कुण्डलिनी योग क्या है। Kundlini yog kya he.
कुण्डलिनी योग क्या है। Kundlini yog kya he.भारतीय अध्यात्म में ऐसी ऐसी विद्याएं मौजूद है। जिनका भौतिक रूप से तो कोई अस्तित्व नहीं पर उनके प्रभाव एवं परिणाम अचंम्भित एवं आश्यर्चजनक होते है।
उन्ही विद्याओं में एक कुण्डलिनी जागरण है । कुण्डलिनी जागरण करने के लिए हमारे शरीर में अदृश्य रूप से मौजूद सात चक्रों को जाग्रत किया जाना आवश्यक होता है। ये हमारे शरीर में ऊर्जा बिन्दु होते है। जिन्हें सक्रिय किया जाने की आवश्यकता होती है। ये सभी ऊर्जा के केन्द्र यानी की चक्र सुप्त अवस्था में होते है। जिन्हें सक्रिय करने के लिए कुछ साधना एवं योगाभ्यास की आवश्यकता होती है।इन चक्रों को जाग्रत करने के लिए योग के यम, नियम आदि अष्टांगों की पालना किया जाना भी आवश्यक होता है।
इनके सक्रिय होने पर ऊर्जा मूलाधार से उठकर क्रमशः इन ऊर्जा बिन्दुओं को जाग्रत करती हुई, सहस्त्रार चक्र का भेदन करती है। चूंकि यह ऊर्जा गति करती हुई क्रियाशील रहती है,इसलिए इन बिन्दुओं को चक्र कहा जाता है।
इसी साधना को कुंडलिनी जागरण कहा जाता है।

स्ूची |
चक्र क्या है ? |
चक्र का स्थान? |
चक्र का देवता,देवी ? |
चक्र का मंत्र ? |
चक्र के जागरण की विधि ? |
चक्र के जागरण का प्रभाव ? |
–विभिन्न चक्र एवं चक्रों के शरीर में स्थान :-
- 1-मूलाधार चक्र :- सुषुम्ना के अन्तिम छोर पर गुदा द्वार से दो अंगुल ऊपर एवं प्रजनन अंग से दो अंगुल नीचे जहॉ पर मूलबंध में बैठने पर एड़ी का दबाव पड़ता है।
- 2-स्वाधिष्ठान चक्र :- स्वाधिष्ठान चक्र का स्थान मूलाधार चक्र से दो अंगुल ऊपर एवं नाभि से कुछ नीचे पेडू में माना जाता है।
- 3-मणिपुर चक्र :- यह चक्र नाभि पर स्थित होता है।
- 4-अनाहत चक्र :- अनाहत चक्र छाती के मध्य हृदय पर स्थित होता है।
- 5-विशुद्ध चक्र :- विशुद्ध चक्र का स्थान हमारे कण्ठ में होता है।
- 6-आज्ञा चक्र :- हमारी दोनों भौहों के मध्य में स्थित होता है।
- 7- सहस्रार चक्र :- हमारी खोपड़ी के ऊपरी भाग में होता है।
1-मूलाधार चक्र:– Kundlini yog kya he.
1.1-मूलाधार चक्र क्या है ?
मूलाधार चक्र का तत्वरूप चतुष्कोण वर्गाकार है। इसका वर्ण स्वर्ण के समान सुनहरे रंग का है।
मूलाधार चक्र के यन्त्र का रूप स्वर्ण वर्ण में चार कमल पंखुड़ियों वाली आकृति में है। ये चार कमलदल मानस,चित,बुद्धि और अहंकार का प्रतिनिधत्व करते है। इसकी प्रत्येक पंखुड़ी पर वं,शं,षं और सं मंत्राक्षर अंकित है।
पंखुड़ियों के बीच के वर्गाकार तत्व का बीज मंत्र लं है,जो कि हाथी पर सवार है।
वर्गाकार तत्व के बीच में कमल दल के मध्य अत्यन्त सुंदर चमकता हुआ लाल रंग का त्रिभुज है। जिसे कामरूप भी कहते है। इस त्रिभुज का एक सिरा नीचे की और टिका हुआ है। इस त्रिभुज के अन्दर देवी त्रिपुर सुंन्दरी निवास करती है। इसी त्रिकोण के अन्दर स्वयंभू लिंग स्थापित है। कुण्डलिनी सर्पिणी के रूप में इसी लिंग पर साढ़े तीन लपेटे लगा कर सो रही है।
पंचमहाभूतों में यह चक्र पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसकी कर्मेन्द्रि गुदा और नासिका ज्ञानेन्द्रि है।

1.2-मूलाधार चक्र का स्थान:-
मूलाधार चक्र का स्थान सुषुम्ना नाड़ी के अन्तिम छोर पर गुदा द्वार से दो अंगुल ऊपर एवं प्रजनन अंग से दो अंगुल नीचे जहॉ पर मूलबंध में बैठने पर एड़ी का दबाव पड़ता है। यह स्थान मूलाधार का स्थान माना गया है। माना जाता है कि कुण्डलिनी शक्ति साढ़े तीन लपेटे लगा कर इसी स्थान पर सो रही है।
1.3-मूलाधार चक्र के देवता
मूलाधार चक्र के देवता चतुर्भुज ब्रह्मा और देवी डाकिनी है। मूलाधार चक्र के अधिकारी भगवान गणेश है।
1.4-मूलाधारचक्र का मंत्रः-
मूलाधार चक्र का मंत्र का बीज मंत्र ” लं ” है।
1.5-मूलाधार चक्र को जाग्रतकरने की विधिः- Kundlini yog kya he.
