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महा मुद्राः कैसे करें और लाभ। Maha Mudra:Kaise kare Aur Labh.

महामुद्रा Maha Mudraक्या है?

आज हम बात कर रहे है, महामुद्रा Maha Mudra के बारे में, महामुद्रा Maha Mudraयह एक बहुत ही प्रभावी एवं उन्नत एवं प्राचीन एक योगाभ्यास है। इस महामुद्रा का महत्व घेरण्ड संहिता,गोरक्ष संहिता, हठ योग प्रदीपिका सहीत अन्य कई ग्रन्थों में बताया गया है। जिनमें इस मुद्रा के अकल्पनीय लाभों की जानकारी दी गई है। इसका अभ्यास न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक एवं आध्यात्मिक रूप से मनुष्य को प्रभावित करता है।

इसके अभ्यास में योग,प्राणायाम,बन्ध एवं कुम्भक का भी अभ्यास होता है। जो शरीर के आन्तरिक प्रत्येक अंग को प्रभावित करता है। इस मुद्रा के अभ्यास में मूल बन्ध,उडियान बन्ध एवं जालन्धर बन्ध का उपयोग किया जाता है। जिससे इन बन्धों से होने वाले लाभ भी हमें प्राप्त हो जात है।

Maha Mudra
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परिभाषा-

महामुद्राMaha Mudra के अभ्यास को एक महत्वपूर्ण अभ्यास माना जा सकता है।
जैसे कि इसके नाम से ही स्पष्ट है कि यह ’’महा’’ यानी की बड़ी, महान् मुद्रा एवं ’’मुद्रा’’ का योग के सन्दर्भ में आसन अर्थ बनता है। इस प्रकार यह महामुद्रा कहलाती है। यह एक योग में महत्वपूर्ण योग मुद्रा होने के कारण ही इसका नाम महा मुद्रा रखा गया है। इसका भी कारण है कि इसके अभ्यास से यह शरीर के नाड़ी,मांसपेशियों के साथ साथ मन ,अध्यात्म और हमारी प्राणिक ऊर्जा को भी प्रभावित करती है।
इसके अभ्यास से कुण्डलिनी की ऊर्जा को जागृत कर सकते है। हमारी यौन ऊर्जा को नियन्त्रित कर अपनी ध्यान,साधना एवं अध्यात्मिक शक्ति का विकास कर सकते है।

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महामुद्रा Maha Mudraअभ्यास की विधि-

महामुद्रा Maha Mudra का अभ्यास करने के लिए हमें कुछ चरणों का पालन करना चाहिए।
1.किसी समतल एवं एकान्त शान्त स्थान का चयन कर योगा मेट या चटाई बिछा कर शान्त भाव के साथ दण्डासन में बैठ जायें।
2. अपने मेरूदण्ड को सीधा रखें एवं अपनी दृष्टि को सामने रखें। अपने हाथों को अपने शरीर के साथ जमीन पर रखें।
3.अपने बायें पैर को मोड़ते हुए मूलाधार की और खींचते हुए, मलाश्य के पास लायें और जननांग एवं गुदा के बीच के स्थान पर स्पर्श के साथ स्थापित करें । दांया पैर सामने फैला हुआ ही रखें रहें।

4.अपने सांस को भरें, धीरे धीरे छोड़ते हुए,सामने की ओर झुकते हुए, अपने दोनों हाथों से अपने दांयें पैर के तलवे या अंगुठे को पकड़ने का प्रयास करें।
इस स्थिति में आपके दोनों पैर जमीन का स्पर्श करते रहने चाहिए। ध्यान रखें आपके पैर,घुटनें जमीन से ऊपर नहीं उठने चाहिए।
5. गहरी एवं लम्बी सांस लें और अन्तःकुम्भक लगायें। सबसे पहले मूलबन्ध लगायें फिर जालन्धर बन्ध,और उडियान बन्ध लगायें।

6. इस स्थिति में आप 15 से 20 सेकेण्ड तक रहें। फिर धीरे से सबसे पहले मूलबन्ध फिर जालन्धर बन्ध और उसके बाद उडियान बन्ध को खोल कर सामान्य स्थिति में आ जायें।
7.इस अभ्यास के दौरान आपका ध्यान मूलाधार पर रहना चाहिए। अनुभव करें कि आपके मूलाधार से ऊर्जा जागृत होकर ऊपर की ओर बढ़ रही है।
8.अब यही अभ्यास दांये पैर को मोड़ कर करें।

