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नाड़ी का शुद्धिकरण कैसे करें? और नाड़ी के प्रकार ,Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.Aur Nadi Ke Parkar.

Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.
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आज हम बात कर रहे है ,नाड़ी का शुद्धिकरण कैसे करें?Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.की ,शिव संहिता के अनुसार हमारे शरीर में 3,50,000 नाड़ियां है । उनमें से 72000 नाड़ियां विशेष होती है। उनमें से भी 14 विशेष नाडियां है। उनमें भी 3 अति विशेष नाड़ियां होती है। कोई भी कार्य हो उसे टीम भावना के साथ सम्पन्न किया जाये, तो वह व्यवस्थित और सही तरीके से सम्पन्न होता है।
उसी प्रकार हमारे शरीर की 3,50,000 नाड़ियों जो कि हमारे शरीर के कोने कोने तक फैली है हमारी संवेदनाओं को 72000 नाड़ियों तक पहुंचाती है ये 72000 नाड़ियां इन संवेदनाओं को 14 नाड़ियों ( अलम्बुषा, कुहू, विश्वोदरा, वारुणी, सरस्वती, सुषुम्ना,ईड़ा, पिंगला, शंखिनी, पयस्विनी, गांधारी, पूषा, यशस्विनी और हस्तजिव्हा )तक और ये 14 नाड़ियां इन संवेदनाओं को हमारी 3 प्रमुख नाड़ियों इड़ा,पिंगला और सुषुम्ना तक पहुंचाती है।
इन सूचनाओं को ये 3 नाड़ियां कुण्डलिनी के मार्ग में आने पर अध्यात्म के रूप में और सामान्य दशा में मन एवं शरीर के विचारों की क्रिया-प्रतिक्रिया के रूप में व्यक्त करती है।

आयुर्वेद में जिन तीन नाड़ियों के दोष उल्लेख किया जाता है। उन नाड़ियों की साधारण जानकारी लगभग प्रत्येक व्यक्ति को होती है,वे नाड़ियां है वात,पित एवं कफ के दोषों उत्पन होनें एवं शान्त होने के कारणों के लिए जानी जाती है। वात (वायु +आकाश), पित्त (अग्नि + जल) और कफ (पृथ्वी + जल)। शरीर में इन तत्वों के असंतुलन होने पर कई विकारों को जन्म देता है। आयुर्वेद के अनुसार वात तत्व के बिगड़ने पर हमारे शरीर में 80 विकार हो सकते हैं, पित्त तत्व के बिगड़ने पर 40 विकार और कफ तत्व के बिगड़ने पर हमारे शरीर में 20 विकार उत्पन हो सकते है।

1-नाड़ियों की परिभाषा                                      Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

सबसे पहले हमें नाड़ी तन्त्र एवं तन्त्रिका तन्त्र में भेद जानना होगा। भारतीय प्राचीन योग विद्या में नाड़ियों का अपना विशिष्ठ महत्व है । योग में अभ्यास द्वारा इन नाड़ियों के सन्तुलन करने पर बल दिया जाता हैं। नाड़ी सन्तुलन द्वारा व्यक्ति शरीर,मन और आत्मा के आपसी सम्बन्ध को आसानी से समझ सकता है। जिससे उसे अपने मन और शरीर को स्वस्थ रखने एवं आत्मा को समझने में आसानी हो सकती है।
हमारे शरीर में कई प्रकार की नाड़ियां होती है,कुछ का भौतिक स्वरूप होता है । जिसे आधुनिक शरीर विज्ञान भी स्वीकार करता है। हम भौतिक रूप से उन्हें देख भी सकते है और अनुभव भी कर सकते है। इन्हें हम तन्त्रिका तन्त्र कहते है।
इसी प्रकार कुछ ऐसी भी नाड़ियां होती है । जिनका भौतिक रूप से कोई अस्तित्व नहीं होता । उन्हें न तो हम भौतिक रूप से अनुभव कर सकते है और नहीं उन्हें देख सकते है। जिन नाड़ियों को हम भौतिक रूप से देख नहीं सकते उनका हमारे आध्यात्मिक जगत में अत्यधिक महत्व होता है,अगर उन्हें नियन्त्रित करने का अभ्यास हो जाता है, तो मानव आध्यात्मिक रूप से परिपूर्ण होने की ओर अग्रसर हो सकता है। इन्हें ही योग विज्ञान या अध्यात्म में नाड़ी कहा गया है।
शिव संहिता के अनुसार हमारे शरीर में 3,50,5000 नाड़ियाँ होती हैंं। इन नाड़ियां का कोई भौतिक स्वरूप नहीं होता है।
जिन नसों में रक्त का प्रवाह होता रहता है और आधुनिक विज्ञान के अनुसार हमारे जीवन का कारण है कि हमारी नसों में ऑक्सीजन एवं पोषण युक्त शुद्ध रक्त का प्रवाह नियमित बना रहे।
परन्तु आध्यात्मिक जगत के अनुसार इन नसों के अलावा अदृश्य नाड़ियों में बहने वाला प्राण तत्व ही जीवन का मूल आधार होता है। योग विज्ञान में इस प्राण तत्व को नियमित एवं शुद्ध रूप से प्रवाहित करने के अनेकों आसन,प्राणायाम एवं अन्य क्रियाएं बताई गई है।
हमारे शरीर की सभी नस एवं नाड़ियों का केन्द्र हमारा नाभि स्थल होता है। इसे हम हमारे शरीर का शरीर का केन्द्र या शक्ति बिंदु भी कह सकते है। यह हमें ज्ञात ही है कि जब बच्चा मॉ के गर्भ में पल रहा होता है ,तो उसका पोषण के लिए उसकी नाभि, नाल के साथ मॉ से जुड़ी होती है। जिससे उसको पोषण मिलता रहता है। जन्म के बाद इस नाल को काट कर मॉ से अलग किया जाता है। नाभि स्थल को कंडस्थान भी कहा जाता है । इन 72,000 नाड़ियाँ में अलम्बुषा, कुहू, विश्वोदरा, वारुणी, सरस्वती, सुषुम्ना,ईड़ा, पिंगला, शंखिनी, पयस्विनी, गांधारी, पूषा, यशस्विनी और हस्तजिव्हा इन 14 नाड़ियों को महत्वपूर्ण माना जाता हैं तथा इनमें से भी इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों को प्रमुख माना गया हैं।

