पालथी/चौकड़ी नहीं लगती तो यह आपके लिए है।Palathi/Chaukadi nahin lagati।
पालथी/चौकड़ी नहीं लगती तो यह आपके लिए है।Palathi/Chaukadi nahin lagati।ऐसे लोगों कोअगर उकड़ू बैठना पड़ जाये तो कुछ सैकेण्डों में ही उनके टखनों,घुटनों में दर्द एवं पैरों की नसों में खिचाव होने लगता है। इस स्थिति में वे एक असहनीय दर्द से गुजरते है।
परन्तु हमारी भारतीय परम्परा में हम ईश्वर ध्यान या किसी शुभ कार्य या किसी के गम में बैठना होता है,तो हमें पालथी या चौकड़ी में ही बैठना होता है। परन्तु कुछ लोग ऐसी स्थिति में होते है, कि वे फर्श पर नहीं बैठ सकते। न ही वे लोग इण्डियन स्टाईल की टॉयलेट में बैठ सकते है। जब वे घर से बाहर जाते है,तो उन्हें काफी असुविधाओं का सामना करना पड़ता है।
ऐसे लोग न तो पालथी मार कर बैठ सकते है,न ही पदमासन लगा सकते है। उकड़ू बैठने का तो कोई सवाल ही नहीं । इस तरह के लोगों के साथ यह भी समस्या होती है कि ये लोग थोड़ी दूरी के लिए पैदल भी नहीं चल सकते है,नां ही सीढ़ियां चढ़ सकते है।
अगर आप भी ऐसी स्थिति से गुजर रहे है तो यह पोस्ट आपके लिए लाभदायक हो सकती है।चूंकि पैरों की नसों की जकड़न एवं शरीर के भारीपन के कारण ऐसी स्थिति बनती है,कि व्यक्ति पालथी में या उकड़ू की स्थिति में नहीं बैठ सकता।ऐसे व्यक्ति अगर कुछ समय ऐसे योगाभ्यास करें जो पैरों एवं टखनों में लचीलापन लायें। तो समस्या का निवारण हो सकता है। इसमें सहायक कुछ योगाभ्यास पर आज इस पोस्ट में चर्चा करेंगें।इस कड़ी में प्रथम चर्चा करते है वज्रासन के योगाभ्यास की।
1-वज्रासन (Vajrasan)
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वज्रासन वज्र और आसन दो शब्दों से मिल कर बना है। वज्रासन करने से शरीर निरोगी और मजबूत बनता है। वज्रासन पाचन कार्य को सुधारने में सहयोग करता है और पैरों की मांसपेशियों को भी मजबूती प्रदान करता है। इस आसन के अभ्यास से पाचन तन्त्र भी मजबूत बनता है।
यह आसन करने से व्यक्ति के शरीर की मांसपेशियां भी मजबूत बनती हैं। यह आसन करने के लिए जब व्यक्ति दोनों पैरों को पीछे की ओर मोड़कर बैठता है,तो यह पैरों के आसपास खून के बहाव को कम करके पाचन क्षेत्र की तरफ ब्लड के प्रवाह को बढ़ाता है,जिससे कि पेट और पाचन दोनों ठीक रहता है।
वज्रासन जितनी आसान मुद्रा लगती है, उतनी है नहीं क्योंकि इस आसन प्रारम्भिक अभ्यास में पैरों की जकड़न के कारण टखनों,जंघाओं एवं घुटनों में काफी दर्द का अनुभव होता है। परन्तु नियमित अभ्यास से इस समस्या का हल हो जाता है।
1.1-वज्रासन करने की विधिः-
वज्रासन देखने में आसान लगता है। परन्तु प्रारम्भ में अभ्यास करना इतना आसान भी नहीं है। उचित मार्गदर्शन में नियमित अभ्यास करने से यह आसन करना आसान हो सकता है,जिनकी पालथी/चौकड़ी नहीं लगती । Palathi/Chaukadi nahin lagati ।
1.2-वज्रासन के लाभः-
शरीर की नसों,नाड़ियों एवं जोड़ों में लचीलापन लाने में यह योगाभ्यास बहुत ही लाभदायक साबित होता है। जिसका अनुभव आप इसके अभ्यास के दौरान महसूस कर सकते है। जब
आप वज्रासन के अभ्यास में बैठते है। तो आपने अनुभव किया होगा कि इस दौरान आपके घुटनों,जांघ,नितम्ब एवं पिण्डलियों की नसों में खिचाव पैदा होता है। खिचाव महसूस होने का मतलब है कि आपकी नसों,मांसपेशियों में जकड़न जमा हो चुकी है। जिनका वज्रासन के अभ्यास से जकड़न,कड़पन खत्म हो रहा है। और उनमें लचीलापन आ रहा है।