9. इस स्थिति में आप 15 से 20 सेकेण्ड तक रहें।
10. अभ्यास से बाहर निकलने के लिए, धीरे से सबसे पहले मूलबन्ध फिर जालन्धर बन्ध और उसके बाद उडियान बन्ध को खोल कर, कुछ समय के लिए ध्यान की मुद्रा धारण करें और सामान्य स्थिति में आ जायें।
आपको महा मुद्रा  Maha Mudra का अभ्यास करने के दौरान बैठने में कोई असुविधा हो रही हो हो आप किसी कम्बल या मोटे कपड़े,गद्दी को अपने पैरों,कुल्हों के नीचे लगाकर भी अभ्यास कर सकते है।

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महा मुद्रा Maha Mudra के लाभ –

इस महा मुद्रा Maha Mudra  के अभ्यास से होने वाले लाभ असीमित है, जिनका उल्लेख विभिन्न ग्रन्थों में भी पढ़ने को मिलता है।
1.ग्रहय्माल तंत्र– के अनुसार महामुद्रा  Maha Mudra का नियमित एवं विधिपूर्वक अभ्यास करने से कुण्डलिनी का जागरण ऐसे होता है, जैसे डण्डे की मार से सर्प सीधा खड़ा हो जाता है।
अतः इस मुद्रा का अभ्यास कुण्डलिनी जागरण करने के इच्छुक लोगों को करना अत्यन्त लाभदायका हो सकता है।

2.हठ योग प्रदीपिका ग्रन्थ– महामुद्रा Maha Mudra का सही मार्गदर्शन में अभ्यास करने से व्यक्ति मरण की चिन्ता से ऊपर उठ जाता है। क्योंकि इसके अभ्यास से उसका अज्ञान नष्ट हो जाता है। वह राग,द्वेष के भ्रम को भी भेद लेता है। इस तरह इस मुद्रा को मोक्षदायिनी भी कहने में संकोच नहीं करना चाहिए।

3.गोरक्ष संहिता ग्रन्थ – इस मुद्रा के सिद्ध हो जाने पर टी.बी.,कुष्ट आदि असाध्य रोग एवं पेट के अम्लता,अपच जैसे रोग भी शान्त हो जाते है।
इस प्रकार हम इस महा मुद्रा Maha Mudra का महा महत्व समझ सकते है।

इनके अतिरिक्त अन्य भी लाभ है, जो इस प्रकार है।
1.पाचन तन्त्र के लाभः-इस महामुद्रा Maha Mudra का नियमित अभ्यास करने से यह हमारे पाचन तन्त्र,आन्त,अमाश्य, तिल्ली, यकृत, अग्न्याशय, पित्ताशय आदि को मजबूती देता है ।
कब्ज, गैस, और एसिडिटी जैसी समस्याओं में राहत मिलती है।                                एसिडिटी लक्षण,कारण और बचाव

2.हार्मोन्स स्त्राव में लाभदायकः- महामुद्रा Maha Mudra के अभ्यास के दौरान योग,ध्यान,मुद्रा,प्राणायाम एवं बन्ध का प्रयोग किया जाता है। जिसके प्रभाव से हमारा अंतःस्रावी तंत्र सक्रिय होकर स्राव को सन्तुलित एवं नियंत्रित करता है।

3. कुण्डलिनी जागरण में सहायकः– महामुद्रा Maha Mudra का नियमित अभ्यास करने से मूलाधार चक्र को सक्रिय करने में सहायता मिलती है। मूलाधार चक्र के सक्रिय होने पर उसकी ऊर्जा ऊपर की ओर उठती है। हमारी इड़ा,पिंगला एवं सुषुम्न नाड़ी सक्रिय होने में सहायता मिलती है। जिस कारण आगे से आगे चक्रों की ऊर्जा का प्रवाह बनता है जो कुण्डलिनी जागरण में सहायक हो सकता है।

4. शरीर में लचीलापन बढ़ना :-
महामुद्रा Maha Mudra के अभ्यास के दौरान हमारे पैरों से लेकर पेट,कमर,पीठ, हाथ,कन्धें,गर्दन आदि अंगों को सक्रिय होना पड़ता है जिस कारण हमारे शरीर में लचीलापन बढ़ता है।
5.प्राण ऊर्जा का प्रवाहः-
महामुद्रा Maha Mudra के विधिपूर्वक नियमित रूप से किये गये अभ्यास में हमारे शरीर की समस्त मांशपेशियों की मालिश होती है। जोड़ों में लचीलापन आता है एवं ध्यान के परिणाम स्वरूप हमारी अपान वायु जो कि हमारी प्राण ऊर्जा का ही एक भाग है,सक्रिय होकर हमारी प्राण शक्ति का सक्रिय रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।                                         नाड़ी का शुद्धिकरण कैसे करें? और नाड़ी के प्रकार

