खेचरी मुद्राः विधि,लाभ और सावधानियां। Khechari Mudra: Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan.
आज हम बात कर रहे है खेजरी मुद्रा Khechari Mudra की , आमतौर पर योग को आसनों तक सीमित मान लिया जाता है। परन्तु योग, आसनों तक सीमित नहीं होकर प्राणायाम, योग मुद्रा,हस्त मुद्रा, कुण्डलिनी आदि अनेक विद्यायों में विस्तारित विज्ञान आधारित साहित्य है। आपने योग में विभिन्न मुद्राओं जैसे वायु मुद्रा , सूर्य मुद्रा , ज्ञान मुद्रा आदि अवश्य पढ़ा अथवा सुना होगा । इन्हीं मुद्राओं मेंं से एक खेचरी मुद्रा Khechari Mudra के बारे में आज हम चर्चा करेंगें। खेचरी मुद्रा मुख्यतः तालू और जीभ की साधना है ।
खेचरी मुद्रा Khechari Mudra को योग विज्ञान में विशेष स्थान दिया गया है।
हठ योग प्रदीपिका, घेरंडा संहिता सहीत कई ग्रन्थों में खेचरी मुद्रा के अविश्वसनीय लाभों के बारे में उल्लेख किया गया है।
माना जाता है कि इस मुद्रा के अभ्यासी बिना अन्न एवं जल के जीवित रह सकते हैं।
इस मुद्रा के अभ्यासी के शरीर का भौतिक विकास रूक जाता है। यानी की आयु बढ़ने की शारीरिक प्रक्रिया सामान्यतः रूक जाती है।
इस खेचरी मुद्रा Khechari Mudra के अभ्यासी अमरता को प्राप्त कर लेता है।
इस खेचरी मुद्रा के अभ्यासी रोग शोक से मुक्त हो जाते है।
इस खेचरी मुद्रा Khechari Mudra के अभ्यासी को अलौकिक शक्तियां प्राप्त होती है।

क्रम सं. | विषय |
1 | खेचरी मुद्रा क्या है? |
2 | खेचरी मुद्रा की विधि – |
3 | खेचरी मुद्रा से प्राप्त होने वाले लाभ |
4 | खेचरी मुद्रा के दौरान सावधानियां |
5 | खेचरी मुद्रा के अभ्यास का समय क्या होना चाहिए |
6 | जीभ की लम्बाई कम हो तो कैसे बढ़ाऐं |
7 | खेचरी मुद्रा का घेरण्ड संहिता में महत्व |
1-खेचरी मुद्रा क्या है?
खेचरी मुद्रा Khechari Mudra को मुद्राओं में राजा भी माना जाता है। यह एक बहुत ही उन्नत स्तर की योग मुद्रा है। जिसके अभ्यास से व्यक्ति अविश्वसनीय अलौकिक शक्तियां प्राप्त कर सकता है। रोग शोक एवं जन्म मरण की चिन्ता से मुक्त हो सकता है।
माना जाता है कि हमारे शरीर में भी अमृत स्त्रावित होता है। जो कि हमारे तालू से स्त्रावित होता है। इस अमृत का पान करने के लिए जीभ को इस के स्त्रोत पर लगाने की क्रिया के अभ्यास को खेचरी मुद्रा कहा जाता है ।
माना जाता है कि इस खेचरी मुद्रा Khechari Mudra के अभ्यासी को भुख का अहसास नहीं होता। उम्र बढ़ने की क्रिया रूक जाती है। अमरता को प्राप्त कर लेता है। रोग, शोक से मुक्त हो जाता है।
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2-खेचरी मुद्रा की विधि –
खेचरी मुद्रा Khechari Mudra का अभ्यास करने के लिए अभ्यासी की जीभ लम्बी होनी चाहिए। जीभ लम्बी नहीं होने पर यह तालू का स्पर्श नहीं कर पायेगी, जो की खेचरी मुद्रा Khechari Mudra के अभ्यास के लिए बहुत ही आवश्यक है,अन्यथा इसका अभ्यास किया जाना सम्भव ही नहीं हो सकता है।
