गठिया, Gathiya
गठिया, Gathiya को गठिया बाय,संधिशोथ और अंग्रेजी में आर्थ्राइटिस( Arthitis ) कहते है। यह बिमारी हमारी हड्डियों के जोड़ों से सम्बन्धित होती है, जो सूनने में सामान्य बिमारी लगती है। परन्तु इसके पीड़ित व्यक्तियों के लिए यह बेहद कष्टदायक पीड़ायुक्त स्थिति होती है। जो उनके लिए असहनीय होती है। इस बिमारी में पैर के अंगुठे अंगुलियों से लेकर मेरूदण्ड,कन्धे तक के हड्डियों के जोड़ों में असहनीय दर्द होता है। इससे जोड़ों में दर्द, सूजन और कड़ापन आ जाता है।गठिया, Gathiya रोग कई प्रकार के होते हैं, जिनमें से सबसे आम ऑस्टियोआर्थ्राइटिस और रूमेटोइड आर्थ्राइटिस हैं। इस ब्लॉग में, हम गठिया रोग के कारणों, लक्षणों और लाभकारी योगा के बारे में चर्चा करेंगे।
1-क्या है गठिया(Gathiya) रोग ?
गठिया, Gathiya एक सामान्य स्वास्थ्य समस्या है जिसमें जोड़ों में सूजन, दर्द, कड़ापन आता है, और जोड़ों की गतिशीलता में कमी आती है। यह रोग किसी भी उम्र में और स़्त्री या पुरूष किसी को भी हो सकता है।
गठिया के प्रकार
1. ऑस्टिया आर्थ्राइटिस :-
यह गठिया, Gathiya रोग का सबसे आम प्रकार है। गठिया, Gathiya रोग से पीड़ीतों की संख्या में गठिया, Gathiyaरोग के पीड़ीतों की संख्या सबसे है। जो मुख्य रूप से उम्र बढ़ने के साथ जोड़ों की उपास्थि (कार्टिलेज) के घिसने से होता है। गठिया, Gathiya जोड़ों के अत्यधिक उपयोग या चोट के परिणामस्वरूप भी हो सकता है। । सामान्यतः घुटनों, कूल्हों, हाथों, और रीढ़ की हड्डी में दर्द, जोड़ों में दर्द, सूजन और कड़ापन इसके लक्षण हैं। मुख्यतः इसका कारण दो अस्थियों के मध्य स्थित मुलायम पेड में टूट फूट होने पर अस्थियों को गति करने में बाधा होती है, जिस कारण जोड़ों में दर्द,सूजन,लालिमा आदि समस्याएं पैदा होने लगती है।
2. रूमेटोइड आर्थ्राइटिस :-
गठिया, Gathiya जोड़ों में सूजन, दर्द, और लाल रंग युक्त हो सकता है। गठिया, Gathiya अक्सर हाथों, कलाई,हाथों की अंगुलियों और पैरों के छोटे जोड़ों को प्रभावित करता है। यह समस्या अक्सर प्रातः के समय ज्यादा अनुभव की जाती है, जैसे जैसे दिन चढ़ता है राहत मिलती जाती है। यह वैसे तो किसी भी उम्र में हो सकता है।
3.गाउटी आर्थ्रराइटिस :-
शरीर में चयापचय की क्रिया से शरीर में उत्पन होने होने वाला यूरिक एसिड पेशाब के साथ शरीर बाहर निकल जाता है। अगर किन्ही कारणों से हमारा शरीर यूरिक एसिड का अधिक निर्माण करने लगे और बाहर निकलने की प्रक्रिया मन्द पड़ जाये,तो यह यूरिक एसिड हमारे रक्त में मिल कर हमारे जोड़ों में जमा होने लगता है। जिससे गाउटी की समस्या पैदा होने लगती है। जो जोड़ों में तीव्र दर्द और सूजन का कारण बनता है। यह अधिकतर पुरुषों में देखा जाता है और अक्सर पैर के अंगूठे में दर्द होता है। अचानक जोड़ों में दर्द, सूजन, और इनके इर्द गिर्द लालिमा गठिया, Gathiya लक्षण होते हैं।
4. एंकिलोजिंग स्पॉन्डिलाइटिस :-
यह मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करता है। यह ज्यादातर युवा पुरुषों को प्रभावित करता है।यह पैरों से प्रारम्भ होकर जो धीरे- धीरे कुल्हों से होता हुआ कन्धों तक फैल जाता है। इसके प्रभाव से मेरूदण्ड में टेढ़ापन आ जाता है।
