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भुजंगासन विधि,लाभ और सावधानियां ।Bhujangasan Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan .

आज हम बात कर रहे है, भुजंगासन विधि,लाभ और सावधानियां ।Bhujangasan Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan . की आज हर व्यक्ति का जीवन स्वचालित मशीन बन चुका है। जैसे सुबह उठाना तैयार होना और अपने कार्य पर जाना । इस व्यस्तता में व्यक्ति को अपने स्वास्थ, अपने पौषण का स्मरण ही नहीं रहता,उसे ज्ञात ही नहीं हो पाता कि उसके स्वास्थ्य में गिरावट कब और किस स्तर तक हो चुकी है। उसके शरीर के आवश्यकतानुरूप पौषण प्राप्त हो भी रहा है या नहीं ।

यह हम सभी जानते है कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए हमारे शरीर को पोष्टिक आहार के साथ साथ शारीरिक व्यायाम की भी आवश्यकता होती है।
आज शहरों को तो छोड़ो गॉवों तक में जिम खुलने लगे है। लोग हजारों रूपयों की सदस्यता लेकर इन जिम में अपने स्वास्थ्य की देख रेख हेतू प्रशिक्षित प्रशिक्षकों के मार्गदर्शन में एक्सरसाईज करने लगें है। डाईटिशियन्स के डाईट चार्ट का पालन करने लगे है।

आज हम बात कर रहे है भुजंगासन विधि,लाभ और सावधानियां ।Bhujangasan Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan .की,भुजंगासन हमारे पाचन तंत्र के साथ साथ हमारे कमर,मेरूदण्ड,सीना एवं फेफड़ों को स्वस्थ एवं मजबूत बनाने में सहायक होता है।
भुजंगासन का अभ्यास हमारे शारीरिक ही नहीं आध्यात्मिक एवं नैतिकता के स्तर को भी संवारता है। साधारण से दिखने वाले इस योगाभ्यास के अनेकों लाभ हमें मिल सकते है यदि हम इसे नियमित एवं अनुशासित तरीके से इसका अभ्यास करते है।Bhujangasan Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan .

                                                                           Photo- Pixabay

 

विषयसूची

क्रम सं. विषय वस्तु
1 भुजंगासन Bhujangasanक्यों कहते है ?
2 भुजंगासन Bhujangasanके अभ्यास की विधि-
3 भुजंगासन Bhujangasanके लाभ-
4 भुजंगासन Bhujangasanमें सावधानियां-
5 निष्कर्ष-

भुजंगासन Bhujangasan क्यों कहते है ?                  Bhujangasan Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan .

भुजंगासन, एक संस्कृत शब्द है जिसमें ’भुजंग’ का अर्थ है ’साँप’ या ’सर्प’, और ’आसन’ का अर्थ योग की दृष्टि से ’मुद्रा होता है। इस प्रकार शाब्दिक रूप से इसका अर्थ हुआ सर्प या सांप, Cobra Pose  योग मुद्रा।
क्योंकि इस योगाभ्यास में अभ्यासी की शारीरिक मुद्रा एक फन उठाए हुए सर्प की भांती हो जाती है। इसलिए भी इस योगाभ्यास को भुजंगासन या सर्पासन कहते है।

भुजंगासन Bhujangasan के अभ्यास की विधि-

आज हम बात कर रहे है, भुजंगासन विधि,लाभ और सावधानियां ।Bhujangasan Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan . की , धेरण्ड संहिता के द्वितीयोपदेश के 37 वें चरण में भुजंगासन का वर्णन इस प्रकार किया गया हैः-

अंगुष्ठनाभिपर्यन्तमधौभूमौविनिन्यसेत्।
करतलाभ्यांधरां धृत्वा उर्ध्वशीर्ष फणीवहि।।
देहाग्निवर्धते नित्यं सर्वरोग विनाशनम्।
जागर्ति भुजगी देवी भुजंगासन साधनात्।। 37।
घेरण्ड संहिता

अर्थात
पैर के अंगुठे से लेकर नाभि तक शरीर जमीन पर रहे,हथेलिया जमीन पर टिका कर सर्प की भॉति सिर को उठाएं तो इसे भुजंगासन कहते है।
इसके अध्यास से रोग दूर होते है पाचन तन्त्र स्वस्थ बनता है।