इस चक्र को जाग्रत करने के लिए मनुष्य को भोग,संभोग पर सयमं और यम नियम का पालन करना चाहिए।
किसी स्वच्छ और शान्त वातावरण में आसन बिछा कर सुखासन की मुद्रा में बैठ जायें।
अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रखें। ज्ञान मुद्रा में अपने हाथों को रखें। अंगुठे एवं तर्जनी अंगुली के सिरे को आपस में मिलाते हुए आराम से बैठे रहें। गहरा श्वांस प्रश्वांस करें।
आपका मेरूदण्ड सीधा रखते हुए ध्यान मूलाधार चक्र पर केन्द्रित करें।
मूलाधार चक्र की आकृति,रंग आदि को देखने का प्रयास करें।
मूलाधार चक्र के तत्व बीज ’लं ’ का शुद्व उच्चारण करें। इसके उच्चारण से निकलने वाली ध्वनी का मूलाधार के साथ साथ अपनी नाड़ियों में अनुभव करें। इसी ध्वनी से मूलाधार से ऊर्जा ऊर्ध्वगति करने लगती है।
इस क्रिया का 5 से 7 बार दौहराव करें।
1.6-मूलाधार जाग्रत होने का प्रभावः-
मूलाधार जाग्रत होने पर निम्न प्रभाव होते हैं :-
इसके साधक को मृत्यु और काल का भय समाप्त हो जाता है। शरीर में कांति एवं ओज की वृद्धि होती है। भय एवं असुरक्षा की भावना का अन्त होता है। मेरूदण्ड स्वस्थ बनता है। जननांग सम्बन्धी रोगों में लाभकारी होता है। इसके अभ्यास से व्यक्ति मानसिक तौर से सशक्त बनता है। निर्णय लेने की शक्ति बढ़ती है। मनोबल बढ़ता है। जब मूलाधार चक्र जाग्रत होता है, तो व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक मनोबल ऊॅचा होता होता है,ऊर्जा मिलती है। विचारों में सकारात्मता बनती है एवं राग द्वेष,ईर्ष्या आदि विकार शान्त हो जाते है।आन्तरिक रूप से आनन्द केभाव में असीम रूप से वृद्धि हो जाती है। योग सम्बन्धी सिद्धियां प्राप्त होती है।
1.7-मूलाधार चक्र का असन्तुलन होने पर हानिः-
अगर किसी का मूलाधार चक्र असन्तुलित हो जाता है। तो निम्न लक्षण दिखाई देने लगते है।
शरीर में कांति एवं ओज नष्ट होने लगता है। भय एवं असुरक्षा की भावना का आभास होने लगता है। मेरूदण्ड,जननांग,घुटनों सम्बन्धी रोग पनपने लगते है। व्यक्ति मानसिक तौर से कमजोर बनता है एवं निर्णय लेने की क्षमता एवं मनोबल शक्ति का हृस होने लगता है। विचारों में नकारात्मकता बनने लगती है। राग द्वेष,ईर्ष्या आदि विकार का आक्रमण होने लगता है। व्यक्ति आन्तरिक रूप से अकेलापन,मानसिक उदासीनता,भय एवं निराशाजनक स्थिति का अनुभव करने लगता है।
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2-स्वाधिष्ठान चक्र – Kundlini yog kya he.