2-गठिया, Gathiya के लक्षण
- गठिया, Gathiya रोग में सामान्यतःजोड़ों में दर्द होने लगता है। यह दर्द हल्का या गंभीर हो सकता है।
- गठिया से प्रभावित जोड़ों में सूजन आ जाती है।
- खासकर सुबह के समय या एक प्रकार से लंबे समय तक बैठने के बाद जोड़ों में कठोरता महसूस हो सकती है।
- अचानक और तीव्र दर्द विशेषकर पैर के अंगूठे में।
3-गठिया, Gathiya के कारण
गठिया (आर्थ्राइटिस) एक व्यापक स्वास्थ्य समस्या है, जो जोड़ों में सूजन, दर्द, और कठोरता का कारण बनती है। यह समस्या किसी भी उम्र में हो सकती है गठिया, Gathiya के कारण जटिल और बहुआयामी होते हैं, जिनमें आनुवांशिक, पर्यावरणीय, और जीवनशैली संबंधी आदि शामिल हैं।
- गठिया, Gathiya के कई प्रकारों में आनुवांशिक कारक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यदि आपके परिवार में किसी को गठिया रोग है, तो आपको भी गठिया रोग होने की संभावना अधिक होती है।
- गठिया, Gathiya बाय के कुछ प्रकार, जैसे रूमेटोइड आर्थ्राइटिस, प्रतिरक्षा प्रणाली की खराबी के कारण होते हैं।
- यूरीक एसीड की अधिकता भी गठीया रोग के पैदा होने का एक कारण हो सकता है।
- जो लोग पुराने चोटों से पीड़ित हैं, वे ऑस्टियोआर्थ्राइटिस के विकास के लिए अधिक संवेदनशील होते हैं।
- जिन लोगां का व्यवसाय की गतिविधियां के कारण जोड़ों पर अधिक दबाव पड़ता हैं, जैसे खेल, वजन उठाना, और जिन कार्य से लगातार एक ही प्रकार की गतिविधि होती रहती है। यह जोड़ों की दोनों हड्डियों के घिसने का कारण बन सकता है,जो आगे चल कर गठिया(Gathiya) का रूप ले लेता है।
- प्रोसेस्ड फूड्स, अत्यधिक शुगर, और ट्रांस फैट आदि भी गठिया के कारण बन सकते हैं, सूजन को बढ़ा सकते हैं।
- हार्मोनल का असंतुलित स़्त्राव भी गठिया, Gathiya रोक का कारण बन सकता है।
- गठिया, Gathiya रोग का खतरा उम्र के साथ बढ़ता है। ऑस्टियोआर्थ्राइटिस मुख्यतः वृद्धावस्था में होता है, क्योंकि उम्र के साथ उपास्थि की मोटाई कम होती है और जोड़ों में सामान्य क्षति बढ़ती है।
4-गठिया, Gathiya रोग से बचाव
- गठिया, Gathiya रोग वैसे कहें तो किसी भी प्रकार की बिमारी से बचने का सामान्य उपाय यही है, कि पौष्टिक और स्वस्थ आहार भोजन में शामिल किया जाना चाहिए।
- हमेशा ताजा और शुद्ध भोजन करना चाहिए। डिब्बा बन्द भोजन,बासी, भोजन नहीं करना चाहिए।
5-शारीरिक गतिविधि और व्यायाम
5.1-सूक्ष्म व्यायामः-
- सूक्ष्म व्यायाम का अर्थ है छोटी (सूक्ष्म) गतिविधि अथवा व्यायाम करना जिससे शरीर के जोड़ मजबूत एवं लचीले बने रहें।
सूक्ष्म व्यायाम की विशेषताऐं हैं :-
i- श्वसन के प्रति जागरूकता।
ii- विशिष्ट जोडों पर ध्यान देना जिन्हें मजबूत या ठीक किया जाना है।
iii- श्वास लेना और श्वास छोडना तथा जोडों के साथ लयात्मक गतिविधियां।
5.2-लाभ - सूक्ष्म व्यायाम अनेक रूपों में लाभकारी है। इनमें से कुछ हैंः
1.मांसपेशियों में आ रही रूकावटों को दूर करना।
2.मांसपेशियों को मजबूत बनाना।
सुक्ष्म व्यायाम करने के लिए किसी हवादार एवं स्वच्छ वातावरण में योगा मेट या चटाई बिछा कर तैयारी कर लेनी चाहिए।