इस प्रकार हम देखते है कि वज्रासन के अभ्यास से टखनों,पिण्डलियों,जॉघों,नितम्बों एवं मेरूदण्ड की नसों एवं जोड़ों में लचीलापन आता है।
1.3वज्रासन करने के अन्य लाभ (पालथी/चौकड़ी नहीं लगती तो यह आपके लिए है।Palathi/Chaukadi nahin lagati।)
1-वज्रासन वजन कम करने में लाभदायक,वज्रासन करने से हमारे कमर,जॉघ,नितम्बों पर काफी खिचाव का अनुभव होता है। जिस कारण वहॉ की अतिक्ति वसा/चर्बी पिघलती है जो वजन कम करने में सहायक होती है।
3-वज्रासन का नियमित अभ्यास चेहरे पर एक आभा लाने मे भी सहायक होता है।
4-वज्रासन के अभ्यास से पाचन एवं पेट के अन्य रोगों में भी लाभदायक होता है। यही एक मात्र ऐसा आसन है। जिसे हम भोजन करने के बाद भी कर सकते है। यही नहीं इस आसन को भोजन के बाद करने की सलाह भी दी जाती है। इसका कारण यही है कि इसके अभ्यास से पाचन तन्त्र स्वस्थ एवं मजबूत बनता है। इसके अभ्यास से जब भोजन का पूरा पोषण शरीर को मिलेगा तो चेहरे की आभा अपने आप दिखने लगेगी।
1.4-वज्रासन एवं सावधानियां
अगर आप जोड़ों के दर्द या घुटनों के दर्द मेरूदण्ड की समस्या अथवा हार्निया, आंतों में किसी भी प्रकार की परेशानी से पीड़ित हैं। तो वज्रासन न करें।
2.-तितली आसन (Titali Asan)(Butterfly Pose)
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जिन्हे पालथी/चौकड़ी नहीं लगती । Palathi/Chaukadi nahin lagati उन्हें प्रारम्भिक दौर में लोगों को यह आसन अवश्य करना चाहिए। इस योगासन में दोनों पैरों के तलवों को आपस में मिला कर पैरों को तितली के पंखों की तरह से हिलाया जाता है। यह एक ऐसा आसन है। जिसे बच्चे भी खेल खेल में कर सकते है,तथा अन्य सभी लोग जब समय मिले बैठे बैठे कर सकते है। इस आसन के अभ्यास के लिए कोई विशेष तैयार या समय की आवश्यकता भी नहीं होती।
तितली आसन को इंग्लिश में Butterfly Pose कहा जाता है, यह आसन बद्ध कोणासन से मिलता जुलता आसन है।

2.1-तितली योगासन की विधिः- पालथी/चौकड़ी नहीं लगती तो यह आपके लिए है।Palathi/Chaukadi nahin lagati।
1.किसी स्वच्छ हवादार वातावरण में योगा मेट या आसन बिछाकर बैठ जायें।
2.दोनों पैरों को घुटनों से मोड़ कर पैर के तलवों को आपस में मिला लें।
3.पैर के तलवों को हाथों से पकड़ कर जहॉ तक असुविधा न हो अपने जननांगों के पास अधिक से अधिक लाने का प्रयास करें।(प्रारम्भ में कुछ असुविधा होगी )अभ्यास के बाद आराम से
4.तलवों को अपने हाथों से पकड़ रहे,और दोनों घुटनों को तितली के पंख की तरह हिलायें।
5.इस स्थिति में आपका मेरूदण्ड एकदम सीधा एवं सीना तना हुआ होना चाहिए।
6.वज्रासन 10 से 15 मिनट की अवधि के लिए या अपने शारीरिक क्षमता के अनुसार किया जाना चाहिए।
7-इससे आपको आपकी जंघाओं के जोड़ में एवं पिण्डलियों में खिचाव महसूस होगा। जो कि आपकी मांसपेशियों को लचीला बनाने में सहायक होता है।
2.3-तितली आसन के लाभः-
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तितली आसन के अभ्यास से नितम्ब एवं जंघाओं एवं पैरों के जोड़ों में लचीलापन आता है।
2.4-तितली आसन के अन्य लाभ।
1-मेरूदण्ड मजबूत होता है।
2-यौन समस्याओं में लाभदायक :-
तितली आसन के नियमित अभ्यास से श्रोणी क्षेत्र की मांसपेशियां स्वस्थ और मजबूत बनती है। जिससे पुरुषों को शीघ्रपतन व स्तंभन दोष और महिलाओं को मासिक धर्म से जुड़ी समस्याओं में लाभ मिलता है।