2.1-स्वाधिष्ठान चक्र क्या है :-
स्वाधिष्ठान चक्र सिंदूरी वर्ण में छः कमल पंखुड़ियों वाली आकृति में है। ये छः कमल दल हमारे नकारात्मकता का प्रतिनिधत्व करते है। इसकी प्रत्येक पंखुड़ी पर बं,भं,मं,यं,रं और लं मंत्राक्षर अंकित है।
पंखुड़ियों के बीच के अर्द्धचन्द्राकार वृताकार में तत्व का बीज मंत्र ‘‘ वं ‘‘ है,जो कि मकर पर सवार है। इसका बीज वर्ण श्वेत हल्का नीला है। बीज मंत्र के बिन्दु पर भगवान विष्णु विराजमान है। देवी राकिनी भी विराजमान है।
पंचमहाभूतों में यह चक्र जल तत्व का प्रतिनिधत्व करता है। इसकी कर्मेन्द्रि लिंग एवं योनि और जिव्हा ज्ञानेन्द्रि है।
इस चक्र का सम्बन्ध लिंग,योनि पैरों एवं कुटुम्ब बढ़ाने की इच्छा से है।
स्वाधिष्ठान चक्र यह द्वितीय चक्र माना जाता है। स्वाधिष्ठान चक्र का स्थान मूलाधार चक्र से दो अंगुल ऊपर एवं नाभि से कुछ नीचे पेडू में माना जाता है।
स्वाधिष्ठान चक्र का तत्वरूप अर्द्धचन्द्राकार वृताकार उज्जवल श्वेत है। इसका वर्ण सिंदूरी रंग सूर्योदय के उदयमान एवं सक्रियता का प्रतीक है।
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2.2-स्वाधिष्ठान चक्र का स्थान:-
स्वाधिष्ठान चक्र का स्थान मूलाधार चक्र से दो अंगुल ऊपर एवं नाभि से कुछ नीचे पेडू में माना जाता है।
2.3-स्वाधिष्ठान चक्र के देवता
स्वाधिष्ठान चक्र के अधिपति देवता विष्णु है और देवी राकिनी है।
2.4-स्वाधिष्ठान चक्र का मंत्रः-
स्वाधिष्ठान चक्र का बीज मंत्र ‘‘ वं ‘‘ है
2.5-स्वाधिष्ठान चक्र को जाग्रत करने की विधिः- Kundlini yog kya he.
इस चक्र को जाग्रत करने के लिए मनुष्य को भोग,संभोग पर सयमं और यम नियम का पालन करना चाहिए।
किसी स्वच्छ और शान्त वातावरण में आसन बिछा कर सुखासन की मुद्रा में बैठ जायें।
अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रखें। कर मुद्रा में अपने हाथों को रखें। अंगुठे एवं अनामिका अंगुली के सिरे को आपस में मिलाते हुए आराम से बैठे रहें।
गहरा श्वांस प्रश्वांस करें।
आपका मेरूदण्ड सीधा रखते हुए ध्यान स्वाधिष्ठान चक्र पर केन्द्रित करें।
स्वाधिष्ठान चक्र की आकृति,रंग आदि को देखने का प्रयास करें।
स्वाधिष्ठान चक्र के तत्व बीज ‘‘ वं ‘‘ का शुद्ध उच्चारण करें। इसके उच्चारण से निकलने वाली ध्वनी का मानव शरीर में अध्यात्मिक रूप से अवरोधों को हटाकर चक्र की शक्ति का जागरण करती है।
2.6-स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत होने का प्रभावः-
स्वाधिष्ठान चक्र जाग्रत होने पर प्रभाव होते हैं :-
इसके साधक को मृत्यु और काल का भय समाप्त हो जाता है। शरीर में कांति एवं ओज की वृद्धि होती है। भय एवं सुरक्षा की भावना का विकास होता है। जननांग सम्बन्धी अंग विकसित एवं स्वस्थ बनते है। मनोबल बढ़ता है। जब मूलाधार चक्र जाग्रत होता है, तो व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक मनोबल ऊॅचा होता होता है,ऊर्जा मिलती है। विचारों में सकारात्मता बनती है एवं राग द्वेष,ईर्ष्या आदि विकार शान्त हो जाते है।आन्तरिक रूप से आनन्द के
भाव में असीम रूप से वृद्धि हो जाती है। योग सम्बन्धी सिद्धियां प्राप्त होती है।
2.7-स्वाधिष्ठान चक्र का असन्तुलन होने पर हानिः-
अगर किसी का स्वाधिष्ठान चक्र असन्तुलित हो जाता है।
तो निम्न लक्षण दिखाई देने लगते है।
शरीर में कांति एवं ओज नष्ट होने लगता है। भय एवं असुरक्षा की भावना पनपने लगती है। जननांग,घुटनों सम्बन्धी रोग पनपने लगते है। व्यक्ति मानसिक तौर से कमजोर बनता है एवं मनोबल शक्ति का हृस होने लगता है। विचारों में नकारात्मता बनने लगती है। राग द्वेष,ईर्ष्या आदि विकार का आक्रमण होने लगता है। व्यक्ति आन्तरिक रूप से अकेलापन,मानसिक उदासीनता,भय एवं निराशाजनक स्थिति का अनुभव करने लगता है।
3-मणिपुरक चक्र_ Kundlini yog kya he.
