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वज्रोली मुद्रा की विधि,लाभ एवं सावधानियां। Vajroli Mudra Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniya.

आप योग की शक्ति से तो भली भॉती परिचत है। आज हम बात करेंगें  वज्रोली मुद्रा की विधि,लाभ एवं सावधानियां। Vajroli Mudra Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniya.( महिलाओं के लिए इसी मुद्रा को सहजोली (Sahjoly Mudra)मुद्रा के नाम से जाना जाता है )की स्वास्थ्य प्राप्त करने के लिए व्यक्ति भॉति भॉति के प्रयास और उपाय करता रहता है। इसी कड़ी में वज्रोली मुद्रा  Vajroli Mudra के महत्व की चर्चा आज हम इस पोस्ट में करने वाले है।

वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra का अभ्यास विशेषतया हमारे पेट एवं पेट के निचले हिस्से के अंगों को प्रभावित करता है। अगर हमारा पेट स्वस्थ है। हमारे द्वारा ग्रहण किये गये भोजन का प्रभावी तरीके से पोषण हमारे शरीर को प्राप्त होता रहे तो अधिकतर शारीरिक व्याधिया स्वतः समाप्त हो जाती है।
वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra का अभ्यास चाहे व पुरूष हो या स्त्री सभी के जननांगों की अन्दरूनी साफ सफाई करने में सहायक होता है। क्योंकि वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के अभ्यासी अपनी योग शक्ति के द्वारा अपने जननांगों से पानी को खींच कर अपने शरीर में प्रवेश करने में सक्षम होते है। अभ्यास के उपरान्त योगाभ्यासी अपने जननांगों से पानी,दूध,घी,शहद तक को अपने शरीर में खींच सकते है।

 

इस तरह की सक्षमता प्राप्त करने के लिए योगी को योग के आठ अगांं का अभ्यासी होना अति आवश्यक है,बिना अष्टांग योग की साधना के वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra का अभ्यास नुकसान भी पहुंचा सकता है।

क्रम सं. विषय वस्तु
1 वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra का परिचय
2 वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के अभ्यास की विधि
3 वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra का अभ्यास कितनी देर करना चाहिए
4 वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra का अभ्यास किस समय करना चाहिए
5 वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudraके अभ्यास के दौरान सावधानियां
6 वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के लाभ
7 निष्कर्षः

1-वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra का परिचय-             Vajroli Mudra Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniya.)

वज्रोली शब्द संस्कृत के वज्र शब्द से बना है। ’’वज्र’’ का इंग्लिश अनुवाद थंडरबोल्ट होता है।
हमारी वज्र नाड़ी जो की हमारी प्राण शक्ति ऊर्जा की नाड़ीयों में से एक है जो कि हमारे प्रजनंनागां के क्षेत्रों को प्रभावित करती है,हमारे इन अंगों को नियंत्रित करती है। इस वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के अभ्यास से यह नाड़ी प्रभावित रहती है,इस कारण भी इस मुद्रा का नाम वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra रखा गया है।

2-वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के अभ्यास की विधि-               (  vajroli-mudra-in-hindi)

वज्रोली मुद्रा की विधि के बारे में घेरण्ड संहिता में वर्णन किया गया है –
धरामवष्टभ्य करयोस्तलाभ्याम् ऊर्ध्व क्षिपेत्पादयुगंशिरः खे।
शक्तिप्रबोधाय चिरजीवनाय वज्रालिमुद्रा कवयो वदन्ति।45।

अर्थात-

दोनों हाथों को पृथ्वी पर स्थिर भाव से टेक कर दोनों पैरों और मस्तक को आकाश में उठा देने को वज्राली मुद्रा कहते है।इससे बल-संचार तथा दीर्घ-जीवन प्राप्त होता है।

जब हम बात करते है कि वज्रोली मुद्रा में जननांगों के माध्यम से जल,दूध,स्खलित वीर्य आदि तरल पदार्थो को हम अपने शरीर में खींच सकते है,तो लोग इस क्रिया के बारे में भ्रमित होने लगते है,मिथ्या बताने लगते है। परन्तु योग में अष्टांग योग का पालन एवं धर्य के साथ साधना,अभ्यास किया जाये तो योग सब सम्भव बना सकते है।