शिव संहिता में 14 नाड़ियों का उल्लेख निम्न प्रकार किया गया है।
सुषुम्नेडा पिंगला च गांधारी हस्तिलिजिहिव्का।
कुहूः सरस्वती पूषा शंखिनी च पयस्विनी।।
वारूण्यलम्बुषा चैव निश्वोदरी यशस्विनी।
एतासु त्रिस्त्रो मुख्याः स्युः पिंगलेडासुषुम्निकाः।।

2-प्रमुख 14 नाड़ियां ।                                                               Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.
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नाड़ियों का उद्गम स्थल नाभि के नीचे माना गया है। कुछ योगियों ने गुदा एवं जननेद्रिय के 12 अंगुल ऊपर एवं नाभि के ठीक नीचे भी माना है। कहीं कहीं इनमें विरोधाभाष भी पढ़ने को मिलता है।
1.अलम्बुषा नाड़ीः- यह नाड़ी मलमार्ग (मूलाधार )से प्रारम्भ होकर मुख से होती हुए सहस्त्रार चक्र तक जाती है। यह नाडी़ जितनी शुद्ध होगी उतनी ही शीध्रता से नीचे के च्रक्रों की ऊर्जा को ऊपर के चक्रों तक पहूंचाने का कार्य करेगी। इसका सम्बन्ध शरीर से दूषित पदार्थों का विसर्जन,शरीर का शुद्धिकरण करना एवं ऊर्जा का प्रवाह बनाए रखना माना गया है।

नौकासन का अभ्यास कैसे करें ?

2-अलम्बुषा नाडी़ का महत्वः–                                                                     Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

यह नाडी़ मूलाधार चक्र से प्रारम्भ होकर हमारे शरीर के समस्त चक्रों को भेदती हुई सहस्त्रार चक्र तक पहुंचती है। जो कि हमारे शारीरिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए महत्वपूर्ण कड़ी बनती है।
इस नाड़ी को साधने से हमारा पाचन तन्त्र,स्वस्थ बनता है। शरीर में पैदा होने वाले दूषित पदार्थ जैसे मल मूत्र आदि का विसर्जन कर शरीर का शुद्धिकरण करने में महत्वपूर्ण योगदान करती है।
इस नाड़ी की साधना करने से यौगिक एवं आध्यात्मिक ऊर्जा और शक्ति का जागरण कर हम अपने शारीरिक मानसिक एवं आध्यात्मिक लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है।

3-अलम्बुषा नाड़ी एवं योग प्राणायामः-                                                     Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

अलम्बुषा नाड़ी को सन्तुलित एवं सक्रिय रखने के लिए इन योग एवं प्राणायामों का अभ्यास लाभदायक होता है।
1.कपालभाति प्राणायाम-
2.अनुलोम-विलोम प्राणायाम-
3. मूलबन्ध का अभ्यास-

2.कुहू नाड़ीः- मूलाधार चक्र से प्रारम्भ होकर बांयी नासिका में से होती हुई सहस्त्रार चक्र तक जाती है। कोई भी नाड़ी हो जब वह किसी चक्र को भेदती हुई ऊपर की ओर उठती है, तो उस चक्र की ऊर्जा को भी ऊपर की ओर उठाती हुई क्रिया करती है। नाड़ी जितनी निर्मल होगी। उतना ही यह हमारे लिए लाभदायक होती है।

1-कुहू नाड़ी का महत्वः–                                                                             Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

कुहू नाड़ी इसका सम्बन्ध हमारी भावनाओं से होना माना गया है। यह हमारे मानसिक एवं भावनात्मक संवेदनाओं को प्रभावित करती है। इसका नियमित अभ्यास करने एवं इस नाड़ी को साध लेने पर व्यक्ति अपने अन्तर्मन की गहराईयों तक को देखने एवं अनुभव करने में सक्षम हो सकता है।
इस नाड़ी को साधने पर जननांगं,मूत्र मार्ग एवं अपान वायु मार्ग में ऊर्जा का संचार बढ़ता है।
यह नाड़ी निर्मल एवं सक्रिय होने पर ऊर्जा का अनुभव करती है एवं ऊर्जा के उपयोग करने बाबत सजग भी करती है,मार्ग दर्शन करती है।

2-कुहू नाड़ी एवं योग प्राणायामः-

इस नाड़ी को सक्रिय करने एवं निर्मल रखने एवं यौन ऊर्जा को आध्यात्मिक ऊर्जा में प्रभावी करने के लिए निम्न योगाभ्यास एवं प्राणायाम उपयोगी हो सकते है।
1. सूर्य नमस्कार।
2. सिद्धासन।
3. अनुलोम विलोम प्रणायाम।