3.1-मणिपुरक चक्र क्या है :-
मणिपुरक चक्र का स्थान नाभि माना गया है। यह शरीर की दस नाड़ियों का मिलन स्थल होता है। गर्भावस्था के दौरान शिशु नाभि के माध्यम से ही आहार प्राप्त करता है। यह सूर्य का स्थान माना गया है।
मणिपुरक चक्र का तत्वरूप त्रिकोणाकार है। इसका वर्ण रक्तवर्ण माना गया है।
मणिपुरक चक्र नीले वर्ण में दस कमल पंखुड़ियों वाली आकृति में है। इसकी प्रत्येक पंखुड़ी पर डं,ढ़ं,णं,तं,यं,दं,धं,नं,पं,फं मंत्राक्षर अंकित है।
पंखुड़ियों के बीच के त्रिभुजाकार में तत्व का बीज मंत्र ‘‘रं ’’अंकित है,जो कि मेंढा पर सवार है।
वृताकार तत्व के बीच में कमल दल के मध्य अत्यन्त सुंदर चमकता हुआ लाल रंग का त्रिभुज है। इस त्रिभुज का एक सिरा नीचे की और टिका हुआ है। वृताकार में देवता रूद्र एवं देवी लाकिनी निवास करती है। पंचमहाभूतों में यह चक्र अग्नि तत्व का प्रतिनिधत्व करता है। इसकी कर्मेन्द्रि पैर और नेत्र ज्ञानेन्द्रि है।
3.2-मणिपुरक चक्र का स्थान :- Kundlini yog kya he.
मणिपुरक चक्र का स्थान नाभि माना गया है। यह शरीर की दस नाड़ियों का मिलन स्थल होता है। गर्भावस्था के दौरान शिशु नाभि के माध्यम से ही आहार प्राप्त करता है।
3.3-मणिपुरक चक्र के देवता:-
मणिपुरक चक्र के देवता रूद्र और देवी लाकिनी है।
3.4-मणिपुरक चक्र का मंत्र:-
मणिपुरक चक्र का बीज मंत्र ‘‘रं ’’ है।
3.5-मणिपुरक चक्र को जाग्रत करने की विधिः-kundlini-yog-kya-he-in-hindi
इस चक्र की साधना करने का अर्थ हुआ, हमने प्रथम दो चक्रों की बाधाओं को पार कर लिया है। अब हमें चक्रों को भेदने/साधनें का ज्ञान हो चुका है।
इस चक्र को जाग्रत करने के लिए मनुष्य को भोग,संभोग पर सयमं और यम नियम का पालन करना चाहिए।
किसी स्वच्छ और शान्त वातावरण में आसन बिछा कर सुखासन की मुद्रा में बैठ जायें।
अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रखें। ज्ञान मुद्रा में अपने हाथों को रखें। अंगुठे एवं मध्यमा अंगुली के सिरे को आपस में मिलाते हुए आराम से बैठे रहें।
गहरा श्वांस प्रश्वांस करें।
आपका मेरूदण्ड सीधा रखते हुए ध्यान मणिपुरक चक्र पर केन्द्रित करें।
मणिपुरक चक्र की आकृति,रंग आदि को देखेने का प्रयास करें।
मणिपुरक चक्र के तत्व बीज ’रं ’ का शुद्व उच्चारण करें। इसके उच्चारण से निकलने वाली ध्वनी का मणिपुरक चक्र के साथ साथ अपनी नाड़ियों में अनुभव करें। इसी ध्वनी से हमारा पाचन तंत्र एवं उदर प्रदेश स्वस्थ बनता है।
इस अभ्यास का सुबह शाम को एक से डेढ़ घण्टे अभ्यास करना चाहिए।