शीर्षासन : विधि,लाभ और सावधानियां

विधि-
1.भुजंगासन Bhujangasan का योगाभ्यास करने के लिए किसी समतल स्थल, शान्त एवं एकान्त वातावरण में योगा मेट या चटाई बिछाकर शान्तभाव के साथ किसी भी सुखासन मुद्रा में बैठ जायें।
2. कुछ समय उपरान्त पेट के बल इसी स्थान पर लेट जायें।
3.अपने दोनों हाथों को अपने कन्धे के बराबर हथेलियों को नीचे की ओर रखते हुए मुद्रा बनाऐं।
कुछ योग प्रशिक्षक हथेलियों को सीने के नीचे भी रखवाते है। अतः अपने योग प्रशिक्षक के निर्देशानुसार योग का अभ्यास करें ।

4. आपके दोनों पैर सीधे पीछे की ओर सटे हुए,पैरों के तलवे आसमान की ओर तथा पैरों की अंगुलियां बाहर की और तनी हुई स्थिति में होनी चाहिए।
5. आपका मस्तिष्क जमीन को स्पर्श करता हुआ होना चाहिए।
6. श्वांस भरते हुए अपने सिर एवं नाभि तक के शरीर को ऊपर की उठाऐं।
7. अपनी हथेलियों पर जोर रखते हुए नाभि तक के शरीर को तान कर ऊपर की और उठाएं ,इस स्थिति में आपकी दृष्टि सामने की ओर होनी चाहिए।
8.इस स्थिति में 15 से 20 सैकेण्ड रूकें, और श्वांस को छोड़ते हुए धीरे धीरे सामान्य स्थिति में आ जायें।
9. इस Bhujangasan आसन को 3 से 5 बार दोहरावें।

 

मोटापा कैसे कम करें

भुजंगासन Bhujangasan के लाभ-                                        Bhujangasan Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan .

आज हम बात कर रहे है, भुजंगासन विधि,लाभ और सावधानियां ।Bhujangasan Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan . की ,भुजंगासन के अनेकों शारीरिक,मानसिक एवं आध्यात्मिक लाभ है जिनमें से कुछ पर यहॉ चर्चा करेंगे।
1. मेरूदण्ड के लिए लाभदायक-
भुजंगासन Bhujangasan का नियमित अभ्यास हमारे मेरूदण्ड को स्वस्थ एवं मजबूत बनाने में काफी सहायक होता है। क्योकि भुजंगासन Bhujangasan के अभ्यास के दौरान हमारे मेरूदण्ड की काफी मालिश हो जाती है। जिससे मेरूदण्ड स्वस्थ एवं लचीला बनता है।

2. पाचनं तन्त्र के लिए लाभदायक-
भुजंगासन Bhujangasan के अभ्यास के दौरान हमारे पेट एवं पेट के आन्तरिक अंगों में खिंचाव पैदा होता है,जिस कारण हमारे इन अंगों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचता है। वे सक्रिय होकर हमारे शरीर को पुष्ट करते है।
3. पेट एवं कमर के मोटापा को कम करने में सहायक-
भुजंगासन Bhujangasan के अभ्यास से हमारे पेट एवं कमर की अच्छी खासी मालिस हो जाती है। पेट एवं कमर पर खिंचाव पैदा होता है। नियमित एवं विधिपूर्वक किये गये भुजंगासन Bhujangasan  के अभ्यास से हमारे पेट एवं कमर की अतिरिक्त वसा खत्म होकर शरीर को पुष्ट एवं सुडौल बनाने मे सहायक होता है।

4. भुजंगासन Bhujangasan के नियमित अभ्यास से हमारा मेरूदण्ड एवं हमारे हिप्स को सक्रियता मिलती है। यह स्थिति स्लिप डिस्क से पीड़ित लोगो के लिए लाभदायक होती है।
5. कन्धों एवं सीने के लिए लाभदायक-
भुजंगासन Bhujangasan का अभ्यास करने के दौरान हमारे कन्धों एवं सीने पर काफी खिंचाव पैदा होता है जिससे हमारे कन्धे एवं सीना स्वस्थ,मजबूत एवं चौड़े बनतें है।
6. महिलाओं के लिए लाभकारी-
भुजंगासन Bhujangasan का नियमित अभ्यास महिलाओं की शारीरिक समस्याओं के लिए लाभकारी होता है।

7. अन्य लाभ-
1. भुजंगासन Bhujangasan का नियमित अभ्यास करने से रक्त संचार सुचारू बनता है।
2. भुजंगासन Bhujangasan का नियमित अभ्यास करने से तनाव प्रबंधन में सहायता मिलती है।
3. भुजंगासन Bhujangasan का नियमित अभ्यास करना अस्थमा रोगियों के लिए लाभदायक।

भद्रासन योग विधि, लाभ और सावधानी

भुजंगासन Bhujangasan में सावधानियां-                                      Bhujangasan Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan .

आज हम बात कर रहे है, भुजंगासन विधि,लाभ और सावधानियां ।Bhujangasan Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan . की , हालॉकि भुजंगासन का अभ्यास आसन होता है परन्तु फिर भी इसके अभ्यास मे कुछ सावधानियां रखी जानी चाहिए-

1. जिन व्यक्तियों को किसी प्रकार का विशेषकर पेट का ऑपरेशन हुआ हो उन्हें भुजंगासन Bhujangasan के अभ्यास से बचना चाहिए।
2. जिन के पेट में अल्सर हो अथवा हार्निया की समस्या हो उन्हें भी भुजंगासन Bhujangasanका अभ्यास नहीं करना चाहिए।
3. जिन व्यक्तियों को कन्धें,कमर दर्द,मेरूदण्ड की समस्या या गर्दन दर्द की समस्या हो उन्हें भी इस Bhujangasan योगाभ्यास से बचना चाहिए।
4. महिलाओं को भुजंगासन Bhujangasan का अभ्यास करने से पूर्व चिकित्सक अथवा योग प्रशिक्षक से परामर्श अवश्य करना चाहिए। हालॉकि यह योगाभ्यास महिलाओं के लिए लाभप्रद होता है।

प्राण वायु क्या है?लाभ और लक्षण

निष्कर्ष-                                                                                                Bhujangasan Vidhi,Labh Aur Savdhaniyan .

भुजंगासन Bhujangasan या सर्पासन या कोबरा पोज का अभ्यास सम्पूर्ण शरीर के लिए एक पूर्ण योगाभ्यास है। इससे हमारे पैर के पंजों से गर्दन तक शारीरिक लाभ मिलते है एवं मानसिक तनाव को भी दूर करने में सहायक होता है। चर्बी के कारण बेडोल हो चुके शरीर को भी पुष्ट एवं सुडौल करने मे सहायक होता है।
इस प्रकार हम देखते है कि यहBhujangasan  एक सम्पूर्ण शारीरिक व्यायाम है। जिसे हर व्यक्ति को अपने जीवन में अपनाना चाहिए।

इस पोस्ट का उद्देश्य योग सम्बन्धी जानकारी देना मात्र है किसी भी प्रकार से चिकित्सकीय उद्देश्य से भुजंगासन का अभ्यास करने से पूर्व अपने चिकित्स एवं योग विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य करना चाहिए।