3.विश्वोदरा नाड़ीः- मूलाधार से शुरू होकर मणिपुरम चक्र में से होती हुए सहस्त्रार चक्र तक जाती है। पाचन तंत्र, आत्म विश्वास, रचनात्मकता, शारीरिक स्वास्थ्य एवं आध्यात्मिकता के लिए सकारात्कता ऊर्जा का शरीर में संचार करवाने वाली नाड़ी के रूप में जानी जाती है।

1-विश्वोदरा नाड़ी का महत्वः-                                                               Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

इस नाड़ी को साधने से व्यक्ति अपनी रचनात्मकता को तीक्ष्ण कर सकता है,उसमें सक्रिय,पारंगत हो सकता है। मानसिक एवं आध्यात्मिकता का विकास कर सकता है। अन्तर्ज्ञान प्राप्त कर सकता है। आध्यात्मिक साधना गहराईयों को परखने में सक्षम हो सकता है।

2-विश्वोदरा नाड़ी और योग प्राणायामः-

इस नाड़ी को सक्रिय रखने एवं साधना का अभ्यास करने के लिए निम्न योग, प्राणायामों को अभ्यास किया जा सकता है।
1. ताड़ासन
2. अनुलोम विलोम प्रणायाम।
3. भ्रामरी प्राणायाम

 

4.वारूणी नाड़ी :- वारूणी नाड़ी मूलाधार से शुरू होकर अनाहत चक्र में से होती हुई सहस्त्रार चक्र पर समाप्त होती है । यह नाड़ी मुख्यतः हमारे पेट में फैली हुई मानी जाती है। यह नाड़ी श्वसन तंत्र एवं उदान वायु को प्रभावित करती है, ऐसा माना जाता है।

1-वारूणी नाड़ी का महत्व –                                                                   Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

 

इस नाड़ी का सम्बन्ध हमारे अनाहत चक्र से होता है। अतः इसे हमारे पेट में फैला हुआ माना गया है। इस नाड़ी का तत्व जल माना जाता है। जो कि हमारे शरीर में जल तत्व एवं पाचन तन्त्र के सन्तुलन बनाएं रखने में महत्वपूर्ण कार्य करने में सहयोगी बनती है। जल तत्व के कारण हमारी भावनाएं,शारीरिक ऊर्जा एवं मानसिक स्थिति काफी प्रभावित होने की सम्भावना बनती है। अतः इसका सन्तुलन बनाए रखना आवश्यक होता है।

2-वारूणी नाड़ी एवं योग प्राणायामः-

इस नाड़ी को सक्रिय,निर्मल एवं सन्तुलित रखने के लिए निम्न योग प्राणायामों का अभ्यास करना चाहिए।
1. भुजंगासन।
2. पवनमुक्तासन।
3.सिद्धासन।
4.अनुलोम विलोम प्राणायाम।

5.सरस्वती नाड़ी :- मूलाधार चक्र से शुरू होकर विशुद्धि चक्र एवं सहस्त्रार चक्र तक पहुंचती है। यह नाड़ी विशुद्धि चक्र से सम्बन्ध रखती है। अतः श्वसन तन्त्र,जीभ, मुंह और गले को ऊर्जा एवं समर्थता प्रदान करती है।

1-सरस्वती नाड़ी का महत्व-                                          Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

 

जैसे की इस नाड़ी के नाम से ही ज्ञात होता है कि यह ज्ञान,बुद्धि,वाणी,मानसिक स्पष्टता,आध्यात्मिकता को प्रोत्साहित करने वाली नाड़ी है।
इस नाड़ी की साधना करने वाले व्यक्ति मानसिक एवं भावनात्मक रूप स्पष्ट एवं मजबूत होते है। ज्ञान के स्तर को सर्वोच्च स्तर तक ले जाने में सक्षम हो सकते है।

2-सरस्वती नाड़ी और योग प्राणायामः-

ज्ञान, बुद्धि एवं मानसिक स्थिति को प्रभावित करने वाली इस नाड़ी को सक्रिय करने एवं साधने के लिए निम्न योगा एवं प्राणायामों का अभ्यास करना चाहिए।
1.उप विष्ट कोकासन।
2.सुर्य नमस्कार।
3.अनुलोम विलोम।
4.ध्यान मुद्रा का अभ्यास ।

6.सुषुम्ना नाड़ी :- यह नाड़ी शरीर की 3,50,000 नाड़ियों में से प्रमुख तीन नाड़ियों में से एक प्रमुख नाड़ी है। यह नाड़ी मूलाधार चक्र से शुरू होकर कुण्डलिनी के सभी चक्रों को भेदती हुई सहस्त्रार चक्र में विलीन हो जाती है।
इस नाड़ी को प्राण ऊर्जा की मुख्य प्रवाह नाड़ी माना जाता है। यह नाड़ी मेरूदण्ड के साथ साथ ऊपर की ओर बढ़ती है।

1-सुषुम्ना नाड़ी का महत्व :–                      Nadi Ka Sudhikaran Kaise Karen.