3.6-मणिपुरक चक्र जाग्रत होने का प्रभावः-
चक्र जाग्रत होने जीवन में निम्न प्रभाव होते हैं :-
मणिपुरक चक्र में स्पष्टता, आत्मविश्वास, आनन्द, आत्म भरोसा, ज्ञान, बुद्धि और सही निर्णय लेने की योग्यता जैसे गुण होते है। नाभि सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है। अतः मणिपुरक चक्र के साधने से साधक को मृत्यु और काल का भय समाप्त हो जाता है। अहम् का भाव,एकाधिकार के भावों का शमन होता है एंव, अिंहंसा, सत्य,आदि भावों का विकास होता है। पेट,रक्त,हृदय,आदि विकार नहीं होते है।
3.7-मणिपुरक चक्र का असन्तुलन होने पर हानिः-
अगर किसी का मणिपुरक चक्र असन्तुलित हो जाता है। तो निम्न लक्षण दिखाई देने लगते है।
पाचन तन्त्र सम्बन्धी रक्त,हृदय सम्बन्धी समस्याएं पैदा हो जाती है। मानसिक विकार एवं आलस्य निराशा के भाव आ जाते है।
4-अनाहत चक्र_ Kundlini yog kya he.
4.1-अनाहत चक्र क्या है :-
यह हमारे शरीर का चौथा मुख्य चक्र होता है। इस चक्र का स्थान हृदय माना गया है। इस चक्र का महत्व इसलिए भी अधिक हो जाता है कि शरीर के सात चक्रों में यह बीच का चक्र होने के कारण इनमें सन्तुलन बनाने का दायित्व निभाता है। यह स्थान प्रेम का भी माना गया है। चाहे वह सांसारिक भौतिक शरीर के प्रति हो या अपने इष्ट के प्रति दोनों ही स्थितियों में प्रेमी हृदय में ही निवास करता है। व्यक्ति में जितनी अधिक प्रेम भावना होगी। यह चक्र उतना ही सक्रिय होता जायेगा। अतःइस चक्र को सक्रिय करने के लिए हृदय में प्रेम भावना का होना आवश्यक है।
अनाहत चक्र का तत्वरूप कमलदलों के मध्य वृताकार में षटकोणाकार आकृति है। जिसका वर्ण धुम्र वायुमंडल का है।
अनाहत चक्र सिंदूरी वर्ण में बारह कमल पंखुड़ियों वाली आकृति में है। इसकी प्रत्येक पंखुड़ी पर कं,खं,गं,घं,ड़ं,चं,छं,जं,झं,´ं,टं और ठं अक्षर अंकित है।
पंखुड़ियों के बीच के षटकोण में तत्व का बीज मंत्र ‘‘यं ’’अंकित है,जो कि काले मृग पर सवार है।
वृताकार में देवता ईशान रूद्र और देवी काकिनी निवास करती है। पंचमहाभूतों में यह चक्र वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। इसकी कर्मेन्द्रि हाथ और त्वचा ज्ञानेन्द्रि है।
4.2-अनाहत चक्र का स्थान:-
इस चक्र का स्थान हृदय माना गया है।
4.3-अनाहत चक्र के देवता :-
अनाहत चक्र के देवता ईशान रूद्र और देवी काकिनी है।
4.4-अनाहत चक्र का मंत्र:-
अनाहत चक्र का बीज मंत्र ‘‘यं ’’ है।
4.5-अनाहत चक्र को जाग्रत करने की विधिः- Kundlini yog kya he.
