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मांडूकी मुद्रा की विधि,लाभ और सावधानियों ,Manduki Mudra Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan

आज हम चर्चा कर रहे है मांडूकी मुद्रा की विधि,लाभ और सावधानियों ,Manduki Mudra Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan की । घेरण्ड संहिता के अनुसार मुंह बन्द कर जीभ को तालू में घुमाकर सहस्त्रदल से टपकने वाले अमृत को पीना ही मांडुकी मुद्रा है।
मांडूकी मुद्रा के अभ्यास से चेहरे पर झुर्रियां नही आती, श्रोणि क्षेत्र मजबूत होता है, पाचन शक्ति में सुधार होता है ।

 

1-मांडूकी मुद्रा क्या है ?                                                                                                                                     Manduki Mudra Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan

 

Manduki Mudra Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan
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मुखं संमुद्रितं कृत्वा जिहव्वामुलं प्रचालयेत।
शैनेर्ग्रसेदमृतं तां माण्डूकीं मुद्रिकां विदुः।
वलितंपलितं नैव जायते नित्य यौवनम।
न केशे जायते पाको यः कुर्यान्नित्यमाण्डुकीम्।
(घे. संहिता 3/74.75)
अर्थात-मुंह बन्द कर जीभ को तालू में घुमाकर सहस्त्रदल से टपकने वाले अमृत को पीना ही मांडूकी मुद्रा है।
मांडूकी का अर्थ होता है, मेंढक और योग में मुद्रा का अर्थ बैठने की स्थिति होता है। अभ्यासी के मांडूकी मुद्रा में बैठने की स्थिति में बैठे हुए मेंढक की मुद्रा का आभाष होता है, इसीलिए इस मुद्रा को मांडूकी मुद्रा का नाम दिया गया है।

मांडूकी मुद्रा एक योगासन है, जिसमें वज्रासन या भद्रासन में बैठकर अपने आज्ञा चक्र या अपनी नासिका के अग्रभाग पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है,तथा अपनी जीभ को मुँह में घुमाते हुए,जीभ के अग्रभाग को तालु से छुआते हैं।

2-महत्वपूर्ण बिन्दु-                                                                            Manduki Mudra  Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan

 

मांडूकी मुद्रा अभ्यास के दो महत्वपूर्ण बिन्दु है जिनका हमें अभ्यास के दौरान पूर्ण मनोयोग से पालन करना आवश्यक होता है :-
पहला बिन्दु है, हमारा ध्यान हमारे आज्ञा चक्र या हमारे नासाग्र पर केन्द्रित होना चाहिए।
दूसरा बिन्दु है,हमारी जिव्हा हमारे मुंह में दांये बांये घूमे एवं उसके बाद उसकी नोक हमारे तालू को स्पर्श करती रहना चाहिए। जिससे हमारे सहस्त्रदल से टपकने वाले अमृत का सेवन हम कर सकें।

 

3-मांडूकी मुद्रा कैसे करें ?                                                        Manduki Mudra  Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan

 

 

आज हम चर्चा कर रहे है मांडूकी मुद्रा की विधि,लाभ और सावधानियों ,Manduki Mudra Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan की  मांडूकी मुद्रा यह बैठकर किसे जाने वाले आसनों के श्रेणी का आसन है। इस मुद्रा को वज्रासन या भद्रासन की स्थिति में बैठकर किया जाता है। जीभ को मुख में तालु तक घुमाया जाता है। धीरे-धीरे, जीभ को मुख के बाएँ और दाएँ घुमाया जाता है।