 

इस नाड़ी को शुद्ध नाड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस नाड़ी के माध्यम से जीवन ऊर्जा का प्रवाह शरीर में बढ़ता है। जिसके बढ़ने पर व्यक्ति आध्यात्मिक,मानसिक एवं आत्म ज्ञान के क्षेत्र में अग्रसर होना पाता है। यह ऊर्जा व्यक्ति को आध्यात्म में उच्चतम स्तर तक पहुंचाने में सहायक मानी जाती है।
यह नाड़ी, इड़ा नाड़ी एवं पिंगला नाड़ी के मध्य सन्तुलन बनाने का कार्य करती है। इन नाड़ियों के सन्तुलित होने पर ही इस नाड़ी के सक्रिय होने की परिस्थितियों का निर्माण होता है।
कुण्डलिनी जागरण में यह नाड़ी विशेष महत्वपूर्ण योगदान करती है।

2-सुषुम्ना नाड़ी और योग प्राणायाम-

इस नाड़ी को सक्रिय,सक्षम एवं साधना योग्य बनाए रखने के लिए निम्न योग, प्राणायामों का अभ्यास किया जाना चाहिए।
1.ध्यान मुद्रा।
2. अनुलोम विलोम प्राणायाम।
3.भा्रमरी प्राणायाम।

7.ईड़ा नाड़ी :- मूलाधार चक्र से दांये तरफ से प्रारम्भ होकर ऊपर उठते हुए मेरूदण्ड के बांये तरफ से साथ साथ ऊपर की ओर उठ कर यह बांयी नासिका से होते हुए सहस्त्रार चक्र तक जाती है। इस नाड़ी को चन्द्र नाड़ी भी कहा जाता है। इस नाड़ी की प्रकृति शीतल होती है। यह नाड़ी शरीर में शीतलता,शान्ति एवं चन्द्रमा की ऊर्जा का प्रभाव लाती है।

1-इड़ा नाड़ी का महत्व-                                                                                        Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

 

यह नाड़ी शरीर की 3,50,000 नाड़ीयों में से प्रमुख तीन नाड़ीयों में से एक प्रमुख नाड़ी है। यह नाड़ी मूलाधार चक्र से शुरू होकर कुण्डलिनी के सभी चक्रों को भेदती हुई बांयी नासिका से हाते हुए सहस्त्रार चक्र में विलीन हो जाती है।
यह नाड़ी हमारे शरीर में शीतलता,शान्ति,ठण्डक एवं चन्द्रमा की ऊर्जा से प्रभावित करती है। जिससे मानसिक शान्ति, हमारी रचनात्मकता,और भावनात्मक स्थितियों को प्रभावित करती है।

2-ईड़ा नाड़ी और योग, प्राणायाम-

ईड़ा नाड़ी हमारे शरीर में शान्ति एवं भावनात्मकता को प्रभावित करती है। इस नाड़ी को जागृत रखने के लिए निम्न योगा एवं प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। जिनका अभ्यास इस नाड़ी का सन्तुलन बनाये जाने में सहायक हो सकते है।
1.चन्द्र नमस्कार
2.शवासन।
3.चन्द्रभेदी प्राणायाम।
4.अनुलोम विलोम प्राणायाम।

8.पिंगला नाड़ी :- यह नाड़ी शरीर की 3,50,000 नाड़ियों में से प्रमुख तीन नाड़ियों में से एक प्रमुख नाड़ी है। यह नाड़ी मूलाधार चक्र से ऊपर उठते हुए मेरूदण्ड के दांये भाग के साथ साथ दांये नासिका से होते हुए सहस्त्रार चक्र में जाकर विलीन हो जाती है। इस नाड़ी को सूर्य नाड़ी भी कहा जाता है।
यह नाड़ी सूर्य की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करती है। शरीर को सक्रिय रखती है।

1-पिंगला नाड़ी का महत्व-      Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

 

पिगंला नाड़ी का अभ्यास एवं साधना करने पर साधक अपने शरीर की ऊर्जा,सक्रियता, कार्य क्षमता, मानसिक साधना,शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ्य और आत्म विश्वास आदि का विकास एवं उसे नियन्त्रित करने में सफल हो सकता है।

2-पिंगला नाड़ी और योग, प्राणायाम-

निम्नाकिंत योग एवं प्राणायाम का नियमित एवं विधिपूर्वक अभ्यास कर हम अपनी पिंगला नाड़ी को सन्तुलित,सक्रिय एवं जागृत कर सकते है।
1.ताड़ासन।
2.उष्ट्रासन।
3.सूर्यभेदी प्राणायाम।
4.अनुलोम विलोम प्राणायाम।

9.शंखिनी नाड़ी :- इस नाड़ी का उद्गम सहस्त्रार चक्र माना जाता है । यह सहस्त्रार चक्र से शुरू होकर बायें कान से होते हुए मूलाधार चक्र में विलीन हो जाती है। इस नाड़ी को दो अन्य नाड़ियों गांधारी एवं सरस्वती के बीच में स्थित माना जाता है।

1-शंखिनी नाड़ी का महत्व –                                                                 Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

 

यह नाड़ी प्राण के प्रवाह से सम्बन्धित होती हैं। यह आत्मा और आध्यात्मिकता की ऊर्जा का प्रवाह बनाए रखने में सहायक होती है। इस नाड़ी को साधने पर साधक आध्यात्मिकता एवं शारीरिक ऊर्जा, मानसिक एवं भावनात्मक सन्तुलन बनाएं रखने में निपुण हो सकता है। व्यक्ति अपने अन्दर की आध्यात्मिक गहराईयों तक पहुंच बनाने में सफल होता है।

2-शंखिनी नाड़ी और योग प्राणायाम-

कोई भी साधक इन योग प्राणायामों का नियमित एवं विधिपूर्वक अभ्यास कर इस नाड़ी को सक्रिय एवं ऊर्जावान बना सकता है। जिससे वह आध्यात्म की सर्वोच्च स्तर तक पहुंच बनाने में समर्थ हो सकता है।
1.सिद्ध मुद्रा।
2.ध्यान मुद्रा।
3.अनुलोम विलोम प्राणायाम।
4.भ्रामरी प्राणायाम।
5.अश्विनी मुद्रा का अभ्यास।