जिनकी जीभ लम्बी नहीं हो,इसके लिए भी योग में उपाय बताये गये है उनका अभ्यास अथवा अपने योग प्रशिक्षक से इसके उपाय बाबत जानकारी प्राप्त कर सकते है।
1.योगा मेट या चटाई बिछाकर शान्तभाव के साथ सुखासन में बैठ जायें।
2. अपने हाथों को ज्ञान या चिन मुद्रा में अपने घुटनों पर रखें।
3.आंखें बन्द मन शान्त एवं एकाग्र एवं भावों में शुन्यता रखें।
4.अपनी जीभ को मोड़े और अपने तालू से स्पर्श कराते हुए अधिक से अधिक पीछे गले की तरफ ले जाने का प्रयास करें।
5. सहजता के साथ गहरी और लम्बी सांस लेन का प्रयास करें ।
6. सहजता के साथ अधिक से अधिक समय तक इस स्थिति को बनाऐ रखने का प्रयास करें। आपकी जीभ को आपके गले में ऊपर की ओर लटकते दो तन्तुओं को छुने का प्रयास करें।
हालांकि इन तन्तुओं तक जीभ को पहुंचाना इतना आसान नहीं होता परन्तु उचित मार्गदर्शन एवं अभ्यास के द्वारा जीभ को वांछित स्थान पर पहुंचाया जा सकता है।
इस खेजरी मुद्रा Khechari Mudra अभ्यास के दौरान उज्जयी श्वांस का प्रयोग किया जाना भी सहायक हो सकता है।
7.जब आप असहज महसूस करें सामान्य स्थिति में लौट आयें और सामान्य होने का इन्तजार करें।
8. कुछ समय के उपरान्त इस खेजरी मुद्रा Khechari Mudra प्रक्रिया को पुनः दोहरावें । इस प्रकार के 3 से 5 बार दौहराव करें।
अभ्यास के दौरान लम्बी एवं गहरी सांस जीभ को अधिक से अधिक अन्दर की ओर धकेलने में मददगार होगी ।
9.खेजरी मुद्रा Khechari Mudra अभ्यास द्वारा इसे अधिक से अधिक अन्दर ले जाकर तालू से स्पर्श कराने के अभ्यस्त होने के उपरान्त अपने तालू के तन्तुओं के पीछे दबाव बनाने एवं इस स्थान पर अपना ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करें।
10.इस दबाव से पिट्यूटरी ग्रंथि सक्रिय होने में मदद मिलेगी,जिससे इस ग्रन्थि का हार्मोंस स्त्रावित होने में सहायता मिलेगी। इस स्त्राव का आप अपने मुंह में स्त्रावित होना महसूस करेंगें।
इस स्त्राव के स्वाद के बारे में कहा गया है कि यह स्वाद कोई भौतिक पदार्थ का स्वाद नहीं है जिसे हम मीठे,कड़वे या अन्य कोई स्वाद से तुलना कर वर्णन कर सकें।
यह आध्यात्मिक एवं भावनात्मक अनुभव का रसास्वादन है, जो संवेदनाओं, भावनाओं एवं अनुभूतियों में ही अनुभव किया जा सकता है।
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इस स्त्राव के स्वाद के बारे में घेरण्ड संहिता में कहा गया है-
नवनीतं घृतं क्षीरं दधितक्रमधूनि च ।
द्राक्षा रसं च पीयूषं जायते रसनोदकम् । 3/32
अर्थात
खेचरी मुद्रा में जिह्वा को क्रमशः नवनीत, घृत, दूध, दही, द्राक्षारस, पीयूष, जल जैसे रसों की अनुभूति होती है।
इस स्थिति को प्राप्त होने पर प्राप्त होने वाले असीम अनुभव और आनन्द को खेचरी मुद्रा की लक्ष्य प्राप्ति कह सकते है।
3-खेचरी मुद्रा से प्राप्त होने वाले लाभ-
अगर खेचरी मुद्रा Khechari Mudra का अभ्यास किसी योग्य गुरू के सानिध्य में किया जाये तो इससे असीम अलौकिक लाभ मिलते है।