इस मुद्रा के अभ्यास के दौरान हमारे जननांगों की मांसपेशियों को सिकुड़ने एवं सामान्य होने का अभ्यास करवाया जाता है। जिससे इन अंगों की मांसपेशियां मजबूत एवं स्वस्थ बनती है, जिस कारण ही वे तरल पदार्थो का खिंचाव करने में सफल हो पाती है।
वज्रोली मुद्रा दो प्रकार से की जाती है ।
आज हम इस वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के अभ्यास की विधि को समझने का प्रयास करेंगें।

Vajroli Mudra Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniya.
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प्रथम विधि-                                                 (  vajroli-mudra-in-hindi)

1. सबसे पहले आप किसी शांत एवं एकान्त हवादार स्थान का चयन कर योगा मेट या चटाई बिछा कर किसी सुखासन में शान्त भाव के साथ बैठ जायें।
2. अपने हाथों को ज्ञान या चिन मुद्रा में अपने घुटनों पर रखें।
3.अपनी कमर,मेरूदण्ड एवं गर्दन को सीधा रखें।
4.अपने पैरों को धीरे धीरे सामने की ओर जमीन से चिपकते हुए सीधे फैला लें।
5.अपने हाथों की हथेलियों को अपने कमर की सीध में जमीन पर रखें।

6.आंखों को मुलायमता के साथ बन्द करें। अपने श्ंवास-प्रश्वांस को सामान्य गति से प्रवाहित होने दें ।
7. अपनी हथेलियों पर जोर देते हुए अपने शरीर को पूरी तरह से ऊपर हवा में उठायें,शरीर के साथ साथ अपने दोनों पैरों को भी जमीन से ऊपर उठायें
6.आपका ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए।
7. अपने जननांग को संकुचित करने का प्रयास करें,जिसमें आपका शिश्न एवं अण्डकोष एवं महिलाओं में लेबिया आदि शामिल है,को संकुचित करे ऊपर की ओर खिंचने का प्रयास करें। जैसे हम मूत्र वेग को रोकने के लिए प्रयास करते है।

8.इस अभ्यास के दौरान अगर मात्र जननांगों,मूत्रमार्ग को संकुचित किया जाता है, तो अधिक लाभ मिलने की सम्भावना बनती है।
9. सुविधाजन स्थिति/अवधि तक संकुचन बनाये रखना चाहिए।
10.क्षमता से बाहर होने की स्थिति में धीरे धीरे संकुचन का ढ़ीला करते हुए,शरीर को शिथिल करते हुए जमीन पर टिका दें ।
11. प्रारम्भ में अपनी क्षमता अनुसार इस अभ्यास को दो से तीन बार दोहरावें। अभ्यास होने के बाद इसका अभ्यास अपने प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में बढ़ाना चाहिए।

द्वितीय विधिः-                    (  vajroli-mudra-in-hindi)

इस अभ्यास Vajroli Mudra को किसी विशेषज्ञ की सहायता के बिना नहीं करना चाहिए।

इस अभ्यास Vajroli Mudra  में कथैटर का उपयोग किया जाता है। इसमें 14 से 18 इंच का कथैटर लिया जाता है । जिसे पहले गर्म पानी या घी में कुछ समय के लिए रख कर कीटाणु रहीत एवं चिकना किया जाता है। इस क्रिया Vajroli Mudra के विशेषज्ञ की देख रेख में जननांग में बहुत ही सावधानी एवं सतर्कता के साथ कथैटर का प्रवेश करवाया जाता है,जिसमें कुछ दिनों का समय लगना सम्भव है,पूरा कथैटर प्रवेश करवाने के लिए विशेषज्ञ Vajroli Mudra के मार्गदर्शन में प्रक्रिया को कुछ दिनों में सम्पन्न करवाया जाता है। इस प्रक्रिया को स्वयं कभी नहीं करना चाहिए अन्यथा नुकसान होने की सम्भावना बनती है।