10.पयस्विनी नाड़ी :-                                                              Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

पयस्विनी नाड़ी सहस्त्रार चक्र से प्रारम्भ होकर  चलती हुई दांयें कान से होते हुए मूलाधार चक्र विलीन हो जाती है। इस नाड़ी का मार्ग शरीर में दाहिनें ओर पूषा एवं सरस्वती नाड़ी के बीच माना जाता है। पयस्विनी नाड़ी को पिंगला नाड़ी की पूरक नाड़ी माना जाता है। इस नाड़ी का फैलाव पेट में होने के कारण यह पेट के क्षेत्र को प्रभावित करती है।

1-पयस्विनी नाड़ी का महत्व-                                                Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

इस नाड़ी को पिंगला नाड़ी की पूरक नाड़ी माना जाता है। यह नाड़ी प्राण ऊर्जा के प्रवाह एवं मानव संवेदनाओं से सम्बन्धित मानी जाती है।
यह नाड़ी पाचन तंत्र एवं शरीर हार्मोंस के स्त्राव एवं तरल तत्वों को नियंत्रित करने का कार्य करती है।
यह नाड़ी शारीरिक,मानसिक स्वास्थ्य के लिए एवं साधना करने वाले व्यक्तियों के लिए अत्यन्त लाभदायक मानी जाती है।

2-पयस्विनी नाड़ी और योग प्राणायाम –

पयस्विनी नाड़ी को सक्रिय,जागृत और सन्तुलित रखने के लिए कई योग और प्राणायाम काफी सहायक सिद्ध हो सकते हैं यदि इनका नियमित एवं विधि पूर्वक अभ्यास किया जाये।
1.भुजंगासन।
2.त्रिकोणासन।
3.वज्रासन।
4.अनुलोम विलोम।

11.गांधारी नाड़ी- इस नाड़ी का प्रारम्भ सहस्त्रार चक्र से माना गया है। यह नाड़ी सहस्त्रार चक्र से बांयी आंख और हृद्य को प्रभावित करती हुई बांये पैर के अंगुठे तक प्रवाहित होती है।
यह नाड़ी हमारे बांये नेत्र एवं हृदय को अत्यन्त प्रभावित करती है। जिससे हमारी नेत्र ज्योति एवं प्राण ऊर्जा काफी प्रभावित रहती है।

1-गांधारी नाड़ी का महत्व-                                        Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

गांधारी नाड़ी सन्तुलित रहने पर यह हमारे बांयी नेत्र ज्योति, हमारे हृदय से लेकर पैर के बांये अंगुठे तक प्राण ऊर्जा का सन्तुलन बनाए रखती है। यह नाड़ी सन्तुलित रहने पर भावनात्मकता एवं मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत बनाती है।

2-गांधारी नाड़ी और योग प्राणायाम –

इस नाड़ी को सन्तुलित रखने के लिए निम्न योग एवं प्राणायामों का नियमित अभ्यास किसी योग्य मार्गदर्शक के सानिघ्य में करना चाहिए।
1. आंखों के सूक्ष्म व्यायाम।
2. अनुलोम विलोम प्राणायाम।
3.त्राटक का अभ्यास।

12-पूषा नाड़ी –                                                                               Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

यह नाड़ी बांये पैर के अंगुठे से प्रारम्भ होकर पेट में विस्तारित होते हुए दांये कान तक जाती है।यह शरीर को पोषण का कार्य करती है।

1-पूसा नाड़ी का महत्व-

यह नाड़ी बांये पैर के अंगुठे से प्रारम्भ होकर सम्पूर्ण शरीर की ऊर्जा को प्रभावित करती हुई, दांये कान तक जाती है। इस प्रकार यह हमारे हमारे शारीरिक पोषण,पाचन, प्राण ऊर्जा,शारीरिक स्वास्थ्य का सन्तुलन बनाते हुए हमारे सम्पूर्ण तंत्र को स्वस्थ एवं निरोगी रखने का महत्वपूर्ण दायित्व निभाती है।

2-पूषा नाड़ी एवं योग प्राणायाम-                                            Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

पूषा नाड़ी को सन्तुलित एवं क्रियाशील बनाए रखने के लिए हम निम्न योगाभ्यासों एवं प्राणायाम की सहायता ले सकते है।
1.वज्रासन का अभ्यास।
2.भुजंगासन का अभ्यास।
3.पवनमुक्तासन का अभ्यास।
4.अनुलोम विलोम प्राणायाम का अभ्यास।

13.यशस्विनी नाड़ी – यह नाड़ी दाहिनें पैर के अंगूठे से प्रारम्भ होकर मणीपुरम चक्र से होते हुए बांए कान पर जाकर विलीन हो जाती है।
इस नाड़ी के सन्तुलन से व्यक्ति को जीवन में सफलता और शक्ति प्राप्त होती है।

1-यशस्विनी नाड़ी का महत्व –                                    Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

इस नाड़ी के सन्तुलित होने पर व्यक्ति व्यक्ति में प्राण ऊर्जा का प्रवाह नियन्त्रित होता है। जिससे व्यक्ति की शक्ति,आत्म बल,शारीरिक, मानसिक एवं भावनात्मक ऊर्जा का विकास एवं अपने लक्ष्यों के प्राप्ति के प्रति समर्पित होने की भावना जागृत होती है ।