1-किसी शान्त एवं मन को सुकून देने वाले स्थान पर योगा मैट या आसन बिछाएँ और वज्रासन या भद्रासन में अपनी सुविधा अनुसार जिस आसन में आप सुखपूर्वक बैठ सकें शान्त भाव के साथ बैठ जाएँ।
2-अपने दोंनों घुटनों के बीच कम से कम एक से डेढ़ फिट या ऐसी दूरी, जिसमें आप असुविधा अनुभव नहीं करें, बनातें हुए खोल कर रखें। आपकी ऐड़ियां खुली हुई एवं नितम्ब जमीन को स्पर्श करते हुए होने चाहिए।
3-अपने नितंबों को ज़मीन से स्पर्श करते हुए अनुभव करें,यह भी अनुभव करें कि आपके मुलाधार चक्र पर हल्का दबाव का अनुभव हो रहा है।
4-मांडूकी मुद्रा में अगर आप असुविधा का अनुभव कर रहे है तो योगा तकिया या ब्लॉक्स का उपयोग करना चाहिए।
5-अपनी आंखों को मुलायमता के साथ बन्द करें और अपना ध्यान अपने आज्ञा चक्र पर केन्द्रित करें।
6-इसी स्थिति में अगर आप अपना ध्यान आज्ञा चक्र के स्थान पर लगाने के बजाय अपने नासिका के अग्र भाग पर लगाना चाहें तो अपनी आंखों को कोमलता के साथ खोलें और बिना किसी प्रकार का दबाव बनाएं,अपनी आंखों को नासिका के अग्र भाग पर केन्द्रित करें। नासिका पर ध्यान के समय अगर आपकी आंखों को असुविधा अनुभव होने लगे तो आंखों को कुछ समय के लिए विश्राम दें और पुनः अभ्यास प्रारम्भ रखें।
7-इस स्थिति में आप गर्दन और मेरूदण्ड को सीधा रखते हुए अपने हाथों को घुटनों पर रखें। आपकी हथेलियां घुटनों पर होनी चाहिए।
8-इतनी प्रक्रिया करने के बाद अपने मुंह को बंद रखते हुए, अपनी जीभ के अग्र भाग को तालु के स्पर्श में रखते हुए 3 से 5 मिनट तक अपने मुहं में घुमाएं।
9- इस अभ्यास के दौरान आपके श्वांसों गति सामान्य होनी चाहिए।
10-इस अभ्यास में आपने अब एक आवृति पूर्ण कर ली है।
4-मांडूकी मुद्रा का अभ्यास कब और कितना करें ?

आज हम चर्चा कर रहे है मांडूकी मुद्रा की विधि,लाभ और सावधानियों ,Manduki Mudra Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan की,   मांडूकी मुद्रा का अभ्यास खाली पेट किया जाना चाहिए। सर्वोत्म समय सुबह का होता है, जब हम शौच आदि से निवृत होकर इस मुद्रा का अभ्यास करते है, परन्तु समय का अभाव हो तो भोजन करने के 3 से 4 घण्टे बाद खाली पेट कभी भी किया जा सकता है।
प्रारम्भ में मांडूकी मुद्रा का अभ्यास 2 से 5 मिनट तक करना चाहिए,अभ्यास होने के बाद अपने प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में इसके अभ्यास की अवधि को बढ़ाया जा सकता है।

5-मांडूकी मुद्रा के लाभ

मांडूकी मुद्रा के पर्याप्त लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक है, कि इस मुद्रा का योग्य प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में नियमित मनोयोग से अभ्यास किया जाये।
इससे प्राप्त होने वाले लाभ कुछ इस प्रकार है।

1.इस मुद्रा से प्राप्त होने वालें लाभों के बारे में घेरण्ड संहिता में भी उल्लेख किया गया है कि इसके नियमित अभ्यास से बुढ़ापा देरी से आता है और बालों का सफ़ेद होना रूक जाता है।
2.इस मुद्रा के अभ्यास से हमारे सहस्त्रदल से टपकने वाले अमृत का सेवन कर सकते है।
3. इस के अभ्यास से चेहरे की मांसपेशियाँ मज़बूत होती हैं, जिससे झुर्रियाँ दूर होती हैं और त्वचा चमकदार बनती है।
4. इस मुद्रा के दौरान हमें ध्यान का भी अभ्यास करना होती है। जिससे हमारी मानसिक एकाग्रता बनती जो हमारी मानसिक शान्ति एवं स्थिरता का कारण बनती है। परिणाम स्वरूप हमारी बुद्धिमता का भी विकास होता है।

5. मांडूकी मुद्रा के अभ्यास से हमारी इड़ा,पिंगला आदि नाड़ियां सक्रिय बनती है। हमारी कुण्डलिनी शक्ति को जागृत होने में सहायता मिलती है, इसके जागृत होने पर हमारे ऊर्जा चैनल खुल,सक्रिय हो जाते है। जिससे हमारी आन्तरिक ऊर्जा का विकास होता है। पीनियल ग्रंथि सक्रिय होने में मदद मिलती है।
6. इस मुद्रा के अभ्यास के दौरान हमारे बैठने की स्थिति ऐसी होती है, कि हमारे मूलाधार चक्र पर हल्का दबाव डाला जाता है,परिणाम स्वरूप हमारे मूलाधार चक्र को उत्तेजित होने में सहायता मिलती है,मूलाधार चक्र सक्रिय होता है। जो हमारी कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने में सहायक बनता है।