व्यायाम से जोड़ों की गतिशीलता और मांसपेशियों की मजबूती बनी रहती है। नियमित व्यायाम गठिया, Gathiya की बीमारी से बचाव और इसके लक्षणों को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
योग से लचीलीपन आता हैः- नियमित योगाभ्यास से शरीर में लचीलापन आता है। जब जोड़ों का कड़कपन कम होगा एवं लचीलापन आयेगा तो जोड़ों का दर्द कम होने के कारण जोड़ों की गतिशीलता बढ़ेगी और गठिया, Gathiya के रोगीयों को इससे लाभ प्राप्त होने की सम्भावना बन जाती है।
- पंजे एवं घुटने की सुक्ष्म यौगिक क्रियाः-
अ. योगा मेट या चटाई पर ख़डे होकर अपना सन्तुलन बनाऐं । अब अपने दांये घुटने को मोड़कर एड़ी से नितम्ब को पांच बार ताड़ित करें।
बाद में ऐसा ही अपने बायें घुटने को मोड़ कर करें।
ब. खड़े हो जायें अब अपने घुटने की ढ़क्कनियों को पांच बार ऊपर -नीचे करें। - स. कमर पर हाथ रखें। एड़िया मिली हुई पंजे खुले रखें।
i. धीरे धीरे घुटनों को आगे सामने की ओर मोड़े। श्वांस का रेचन करें।कुछ सैकेण्डों के लिए रूके।
ii. श्वांस पूरक कर ऊपर आएं। मेरूदण्ड एवं गर्दन को सीधा रखें। इस क्रिया की पांच बार आवृति दौहरावें।
- द.
i -अपने दोनों घुटनों को दायीं ओर मोड़े। श्वांस का रेचन करें। मेरूदण्ड को सीधा रखतें हुए,घुटनों को हल्का सा झुकाएं ,श्वांस का पूरक करें।
इस प्रयोग की तीन आवृति दौहरावें।
ii- अपने दोनों घुटनों को बायीं ओर मोड़े। श्वांस का रेचन करें। मेरूदण्ड को सीधा रखतें हुए,घुटनों को हल्का सा झुकाएं ,श्वांस का पूरक करें। - इ
i- अपने दोनों पंजों को मिला कर खडे़ हो जायें।
ii- अपने श्वांस का रेचन कर घुटनों को नीचें की और थोड़ा सा झुकाएं़े और दांए-बाएं गोलाकार आकृति में पांच बार घुमाएं। - ई
i-अपने दाहिने पैर के पंजे को भूमि से थोड़ा ऊपर उठाकर फिर नीचे की ओर मोड़े। दाहिने पैर एवं पिंडली को सीधा रखें अंगुठे को भूमि की ओर खिंचाव दे।
ii- ऐसा ही अपने दूसरे पैर से भी करें । इन सभी की पॉच आवृति में करें। - फ
- i- पैर की एक एक अंगुली को बारी बारी से ऊपर नीचे करते हुए सभी अंगुलियों को सक्रिय करें।
ii- फिर दांए से बायें और बायें से दायें पैर को गोलाकार घुमाएं। ऐसा ही दूसरे पैर से करें। इन क्रिया की पांच बार आवृति दौहरावेंं।
पैरों के लिए सुक्ष्म यौगिक क्रियाः-
- अ
i- श्वांस भरते हुए अपने पैरों के पंजों पर खड़े हो जायें।
ii- फिर श्वांस छोड़ते हुए एड़ी को जमीन पर रख दें। - ब
i- श्वांस भरते हुए एड़ी पर खड़े रहें। पंजों को जमीन से ऊपर उठाएं रखें।
ii- श्वांस छोड़ते हुए अपने पंजों को भूमि पर रखें।
प्रत्येक क्रिया का पांच पांच बार दोहराव करें।
हाथों के लिए :-
i. अपने हाथों की हथेलियों को नीचे की और रखते हुए सामने की ओर सीधा फैलाएं । श्वांस भरते हुए छोटी अंगुली से छु कर प्रत्येक अंगुली को क्रियाशील करें।
ii. श्वांस प्रश्वांस करें, अपने हाथ की हथेली एवं कलई तक के भाग को पांच बार बार ऊपर नीचे करें तथा कलई को गोल गोल घुमाए, हाथ सीधा रखें।
iii. कुहनियों को मोड़े और सीधा करें,इस आवृति को पॉच बार दौहरावें ।
कन्धों के लिएः-
- अ.