2-यशस्विनी नाड़ी एवं योग प्राणायाम –

इस नाड़ी को सक्रिय एवं सन्तुलित बनाएं रखने के लिए निम्नाकिंत योग प्राणायामों का अभ्यास किया जाना हितकर होता है।
1. ताड़ासन का अभ्यास।
2. सूर्य नमस्कार का अभ्यास।
3. अनुलोम विलोम का प्राणायाम।
4. भ्रामरी प्राणायाम।

14.हस्तजिव्हा नाड़ी –                                                               Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.
यह नाड़ी दांयी आंख से शुरू होकर बांये पैर के अंगुठे पर समाप्त हो जाती है। यह हमारी जीभ, हाथ,मणिपुरम चक्र एवं पैरों को प्रभावित करती है।

1-हस्तजिव्हा नाड़ी का महत्व –

इस नाड़ी के सन्तुलित बने रहने पर यह दांयी आंख की ज्योति, जीभ,स्वाद,वाणी,भाषण, एवं हमारे हाथ, मणिपुरम चक्र की ऊर्जा एवं पैरों की शक्ति को सकारात्मक रूप से प्रभावित करती है। इस प्रकार यह नाड़ी हमारे शरीर के काफी भाग की प्राण ऊर्जा को प्रभावित करती है।

2-हस्तजिव्हा नाड़ी एवं योग प्राणायाम –                                                           Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

जब हमारी नाड़ियां शुद्ध एवं निर्विकार होंगी, तो यह हमारे शरीर में प्राण ऊर्जा का निर्बाध प्रवाह करने एवं प्राण ऊर्जा को सन्तुलित बनाएं,रखने में सक्षम हो सकेगी। अतः हम नियमित एवं विधिपूर्वक योग,प्राणायामों का अभ्यास कर अपनी नाड़ियों को सक्रिय एवं सन्तुलित रख सकते है। जैसे-

1. त्राटक साधना का अभ्यास।
2. ज्ञान मुद्रा का अभ्यास।
3. सिंहासन योगाभ्यास।
4. अनुलोम विलोम प्राणायाम।

3-नाड़ियों के कार्य :-                                      Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

हमारे शरीर में मौजूद नस और नाड़ियों के अलग अलग कार्य होते है। नस और नाड़ियों को एक नहीं समझना चाहिए।
जहॉ नसों को हम शिराएं या धमनियां भी कहते है और इनका कार्य ऑक्सीजन एवं पोषक तत्वों से पोषित रक्त का प्रवाह हमारे शरीर के विभन्न हिस्सों में बनाए रखना होता है।
नाड़ियां इनका हमारे शरीर में भौतिक रूप से कोई अतित्व नहीं होता और विज्ञान इन नाड़ियों को स्वीकार भी नहीं करता है। योग विज्ञान के अनुसार हमारे शरीर में 3,50,000 नाड़ियां होती है। 14 नाड़ियों की चर्चा आज हम यहॉ पर कर रहे है। इन नाड़ियों के माध्यम से ही हमारे शरीर में प्राण ऊर्जा का संचरण होता है। इन्द्रियों,मन एवं कुण्डलिनी के मध्य सूचनाओं का आदान प्रदान करना एवं क्रिया प्रतिक्रिया आदि कार्य नाड़ियों के द्वारा ही किये जाते है।
इन नाड़ियों की साधना द्वारा व्यक्ति अपने जीवन में समृ़द्ध ला सकता है।

1.प्राण ऊर्जा का संचार :- अध्यात्म एवं योग शास्त्र के अनुसार हमारी प्राण शक्ति का हमारे शरीर में प्रवाह एवं संचालन ये अदृश्य नाड़ियां ही करती है।
इसका प्रत्यक्ष अनुभव करने के लिए हमें प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए। जिसका अनुभव हमें कुछ ही दिनों में प्रत्यक्ष रूप से होने लगता है। हमारा शरीर हमें ऊर्जावान महसूस होने लगता है।
2. शारीरिक और मानसिक संतुलन :-ध्यान साधना करने वाले व्यक्तियों को इन नाड़ियों को सन्तुलित करने का अभ्यास होने के कारण वे तुरन्त ही अपनी इन नाड़ियों का शुद्धिकरण कर अपना लक्ष्य सुगमता से प्राप्त कर लेने की क्षमता का विकास कर शारीरिक एवं मानसिक शान्ति एवं सन्तुलन प्राप्त करते है।
3.कुण्डलिनी जागरण में सहायकः- अभ्यासी साधक अपनी साधना शक्ति द्वारा अपनी नाड़ियों का शु़द्धिकरण कर लेते है। जिससे कुडलिनी के चक्रों का जागरण करने में सहायता मिलती है। नाड़ियों का शुद्धिकरण होने से उन पर जमा आवरण उतर जाता है। और वे निर्मल होकर ऊर्जा को ऊपर की ओर उठा कर कुण्डलिनी जागरण में सहायक होती है।
4.शरीर को स्वस्थ रखने में सहयोगी :- जब हमारी नाड़ियां निर्मल,शुद्ध और सन्तुलित बनी होगी, तो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता,के साथ साथ हम मानसिक रूप से स्वस्थ होगें । हम तनाव मुक्त,चिन्ता मुक्त एवं भावनात्मक रूप से मजबूत होंगें।
5. आध्यात्मिक रूप से मजबूतीः- जब हमें नाड़ियों के शुद्धिकरण का ज्ञान होगा,उन्हें साधने की विधि ज्ञात होगी, तो हम मानसिक रूप से स्वस्थ बने रहेगें। हमें अध्यात्म में जाने का अनुभव हो सकेगा।

4-नाड़ी शुद्धिकरण की आवश्यकता-                      Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.       

