधिः-
- कपालभाति प्राणायाम करने के लिए खुले हवादार स्थान पर योगा मेट अथवा आसन बिछा कर आराम से मेरूदण्ड को सीधा,सीना तना हुआ और नजर एकदम सामने रखते हुए किसी सुखासन में बैठ जायें,दो-तीन गहरे और लम्बे श्वांस ले और छोड़े श्वांस को सामान्य होने दें।
- दोनों हाथों को सीधे अपने घुटनों पर रखें।
- अब आपको श्वांस को नाक से अन्दर खिंचना (पूरक) है।
- फेफड़ों,पेट में रोक कर रखें (कुम्भक)।
- श्वांस को नाम से बाहर निकाले (रेचन)।
- श्वांस का जितने समय में पूरक करें,उससे चौगुना कुम्भक एवं रेचन दोगुना समय में करें।
- कुम्भक के समय तीनों मूलबन्ध,उड़ियान बन्ध एवं जालन्धर बन्ध लगायें।
- कपालभाति कितने समय करना चाहिए।
कपालभाति प्राणायाम 15 मिनट किया जा सकता है,परन्तु अपनी सामर्थ्य अनुसार इसकी समय सीमा घटाई या बढ़ाई भी जा सकती है।जिसके लिए अपने योग प्रशिक्षक से परामर्श किया जाना चाहिए।
6.5 षट् कर्म में कपालभाति प्राणायाम के लाभः- (Shat Karm Kaya He . Vidhi Aur Labh )
- कपालभाति प्राणायाम का नियमित रूप से अभ्यास करके अनगिनत लाभ प्राप्त किये जा सकते है। कहा जा सकता है इसके प्रयोग से शरीर का प्रत्येक अंग प्रभावित होता है।
- मुखमण्डल एवं मस्तिष्क पर एक तेजपूर्ण आभा आती है।
- कुण्डलिनी शक्ति के जागरण में सहायक होता है।
- हमारे कफ दोष का निवारण होता है।
- इसके नियमित अभ्यास से रक्त संचरण सुचारू बनता है।
- स्नायु एवं मांसपेशियां सुदृढ़ होती है।
- हृद्य स्वस्थ एव मजबूत बनता है।
- फेफड़े स्वस्थ बनते है।
- शरीर को ऑक्सीजन प्रचूर मात्रा में प्राप्त होती है।
- श्वांस प्रश्वांस द्वारा शरीर के विषैले तत्व भी बाहर निकल कर शरीर को स्वस्थ बनाने में सहयोगी होते है।
- इस प्रकार हम देखते है कि कपालभाति प्राणायाम मात्र यौगिक क्रिया नहीं है। यह शरीर की सफाई के साथ साथ शरीर को रोगमुक्त करने भी बहुत सहायक हो सकता है।
- पाचन तंत्र मजबूत बनता है।
- पेट का मोटापा कम होता है।
- श्वांस प्रश्वांस से पेट के अन्दरूनी अंग स्वस्थ बनते है।
6.6 षट् कर्म में कपालभाती को करते क्या सावधानियां बरतें।
- किसी प्रकार की गम्भीर बिमारी होने या लम्बे समय से बिमार रहने की स्थिति में प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
- श्वसन प्रणाली या सांस सम्बधी समस्या होने पर भी यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
- कपालभाति प्रणायाम हमेशा खाली पेट सुबह के समय करना अधिक लाभदायक एवं प्रभावशाली होता है।
- महिलाओं को गर्मधारण एवं मासिकधर्म के समय कपालभाति प्रणायाम नहीं करना चाहिए।
- किसी प्रकार का आपरेशन हुआ है तो भी यह प्राणायाम नहीं करना चाहिए।
इस प्रकार हम देखते है कि योग साहित्य के अनुसार किसी भी साधक को योग साधना का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिए षट् कर्म क्रियाओं का अभ्यस्त होना आवश्यक ही नहीं अति आवश्यक है। इन क्रिया का अभ्यास कर साधक अपने शरीर को आन्तरिक शारीरिक रूप से एवं मानसिक रूप् से शुद्ध कर सकता है। जब साधक शारीरिक एवं मानसिक रूप से शुद्ध होगा तो निश्चित ही है कि उसे योग और ध्यान के अधिक लाभ प्राप्त होंगे।
इस लेख को लिखने का उद्देश्य योग सम्बन्धि जानकारी देना मात्र है। स्वास्थ्य की दृष्टि से अभ्यास करने से पूर्व अपने चिकित्सक या योग प्रशिक्षक से परामर्श किया जाना चाहिए।
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FAQ
धौति कर्म/क्रिया कितने प्रकार की होती है ?
धौति कर्म कई प्रकार से की जा सकती है कुछ निम्न प्रकार है कुंजल क्रिया ,वस्त्र धौति क्रिया ,.शंख प्रक्षालन अधिक जानकारी किसी भी योग प्रशिक्षक से ली जा सकती है।
षट् कर्म कौन कौन से होते है ?
जैसे की नाम से स्पष्ट है षट् कर्म छः प्रकार के होते है ,जो निम्न है धौति,वस्ति नेति,नौली,त्राटक एवं कपालभाति ।
षट्कर्म के क्या लाभ है ?
षट्कर्म के भाग के अनुसार लाभ निम्नानुसार है। 1.धौति क्रिया यह पाचन तंत्र की सफाई करने की विधि है। 2.बस्ति क्रिया इसका प्रयोग कर बड़ी आन्त की सफाई की जा सकती है। 3.नेती क्रिया इसका प्रयोग नाक,श्वसन तन्त्र की सफाई के लिया किया जाता है। 4.नौली क्रिया इसका प्रयोग पेट की मालिश और मजबूती के लिया किया जा सकता है। 5.त्राटक इसका प्रयोग कर मानसिक स्थिति मजबूत करने एवं एकाग्रता की पकड़ मजबूत बनाने के लिया किया जा सकता है। 6.कपालभाति इस तकनीक में श्वांस द्वारा श्वसन तंत्र को शुद्ध किया जा सकता है।
One response to “षट् कर्म क्या है ? विधि और लाभ। Shat Karm Kaya He . Vidhi Aur Labh ”
Vah,bahut hi labhdayk