ऐसे होगा सांसों पर नियन्त्रण। Ase Hoga Sanson Par Niyantran
Ase Hoga Sanson Par Niyantran ऐसे होगा सांसों पर नियन्त्रण प्राणायाम श्वांस और प्रश्वांस का सम्यक अभ्यास है। ध्यान/समाधी का प्रथम चरण प्राणायाम ही है। प्राणायाम श्वांसों को विधि पूर्वक पूरक,कुम्भक और रेचन करने की क्रिया है। प्राणायाम मन को शुद्ध और निर्विचार करने में सहयोग के अतिरिक्त चित को निर्मल भी करता है। मन के विकारों को जलाने/नष्ट करने का कार्य करता है। प्राणायाम से मानसिक एवं आध्यात्मिक शक्ति मिलती है। जिससे ध्यान और समाधी लगाने में आसानी होती है।
1-प्राणायाम (ऐसे होगा सांसों पर नियन्त्रण। Ase Hoga Sanson Par Niyantran)

प्राणायाम योग का चौथा चरण होता है। योगशास्त्रों के अनुसार श्वांस को पूरक,कुम्भक एवं रेचन की विधिसम्मत क्रिया को ही प्राणायाम कहते है।
नियम है कि श्वांस पूरक करने के समय से चौगुना समय कुम्भक में एवं दोगुना रेचन में लगाना चाहिए। भस्त्रिका प्राणायाम में समय के अनुपात का नियम लागू नहीं होता है।
1.1-शीतली प्राणायाम ।
(ऐसे होगा सांसों पर नियन्त्रण। Ase Hoga Sanson Par Niyantran)
1.2-शीतली प्राणायाम क्या है ?
जिव्हयावायुमाकृष्य उदरे पूरयेच्छनैः।
क्षणं च कुम्भकं कृत्वा नासाभ्यां रेचयेत् पुनः।72।
घेरण्ड संहिता
अर्थात जिव्हा द्वारा वायु को खींचकर पेट को वायु से पूर्ण करदें,फिर कुछ समय तक कुम्भक योग से वायु को धारण कर दोनों नासिका से निकाल देना।
शीतली प्राणायाम एक योग श्वास आधारित तकनीक है जिसमें जीभ को मोड़ कर गोल नली के आकार में बनाते हुए होठों से बाहर निकालना होता है। इस मुड़ी हुई जीभ से सांस लिया जाता है।
1.3-शीतली प्राणायाम की विधिः-
अपनी सुविधानुसार किसी सुखासन में बैठ जाये।
श्वांस को सामान्य स्थिति में आने दें।
अपने हाथों को चिन्मयी,अंजलि या ज्ञान मुद्रा में घुटनों पर रखें।
जीभ को किनारों से मोड़कर नली के आकार में बना कर होठों से कुछ बाहर निकाल लें।
नली के आकार में बनी जीभ से श्वांस के रूप में हवा को भीतर खिंचे , श्वांस को घुंट घुंट कर भरपूर पीये जिसका दबाव आपको नाभि तक महसूस हो और इसको गले से फेफड़ों तक प्रवेश में ठंडक को महसूस करें।
अपनी सामर्थ्य अनुसार अधिक से अधिक समय तक कुम्भक करें।
अब धीरे धीरे दोनों नासिकाओं से (रेचन) प्रश्वांस करें।
यह शीतली प्राणायाम का एक चक्र सम्पन हुआ।
यह एक से लेकर पांच मिनट तक किया जा सकता है।
रोग एवं मौसम के अनुसार प्रशिक्षक के निर्देशों में समय कम या अधिक किया जा सकता है।
1.4-शीतली प्राणायाम सावधानियां-
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जिनको श्वसन संबंधी रोग,फ्लू, कंजेशन, या अधिक बलगम या कम रक्तचाप, वात और कफ, दवा ले रहे हैं या स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं, ठंडा मौसम, तो योग शिक्षक से परामर्श लेना चाहिए।
1.5-शीतली प्राणायाम के लाभः-
प्यास बुझाता है।
कांति,शीतलता को बढ़ाता है।
पित विकार को शान्त करता है।
रक्तचाप को नियन्त्रित करता है।
अनिन्द्रा में राहत मिलती है।
तन्त्रिका तन्त्र पर सकारात्मक प्रभाव होता है।
2.शीतकारी प्राणायाम
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2.1-शीतकारी प्राणायाम क्या है?