अगर हमारी नाड़ियों पर किसी प्रकार के बोझ का आवरण पड़ा रहेगा , तो वे अपने दायित्व का सही रूप से निर्वहन नहीं कर सकेंगी। अतः आवश्यक हो जाता है कि इनके उपर जमा किसी प्रकार का मानव जनित बोझ राग,द्वेष,मद, लोभ आदि के आवरण को हटा दिया जायें। यह बोझ हटाने पर हमारी नाड़ियों का शुद्धिकरण हो जाता है। जिस कारण हमारी कुण्डलिनी शक्ति का जागरण होने लगता है।
जैसे हमें बिमार होने से बचने या सुन्दर दिखने के लिए हमारे भौतिक शरीर की साफ सफाई आवश्यक होती है। इसके लिए हम तेल,साबुन,पानी आदि अन्य उपायों द्वारा अपने शरीर को साफ रखते है।
उसी प्रकार आध्यात्मिक रूप से सक्षम होने के लिए हमारे आन्तरिक शरीर की सफाई होनी आवश्यक होती है। जिसका तरीका भिन्न एवं थोड़ा अलग होता है। आन्तरिक सफाई का तरीका भी आन्तरिक ही होता है। इसमें हम अपने आत्म संयम एवं आत्म नियन्त्रण,योग,प्राणायामों के अभ्यास द्वारा अपनी आन्तरिक सफाई कर सकते है। इस सफाई का हमारे सूक्ष्म शरीर एवं नाड़ी तन्त्र पर बहुत ही सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इस प्रकार हम अपनी नाड़ियों का शुद्धिकरण कर अपने शरीर, मन और आत्मा का सम्पर्क बनाने में सहायता कर सकते है।

5-योग में नाड़ियों का शुद्धिकरण कैसे।                          Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

आज हम बात कर रहे है ,नाड़ी का शुद्धिकरण कैसे करें?Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.की ,शुद्धिकरण या सफाई चाहे व्यवाहारिक (भौतिक) जीवन हो या आध्यात्मिक जीवन हर जगह सफाई की अति आवश्यकता होती है। भौतिक जीवन में तो हम अपने घर,ऑफिस को झाड़ू,पानी से साफ कर लेते है। परन्तु जब उन नाड़ियों की सफाई की बात आती है। जिन्हें हम देख भी नहीं सकते, तो बहुत की असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है। इसके लिए हमें किसी गुरू की आवश्यकता महसूस होने लगती है।
इन नाड़ियों की सफाई किसी योग्य गुरू के मार्गदर्शन में ही करनी चाहिए,ताकि सफाई सही तरीके से हो सके एवं उस सफाई का हमें पूर्ण लाभ प्राप्त हो।
इस सफाई के लिए हमारे योग साहित्य में अनेकों रास्ते बताए गये है। सही रास्ता हमेशा गुरू ही बताते है। अतः गुरू की महिमा को नहीं भुलना चाहिए। नाड़ियों की सफाई के लिए कुछ सुझाव नीचे दिये जा रहे है। इनका अभ्यास करके भी हम अपनी नाड़ियों की सफाई कर सकते है।
1. चंद्रभेदी एवं सूर्यभेदी प्राणायाम
चन्द्रभेदी प्राणायाम, यह प्राणायाम इड़ा नाड़ी (चन्द्र नाड़ी) से सम्बन्धित होता है। इसका नियमित अभ्यास करने से यह शरीर को शीतलता प्रदान करता है।
सूर्यभेदी प्राणायाम,यह प्राणायाम पिंगला नाड़ी से सम्बन्धित है,इसका नियमित अभ्यास करने से यह प्राणायाम शरीर में ऊर्जा (ऊष्णता)का प्रवाह बढ़ाता है, इन दोनों प्राणायामों का नियमित अभ्यास करने से नाड़ियों का संतुलन बना रहता है।
1. अनुलोम-विलोम प्राणायाम                                                      Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.

इस प्राणायाम मे एक नासिका से श्वांस लिया जाता है एवं दूसरी नासिका से श्वांस छोड़ा जाता है। इस प्रकार श्वांस प्रश्वांस का क्रम लगातार बिना रूके किया जाता है। इस प्राणायाम की अवधि अपने प्रशिक्षक के मार्गदर्शन के अनुसार निर्धारित की जानी चाहिए।