इस चक्र की साधना करने का अर्थ हुआ हमने अब तक तीन चक्रों की बाधाओं को पार कर लिया है।
किसी स्वच्छ और शान्त वातावरण में आसन बिछा कर सुखासन की मुद्रा में बैठ जायें।
अपने दोनों हाथों को अपने घुटनों पर रखें। ज्ञान मुद्रा में अपने हाथों को रखें। अंगुठे एवं तर्जनी अंगुली के सिरे को आपस में मिलाते हुए बैठें। गहरा श्वांस प्रश्वांस करें।
आपका मेरूदण्ड सीधा रखते हुए ध्यान अनाहत चक्र पर केन्द्रित करें।
अनाहत चक्र की आकृति,रंग आदि को देखेने का प्रयास करें।
अनाहत चक्र के तत्व बीज ’यं ’ का शुद्व उच्चारण करें। इसके उच्चारण से निकलने वाली ध्वनी का अनाहत चक्र के साथ साथ अपनी नाड़ियों में अनुभव करें। इसी ध्वनी से ऊर्जा का प्रवाह ऊपर की ओर होने लगता है।
इस अभ्यास का सुबह शाम को एक से डेढ़ घण्टे अभ्यास करना चाहिए।
4.6-अनाहत चक्र जाग्रत होने का प्रभावः-
चक्र जाग्रत होने से निम्न प्रभाव होते हैं :-
अनाहत चक्र का सम्बन्ध हृदय, रक्तवाहिनियों एवं श्वसन तन्त्र से होता है। अतः इन अंगों पर सकारात्मक प्रभाव होने के साथ साथ मन की चंचलता,दृढ़ता,चिन्ता,अविवेक,तृष्णा,आत्मिक आनन्द,दया,करूणा एवं संवेदनशीलता पर पड़ता है। इसका अभ्यस्त होने पर व्यक्ति सूक्ष्म शरीर भी धारण कर सकता है।
4.7-अनाहत चक्र का असन्तुलन होने पर हानिः-
जो लाभ चक्र के जाग्रत होने पर प्राप्त होते है। उसके विपरीत अनाहत चक्र के असन्तुलित होने पर वे सभी लाभ नहीं मिलते और व्यक्ति हृदय रोग,श्वांस , मानसिक व्याधियां हो सकती है।
5-विशुद्ध चक्र:– Kundlini yog kya he.
5.1-विशुद्ध चक्र क्या है :-
यह चक्र शरीर का पांचवा चक्र है। इसका स्थान हमारे कण्ठ में है। इस चक्र की साधना सफल होने पर व्यक्ति आध्यात्मिक रूप से जाग्रत हो जाता है। उसको अपने अस्तित्व का ज्ञान हो जाता है। इस स्थिति को प्राप्त करने पर व्यक्ति मानसिक रूप से विशुद्ध हो जाता है।
विशुद्ध चक्र के तत्व में सोलह बैगनी रंग के कमल दल है। जिन पर लाल आभा के साथ अं,आं,इं,ईं,उं,ऊं,ऋं,लृं,लृं,एं,ऐं,ओं,औं,अं,और अः चमकते है। इन कमल दलों के बीच में श्वेत वर्ण में वृत,वृत के बीच में त्रिकोण,त्रिकोण के मध्य पूर्ण चन्द्रमा,चन्द्रमा के बीच विशुद्ध चक्र का बीज मंत्र ‘‘हं‘‘ है जो श्वेत हाथी पर है।
विशुद्ध चक्र के कर्मेन्द्रि वाणी है एवं ज्ञानेन्द्रिय कान है। पंच महाभूतों में इसका तत्व आकाश तत्व है।
5.2-विशुद्ध चक्र का स्थान:-
विशुद्ध चक्र स्थान हमारे कण्ठ में है।
5.3-विशुद्ध चक्र के देवताः- Kundlini yog kya he.
इस चक्र के अधिपति देवता भगवान शिव है एवं देवी साकिनी है। जिसका श्वेत वर्ण,चार भुजा,पॉच मुख,त्रिनेत्र है और पीले वस्त्र धारण किये हुए है।
5.4-विशुद्ध चक्र का मंत्र :-
विशुद्ध चक्र का मन्त्र ‘‘ हं ‘‘ है।
5.5-विशुद्ध चक्र जाग्रत करने की विधि :- Kundlini yog kya he.
आप जिस विधि से भी ध्यान करते है। उसी मुद्रा में बैठ जायें। और अपना ध्यान विशुद्ध चक्र पर लगायें। विशुद्ध चक्र की आकृति का ध्यान करें।
5.6-विशुद्ध चक्र के प्रभाव :-
इस चक्र के सिद्ध होने पर मन विशुद्ध हो जाता है। चक्र सिद्ध होने पर व्यक्ति स्वस्थ,राग द्वेष मुक्त,निर्विकार,समदृष्टा हो जाता है। वाणी की सिद्धि प्राप्त हो जाती है। कहा जाता है कि इस चक्र की सिद्धि प्राप्त होने पर व्यक्ति सोलह कला सम्पन हो जाता है।
5.7-विशुद्ध चक्र के असन्तुलित होने पर प्रभावः-
विशुद्ध चक्र के असन्तुलित होने पर स्मरण शक्ति का हृस होने लगता है। स्वर सम्बन्धी रोग एवं मानसिक व्याधियां पनपने लगती है।
8-आज्ञा चक्र:– Kundlini yog kya he.