1.खेचरी मुद्रा का नियमित एवं विधिपूर्वक अभ्यास किया जाये तो इससे हमारी पिट्यूटरी ग्रन्थि सक्रिय होकर हार्मोन्स का सन्तुलित एवं नियमित स्राव करती है। जिससे हमारे शरीर के लगभग प्रत्येक अंगों को सकारात्मक विकास करने का अवसर मिलता है,वे स्वस्थ एवं सक्रिय रहते है।
2. माना जाता है कि हमारे तालू जहॉ पर जीभ का स्पर्श कराने का सुझाव दिया जाता है वहॉ से अमृत का रिसाव होता है। जिसका पान करने से असीम ऊर्जा एवं शक्ति प्राप्त होने पर व्यक्ति रोग,शोक मुक्त होकर लम्बी आयु प्राप्त करता है। इसके पीने से उम्र का बढ़ना एक प्रकार से रूक जाता है।
3.खेचरी मुद्रा का Khechari Mudra नियमित अभ्यास करने से आध्यात्मिक विकास होता है।
4.खेचरी मुद्रा Khechari Mudra का नियमित अभ्यास कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करने में सहायक होता है।
5. माना जाता है योग्य गुरू के मार्गदर्शन में किये गये खेचरी मुद्रा के अभ्यास से भुख, प्यास का अनुभव नहीं होता योगी काफी दिनों तक बिना अन्न,जल के साधना कर सकता है।
6.खेचरी मुद्रा Khechari Mudra का नियमित अभ्यास क्रोध एवं अशान्त मन को नियंत्रित करता है।
7. खेचरी मुद्रा का नियमित अभ्यास मन को शान्त एवं एकाग्र करता है। जिससे ध्यान लगाने में सहायता मिलती है।
8.खेचरी मुद्रा Khechari Mudra के अभ्यास से सकारात्मकता का विकास होता है। आत्मज्ञान एवं आत्मबल की वृद्धि होती है।
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4-खेचरी मुद्रा के दौरान सावधानियां-
खेचरी मुद्रा Khechari Mudra के लाभ है तो इसकी कुछ हानियां भी हो सकती है। अतः इसके अभ्यास में कुछ सावधानियां भी बरतनी चाहिए।
1.अगर किसी को मुहं या जीभ सम्बन्धी कोई समस्या हो तो इसका अभ्यास करने से पूर्व इन समस्याओं का निराकरण करना चाहिए।
2.खेजरी मुद्रा Khechari Mudra के अभ्यास के दौरान जीभ को वांछित स्थान पर स्पर्श करवाने के लिए जीभ पर अधिक दबाव या खिंचाव नहीे देना चाहिए।
3.यह भी माना जाता है कि अगर खेजरी मुद्रा Khechari Mudra अभ्यास के दौरान आपको कड़वे स्राव का अनुभव होने लगे, तो इस अभ्यास को बन्द कर अपने प्रशिक्षक से परामर्श करना चाहिए।
4.खेजरी मुद्रा Khechari Mudra का अभ्यास हमेशा किसी योग्य प्रशिक्षक के सानिध्य में ही करना चाहिए।
5. खेचरी मुद्रा Khechari Mudra का अभ्यास जहॉ तक हो सके बच्चों को नहीं करना चाहिए।
5-खेचरी मुद्रा के अभ्यास का समय क्या होना चाहिए-
जैसे की किसी भी योगाभ्यास के लिए सुबह का समय उचित माना गया है। उसी प्रकार खेचरी मुद्रा Khechari Mudra के अभ्यास के लिए सुबह का समय सबसे सही एवं उचित माना गया है।
क्योंकिं इस समय वातावरण में शुद्धता एवं शान्ति एवं हमारे विचारों में शुन्यता की स्थिति होती है । जिस कारण हमारी एकाग्रता बनी रहती है और हम पूर्ण मनोयोग से इस खेचरी मुद्रा Khechari Mudra का अभ्यास कर सकते है। जिससे हम इसका पूर्ण लाभ प्राप्त कर सकते है।
समय के अभाव में इसे सांय के समय भी किया जा सकता है। परन्तु सुबह का समय सर्वोतम होता है।