2-भस्त्रिका प्राणायाम                                                                                  Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.
3- बन्ध- योग में तीन बन्ध बताये गये है । मूल बन्ध (गुदा द्वार का संकुचन),उड्डियान बन्ध(पेट को मेरूदण्ड की ओर खि्ांचना) एवं जालन्धर बन्ध(अपनी ठोड़ी को कण्ठ कूप से लगाना)। इन बन्धों का योग में अपना महत्व है,योगाभ्यास द्वारा हम इन तीनों बन्धों को लगाना समझ सकतें हैं। इनके द्वारा हम अपनी प्राण ऊर्जा को नियन्त्रित कर, अपने नियन्त्रण में कर सकते है।
4-ध्यान ध्यान लगाने में पारंगत होने पर हम अपने आन्तरिक तन्त्र को गहराई से देखने एवं नियंत्रित करने में सफल हो सकते है। ध्यान लगा कर हम अपने नाड़ी तन्त्र को निर्देशित कर उन्हे सन्तुलित कर सकते है। ऊर्जा के अपव्यय को रोक कर उसका सदुपयोग कर सकते है।
5षट् क्रियाएं :– शरीर एवं पेट की आन्तरिक एवं बाह्य शुद्धि के लिए योग में षट् क्रियाओं का विधान है। जिनका प्रयोग कर हम अपने शरीर की सफाई कर करते है। इन क्रियाओं से शरीर की भौतिक गन्दगी का शरीर से निष्कासन होकर शरीर योग साधना के लिए तैयार हो जाता है।
इससे अगले चरण में नाड़ी शुद्धिकरण की क्रियाएं की जाने में आसानी होती है।
6-आयुर्वेदिक एवं भोजन का उपचारः– इस क्रिया में हम आयुर्वेदिक उपचार अपना सकते है। जिसमें औषधियों का सेवन या फिर तेल आदि की मालिश करना तथा अपने खानपान पर नजर/नियन्त्रण रख कर अपने शरीर को भौतिक रूप से निर्मल बनाना हो सकता है।
7-योगाभ्यास-योगाभ्यास हमारे शरीर में लचीलापन लाता है।जिससे शरीर का अकड़पन या कड़कपन समाप्त होकर साधना में लीन होने मे सहायक होता है।
अतः ऐसे योगाभ्यास करने चाहिए जिनसे शरीर में लचीलापन आने लगे।
योगाभ्यास में ऐसे आसन भी शामिल करने चाहिए,जो हमारे पाचन तन्त्र को स्वस्थ, मजबूत एवं क्रियाशील रखने में मदद करें। ताकि हमारा भोजन आसानी से पच सके एवं उसका पूर्ण पोषण हमें मिलता रहे।
कुछ आसन इस प्रकार है जैसे-
1.ताड़ासन।
2.भुजंगासन।
3.धनुरासन।
4.शवासन।
5सिद्धासन
6. मकरासन आदि आदि

 

निष्कर्षः-
इस प्रकार हम देखते है, कि अगर हम अपने नाड़ी तन्त्र का शुद्धिकरण कर लेते है तो न केवल शारीरिक रूप से स्वस्थ बनते है,अपितु अपनी ऊर्जा का कुण्डलिनी के रूप में उचित और सही उपयोग करने में भी सफल होकर,अपने जीवन को समृद्ध बना सकते है। इस के उपयोग द्वारा हम अपने जीवन के अलौकिक अनुभव को प्राप्त कर सकते है।

इस लेख का उद्देश्य योग सम्बन्धी जानकारी देना मात्र है, किसी को गहन साधना या चिकित्सकीय उपयोग हेतू अभ्यास करना हो तो किसी योग्य योग प्रशिक्षक का मार्गदर्शन लेना चाहिए। योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में ही नाड़ी शुद्धिकरण के अभ्यास करने चाहिए।

FAQ

nadi

शिव संहिता के अनुसार हमारे शरीर में 3,50,000 नाड़ियां होती है। लेकिन मुख्य रूप से 72,000 नाड़ियाँ बताई जाती हैं। इनमें भी 14 नाड़ियां, अलम्बुषा, कुहू, विश्वोदरा, वारुणी, सरस्वती, सुषुम्ना,ईड़ा, पिंगला, शंखिनी, पयस्विनी, गांधारी, पूषा, यशस्विनी और हस्तजिव्हा और अन्त में तीन इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों के मुख्य माना गया है। कुण्डलिनी जागरण के लिए इन्ही तीन नाड़ियों की साधना बताई गई है।
तीन प्रमुख नाड़ियाँ इड़ा , पिंगला और सुषुम्ना हैं। इड़ा मेरूदण्ड के बांयी ओर एवं पिंगला मेरूदण्ड के दांयीं ओर तथा सुषुम्ना मेरूदण्ड के मध्य स्थित होना माना गया है। सुषुम्ना नाड़ी को मुख्य माना गया है।कुण्डलिनी जागरण के लिए इन्ही तीन नाड़ियों की साधना बताई गई है।
इड़ा,पिंगला नाड़ियों को सन्तुलित करने के लिए नाड़ी शोधन की क्रियाएं करनी चाहिए। जैसे अनुलोम विलोम प्राणायाम,भ्रामरी प्राणायाम आदि श्वसन क्रियाएं करनी चाहिए। किसी योग्य योग प्रशिक्षक का मार्गदर्शन भी लेना चाहिए।
पिंगला नाड़ी को ही सूर्य नाड़ी कहा जाता है। क्योंकि यह सूर्य की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करना माना गया है। यह ऊष्ण ऊर्जा की नाड़ी माना जाती है।यह नाड़ी मूलाधार या मूल चक्र से शुरू होती हुई सहस्त्रार चक्र तक जाती है।
इड़ा नाड़ी को बायें नथुने की नाड़ी माना जाता है क्योकि यह मूलाधार से निकल कर बांये नथुने तक आती है। एवं पिंगला नाड़ी को दांयें नथुने की नाड़ी माना जाता है। क्योंकि यह मूलाधार से निकल कर दायें नथुने तक आती है। कुण्डलिनी जागरण के लिए नाड़ी विज्ञान में इन दोनों नाड़ीयों के सन्तुलन को महत्वपूर्ण माना गया है।

 

 

 

 

 

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One response to “Nadi Ka Shudhikaran Kaise Karen.Aur Nadi Ke Parkar”

  1. Raghuvir singh Avatar

    Good

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