शीतकारी प्राणायाम शरीर को शीतलता मन को शान्ति देता है।, इसमें मुंह से सांस लेना, सांस को रोकना और नासिका से सांस छोड़ना शामिल है। साँस लेना जीभ को दांतों के माध्यम हल्का सा दबा कर किया जात है।
2.2-शीतकारी प्राणायाम करने की विधिः- (ऐसे होगा सांसों पर नियन्त्रण। Ase Hoga Sanson Par Niyantran)
स्वच्छ और खुली हवादार वातावरण में बैठें।
अपनी सुविधानुसार किसी सुखासन में बैठ जाये।
श्वांस को सामान्य स्थिति में आने दें।
अपने हाथों को चिन्मयी,अंजलि या ज्ञान मुद्रा में घुटनों पर रखें।
जीभ को अग्र दांतों तले हल्का सा दबाव देकर दातों के बीच में रखें।
अब धीरे धीरे इसी स्थिति में मुख से श्वांस लें। महसूस करें वायु दांतों के बीच से होकर आपके मुख में हल्की से शी….. की आवाज के साथ प्रवेश कर रही है। इस वायु को घुंट के रूप में निगलें और अनुभव करें कि वायु गले को शीतलता प्रदान करती हुए फेफड़ों में जा रही है।
जीभ को दांतों के दबाव से मुक्त कर दें। सामर्थ्य के अनुरूप कुम्भक करें और सांसों को दोनों नासिका से धीरे धीरे छोड़ते हुए फेफड़ों को हवा से खाली कर दें ।
यह शीतकारी प्राणायाम का एक चक्र समाप्त हुआ।
इस प्राणायाम की अवधि एक मिनट से प्रारम्भ कर पॉच मिनट तक बढ़ाई जा सकती है।
शीतकारी प्राणायाम के 5 से 10 चक्र अथवा योग प्रशिक्षक के निर्देशानुसार अभ्यास करें।
2.3-शीतकारी प्राणायाम में सावधानियांः-
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शीतकारी प्राणायाम खाली पेट करना चाहिए।
जिनको हृदय की समस्याओं,श्वसन संबंधी रोग,फ्लू, कंजेशन, या अधिक बलगम या कम रक्तचाप, वात और कफ, दवा ले रहे हैं या स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं, ठंडा मौसम, तो योग शिक्षक से परामर्श लेना चाहिए।
2.4-शीतकारी प्राणायाम के लाभः-
1. गर्मी शान्त करता है।
2. सौन्दर्य को निखारता है।
3. शरीर को शीतलता एवं शांति देता है।
4. मानसिक शान्ति देता है।
5. पित्त दोष शमन करता है।
6. प्यास शान्त करता है।
3-भ्रामरी प्राणायाम
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भ्रामरी प्राणायाम में सांस छोड़ने की आवाज मधुमक्खी के गुंजन के समान होती है, इसलिए इस प्राणायाम को भ्रामरी प्राणायाम कहा जाता है। भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास मन को शांत करने के लिए लाभदायक होता है।
3.1-भ्रामरी प्राणायाम करने की विधिः-
योगा मेट पर किसी भी आरामदायक मुद्रा सुखासन, स्वास्तिकासन या पद्मासन में बैठें।
अपने मेरूदण्ड को सीधा एवं आंखे बन्द रखें।
अपनी हथेलियों को घुटनों पर रखें।
दायें हाथ के अंगुठे को दायी नासिका पर हल्के से रखें।
श्वांस को धीरे धीरे ग्रहण करें।
श्वांस पूरक करें।
अनुभव करें श्वांस आपके फेफड़े तक भर चुकी है।
अब श्वांस को बाहर निकालते समय गले एवं कण्ठ से स्पर्श करते हुए निकालें।
वायु को निकालते समय भौरें की भांति गुंजन करें अथवा ’’
ऊउम’’का भी उच्चारण कर सकते है।
वायु को बाहर निकालते समय मुंह बन्द रहना चाहिए। तथा अपना ध्यान गले,जबड़े,चेहरे एवं सिर के कपाल तक के कम्पन के अनुभव पर होना चाहिए।
भ्रामरी प्राणायाम का अभ्यास धीरे धीरे बढ़ाते हुए 27 की संख्या तक किया जा सकता है।
3.2-भ्रामरी प्राणायाम के लाभ
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गला/कण्ठ स्वस्थ बनते है,स्वर अच्छा बनता है।
मन को शांत करता है और शरीर को फिर से जीवंत करता है।
तनाव और चिंता से राहत देता है।
आवाज को मधुर बनाता है।
एकाग्रता में सुधार करता है।
4-अनुलोम विलोम या नाड़ी शोधन प्राणायाम ।
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4.1-अनुलोम विलोम/नाड़ी शोधन प्राणायाम क्या है?