किसी योग्य मार्गदर्शन में साधक इस कथैटर के माध्यम से पानी को अन्दर खींचने का अभ्यास करता है। इस पानी को उचित उपाय तकनीक से पूर्णरूप से कीटाणु रहीत कर लेना चाहिए अन्यथा आन्तरिक अंगों में संक्रमण होने की सम्भावना बन जाती है। इस क्रिया Vajroli Mudra में समस्या आने पर आपको मार्गदर्शक कुछ अन्य क्रियाएं भी बता सकते है । जिनकी सहायता से आप इस मुद्रा Vajroli Mudra का सफलता से अभ्यास कर सकेंगें।
पानी का सफल अभ्यास के उपरान्त अभ्यासी लोग घी,दूध आदि का प्रयोग भी करते है। अथवा सम्भोग के दौरान वीर्य का स्खलन रोक सकते है या स्खलित वीर्य को भी वापिस खिंच सकते है।

वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के अभ्यास से मुत्रमार्ग/जननांगों की मांसपेशियों,क्रियाकलापों पर नियंत्रण किया जा सकता है, परन्तु इसमें र्धर्य एवं लग्न के साथ अभ्यास करना होता है क्योंकि यह Vajroli Mudra एक जटिल अभ्यास है जिसमें कुछ महिनों का समय भी लग सकता है।
यह Vajroli Mudra अभ्यास सामान्य व्यक्ति के लिए न तो सम्भव है और न ही वह कर सकता है । इसका Vajroli Mudra अभ्यास करने के लिए योग्य गुरू की आवश्यकता होती है।
द्वितीय प्रकार की मुद्रा Vajroli Mudra का अभ्यास मात्र पुस्तकों को पढ़ कर या इन्टरनेट के ज्ञान के आधार पर नहीं करना चाहिए अन्यथा नुकसान हो सकता है।

3-वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra का अभ्यास कितनी देर करना चाहिए-                   (  vajroli-mudra-in-hindi)

वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra अभ्यास प्रारम्भ में 2 से 3 बार करना चाहिए। अभ्यास होने के उपरान्त अपने मार्गदर्शक के निर्देशानुसार की अवधि एवं आवृतियों को बढ़ाना चाहिए।

4-वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra का अभ्यास किस समय करना चाहिए-                   (  vajroli-mudra-in-hindi)

अन्य योगाभ्यासों की तरह इसका Vajroli Mudra अभ्यास भी शौचादि कार्यो से निवृत होने के उपरान्त सुबह के समय खाली पेट करना चाहिए। समय अभाव में खाली पेट किसी भी समय किया जा सकता है।

5-वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudraके अभ्यास के दौरान सावधानियां-                             (  vajroli-mudra-in-hindi)

1.जननांगों या मूत्रमार्ग के किसी रोग से पीड़ित व्यक्ति को इस मुद्रा Vajroli Mudra का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
2.अन्य किसी प्रकार का शारीरिक रोग या समस्या हो तो बिना चिकित्सक के परामर्श वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra का अभ्यास नहीं करना चाहिए।
3.वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra का अभ्यास खाली पेट सुबह या भोजन करने के 2 से 3 घण्टे के बाद करनी चाहिए।

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6-वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के लाभ-                                                                 (  vajroli-mudra-in-hindi)

नियमित एवं विधिपूर्वक वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra का अभ्यास करने से अनेकों लाभ एवं सिद्धियां प्राप्त होती है। जिनका उल्लेख घेरण्ड संहिता में इस प्रकार वर्णित किया गया है।
अयं योगो योगश्रेष्ठों योगिनां मुक्तिकारणम्।
अयंहितप्रदोयोगो योगिनां सिद्धिदायकः।46।

एतद्योगप्रसादेन विन्दुसिद्धिर्भवेद् ध्रवम्।
सिद्धेविन्दौ महायत्ने किं न सिध्यति भूतले।47।