7.पाचन शक्ति को मजबूत करने में सहायक बनता है । इस मुद्रा में पाचन शक्ति की मजबूती बनने के दो कारण बनते है ।
पहला तो यह कि जब जीभ को हम अपने मुंह में घुमाते है तो हमारे मुंह में लार बनती है। जो हमारे पाचन के लिए एंजाइम का कार्य करती है।
दुसरा कारण इस मुद्रा में हमारे बैठने की स्थिति है। यह तो हमें ज्ञात ही है कि वज्रासन हमारे पाचन के लिए लाभदायक आसन होता है । मांडूकी मुद्रा में भी हम वज्रासन की मुद्रा का अनुसरण करते है। जो कि हमारे पाचन तन्त्र की मजबूती का कारण बनती है।

8.मांडूकी मुद्रा के अभ्यास के दौरान हमारे पैरों के जोड़ों,जंघाओं, पिण्डलियों,टखनों एवं श्रोणी क्षेत्र की मांसपेशियों की अच्छी मालिश हो जाती है। जो इन अंगों को लचीला,स्वस्थ एवं सक्रिय बनाए रखने में सहायता देती है।

6-मांडूकी मुद्रा में सावधानियां

आज हम चर्चा कर रहे है मांडूकी मुद्रा की विधि,लाभ और सावधानियों ,Manduki Mudra Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan की,

1.वज्रासन अथवा भद्रासन में से किसी भी आसन में बैठने में असुविधा हो तो अपनी सुविधानुसार किसी भी एक आसन का चयन कर लेना चाहिए। जिस भी आसन में आप सुविधा का अनुभव करते है।
2.अगर आप आज्ञा चक्र पर ध्यान केन्द्रित न कर नासाग्र पर ध्यान केन्द्रित करते है,इस दौरान आपकी आंखों पर अतिरिक्त दबाव या थकान का अनुभव होता है,तो अपनी आंखों को कुछ समय आराम देने के बाद पुनः अपना अभ्यास करना चाहिए।

3.प्रारम्भ में मांडूकी मुद्रा का अभ्यास 2 से 5 मिनट तक करना चाहिए।
4.आंखों की किसी प्रकार की बिमारी से पीड़ीत होने पर आंखों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
5. किसी प्रकार की सर्जरी हुई हो या पूर्व में हो चुकी हो तो अपने चिकित्सक एवं अपने योग प्रशिक्षक से प्ररामर्श करना चाहिए।
6.जोड़ों की समस्या,कुल्हे घुटने,टखनों में किसी प्रकार की समस्या हो तो अपने चिकित्सक एवं अपने योग प्रशिक्षक से प्ररामर्श करना चाहिए।
7. गर्भावस्था में महिलाओं को मांडूकी मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

7-पूर्व तैयारी

मांडूकी मुद्रा का अभ्यास करने से पहले अगर इन योगाभ्यासों को कर लिया जाये तो मांडुकी मुद्रा का लाभ शीघ्र मिल सकता है।
जैसे श्वांसों देखने (लेने एवं छोड़ने) का तरीका ।
1.भद्रासन
2.वज्रासन
3.मंडूकासन का अभ्यास।

निष्कर्ष

हमें उम्मीद है कि यह लेख आपको मांडुकी मुद्रा के विधि, लाभ और सावधानिंयां की जानकारी देने के लिए उपयोगी होगा एवं इसके अभ्यास को करने के लिए प्रोत्साहित करेगा।
मांडूकी मुद्रा शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक रूप से स्वस्थ शरीर पाने का एक निश्चित उपाय है।

यह लेख योग की सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। चिकित्सीय उद्देश्य से इसका अभ्यास करने से पूर्व अपने चिकित्सक एवं योग प्रशिक्षक से परामर्श आवश्यक रूप से कर लेना चहिए।

 