अनुलोम विलोम प्राणायाम में श्वांस प्रश्वांस चन्द्र स्वर एवं सूर्य स्वर में एक दूसरे विपरीत चलते रहते है। जिस कारण इसको अनुलोम विलोम प्राणायाम कहा जाता है।
अनुलोम विलोम / नाड़ी शोधन प्राणायाम करने की विधि
योग मैट पर पद्मासन या सुखासन में बैठें।
मेरूदण्ड और गर्दन को सीधा रखें और आंखें बंद कर लें।
अपने हाथ तर्जनी अंगुली को भृकुटी पर रखे और अंगुठे को नासिका के एक छिद्र पर रखे , मध्यमा और अनामिका को नासिका के दूसरे छिद्र पर रखे।
मौसम के अनुसार हाथ की स्थिति बदलती रहती है। अगर गर्मी का मौसम है तो बायें नासिका से शुरूआत करनी है और समापन दायें स्वर से होगा। अगर सर्दी का मौसम है तो दायीं नासिका से शुरूआत एवं समापन बायें स्वर से होगा।
अगर आपने बायें स्वर से पूरक किया है तो रेचन दाहिने स्वर से करना होगा,फिर पूरक दाहिने स्वर से कर रेचन बायें स्वर करना होगा। इस कारण इसे समवृति अनुलोम विलोम भी कहा जाता है। ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि श्वांस फेफड़ों तक भरा हुआ महसूस होना चाहिए।
इसे शुरुआत में एक या दो मिनट का अभ्यास करना चाहिए,धीरे धीरे इसका अभ्यास बढ़ाया जाना चाहिए।
4.2अनुलोम विलोम / नाड़ी शोधन प्राणायाम में सावधानी :
शुरुआत में अनुलोम विलोम का अभ्यास प्रशिक्षित योग शिक्षक के साथ ही करें।
4.3-अनुलोम विलोम / नाड़ी शोधन प्राणायाम के लाभः-
(ऐसे होगा सांसों पर नियन्त्रण। Ase Hoga Sanson Par Niyantran)
अनुलोम विलोम प्राणायाम से नाड़ी शोधन उतम प्रकार से होता है।
इस प्राणायाम से शरीर को सन्तुलित तापमान प्राप्त होता है।
अनुलोम विलोम प्राणायाम का अभ्यास मानसिक रूप से सक्रियता बनाये रखने में मददगार होता है।
शरीर में आवश्क्ता के अनुरूप आक्सीजन की आपूर्ति प्राप्त होती है।
फेफड़ों को मजबूती देता है।
5-चन्द्रभेदी प्राणायाम
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इस प्राणायाम में चन्द्र स्वर यानी बायीं नासिका से श्वास ग्रहण किया जाता है। इसलिए इसे चंद्रभेदी प्राणायाम प्राणायाम कहा जाता है।
5.1-चन्द्रभेदी प्राणायाम की विधिः-
चूंकि प्राणायाम श्वांस आधारित क्रिया होती है। अतः साफ एवं स्वच्छ वायु के वातावरण में ही इस क्रिया को किया जाना चाहिए।
स्वच्छ हवादार वातावरण में मेट बिछा कर किसी भी सुखासन में बैठा जा सकता है।
कुछ गहरे और लम्बे श्वांस लें,श्वांस को सामान्य होने दें।
अपने हाथों को अपने घुटनों पर रखें।
दायें हाथ को उठाएं,अपने हाथ के अंगुठे की सहायता से दायें नासिका छिद्र पर हल्का सा दबाव बनाएं। तर्जनी अंगुली को दोनों भौहों के मध्य रखें,मध्यमा और अनामिका को बायीं नासिका पर रखें।