भोगेन महता युक्तो यदि मुद्रा समाचरेत्।
तथापि सकलसिद्धिस्तस्य भवतिनिश्चतम्।48।

अर्थात-
यह योग मुद्राओं में श्रेष्ठ,मुक्ति का कारण,परम सिद्धि देने वाला है। इससे बिन्दु सिद्धि,ऊर्ध्वरेतस्त्व सिद्धि होकर वीर्यपात नहीं होता,बिन्दु सिद्धि होने पर कौनसा कार्य नहीं हो सकता है। भोगियों को इसे करने से निःसन्देह सभी सिद्धियां प्राप्त होती है।
1. वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के नियमित एवं विधिपूर्वक किये गये अभ्यास से जननांग एवं मूत्रमार्ग की समस्याओं में लाभ मिलता है। इन अंगों की मांसपेशियां स्वस्थ एवं मजबूत बनती है।
2.पेट एवं पाचन से जुड़ी समस्याओं को निस्तारित करता है। पाचन तन्त्र स्वस्थ एवं मजबूत बना रहता है। गैस एवं कब्ज सम्बन्धी समस्याओं में राहत मिलती है।

3.वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के अभ्यास से यौन रोगों,नंपुसकता आदि रोगों में राहत मिलती है।
4.पुरूषों में वीर्य स्खलन पर नियंत्रण बनता है। सम्भोग अनुभव को ईच्छानुरूप निर्धारित करने में सहायक होता है । शीध्रपतन की समस्या में राहत देता है।
5.वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra का नियमित अभ्यास वात,पित एवं कफ को नियन्त्रित करता है।
6.जिन लोगों को बार बार पेशाब लगने या जननांगों में जलन आदि की समस्या रहती है,उन्हे वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के नियमित अभ्यास से राहत मिलती है।

7.इसके Vajroli Mudraनियमित अभ्यास प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है।
8.वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के नियमित अभ्यास से नीचे की ऊर्जा ऊर्ध्वगामी होकर हमारे कुण्डलिनी चक्र को सक्रिय करने में मदद करती है ।
9.कुण्डलिनी चक्र के जागृत होने पर यौन शक्ति वासना मय न होकर हमारी आध्यात्मिक शक्ति बनने लगती है।
10.वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra हमारी यौन शक्ति को बचाने में सहायक होती है।

11. वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के अभ्यास से हमारे वृषणों से स्त्रावित होने वाले हार्मोस नियंत्रित होते है।
12. वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra के नियमित अभ्यास से हमारे जननांगों में किसी भी प्रकार की अशुद्धियों को बाहर निकालने में सहायक होता है।

 

वज्रोली मुद्रा में सहायक आसन-
1.वज्रासन
2.सुप्तवज्रासन
3.शलभासन
4.पष्चिमोतानासन। इन आसनों को भी वज्रोली आसन के साथ करना चाहिए।

 

7-निष्कर्षः- हमने जाना कि योग को अपने जीवन में शामिल कर हम अपने कोमानसिक,शारीरिक एवं आध्यामिक रूप से निरोग,स्वस्थ रख सकते है। इस प्रकार वज्रोली मुद्रा Vajroli Mudra जिनका घेरण्ड संहिता,योग प्रदीपिका आदि में वर्णन मिलता है,के अनुसार इससे हम अपने स्वास्थ्य के साथ साथ अनेक सिद्धियां भी प्राप्त कर सकते है। इस मुद्रा Vajroli Mudra का अभ्यास कर विशेष रूप से यौन एवं जननांग सम्बन्धित समस्याओं का निराकरण कर सकते है।
इस पोस्ट का उद्देश्य योग,मुद्रा सम्बन्धी जानकारी देना मात्र है। इस मुद्रा का अभ्यास बिना किसी योग्य मार्गदर्शक के करना हानिकारक हो सकता है । अतः बिना किसी गुरू के इस मुद्रा का अभ्यास नहीं करना चाहिए।

 

 

 