8.1-आज्ञा चक्र क्या है :-
आज्ञा चक्र मनुष्य के शरीर का छठा मूल चक्र है। आज्ञा चक्र मस्तिष्क में, भौंहों के बीच स्थित है। इस कारण इसे तीसरा नेत्र भी कहा जाता है। आज्ञा चक्र पर आकर हमारे आध्यात्मिक शरीर की तीन प्रमुख नाडिय़ों, इडा पिंगला और सुषुम्ना मिलती है।
आज्ञा चक्र में श्वेत वर्ण से दमकते दो कमल दल है। जिनमें चमकते हुए हं और क्षं अंकित है। जिनके मध्य एक वृताकार है। जिसके मध्य त्रिभुजाकार आकृति में बीज मंत्र ‘‘ऊं ‘‘ अंकित है।
यह पंचमहाभूतों से परे है।
8.2-आज्ञा चक्र का स्थान:- Kundlini yog kya he.
आज्ञा चक्र मस्तिष्क में, भौंहों के बीच स्थित है। इस कारण इसे तीसरा नेत्र भी कहा जाता है।
8.3-आज्ञा चक्र के देवता ,देवी:–
आज्ञा चक्र के प्रमुख देवता भगवान शिव है एवं देवी हाकिनी है जिसका वर्ण श्वेत, रक्त वर्ण में छः मुख, प्रत्येक मुख में तीन तीन नेत्र एवं छः भुजाएं है, जो श्वेत कमल पर विराजमान है।
8.4-आज्ञा चक्र का मंत्र:-
मंत्र ‘‘ऊं ‘‘ अंकित है।
8.5-आज्ञा चक्र जाग्रत करने की विधि। Kundlini yog kya he.
इसमें ध्यान की मुद्रा में बैठ कर दोनों भौहों के बीच मस्तिष्क में आज्ञा चक्र पर एकाग्रता से ध्यान करके आज्ञा चक्र के बीज मंत्र ऊं का बार बार उच्चारण करने से आज्ञा चक्र जाग्रत हो जाता है।
आज्ञा चक्र जाग्रत होने का प्रभावः- आप और हम सभी ने सुना है या ध्यान का प्रयोग किया है, तो दोनों भृकुटियों के मध्य ही ध्यान लगाने का प्रयास किया है या लगाया है। इस स्थान को तीसरा नेत्र भी कहते है। होशियार व्यक्ति के लिए व्यंग्य में कहा जाता है कि इसका तीसरा नेत्र खुल गया है। इसका मतलब वह व्यक्ति बहुत ज्ञानवान है।
8.6-आज्ञा चक्र के प्रभाव :-
इस चक्र के जाग्रत होने पर साधक को दिव्य ज्ञान प्राप्त होता है। अन्य व्यक्तियों के विचारों/मनोभावों को जानने की शक्ति प्राप्त हो जाती है। भूत,भविष्य,का ज्ञान होने लगता है। ऐसा व्यक्ति बौद्धिक रूप से संपन्न, संवेदनशील और तेज दिमाग का बन जाता है। इसके अभ्यास से बौद्धिक शान्ति मिलती है। अपार सिद्धियॉ प्राप्त हो जाती है। चेहरे एवं व्यक्त्वि में एक आकर्षणमय तेज,चमक,आभा का विकास हो जाता है।
8.7-आज्ञा चक्र के असन्तुलित होने का प्रभावः-
अगर किसी व्यक्ति का आज्ञा चक्र असन्तुलित हो जाता है। तो उस साधक का मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है। मानसिक रोगों का भय बन जाता है।
9-सहस्रार चक्र :- Kundlini yog kya he.