धीरे धीरे बांयी नासिका से श्वांस ले,श्वांस को फेफडों तब तक भरें जब तक नाभि पर दबाव का अनुभव न होने लग जाये।
अपने सामर्थ्य के अनुसार कुभक करें।
दायीं नासिका(सूर्य स्वर ) से श्वांस का रेचन करें।
बाह्य कुम्भक करें।
सामान्य स्थिति में आ जायें।
चन्द्रभेदी प्राणायाम के एक आवृति पूर्ण हुई
पुनः बायीं नासिका से श्वांस ग्रहण करें,कुम्भक करें,दायीं नासिका से रेचन करें,बाह्य कुम्भक करें।
इस की प्रारम्भ में दस आवृति की जा सकती है। अभ्यास के अनुसार इसकी आवृति शिक्षक के मार्गदर्शन में बढ़ाई जा सकती है।
5.2-चंद्रभेदी प्राणायाम में सावधानियांः-
जिनको हृदय की समस्याओं,श्वसन संबंधी रोग,फ्लू, कंजेशन, या अधिक बलगम या कम रक्तचाप, वात और कफ, दवा ले रहे हैं या स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं, ठंडा मौसम होने,एवं गर्भवती महिलाओं को योग शिक्षक से परामर्श से ही प्राणायाम करना चाहिए।
5.3-चन्द्रभेदी प्राणायाम के लाभः-
(ऐसे होगा सांसों पर नियन्त्रण। Ase Hoga Sanson Par Niyantran)
सौन्दर्य को निखारता है।
शरीर को शीतलता एवं शांति देता है।
मानसिक शान्ति देता है।
कुण्डिलिनी जागरण में सहायक।
सीने की जलन में राहत देता है,पित्त दोष शमन करता है।
प्यास शान्त करता है।
स्मरण शक्ति का विकास होता है।
6-प्राणायाम के लाभ
प्राण की शुद्धि होती है।
प्राणायाम के नियमित अभ्यास से श्वांस प्रश्वांस पर नियन्त्रण रहता है।
शरीर को आक्सीजन की आपूर्ति होती है।
रक्त एवं नाड़ीतन्त्र शुद्ध होता है।
शरीर में स्फूर्ति का संचार होता है आलस्य नष्ट होता है।
प्राणायाम के नियमित अभ्यास से प्राण शक्ति पर नियन्त्रण बना रहता है।
मन एवं ध्यान की एकाग्रता प्राप्त होती है।
हमारे फेफड़ों को अधिकतम सक्रिय करने एवं उपयोग लेने योग्य बनाता है। जिससे शरीर को शुद्ध रक्त एवं आक्सिजन की अधिकतम प्राप्ति होती है।
आध्यात्मिक शक्तियां प्राप्त करने में सहायता मिलती है।
मस्तिष्क को अधिक तेजवान एवं जागृत बनाता है।
इस प्रकार हम देखते है कि प्राणायाम मात्र श्वांस को पूरक और रेचन करने अथवा जीवित रहने की क्रिया मात्र नहीं है। इससे शरीर के साथ साथ मन एवं अवचेतन मन को भी लाभ मिलता है। कहा तो यहॉ तक जाता है कि प्राणायाम में निपुण व्यक्ति के पास अलौकिक शक्तियॉ होती जिनकी सहायता से वह दूरस्थ स्थान के बारे में भी बता सकता है।
अतः हमें भी चाहिए कि हम भी प्राणायाम का नियमित एवं विधिपूर्वक अभ्यास कर अपने मन,चित और स्वास्थ्य को शुद्ध एवं निरोग रख कर सुखमय जीवन का आन्नद ले ।
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