FAQ

bhujanghasan

1. मेरूदण्ड के लिए लाभदायक- भुजंगासन का नियमित अभ्यास हमारे मेरूदण्ड को स्वस्थ एवं मजबूत बनाने में काफी सहायक होता है। क्योकि भुजंगासन के अभ्यास के दौरान हमारे मेरूदण्ड की काफी मालिश हो जाती है। जिससे मेरूदण्ड स्वस्थ एवं लचीला बनता है। 2. पाचनं तन्त्र के लिए लाभदायक- भुजंगासन के अभ्यास के दौरान हमारे पेट एवं पेट के आन्तरिक अंगों में खिंचाव पैदा होता है,जिस कारण हमारे इन अंगों को स्वास्थ्य लाभ पहुंचता है। वे सक्रिय होकर हमारे शरीर को पुष्ट करते है। 3. पेट एवं कमर के मोटापा को कम करने में सहायक- भुजंगासन के अभ्यास से हमारे पेट एवं कमर की अच्छी खासी मालिस हो जाती है। पेट एवं कमर पर खिंचाव पैदा होता है। नियमित एवं विधिपूर्वक किये गये भुजंगासन के अभ्यास से हमारे पेट एवं कमर की अतिरिक्त वसा खत्म होकर शरीर को पुष्ट एवं सुडौल बनाने मे सहायक होता है। 4. भुजंगासन के नियमित अभ्यास से हमारा मेरूदण्ड एवं हमारे हिप्स को सक्रियता मिलती है। यह स्थिति स्लिप डिस्क से पीड़ित लोगो के लिए लाभदायक होती है। 5. कन्धों एवं सीने के लिए लाभदायक- भुजंगासन का अभ्यास करने के दौरान हमारे कन्धों एवं सीने पर काफी खिंचाव पैदा होता है जिससे हमारे कन्धे एवं सीना स्वस्थ,मजबूत एवं चौड़े बनतें है। 6. महिलाओं के लिए लाभकारी- भुजंगासन का नियमित अभ्यास महिलाओं की शारीरिक समस्याओं के लिए लाभकारी होता है। 7. अन्य लाभ- 1. भुजंगासन का नियमित अभ्यास करने से रक्त संचार सुचारू बनता है। 2. भुजंगासन का नियमित अभ्यास करने से तनाव प्रबंधन में सहायता मिलती है। 3. भुजंगासन का नियमित अभ्यास करना अस्थमा रोगियों के लिए लाभदायक।
भुजंगासन, एक संस्कृत शब्द है जिसमें ’भुजंग’ का अर्थ है ’साँप’ या ’सर्प’, और ’आसन’ का अर्थ योग की दृष्टि से ’मुद्रा होता है। इस प्रकार शाब्दिक रूप से इसका अर्थ हुआ सर्प या सांप, Cobra Pose योग मुद्रा। क्योंकि इस योगाभ्यास में अभ्यासी की शारीरिक मुद्रा एक फन उठाए हुए सर्प की भांती हो जाती है। इसलिए भी इस योगाभ्यास को भुजंगासन या सर्पासन कहते है।
1. जिन व्यक्तियों को किसी प्रकार का विशेषकर पेट का ऑपरेशन हुआ हो उन्हें भुजंगासन के अभ्यास से बचना चाहिए। 2. जिन के पेट में अल्सर हो अथवा हार्निया की समस्या हो उन्हें भी भुजंगासन का अभ्यास नहीं करना चाहिए। 3. जिन व्यक्तियों को कन्धें,कमर दर्द,मेरूदण्ड की समस्या या गर्दन दर्द की समस्या हो उन्हें भी इस योगाभ्यास से बचना चाहिए। 4. महिलाओं को भुजंगासन का अभ्यास करने से पूर्व चिकित्सक अथवा योग प्रशिक्षक से परामर्श अवश्य करना चाहिए। हालॉकि यह योगाभ्यास महिलाओं के लिए लाभप्रद होता है।
विधि- 1.भुजंगासन का योगाभ्यास करने के लिए किसी समतल स्थल, शान्त एवं एकान्त वातावरण में योगा मेट या चटाई बिछाकर शान्तभाव के साथ किसी भी सुखासन मुद्रा में बैठ जायें। 2. कुछ समय उपरान्त पेट के बल इसी स्थान पर लेट जायें। 3.अपने दोनों हाथों को अपने कन्धे के बराबर हथेलियों को नीचे की ओर रखते हुए मुद्रा बनाऐं। कुछ योग प्रशिक्षक हथेलियों को सीने के नीचे भी रखवाते है। अतः अपने योग प्रशिक्षक के निर्देशानुसार योग का अभ्यास करें । 4. आपके दोनों पैर सीधे पीछे की ओर सटे हुए,पैरों के तलवे आसमान की ओर तथा पैरों की अंगुलियां बाहर की और तनी हुई स्थिति में होनी चाहिए। 5. आपका मस्तिष्क जमीन को स्पर्श करता हुआ होना चाहिए। 6. श्वांस भरते हुए अपने सिर एवं नाभि तक के शरीर को ऊपर की उठाऐं। 7. अपनी हथेलियों पर जोर रखते हुए नाभि तक के शरीर को तान कर ऊपर की और उठाएं ,इस स्थिति में आपकी दृष्टि सामने की ओर होनी चाहिए। 8.इस स्थिति में 15 से 20 सैकेण्ड रूकें, और श्वांस को छोड़ते हुए धीरे धीरे सामान्य स्थिति में आ जायें। 9. इस आसन को 3 से 5 बार दोहरावें।

 

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