i-दोनों हाथों की मुठ्ठी बन्द करें । श्वांस भरते हुए दोनों कन्धों को ऊपर उठाएं।
ii- श्वांस छोड़ते हुए कन्धों को नीचे ले जायें।
हाथ सीधे रखें,इस की नौ आवृतियों का दौहराव करें। - ब
i-दोनों हाथों को मोड़कर अंगुलियों के सिरों को आपस में मिलाकर अपने कन्धों पर रखें। तीन बार हाथों को आगे पीछे की ओर गोल घुमाएं ।
ii- श्वांस भरते हुए हाथों को तीन बार पीछे से आगे की और गोल घुमाएं।
iii- श्वांस छोड़ते हुए हाथों को तीन बार आगे से पीछे की ओर गोल घुमाए।
गर्दन के लिएः- - अ सीधे खड़े हो जायें।
i- श्वांस भरें,गर्दन को पीछे पीठ की ओर ले जाएं आकाश की ओर देखें।
ii- श्वांस को छोड़ते हुए ठुडडी को सीने से लगाएं।
मूल स्थिति मे आ जायें, पांच आवृति में दोहरावें। - ब.
i- श्वांस भरें,
ii- श्वांस छोड़ते हुए गर्दन को दाएं कन्धे की तरफ मोड़े । अधिक से अधिक दृष्टि पीछे की ओर ले जाकर देखने का प्रयास करें।
iii- पूरक करें।
iv- श्वांस छोड़ते हुए, गर्दन बाएं कन्धें की ओर मोड़े। अधिक से अधिक दृष्टि पीछे की ओर ले जाकर देखने का प्रयास करें।
इन क्रियाओं को पांच बार दोहरावें। - स. गर्दन को दायें बायें दोनों ओर से गोल घुमाएं।
i-श्वांस पूरक करते हुए ठुड्डी को कण्ठ(जलन्धर बन्ध के समान ) पर लगाएं, बाद में पीठ की ओर सिर को झुकाएं और अपनी आंखें बन्द रखें।
ii- अपनी गर्दन को घुमाते हुए दाहिने कन्धे को ठुड्डी से स्पर्श कराते हुए गर्दन को पीठ की ओर ले जाएं।
इसी क्रिया को बांये कन्धे की ओर दौहरावें।
iii- बाएं कान से बाएं कन्धे से छुते हुए ठुड्डी को कंठ से लगाएं । इस क्रिया को बांयी ओर से भी दोहरावें। तीन आवृति करें। - द.