3-कमर दर्द की समस्या में राहत।
4-पाचन तन्त्र को स्वस्थ एवं क्रियाशील रखता है।
जिससे पेट,गैस,एसिडिटी,अपच व कब्ज आदि समस्यों में आराम मिलता है।
5-शरीर की अनावश्यक चर्बी को हटाने में लाभदायक रहता है।
2.5-तितली आसन में सावधानियॉः-
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1.जिन लोगों के कमर में दर्द हो, साईटिका का दर्द हो, घुटनों के दर्द से पीड़ित एवं गम्भी चोट के पीड़ित व्यक्तियों को तितली आसन नहीं करना चाहिए।
2.गर्भवती,एवं मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को योग प्रशिक्षक के मार्गदशर्नानुसार आसनों का अभ्यास करना चाहिए।
3.-उत्कटासन– (Utkattasan)
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उत्कटासन योगाभ्यास के दौरान अभ्यासी व्यक्ति के एड़ियां और कूल्हे उठे हुए रहते हैं, इसीलिए इसे उत्कटासन कहा गया है। इस योगासन में ऐसा आभास होता है।जैसे अभ्यासी कुर्सी पर बैठा हो। इसलिए इस आसन को कुर्सी आसन या Chair Pose भी कहा जाता है।
3.1-उत्कटासन करने की विधि :-
1.स्वच्छ एवं शान्त वातावरण में योगा मेट या आसन बिछा कर सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाये।
2.दोनों एंड़ियों को ऊपर की ओर उठाते हुए पंजो के बल बैठें।
3.अपने नितम्बों को एड़ियों से सटाते हुए मलद्वार को ऐड़ियों से स्पर्श करावें।
4.दोनों कोहनियों को घुटनों पर रखें।
5.एक हाथ को दूसरे पर रखें
6.अपनी ठोड़ी को हाथों पर रखें।
7.अपने सामर्थ्य के अनुसार इस स्थिति में बने रहें।
8.फिर धीरे-धीरे आरंभिक अवस्था़ में लौट आएं।
9.यह एक आवृति हुई।
10.इस तरह आप इस आसन की 3 से 5 आवृतियों का दोहराव कर सकते है।
3.2-उत्कटासन योग लाभ –
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उत्कटासन के अभ्यास से पैरों के पंजें,टखनें,घुटनें,जांघ,पैर एवं मेरूदण्ड के जोड़ एवं मांसपेशियां मजबूत बनती है।
3.3-अन्य लाभ
यह आसन कुण्डली जागरण में प्रभावी है।
पाचन तंत्र सक्रिय एवं मजबूत बनाने में सहायक है।
शरीर में संतुलन बनाने में सहायक है।
पुरूषों में यौन शक्ति बढ़ाने में सहायक।
3.4उत्कटासन योग सावधानीः-
1.उत्कटासन का अभ्यास सिर दर्द,गठिया रोग,चककर आने के रोगियों, टखने, घुटने दर्द, से पीड़ित होने पर नहीं करना चाहिए।
2.गर्भवस्था एवं मासिक धर्म के दौरान महिलाओं को उत्कटासन का अभ्यास उचित मार्गदर्शन के अनुसार करना चाहिए।
4.-अंजनेयासन–(Anjaneyasan)
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हम योगाभ्यास के दौरान कई प्रकार के आसनों का अभ्यास करते हैं। इन्हीं के साथ अंजनेयासन का भी अभ्यास करते है।। इस आसन को विभिन्न योग शिक्षक भिन्न भिन्न प्रकार से करवाते है। यहॉ हम बात करेंगे जो सर्वाधिक प्रचलन में रहे अंजनेय योगाभ्यास के प्रकार की।

4.1-अंजनेयासन विधिः-
1.स्वच्छ और हवादार खुले स्थान पर योगा मेट या आसन बिछाकर सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाएं।
2.अब आप अपना एक पैर आगे लाएं और दूसरे को पीछे ले जाएं।
3.इसके बाद आप आगे वाले पैर को घुटनों से मोड़ लें और पीछे वाले पैर को मैट पर सीधा करें। इस स्थिति में आपका पीछे वाले पैर का घुटना जमीन को स्पर्श करता रहेगा एवं आपके पैर का तलवा स्वतः ऊपर की और रहेगा।