6.श्रोणी क्षेत्र पर प्रभावः- महामुद्रा Maha Mudra के नियमित अभ्यास से हमारा श्रोणी क्षेत्र (नाभि के नीचे का क्षेत्र)बहुत प्रभावित होता है।
चुंकि इसके अभ्यास से हमारी नीचे की ओर प्रवाहित होने वाली अपान वायु प्रभावित होती है। यह अपान वायु हमारे जननांगों,मूत्राशय एवं दूषित पदार्थो का विसर्जन करने में अहम भूमिका रखती है।
इसके नियमित अभ्यास से हमारे प्रजनन अंगों को भी स्वस्थता मिलती है जिससे वे अधिक सक्रिय हो जाते हैं, इसलिए यह मासिक धर्म संबंधी समस्याओं में भी लाभदायक होता है।

इसके अभ्यास से हमारी यौन ऊर्जा का सन्तुलन बना रहने में सहायता मिलती है।

7. महामुद्रा Maha Mudra का नियमित अभ्यास हमारे मस्तिष्क में रक्त प्रवाह को सुचारू रख कर उसे स्वस्थ रखता है जिस कारण हमें चिंता और तनाव मुक्ति दिलाकर यह नकारात्मक विचारों शमन कर हमारी स्मरण शक्ति को सम्बल प्रदान करने में सहायक हो सकता है।
8.फेफड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ाता है।
9. मानसिक तनाव को कम करने में सहायता करता है।
10. मोटापा कम करने में सहायता करता है।

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महामुद्रा Maha Mudra अभ्यास में सावधानियां-

यह अभ्यास देखने में आसान लगता है,परन्तु अगर सावधानियां नहीं रखी जाये हानी होने की सम्भावना भी बन जाती है। तो कुछ सावधानियां इस प्रकार है।
1.अन्य योगाभ्यासों की तरह इस महामुद्रा का अभ्यास भी खाली पेट करना चाहिए।
2.इस मुद्रा Maha Mudra का अभ्यास किसी योग्य योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में करना चाहिए।
3.इस मुद्रा के अभ्यास को उच्च रक्तचाप,हृदय रोगीयों को नहीं करना चाहिए।

4.कमर या पीठ़ दर्द होने या इस प्रकार की कोई बीमारी होने पर भी इस मुद्रा Maha Mudra का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
5.गर्भवती महिलाओं को भी इस महामुद्रा Maha Mudra का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
6.पेट सम्बन्धी कोई समस्या जैसे दर्द,ऑपरेशन,सूजन आदि हो तो चिकित्सक के परामर्श के अनुसार ही अभ्यास करना चाहिए।
7.धैर्य का महत्वः- किसी भी कार्य के परिणाम प्राप्त करने के लिए हमें धैर्य रखना होता है। वही सिद्धान्त यहॉ पर भी लागू होता है। उचित और प्रभावी परिणाम प्राप्त करने के लिए उचित मार्गदर्शन,योग्य गुरू एवं धैर्य का चयन एवं संयम रखना चाहिए,तभी सार्थक परिणाम प्राप्त हो सकते है।

निष्कर्ष-
महामुद्रा Maha Mudra देखने में भले ही यह एक सामान्य मुद्रा दिखाई देती हो, परन्तु इसके अभ्यास से प्राप्त होने वाले लाभों की एक लम्बी सूची बन सकती है। इसके Maha Mudra अभ्यास से होने वाले लाभों को सीमित नहीं किया जा सकता। यह Maha Mudra मानसिक,शारीरिकऔर आध्यात्मिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देने वाला अभ्यास है,जिसके नियमित अभ्यास से जीवन में ऊर्जा एवं संतुलन प्राप्त किया जा सकता है।
इस महामुद्रा Maha Mudra के अभ्यास को अलौकिक शक्तियां या सिद्धियों के साथ साथ कुण्डलिनी जागरण एवं मोक्षदायनी मुद्रा Maha Mudra भी माना गया है।

इस पोस्ट का उद्देश्य योग सम्बन्धी जानकारी देना मात्र है। किसी चिकित्सकीय उद्देश्य से इसका अभ्यास करने से पूर्व अपने चिकित्सक एवं योग प्रशिक्षक से आवश्यक रूप से परामर्श करना चाहिए।