FAQ

1.वज्रासन अथवा भद्रासन में से किसी भी आसन में बैठने में असुविधा हो तो अपनी सुविधानुसार किसी भी एक आसन का चयन कर लेना चाहिए। जिस भी आसन में आप सुविधा का अनुभव करते है। 2.अगर आप आज्ञा चक्र पर ध्यान केन्द्रित न कर नासाग्र पर ध्यान केन्द्रित करते है,इस दौरान आपकी आंखों पर अतिरिक्त दबाव या थकान का अनुभव होता है,तो अपनी आंखों को कुछ समय आराम देने के बाद पुनः अपना अभ्यास करना चाहिए। 3.प्रारम्भ में मांडूकी मुद्रा का अभ्यास 2 से 5 मिनट तक करना चाहिए। 4.आंखों की किसी प्रकार की बिमारी से पीड़ीत होने पर आंखों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 5. किसी प्रकार की सर्जरी हुई हो या पूर्व में हो चुकी हो तो अपने चिकित्सक एवं अपने योग प्रशिक्षक से प्ररामर्श करना चाहिए। 6.जोड़ों की समस्या,कुल्हे घुटने,टखनों में किसी प्रकार की समस्या हो तो अपने चिकित्सक एवं अपने योग प्रशिक्षक से प्ररामर्श करना चाहिए। 7. गर्भावस्था में महिलाओं को मांडूकी मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
-किसी शान्त एवं मन को सुकून देने वाले स्थान पर योगा मैट या आसन बिछाएँ और वज्रासन या भद्रासन में अपनी सुविधा अनुसार जिस आसन में आप सुखपूर्वक बैठ सकें शान्त भाव के साथ बैठ जाएँ। 2-अपने दोंनों घुटनों के बीच कम से कम एक से डेढ़ फिट या ऐसी दूरी, जिसमें आप असुविधा अनुभव नहीं करें, बनातें हुए खोल कर रखें। आपकी ऐड़ियां खुली हुई एवं नितम्ब जमीन को स्पर्श करते हुए होने चाहिए। 3-अपने नितंबों को ज़मीन से स्पर्श करते हुए अनुभव करें,यह भी अनुभव करें कि आपके मुलाधार चक्र पर हल्का दबाव का अनुभव हो रहा है। 4-मांडूकी मुद्रा में अगर आप असुविधा का अनुभव कर रहे है तो योगा तकिया या ब्लॉक्स का उपयोग करना चाहिए। 5-अपनी आंखों को मुलायमता के साथ बन्द करें और अपना ध्यान अपने आज्ञा चक्र पर केन्द्रित करें। 6-इसी स्थिति में अगर आप अपना ध्यान आज्ञा चक्र के स्थान पर लगाने के बजाय अपने नासिका के अग्र भाग पर लगाना चाहें तो अपनी आंखों को कोमलता के साथ खोलें और बिना किसी प्रकार का दबाव बनाएं,अपनी आंखों को नासिका के अग्र भाग पर केन्द्रित करें। नासिका पर ध्यान के समय अगर आपकी आंखों को असुविधा अनुभव होने लगे तो आंखों को कुछ समय के लिए विश्राम दें और पुनः अभ्यास प्रारम्भ रखें। 7-इस स्थिति में आप गर्दन और मेरूदण्ड को सीधा रखते हुए अपने हाथों को घुटनों पर रखें। आपकी हथेलियां घुटनों पर होनी चाहिए। 8-इतनी प्रक्रिया करने के बाद अपने मुंह को बंद रखते हुए, अपनी जीभ के अग्र भाग को तालु के स्पर्श में रखते हुए 3 से 5 मिनट तक अपने मुहं में घुमाएं। 9- इस अभ्यास के दौरान आपके श्वांसों गति सामान्य होनी चाहिए। 10-इस अभ्यास में आपने अब एक आवृति पूर्ण कर ली है।
मांडूकी मुद्रा का अभ्यास खाली पेट किया जाना चाहिए। सर्वोत्म समय सुबह का होता है, जब हम शौच आदि से निवृत होकर इस मुद्रा का अभ्यास करते है, परन्तु समय का अभाव हो तो भोजन करने के 3 से 4 घण्टे बाद खाली पेट कभी भी किया जा सकता है। प्रारम्भ में मांडूकी मुद्रा का अभ्यास 2 से 5 मिनट तक करना चाहिए,अभ्यास होने के बाद अपने प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में इसके अभ्यास की अवधि को बढ़ाया जा सकता है।