i.श्वास भर कर सिर और गर्दन को दाहिनी ओर झुकाएं, कान कन्धे को स्पर्श करें सिर को सीधी कर रेचन करें।
ii.पूरक कर बांयी ओर सिर का झुकाएं कान कन्धे का स्पर्श करेंंगे सिर और गर्दन का ेसीधा कर रेचन करें। तीन आवृति।
5.2-आसनः-
5.2.1-सूर्यनमस्कार :-
सूर्य नमस्कार योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है। यह अकेला अभ्यास ही हमारे सम्पूर्ण शरीर का व्यायाम करा देता है।इसके अभ्यास में हम विभिन्न योगासनों के बारह अभ्यास करते हैं। सूर्यनमस्कार के नियमित अभ्यास से हमारा शरीर स्वस्थ और चेहरा ओजपूर्ण हो जाता है। महिलायें हों या पुरुष, बच्चे हों या वृद्ध, सूर्य नमस्कार के अभ्यास सभी के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसके अभ्यास से शरीर के प्रत्येक जोड़ का व्यायाम हो जाता है जो कि गठिया, Gathiya के लिए अत्यन्त लाभदायक होता है। इस एक योगासन के अभ्यास में अनेकों योगाभ्यास का लाभ मिलता है।
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5.2.2-पवनमुक्तासन :-
पवनमुक्तासन एक ऐसा आसन है, जो कि पेट की समस्याओं के लिए अत्यन्त लाभदायक माना गया है। पेट की गैस एवं कब्ज की समस्या में तो इसका नियमित अभ्यास रामबाण माना गया। यह आसन कम करने में भी असरकारक माना गया है। इस योगाभ्यास से हाथ,पैर के जोड़ एव्ां मेरूदण्ड की अच्छी तरह से मालिश हो जाती है। जो कि गठिया, Gathiya के लिए लाभदायक माना गया है।
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5.2.3-भुजंगासन :-
भुजंगासन की मुद्रा में साधक की आकृति फनधारी साँप की भाँति प्रतीत होती है, इसलिए इस आसन का नाम भुजंगासन है। यह छाती और कमर की मांसपेशियां को लचीला बनाता है और मेरूदण्ड में आये किसी भी तनाव को दूर करता है। जिस कारण इसका अभ्यास गठिया, Gathiya में भी बहुत लाभदायक हो सकता है।
5.2.4धनुरासन :-
धनुरासन के अभ्यास में साधक की मुद्रा धनुष की आकृति के समान बन जाती है। इस योगासन के अभ्यास से गर्दन का तनाव कम होता है,गर्दन व मेरूदण्ड का दर्द कम करने में मिलती है। पेट एवं पैरों की मांसपेशियों की जकड़न खत्म होती है। समस्त जोड़ों की मालिश होने पर वे लचीले एवं गतिशील बनते है।
5.2.5-नाड़ी शोधन एवं भस्त्रिका प्राणायाम
इन प्राणायाम का नियमित अभ्यास करने से फेफड़ों की क्षमता में वृद्धि होती है। श्वांस के दोष भी दूर होते है। इन प्राणायामों के अभ्यास से शरीर को ऑक्सीजन की भरपूर मात्रा में प्राप्ति होती है।जिस कारण सम्पूर्ण शरीर को स्वास्थ्य लाभ मिलता है। इसका सकारात्मक प्रभाव गठिया, Gathiya पर भी पड़ता है।
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गठिया(Gathiya) के बचने में सहयोगी सुझावः-
शरीर का वजन बहुत अधिक होने से बचना चाहिए। क्योंकि शरीर समस्त भार पैर एवं घुटनों पर ही आता है। जिस कारण जोड़ों मे दर्द होकर गठिया, Gathiya को पैदा करने में वजन सहायक हो सकता है।
नियमित रूप से ध्यान एवं प्राणायाम का अभ्यास करना चाहिए।
नियमिति रूप से स्वास्थ्य जॉच करवायी जानी चाहिए। जिससे अगर कोई लक्षण पैदा हों तो उनका समय पर निदान कर गठिया, Gathiyaरोग पर समय रहते हुए,निदान करवाया जा सके।ऽ
इस प्रकार हम देखते है, कि गठिया, Gathiyaरोग के पनपने में कई कारण होते है जैसे आनुवांशिक, पर्यावरणीय, जीवनशैली और असन्तुलित हार्मोनल। गठिया रोग नियन्त्रित करने के लिए सन्तुलित जीवनशैली , संतुलित आहार, नियमित व्यायाम महत्वपूर्ण हैं।
समय पर चिकित्सकीय परीक्षण करवाने से समय पर गठिया, Gathiya जानकारी प्राप्त हो सकती है। जिस पर समय पर दवा एवं जीवन शैली में बदलाव,जीवन में दैनिक रूप से योग,प्राणायाम एवं ध्यान के अभ्यासों शामिल कर सकते है। जिससे शरीर स्वस्थ एवं निरोग रखा जा सकता है।
इस पोस्ट का उद्देश्य योग की जानकारी उपलब्ध करवाना मात्र है । इन योगासनों प्राणायामों का चिकित्सीय कारणों से अभ्यास किया जाना हो, तो अपने चिकित्सक एवं योगाचार्य से परामर्श किया जाना चाहिए।
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