4.अपना संतुलन बनाते हुए अपने दोनों हाथों को कानों से सटाते हुए सिर के ऊपर की ओर ले जाकर प्रणाम की मुद्रा जोड़े लें।
5.अब कुछ गहरी एवं लम्बी श्वांस प्रश्वांस लें।
6.इस मुद्रा में कुछ समय अपनी सामर्थ्य के अनुसार रूकें।
7.श्वांसों को सामान्य करते हुए,मूल अवस्था में लौट आयें।
8.इसी प्रक्रिया को अब दूसरे पैर से दोहरावे।
9.इस आसन का अभ्यास आप 3 से 5 बार दोहरावें।
10.अब आप वापिस सामान्य अवस्था में लौट आएं।
4.2-अंजनेयासन के लाभः-
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1.शरीर को लचीला बनाए रखने में सहायकः- जब हम अंजनेयासन का अभ्यास करते है। तब आपने भी महसूस किया होगा कि इसके अभ्यास के दौरान हमारे पैर,घुटनों,जांध,कमर एवं मेरूदण्ड तक खिचाव का अनुभव होता है। इसी खिंचाव के कारण हमारे उक्त अंग लचीले एवं मजबूत बनाने में सहायक होता है। जैसे लचीली चीज को हम अपने आकार में ढ़ाल सकते है,उसी प्रकार अगर हमारे अंग लचीले होगें तो हम अपने शरीर को भी उसी प्रकार बिना किसी परेशानी के मोड़ सकते है।
2.ध्यान लगाने में सहायकः-
जब हम अंजनेयासन का अभ्यास करते है। तब हमे अपने शरीर का सन्तुलन बनाये रखना पड़ता है। इस प्रकार जितनी अवधि के लिए हम अंजनेयासन लगाते है। हमारा सारा ध्यान हमारे शरीर को सन्तुलित बनाये रखने की ओर केद्रित हो जाने के कारण स्वतः मन को एकाग्र करने का या ध्यान लगाने का अभ्यास हो जाता है। इस स्थिति में एकाग्रता,ध्यान एवं मानसिक शान्ति को बनाये रखने में सहायक होता है।
3.स्टेमिना बढ़ाने मे सहायक :-
अंजनेयासन के अभ्यास से हमारे पैर,जांघ,कमर,मेरूदण्ड,सीना,पेट,कन्धें आदि मजबूत एवं स्वस्थ बनते है। जिस कारण हमारे शरीर के सभी महत्वपूर्ण अंगों के स्वस्थ एवं मजबूत होने के कारण स्वतः हमारा स्टेमिना बना रहेगा और हमारे शरीर में आलस्य पैदा ही नहीं होगा।
4.कमर दर्द में राहत देने में सहायकः-
जब हम अंजनेयासन करते है,तो हमारे पैरों के साथ साथ मेरूदण्ड एवं कमर का भाग भी सक्रिय रूप से अपनी भूमिका निभाते है। इसके अभ्यास से हमारी कमर की मांसपेशिया की भी अच्छी तरह से मालिश हो जाती है । जिसके कारण कमर दर्द में हमे आराम मिलता है।
5.जननांगों के लिए लाभदायक
अंजनेयासन के अभ्यास से हमारा श्रोणी क्षेत्र काफी प्रभावित होता है। जिससे हमारे जननांगों को स्वास्थ्य लाभ मिलता है। जिस कारण वे स्वस्थ होकर यौन दुर्बलताओं के निवारण में काफी लाभदायक होता है।
4.3अंजनेयासन में सावधानियांः-
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अंजनेयासन का अभ्यास करते समय कुछ सावधानियां भी बरती जानी चाहिए।
1.शरीर के किसी हिस्से में गम्भीर दर्द हो या चोट लगी हो तो यह आसन नहीं करना चाहिए।
2.किसी व्यक्ति के मिर्गी या चक्कर आने की समस्या हो तो उन्हे भी यह आसन नहीं करना चाहिए। अन्यथा गिरने की सम्भावना के कारण चोट लग सकती है।
3.हार्ट आदि की समस्या हो तो उन्हे भी यह आसन नहीं करना चाहिए।
इस प्रकार अगर योग्य मार्गदर्शन में नियमित रूप से योगाभ्यास किये जाये,तो पालथी,चौकड़ी मार कर या उकड़ू में न बैठ पाने की समस्या को हल किया जा सकता है।
इस लेख का उद्देश्य केवल मात्र योग की सामान्य जानकारी देना है। चिकित्सकीय उद्देश्य से अभ्यास करने से पूर्व अपने चिकित्सक या योग प्रशिक्षक से अवश्य परामर्श करना चाहिए।
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