FAQ

Maha Mudra

महामुद्रा का अभ्यास करने के लिए हमें कुछ चरणों का पालन करना चाहिए। 1.किसी समतल एवं एकान्त शान्त स्थान का चयन कर योगा मेट या चटाई बिछा कर शान्त भाव के साथ दण्डासन में बैठ जायें। 2. अपने मेरूदण्ड को सीधा रखें एवं अपनी दृष्टि को सामने रखें। अपने हाथों को अपने शरीर के साथ जमीन पर रखें। 3.अपने बायें पैर को मोड़ते हुए मूलाधार की और खींचते हुए, मलाश्य के पास लायें और जननांग एवं गुदा के बीच के स्थान पर स्पर्श के साथ स्थापित करें । दांया पैर सामने फैला हुआ ही रखें रहें। 4.अपने सांस को भरें, धीरे धीरे छोड़ते हुए,सामने की ओर झुकते हुए, अपने दोनों हाथों से अपने दांयें पैर के तलवे या अंगुठे को पकड़ने का प्रयास करें। इस स्थिति में आपके दोनों पैर जमीन का स्पर्श करते रहने चाहिए। ध्यान रखें आपके पैर,घुटनें जमीन से ऊपर नहीं उठने चाहिए। 5. गहरी एवं लम्बी सांस लें और अन्तःकुम्भक लगायें। सबसे पहले मूलबन्ध लगायें फिर जालन्धर बन्ध,और उडियान बन्ध लगायें। 6. इस स्थिति में आप 15 से 20 सेकेण्ड तक रहें। फिर धीरे से सबसे पहले मूलबन्ध फिर जालन्धर बन्ध और उसके बाद उडियान बन्ध को खोल कर सामान्य स्थिति में आ जायें। 7.इस अभ्यास के दौरान आपका ध्यान मूलाधार पर रहना चाहिए। अनुभव करें कि आपके मूलाधार से ऊर्जा जागृत होकर ऊपर की ओर बढ़ रही है। 8.अब यही अभ्यास दांये पैर को मोड़ कर करें। 9. इस स्थिति में आप 15 से 20 सेकेण्ड तक रहें। 10. अभ्यास से बाहर निकलने के लिए, धीरे से सबसे पहले मूलबन्ध फिर जालन्धर बन्ध और उसके बाद उडियान बन्ध को खोल कर, कुछ समय के लिए ध्यान की मुद्रा धारण करें और सामान्य स्थिति में आ जायें। आपको महा मुद्रा का अभ्यास करने के दौरान बैठने में कोई असुविधा हो रही हो हो आप किसी कम्बल या मोटे कपड़े,गद्दी को अपने पैरों,कुल्हों के नीचे लगाकर भी अभ्यास कर सकते है।
इस महा मुद्रा के अभ्यास से होने वाले लाभ असीमित है, जिनका उल्लेख विभिन्न ग्रन्थों में भी पढ़ने को मिलता है। 1.ग्रहय्माल तंत्र- के अनुसार अभ्यास करने से कुण्डलिनी का जागरण होता है। 2.हठ योग प्रदीपिका ग्रन्थ- महामुद्रा का सही मार्गदर्शन में अभ्यास करने से व्यक्ति मरण की चिन्ता से ऊपर उठ जाता है। 3.गोरक्ष संहिता ग्रन्थ – इस मुद्रा के सिद्ध हो जाने पर टी.बी.,कुष्ट आदि असाध्य रोग एवं पेट के अम्लता,अपच जैसे रोग भी शान्त हो जाते है। इनके अतिरिक्त अन्य भी लाभ है, जो इस प्रकार है। 1.पाचन तन्त्र के लाभः- 2.हार्मोन्स स्त्राव में लाभदायकः- 3. कुण्डलिनी जागरण में सहायकः- 4. शरीर में लचीलापन बढ़ना :- 5.प्राण ऊर्जा का प्रवाहः- 6.श्रोणी क्षेत्र पर प्रभावः- इसके अभ्यास से हमारी यौन ऊर्जा का सन्तुलन बना रहने में सहायता मिलती है। 7. चिंता और तनाव मुक्ति दिलाकर यह नकारात्मक विचारों शमन कर हमारी स्मरण शक्ति बढ़ाता है। 8.फेफड़ों की कार्यक्षमता को बढ़ाता है। 9. मानसिक तनाव को कम करने में सहायता करता है। 10. मोटापा कम करने में सहायता करता है।
महामुद्रा अभ्यास में सावधानियां- 1.अन्य योगाभ्यासों की तरह इस महामुद्रा का अभ्यास भी खाली पेट करना चाहिए। 2.इस मुद्रा का अभ्यास किसी योग्य योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में करना चाहिए। 3.इस मुद्रा के अभ्यास को उच्च रक्तचाप,हृदय रोगीयों को नहीं करना चाहिए। 4.कमर या पीठ़ दर्द होने या इस प्रकार की कोई बीमारी होने पर भी इस मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए। 5.गर्भवती महिलाओं को भी इस महामुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए। 6.पेट सम्बन्धी कोई समस्या हो तो इसका अभ्यास नहीं करना चाहिए। 7.धैर्य का महत्व के साथ करना चाहिए।
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