खेजरी मुद्रा Khechari Mudra का अभ्यास 15 से 20 मिनट किया जाना चाहिए।
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6-जीभ की लम्बाई कम हो तो कैसे बढ़ाऐं-
आप अब तक यह तो जान चुके है कि खेचरी मुद्रा Khechari Mudra के अभ्यास में जीभ की लम्बाई अत्यन्त महत्व रखती है। अतः जिन साधकों के जीभ की लम्बाई कम हो तो उन्हें कुछ उपाय उचित मार्गदर्शन/देखरेख में अपनाने चाहिए जो इस प्रकार हैः-
1.जीभ पर काली मिर्च,घी,शहद का लेप कर उसकी मालिश या यों कहें उसकों लम्बाई में खिंचना चाहिए। यह क्रिया कष्टदायक नहीं होनी चाहिए।
2. जीभ की लम्बाई बढ़ाने के लिए जीभ के नीचे की पतनी चमड़ी को किसी चिकित्सक से कटवा लेना चाहिए। जैसे कई बार छोटे बच्चों को तुतलाहट की समस्या होने पर चिकित्सक उनके जीभ के नीचे की पतली चमड़ी कटवाने की सलाह देते है।
7-खेचरी मुद्रा का घेरण्ड संहिता में महत्व बताया गया है -
न च मूर्च्छा क्षुधा तृष्णा नैवालस्य प्रजायते ।
न च रोगो जरामृत्युर्देवदेहं प्रपद्यते ।।28
अर्थात
खेचरी मुद्रा के अभ्यासी को मूर्च्छा, क्षुधा, प्यास नहीं सताते, उसे आलस्य, रोग, बढ़ापा और मृत्यु का भय नहीं रहता।
नाग्निनादहय्तेगात्रं न शोषयति मारूतः।
न देहं क्लेदयन्त्यापो दंशयेन्न भुजं्गमः।।29
अर्थात-
खेचरी मुद्रा का अभ्यास करने वाले को आग जला नहीं सकती,वायु उसे सुखा नहीं सकती,न उसे जल भिगो सकता और न ही उसे सर्प काट सकता ।
लावण्यं च भवेद् गात्रे समाधिर्जायते ध्रुवम् ।
कपाल वक्त्रसंयोगे रसना रसमाप्नुयात् ।।30
अर्थात-
खेचरी मुद्रा के अभ्यास से शरीर में सौन्दर्य आता है।समाधि की सिद्धि प्राप्त होती है। कपाल और जीभ के संयोग से अनेक रसों की अनुभूति होती है।
बन्ध।जालन्धरबन्ध।उड्डियानबन्ध।मूलबन्ध।महाबन्ध
निष्कर्षः-
इस प्रकार हमने जाना कि खेचरी मुद्रा Khechari Mudra श्रेयस्कर मुद्रा है। जो तालु और जीभ के स्पर्श से एक अनुभूत अनुभव का रसास्वादन करवाती है। जब जीभ की रगड़ हमारे तालू में स्थित लटकने वाले तन्तुओं (काक) का स्पर्श करती है तो हमारे हार्मोंसों का स्त्राव होने लगता है। जो हमारे शरीर के रसायनिक तत्वों /स्थूल, सूक्ष्म और कारण शरीरों को प्रभावित करता है। इसकी साधना से हमारी कुण्डलिनी को जागृत करने में भी सहायता मिलती है।
इसके अभ्यास से हमें शारीरिक,आध्यात्मिक लाभ के साथ साथ विचारों की शुद्धता एवं सकारात्मकता भी प्राप्त होती है। व्यक्ति रोग एवं शोक मुक्त जीवन जीने की कला सीख सकता है। इस प्रकार के लाभों के लिए हमें खेचरी मुद्रा Khechari Mudra का अभ्यास अपने जीवन में किसी योग्य गुरू के सानिध्य में अपनाना चाहिए।
इस पोस्ट का उद्देश्य योग सम्बन्धी जानकारी देना मात्र है। अगर आप किसी स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या से ग्रस्त है तो इसका अभ्यास करने से पूर्व अपने चिकित्सक के परामर्श से योग्य योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में अभ्यास करना चाहिए।
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