9.1-सहस्रार चक्र क्या है :-
यह चक्र सिर के ऊपरी भाग के कपाल में स्थित होता है। सहस्रार चक्र में एक शक्ति पायी जाती है जिसको मेधा शक्ति के नाम से जाना जाता है। अमरत्व या मौक्ष प्राप्त होना इसी चक्र की साधना पर निर्भर करता है।
सहस्रार चक्र में हजार पंखुड़ियों वाले अधोमुखी श्वेत कमल है। इन हजार पंखुड़ियों पर सूर्य की किरणों की आभा वाले अं से क्षं तक के सभी अक्षर सुशोभित है। जिसके बीच में पूर्ण चन्द्रमा स्थित है। इस चक्र का बीज तत्व बिन्दु है।
9.2-सहस्त्रार चक्र का स्थान:-
यह चक्र सिर के ऊपरी भाग के कपाल में स्थित होता है।
9.3-सहस्त्रार चक्र के देवताः-
इस चक्र के शिव देवता है एवं शक्ति देवी है।
9.4-सहस्त्रार चक्र का मंत्र:-
इस चक्र का मंत्र ” बिन्दु ” है।
Kundlini yog kya he.
9.5-सहस्रार चक्र जाग्रत करने की विधि :- Kundlini yog kya he.
सहस्त्रार चक्र जाग्रत करने के लिए हम मूलाधार से लेकर आज्ञा चक्र तक अभ्यास कर चुके है। सहस्त्रार चक्र के लिए ज्यादा साधना की आवश्यकता नहीं रहती है। क्योंकि साधना के अब तक हम अभ्यस्त हो चुके होते है। आध्यात्म की गहराईयों को भी अब तक समझ चुके होते है। सांसारिक बन्धनों से भी मुक्त हो चुके होते है।
इस चक्र को जाग्रत करने के लिए साधक को चक्र का एवं बीज बिन्दु का ध्यान करना होता है,लगातार ध्यान करने से यह चक्र जाग्रत हो जाता है।
9.6-सहस्रार चक्र के प्रभाव :-
जब साधक का सहस्त्रार चक्र जाग्रत हो जाता है,तो व्यक्ति को सहज समाधि की प्राप्ति हो जाती है। उसे दिव्य ज्ञान, अनंत ज्ञान प्राप्त हो जाता है। पुनर्जन्म नहीं होता मौक्ष,अमरत्व की प्राप्ति हो जाती है। वह समस्त सिद्धियों से भी ऊपर उठ जाता है। व्यक्ति की चेतना का ब्रह्माण्ड की चेतना से सम्पर्क हो जाता है।
9.7-सहस्त्रार चक्र के असन्तुलित होने पर प्रभावः- Kundlini yog kya he.
सहस्त्रार चक्र के असन्तुलित होने पर व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से अस्वस्थ हो सकता है।
ध्यान योग्य बातें। Kundlini yog kya he.
इन चक्रों की साधना को सन्तुलित रखने असंतुलन से बचाये रखने के लिए योग के अष्टॉग योग का पालन किया जाना आवश्यक होता है। जिसमें योग,ध्यान,प्राणायाम एवं आहार सम्बन्धी नियमों का पालन किया जाना चाहिए।
इन अभ्यासों का सुबह शाम एक से डेढ़ घण्टे अभ्यास करना चाहिए।
इनका अभ्यास करने के लिए साधक को सर्वप्रथम अपने स्वयं पर नियंत्रण करना होगा यानी नशा,मिथ्या भाषण,अति भोजन,वासना आदि पर नियंत्रण करना होगा। यानी शुद्व सात्विक जीवन जिसमें बह्मचर्य एवं मिताहार का पालन करना चाहिए।इन पर नियंत्रण किये बिना किसी भी प्रकार की साधना करना मुश्किल होता है।
चक्र जाग्रत करने के लिए उपयोगी कुछ आसनों का विवरणः-
ताड़ासन, वृक्षासन, मलासन, बद्धकोणासन, उत्तानासन और शवासन योगाभ्यास नियमित एवं पूर्ण विधान,सही रीती से किया जाने पर ही इसका उचित लाभ प्राप्त होता है। Kundlini yog kya he.
इस पोस्ट में आपको चक्रों की प्राथमिक जानकारी देना उद्देश्य मात्र है। अगर आप इन साधनाओं को करने में रूची रखते है, तो इन सब के लिए अनुभवी एवं योग्य साधक,प्रशिक्षक के सानिध्य में रह कर योगाभ्यास किया जाये। अन्यथा इसमें हानी होने की सम्भावना भी हो सकती है। जिसके लिए साधक खुद उतरदायी होंगे।
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