FAQ

vajroli

वज्रोली शब्द संस्कृत के वज्र शब्द से बना है। ’’वज्र’’ का इंग्लिश अनुवाद थंडरबोल्ट होता है। हमारी वज्र नाड़ी जो की हमारी प्राण शक्ति ऊर्जा की नाड़ीयों में से एक है जो कि हमारे प्रजनंनागां के क्षेत्रों को प्रभावित करती है,हमारे इन अंगों को नियंत्रित करती है। इस वज्रोली मुद्रा के अभ्यास से यह नाड़ी प्रभावित रहती है,इस कारण भी इस मुद्रा का नाम वज्रोली मुद्रा रखा गया है।
1. वज्रोली मुद्रा के नियमित एवं विधिपूर्वक किये गये अभ्यास से जननांग एवं मूत्रमार्ग की समस्याओं में लाभ मिलता है। इन अंगों की मांसपेशियां स्वस्थ एवं मजबूत बनती है। 2.पेट एवं पाचन से जुड़ी समस्याओं को निस्तारित करता है। पाचन तन्त्र स्वस्थ एवं मजबूत बना रहता है। गैस एवं कब्ज सम्बन्धी समस्याओं में राहत मिलती है। 3.पुरूषों में वीर्य स्खलन पर नियंत्रण बनता है। सम्भोग अनुभव को ईच्छानुरूप निर्धारित करने में सहायक होता है । शीध्रपतन की समस्या में राहत देता है। 4.वज्रोली मुद्रा का नियमित अभ्यास वात,पित एवं कफ को नियन्त्रित करता है। 5.जिन लोगों को बार बार पेशाब लगने या जननांगों में जलन आदि की समस्या रहती है,उन्हे वज्रोली मुद्रा के नियमित अभ्यास से राहत मिलती है। 6.कुण्डलिनी चक्र के जागृत होने पर यौन शक्ति वासना मय न होकर हमारी आध्यात्मिक शक्ति बनने लगती है। 7. वज्रोली मुद्रा के अभ्यास से हमारे वृषणों से स्त्रावित होने वाले हार्मोस नियंत्रित होते है।
1.अपनी कमर,मेरूदण्ड एवं गर्दन को सीधा रखें। 2.अपने पैरों को धीरे धीरे सामने की ओर जमीन से चिपकते हुए सीधे फैला लें। 3.अपने हाथों की हथेलियों को अपने कमर की सीध में जमीन पर रखें। 4. अपनी हथेलियों पर जोर देते हुए अपने शरीर को पूरी तरह से ऊपर हवा में उठायें,शरीर के साथ साथ अपने दोनों पैरों को भी जमीन से ऊपर उठायें 5.आपका ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित होना चाहिए। 6. अपने जननांग को संकुचित करने का प्रयास करें,जिसमें आपका शिश्न एवं अण्डकोष एवं महिलाओं में लेबिया आदि शामिल है,को संकुचित करे ऊपर की ओर खिंचने का प्रयास करें। जैसे हम मूत्र वेग को रोकने के लिए प्रयास करते है। 7.इस अभ्यास के दौरान अगर मात्र जननांगों,मूत्रमार्ग को संकुचित किया जाता है, तो अधिक लाभ मिलने की सम्भावना बनती है। 8.क्षमता से बाहर होने की स्थिति में धीरे धीरे संकुचन का ढ़ीला करते हुए,शरीर को शिथिल करते हुए जमीन पर टिका दें । 9. प्रारम्भ में अपनी क्षमता अनुसार इस अभ्यास को दो से तीन बार दोहरावें। अभ्यास होने के बाद इसका अभ्यास अपने प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में बढ़ाना चाहिए।Shorten with AI
वज्रोली मुद्रा एवं सहजोली मुद्रा एक ही प्रकार से की जाती है। जब यह मुद्रा पुरूष द्वारा की जाती है,तो इसे वज्रोली मुद्रा कहा जाता है। महिलाओं द्वारा की जाने पर इसे सहजौली मुद्रा कहा जाता है। दोनों ही मुद्राओं में जननांगों/मुत्रमार्ग का संकुचन किया जाता है।

 

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One response to “वज्रोली मुद्रा की विधि,लाभ एवं सावधानियां। Vajroli Mudra Ki Vidhi,Labh Aur Savdhaniya.”

  1. सरोज Avatar

    सरल भाषा में अच्छी जानकारी

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