1.इस मुद्रा से प्राप्त होने वालें लाभों के बारे में घेरण्ड संहिता में भी उल्लेख किया गया है कि इसके नियमित अभ्यास से बुढ़ापा देरी से आता है और बालों का सफ़ेद होना रूक जाता है। 2.इस मुद्रा के अभ्यास से हमारे सहस्त्रदल से टपकने वाले अमृत का सेवन कर सकते है। 3. इस के अभ्यास से चेहरे की मांसपेशियाँ मज़बूत होती हैं, जिससे झुर्रियाँ दूर होती हैं और त्वचा चमकदार बनती है। 4. इस मुद्रा के दौरान हमें ध्यान का भी अभ्यास करना होती है। जिससे हमारी मानसिक एकाग्रता बनती जो हमारी मानसिक शान्ति एवं स्थिरता का कारण बनती है। परिणाम स्वरूप हमारी बुद्धिमता का भी विकास होता है। 5. मांडूकी मुद्रा के अभ्यास से हमारी इड़ा,पिंगला आदि नाड़ियां सक्रिय बनती है। हमारी कुण्डलिनी शक्ति को जागृत होने में सहायता मिलती है, इसके जागृत होने पर हमारे ऊर्जा चैनल खुल,सक्रिय हो जाते है। जिससे हमारी आन्तरिक ऊर्जा का विकास होता है। पीनियल ग्रंथि सक्रिय होने में मदद मिलती है। 6. इस मुद्रा के अभ्यास के दौरान हमारे बैठने की स्थिति ऐसी होती है, कि हमारे मूलाधार चक्र पर हल्का दबाव डाला जाता है,परिणाम स्वरूप हमारे मूलाधार चक्र को उत्तेजित होने में सहायता मिलती है,मूलाधार चक्र सक्रिय होता है। जो हमारी कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने में सहायक बनता है। 7.पाचन शक्ति को मजबूत करने में सहायक बनता है । इस मुद्रा में पाचन शक्ति की मजबूती बनने के दो कारण बनते है । पहला तो यह कि जब जीभ को हम अपने मुंह में घुमाते है तो हमारे मुंह में लार बनती है। जो हमारे पाचन के लिए एंजाइम का कार्य करती है। दुसरा कारण इस मुद्रा में हमारे बैठने की स्थिति है। यह तो हमें ज्ञात ही है कि वज्रासन हमारे पाचन के लिए लाभदायक आसन होता है । मांडूकी मुद्रा में भी हम वज्रासन की मुद्रा का अनुसरण करते है। जो कि हमारे पाचन तन्त्र की मजबूती का कारण बनती है। 8.मांडूकी मुद्रा के अभ्यास के दौरान हमारे पैरों के जोड़ों,जंघाओं, पिण्डलियों,टखनों एवं श्रोणी क्षेत्र की मांसपेशियों की अच्छी मालिश हो जाती है। जो इन अंगों को लचीला,स्वस्थ एवं सक्रिय बनाए रखने में सहायता देती है।
1.वज्रासन अथवा भद्रासन में से किसी भी आसन में बैठने में असुविधा हो तो अपनी सुविधानुसार किसी भी एक आसन का चयन कर लेना चाहिए। जिस भी आसन में आप सुविधा का अनुभव करते है। 2.अगर आप आज्ञा चक्र पर ध्यान केन्द्रित न कर नासाग्र पर ध्यान केन्द्रित करते है,इस दौरान आपकी आंखों पर अतिरिक्त दबाव या थकान का अनुभव होता है,तो अपनी आंखों को कुछ समय आराम देने के बाद पुनः अपना अभ्यास करना चाहिए। 3.प्रारम्भ में मांडूकी मुद्रा का अभ्यास 2 से 5 मिनट तक करना चाहिए। 4.आंखों की किसी प्रकार की बिमारी से पीड़ीत होने पर आंखों का प्रयोग नहीं करना चाहिए। 5. किसी प्रकार की सर्जरी हुई हो या पूर्व में हो चुकी हो तो अपने चिकित्सक एवं अपने योग प्रशिक्षक से प्ररामर्श करना चाहिए। 6.जोड़ों की समस्या,कुल्हे घुटने,टखनों में किसी प्रकार की समस्या हो तो अपने चिकित्सक एवं अपने योग प्रशिक्षक से प्ररामर्श करना चाहिए। 7. गर्भावस्था में महिलाओं को मांडूकी मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

 

 

 

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One response to “मांडूकी मुद्रा की विधि,लाभ और सावधानियों ,Manduki Mudra Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan”

  1. Mani Biswakarma Avatar

    It’s so beautiful mudra it’s good for health and mind. Thank you.

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